2023-08-25 12:26:58
बहुजन समाज के मुख्य जातीय घटक है-एससी, एसटी, पिछड़ी जातियाँ, पसमांदा मुस्लिम व अन्य सभी अल्पसंख्यक। सदियों से देश विषमतावादी मनुवादी संस्कृति में फंसा है। जिसके कारण ब्राह्मणी वर्गीकरण की सभी शूद्र जातियों ने विषमतावादी संस्कृति के प्रभाव को सबसे ज्यादा झेला है। देश में शूद्रों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 85-90 प्रतिशत है। यहाँ हम 90 प्रतिशत जनसंख्या इसलिए लिख रहे हैं चूंकि शूद्र कहे जाने वाली जातियों के अलावा सवर्ण समाज की महिलाओं के साथ भी मनुस्मृति के अनुसार शूद्रों जैसा ही व्यवहार किया गया है। इस प्रकार पूरे शूद्र कहे जाने वाले समाज को सभी अधिकारों से वंचित करना मनुवादियों का एक बड़ा षड्यंत्रकारी खेल था। वास्तविकता के आधार पर शूद्र वर्ग की सभी जातियाँ (महिलाओं सहित) यूरेशिया से आए ब्राह्मणों (आर्यों) द्वारा परास्त हुआ जनसमूह था। यूरेशियन ब्राह्मणों ने यहाँ के मूलनिवासियों से कोई युद्ध नहीं किया था, और न यहाँ के मूलनिवासी (आज के शूद्र) युद्ध में आर्यों से हारे थे। कपटी यूरेशियन ब्राह्मणों ने यहाँ के भोले-भाले मूलनिवासी राजाओं के परिवारों में फूट पैदा करके अपने प्रपंचकारी षड्यंत्रों में फंसाया। भिन्न-भिन्न प्रकार के पाखंडी षड्यंत्रो का गुणगान करके उनके मस्तिष्क पर काबू किया और फिर ऐसे लोगों को राज्य के मुखिया के विरुद्ध खड़ा करके छल से मरवा दिया गया। उदाहरण के लिए बाली और सुग्रीव दो सगे भाई थे, बाली बड़ा होने के नाते राजा था और वह महा शक्तिशाली होने के कारण महाबली कहलाता था। लेकिन यूरेशियन ब्राह्मणों ने छल-कपट से उसके भाई सुग्रीव को अपने ब्रह्मजाल में फंसाया और फिर षड्यंत्रकारी तरीके से सुग्रीव को बाली के सामने खड़ा करके चालाक ब्राह्मणों ने सुग्रीव की ओट में खड़े होकर बाली का वध किया था। इसी प्रकार दूसरा उदाहरण हिरणाकश्यप का है जिसमें हिरणाकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को अपने ब्रह्मजाल में फंसाकर उसके राज्य को ध्वस्त किया। रावण का राज्य भी उसके भाई विभीषण को फंसाकर ध्वस्त किया गया। ब्राह्मणी मानसिकता का यही चरित्र उनके आगमन से शुरू होता है और वह आज भी इसी नीति से बहुजन समाज की शक्ति को नष्ट कर रहा है। इसे वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में समझने के लिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का उदाहरण ले सकते हैं। यह सर्वविदित है कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया के श्रेष्ठतम विद्वानों में से एक थे। परंतु जब वे भंडारा सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो उनके सामने उन्हीं की जाति के एक अनपढ़ व्यक्ति को खड़ा करके चुनाव में उन्हें हरवाया गया था। महात्मा ज्योतिबा फूले बहुजन समाज में अपना जागरूकता अभियान चला रहे थे तो षड्यंत्रकारी तरीके से मनुवादियों ने उनकी हत्या कराने के लिए बहुजन समाज के ही दो व्यक्तियों को उनका कत्ल करने की सुपारी दी थी। इन सबके अलावा बहुजन समाज के सामने ऐसे हजारों उदाहरण है। जब ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों द्वारा बहुजन समाज के चमकते हुए सितारों को मिटाने के लिए बहुजन समाज का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालही में कुछ दिन पहले स्वामी प्रसाद मौर्य की एक सभा में उनके ऊपर जूता फेंकने की घटना घटित हुई। इस घटना को अंजाम देने वाला व्यक्ति वहीं पकड़ा गया जिसकी समाजवादी पार्टी के कार्यकतार्ओं ने खूब पिटाई भी की। पकड़े जाने पर पुलिस जाँच में पता चला कि जूता फेंकने वाला व्यक्ति सैनी समाज से था जो बहुजन समाज की पिछड़ी जाति का ही एक अंग है। इस प्रकार के प्रकरणों से सिद्ध होता है कि बहुजनों पर अभी तक जितने भी विध्वंसकारी अमानवीय अत्याचार हुए हैं वे सभी ब्राह्मणी संस्कृति के द्वारा प्रायोजित षड्यंत्रों का ही नतीजा रहा है।
