2024-08-30 12:16:13
देश में पिछले करीब 5-6 हजार वर्षों से ब्राह्मणवाद, मनुवाद और जातिवाद सामाजिक संरचना में गहराई तक समाहित है। इन तीनों ‘वाद’ रूपी बीमारी का जनक ब्राह्मण समाज है। जिसने अपने आपको समाज में सर्वोपरि रखने के उद्देश्य से समाज को वर्णों में बांटा और फिर उससे भी अपना काम चलता न देखकर पूरे समाज को 6743 जातियों में विभक्त कर दिया। अपने इस छलावामयी और देश विरोधी कृत्य के लिए जनता में भ्रम फैलाया गया कि समाज का जातीय घटकों में विभाजन देश में विदेशी आक्रमणकारियों ने कराया है। देश की अधिसंख्यक जनता को अशिक्षित और मानवीय अधिकार विहीन रखा। सबसे ज्यादा विभक्तिकरण चौथे वर्ण की शूद्र जातियों में किया गया और इसी वर्ण को अशिक्षित और अधिकार विहीन भी रखा गया। भारतीय समाज को अब अच्छी तरह से जान लेना चाहिए कि समाज में सामाजिक बीमारियों का जनक ब्राह्मण वर्ण है जो छिपे ढंग से काम करता है और अपनी समाज विरोधी कारस्तानियों को समाज के समक्ष नहीं आने देता। इस जातिवादी संक्रमित बीमारी से इस देश की सरकार जितना जल्दी मुक्त कराएगी देश उतना ही सबल होकर आगे बढ़ सकता है। आज की मनुवादी संघी सरकार का तर्क है कि देश में जाति जनगणना नहीं करानी चाहिए चूंकि जाति जनगणना से देश को नुकसान है, समाज जातियों के टुकड़ों में बंट जाएगा, इन अकल के अंधे कथित पत्रकार व जातिवादी मानसिकता से बीमार लोगों को ऐसे बयान देने से पहले देश की जनता को यह बताना चाहिए कि क्या आज देश का समाज जातियों में नहीं बंटा हुआ है? क्या देश में आज जातिवादी मानसिकता मजबूत नहीं है? क्या आज देश की ब्राह्मणवादी राजनीति जातिगत जनगणना कराने से डरी हुई नहीं है? देश के अतीत को देखकर लगता है कि ब्राह्मणवाद, मनुवाद और जातिवाद सामाजिक संरचना में गहराई तक समाहित हो चुका है जाति जनगणना का विरोध देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियाँ अपने अंदर छिपी ब्राह्मणवादी मानसिकता के कारण करती आ रही है। जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों ही शामिल है। इन दोनों के अलावा कुछेक ब्राह्मणी मानसिकता के पिछड़े वर्ग के जातीय घटकों के लोग भी हो सकते हैं और वे अपने स्वार्थवश जातिवाद को देश विरोधी बताने की कोशिश कर रहे हैं। मगर अब धीरे-धीरे पिछड़े वर्ग के जातीय घटकों से इस तरह के अंतर्विरोध का चश्मा उतरता जा रहा है। मंडल कमीशन देश में लागू होने के बाद अब पिछड़े वर्ग की जातियों के नेता जातीय जनगणना की माँग भी प्रमुखता से उठा रहे हैं। कांग्रेस जो अपने अतीत के इतिहास में ब्राह्मणवाद को मजबूत करती नजर आ रही थी उसके विपक्ष के नेता अब जातीय जनगणना के पक्ष में खड़े होकर बयान दे रहे हैं कि ‘जाति जनगणना मेरी माँग ही नहीं मेरा मिशन है और मैं इसे कराके रहूँगा’ राहुल गांधी अब कांग्रेस के अतीत के इतिहास के उलट यह भी बयान दे रहे हैं कि देश में जिस जातीय घटक की जितनी संख्या होगी उसकी सरकार के संसाधन और नौकरियों में उनकी उतनी ही भागीदारी सुनिश्चित कराई जाएगी। दलित जातियों के राजनीतिक नेताओं को ऐसी नीतियों का समर्थन करके जातीय जनगणना आधारित सभी का हिस्सा सुनिश्चित कराना चाहिए, अतीत के इतिहास में कांग्रेस की मानसिकता को दर्शाकर विरोध करना तर्कसंगत और उचित नहीं है।
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