बहुजन समाज को विरासत में संपत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं मिला, सभी की पहली पीढ़ी ने मुश्किल भरे जीवन में पढ़ाई-लिखाई करके बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आशीर्वाद से नौकरियां पाई और उसी के बल पर थोड़ा बहुत मकान, दुकान बनाकर संपत्ति पैदा की। जो सवर्णों के सापेक्ष 75 वर्षों के बाद भी नगण्य है। आज की मनुवादी सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 लाकर बहुजनों को पढ़ाई से रोकने का मनुवादी इलाज कर दिया है। आगे आने वाली पीढ़ी को रोजगार न मिलने का भी पक्का इंतजाम सभी संस्थाओं, रेलवे, हवाई अड्डों को अपने संघी व्यापारी मित्रों को बेचकर कर दिया है। इन घटनाओं का गंभीर संज्ञान लेते हुए बहुजन समाज को अब देश की संपत्ति में अपना हिस्सा माँगना चाहिए और न मिलने पर देशव्यापी आंदोलन के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
देश का उच्च आय वर्ग: यूबीएएस (यूनियन बैंक आफ स्वीजरलैंड) की ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट-2023 के अनुसार भारतीय व्यस्कों के पास औसतन करीब 14 लाख रुपए की संपत्ति है जो वैश्विक औसत से करीब 5 गुना कम है। जबकि रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय व्यस्कों की संपत्ति बढ़ने की दर वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी है। भारतीयों की संपत्ति 8.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जबकि वैश्विक औसत 4.6 प्रतिशत का है। भारत में असमानता की दर भी काफी बढ़ रही है। साल 2000 में 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 33.2 प्रतिशत संपत्ति थी जो साल 2022 तक बढ़कर 40.4 प्रतिशत हो गई। 2022 तक भारत में 1.49 लाख अरबपति थे। इनमें 5480 अल्ट्राहाई नेटवर्थ इंडिविजुअल भी है। इनके पास 831 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति है। भारत में लगभग 1.44 लाख करोड़ की शुद्ध संपत्ति है। वर्ष 2022-23 की अवधि में भारत के प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 72 हजार रुपए है।
देश का मध्यम वर्ग: वर्ष 2020-21 में देश की कुल आबादी में मध्यम वर्ग का हिस्सा 43.2 करोड़ था, इसे ध्यान में रखते हुए प्राइस ने 2020-21 की कीमतों के आधार पर सालाना 1.09 लाख से 6.46 लाख रुपए अर्जित करने वाले लोगों को भारत के मध्यम वर्ग में परिभाषित किया था। उसके बाद जिस परिवार की सकल वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम है उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर माना है। इस आधार पर 8 लाख रुपए से 25 लाख रुपए की आय वाले परिवारों को मध्यम वर्ग में परिभाषित कर सकते हैं। पहला 8 से 25 लाख रुपए सालाना कमाने वाले और दूसरा 25 से 50 लाख रुपए कमाने वालों को मध्यम वर्ग में विभाजित कर सकते है। आंकलन के अनुसार मध्यम वर्ग के पास औसत संपत्ति 7 लाख 23 हजार 930 रुपए है जो कुल संपत्ति का 30 प्रतिशत है। शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास 63 लाख 54 हजार 70 रुपए की संपत्ति है जो कुल संपत्ति का 65% भाग है जिसे उच्च आमदनी वाला वर्ग मान सकते हैं। देश की आधी आबादी के पास संपत्ति शून्य है जबकि देश के 10 प्रतिशत अमीरों के पास कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत हिस्सा है। जबकि देश में 50 प्रतिशत आबादी के पास कुछ भी नहीं है उनकी औसत संपत्ति 66 हजार 280 रुपए है जो कुल संपत्ति का महज 6% है।
भारत में 1% सबसे अमीर लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से भी अधिक हिस्सा है। विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक में ‘आॅक्सफैम’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि अगर भारत के सबसे धनी लोगों पर 5 प्रतिशत कर लगाया जाये तो भारत के सभी बच्चों को स्कूल वापस लाने के लिए पूरा धन मिल सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ एक अरबपति गौतम अडानी को 2017-21 के बीच मिले अवास्तविक लाभ पर एक मुस्त टैक्स लगाकर 1.79 लाख करोड़ रुपए जुटाकर भारतीय प्राथमिक विद्यालयों के 50 लाख से अधिक शिक्षकों को एक साल के लिए रोजगार व वेतन देने के लिए पर्याप्त है। रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि अगर भारत के अरबपतियों की पूरी संपत्ति पर दो फीसदी दर से ‘एकमुस्त कर’ लगाया जाये तो इससे देश में अगले 3 साल तक लोगों के पोषण के लिए 40 हजार 423 करोड़ रुपए की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे अमीर अरबपतियों पर 5 प्रतिशत का एकमुस्त कर लगाकर 1.37 लाख करोड़ रुपए मिल जाएँगे जो 2022-23 के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के 86 हजार 200 करोड़ रुपए के बजट से 1.5 गुना अधिक है।
देश के सबसे अमीर अरबपतियों की संख्या 2020 में 102 से बढ़कर 2022 में 166 हो गई है। जिनमें 100 सबसे अमीर लोगों की संयुक्त सम्पति 54.12 लाख करोड़ रुपए हो गई है। इतने धन से पूरे देश के केंद्रीय बजट को 20 महीने तक फंड किया जा सकता है।
अगर देश के इन 166 सबसे अमीर लोगों पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स लगाया जाये तो उससे देश को 10 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि प्राप्त हो सकती है। जिससे पूरे देश की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पेंशन भोगी, देश की रक्षा-सुरक्षा से जुड़े सभी तंत्रों का आसानी से बंदोबस्त किया जा सकेगा और जो धन इन मदों पर खर्च करने के बाद बचेगा उसको संपत्तिहीन बहुजन समाज के घटकों के लिए शिक्षण संस्थान, विश्वविद्यालय व औद्योगिक संस्थान आदि लगाने पर खर्च किया जा सकेगा। चूंकि अभी तक पूरा का पूरा शूद्र समाज 3 प्रतिशत की सम्पति में सीमित है। इस समाज को आगे बढ़ाने के लिए संपत्ति कर से प्राप्त किए गये 10 लाख करोड़ रुपए को इस्तेमाल किया जाना चाहिए। देश की जनसांख्यिकी में बहुजन समाज बहुसंख्यक है और उनकी आबादी करीब 80-85 प्रतिशत है। देश को खुशहाल व समृद्ध बनाने का सपना तभी पूरा हो सकता है जब बहुजन समाज के सभी घटकों को न्यायसंगत संपत्ति में भागीदार बनाया जाये। आज भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बहुत ही असमानता है। देश की 50 प्रतिशत आबादी के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है इन 50 प्रतिशत लोगों में अधिकांश संख्या बहुजन समाज की ही है। इसलिए देश के सबसे अमीर 166 लोगों पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स लगाकर 10-12 लाख करोड़ धन राशि इकट्ठा की जा सकती है। बहुजन समाज के व्यस्कों के लिए मध्यम किस्म के उद्योगों, स्कूल व विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा सकती है। उद्योगों का मालिक बहुजन समाज के लोगों को ही बनाया जाये और अगर उनमें उद्योगों को चलाने के लिए कोई असक्षमता नजर आए तो उन्हें जरूरी तकनीकी शिक्षण-प्रशिक्षण देकर तैयार किया जाये। ऐसा होने पर बहुजन समाज के लोगों का इस देश की संपत्ति में हिस्सा बन सकेगा और वे अपने प्रयासों से आगे बढ़ने के लिए भी प्रयत्नशील हो सकेंगे। समाज में गरीबी के नाम पर नाटक करके मुफ्त राशन व अन्य सामग्री न बांटी जाये। बहुजन समाज को एकता के साथ देशव्यापी आंदोलन खड़ा करके देश के संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी मांगनी चाहिए। जो राजनैतिक दल बहुजनों की माँग का समर्थन न करे, उन्हें 2024 के संसदीय चुनावों में हराना चाहिए। बहुजन समाज की जनता का वोट उसी को मिलेगा जो देश की संपत्ति में हिस्सेदारी की लड़ाई में उनके साथ खड़ा होगा।
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