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बहुजन समाज की राजनीतिक पार्टियों में विचारक मंडल की स्थापना हो

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2024-10-04 12:33:28

बहुजन समाज के सर्वोमान्य नेता मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। मान्यवर कांशीराम जी ने बहन कुमारी मायावती जी को अपना उत्तराधिकारी चुना। मान्यवर साहेब कांशीराम जी के परिनिर्वाण के बाद बहन जी बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बन गई। सुप्रीमो बनने की अवधारणा से किसी भी मनुष्य के अंदर अहंकार पैदा होना स्वाभाविक है। इसलिए पार्टी में सुप्रीमो की अवधारणा को जन्म देने से पार्टी का नुकसान हुआ है। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े सभी वर्गों के मन में संदेह पैदा हुआ है। जिसके कारण आज बहुजन समाज पार्टी सिर्फ एक जाति विशेष की पार्टी बनकर रह गई है।

भगवान बुद्ध ने 2500 से अधिक वर्ष पहले भिक्खु संघ की स्थापना की थी। भिक्खु संघ की स्थापना करने के बाद उन्होंने अपने श्रेष्ठतम शिष्य भिक्खु आनंद को भिक्खु संघ का उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था। उन्होंने भिक्खु संघ का कौन अध्यक्ष और संघचालक होगा? उसे भिक्खु संघ के सदस्य ही तय करेंगे, भगवान बुद्ध के द्वारा ऐसी व्यवस्था देना लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से सही था। भंते आनंद ने जब तथागत भगवान बुद्ध से पूछा कि आपके पश्चात बुद्ध धम्म का संचालक कौन होगा तो उन्होंने भंते आनंद को जवाब दिया था कि धम्म का संचालक भिक्खु संघ ही होगा। तथागत भगवान बुद्ध की यह सोच दूरदर्शी थी जो वर्तमान में भी सभी दृष्टिकोणों से सही और व्यापक है। आज विश्व के बहुत सारे देश भगवान बुद्ध के धम्म को अपना रहे हैं, दिन-प्रतिदिन भगवान बुद्ध के अपनाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। विश्व में जहाँ-जहाँ बुद्ध शासन है वहाँ-वहाँ शांति और समृद्धि है। शायद यही कारण है कि बहुजन समाज के राजनीतिक नेताओं ने स्वयं को आगे बढ़ाने और चमकाने के उद्देश्य से अपने राजनैतिक दल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया न अपनाकर स्वयं को ही सर्वे-सर्वा बनाया है। बहुजन समाज के सामाजिक संगठनों में भी यही बीमारी बढ़ती जा रही है कि समाज के सामाजिक संगठन के कुछेक लोग (कर्ता-धर्ता) सिर्फ अपने-आपको चमकाने और आगे बढ़ाने की नियत से संगठनों से जुड़े हैं और वे संस्था को आगे न बढ़ाकर व्यक्ति विशेष को आगे बढ़ाने के लिए गुलाम मानसिकता के तहत काम कर रहे हैं। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि कि संस्थायें बड़ी न होकर व्यक्ति विशेष बड़े हो रहे हैं। व्यक्ति विशेष तो बड़ा हो रहा है लेकिन संस्थायें डूबती जा रही है।

सामाजिक व राजनैतिक संगठनों में स्थापित हो वैचारिक मंडल: सामाजिक व राजनीतिक दलों में वैचारिक मंडल न होने की वजह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया खत्म है। समाज के विभिन्न समूहों से विचार भी नहीं आ रहे हैं और न समाज की वैचारिकी के अनुसार सामाजिक व राजनैतिक संगठनों को मजबूत बनाया जा रहा है। समाज में विभिन्नता होना प्राकृतिक है इसलिए विभिन्नता को सामाजिक व राजनीतिक क्रियाकलापों में सम्मलित करना समाज व राजनीतिक हित में हैं। जिस अवधारणा को तथागत भगवान बुद्ध ने 2500 वर्ष पहले से सोचा और क्रियान्वित किया उसे आज के सामाजिक और रणनीतिक संगठन सोचने में क्यों विफल हो रहे हैं यह सभी के लिए एक विचारणीय प्रश्न है?

बहुजन समाज के महापुरुष भी इसे समझने में विफल ही रहे हैं: बहुजन समाज के महापुरुषों ने समय समय पर बहुजन समाज की जनता को समाज से जुड़ी समस्याओं का समाधान दिया। जिससे समाज को राहत मिली समस्याओं का कुछ हद तक समाधान भी हुआ लेकिन उनके परिनिर्वाण के बाद उनके द्वारा बताये गए रास्ते समय अंतराल के बाद कमजोर पड़ गए और समाज इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर हुआ। समय अंतराल के बाद समाज में भटकाव और स्वार्थ बढ़ा है और त्याग की भावना में कमी आई है। महापुरुषों के द्वारा सुझाए गए ज्ञान आधारित समस्या को स्थायी रूप से बनाए रखने का आज एक ही समाधान नजर आता है और वह है भगवान बुद्ध द्वारा सुझाया गया संघ की वैचारिकी को सामाजिक व राजनैतिक संगठनों में स्थापित किया जाये। इन सामाजिक व राजनैतिक संगठनों की वैचारिकी में समाज के सभी जातीय घटकों को शामिल किया जाये। आज पूरा बहुजन समाज संघ की अवधारणा को समझने में विफल हुआ है।

हिंदुत्ववादी संघियों ने संघ प्रणाली को अपनाया है: हिंदुत्ववादी संघ के लोगों ने तथागत भगवान बुद्ध के द्वारा दी गई वैचारिकी को अपनाया है जिसका ज्वलंत उदाहरण 2014 में मोदी को संघ की राजनैतिक पार्टी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया और उन्होंने मोदी की मानसिकता को नाप तोलकर ही ऐसा निर्णय लिया। हिंदुत्ववादी संघ ने यह फैसला लेते समय वरिष्ठता का ध्यान न देकर संघ की मानसिकता के अनुरूप उपयुक्तता को ही चुना। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उन जैसे कई वरिष्ठ नेताओं को अनदेखा किया। इनमें से किसी के योगदान को अपनी वैचारिकी में प्रमुखता नहीं दी। उन्होंने सिर्फ मनुवादी संघी मानसिकता को ही अपने लिए उपयुक्त माना और उसी आधार पर मोदी को 2014 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया।

वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से वैचारिक संघ की जरूरत: भगवान बुद्ध ने आज से 2500 वर्ष पहले इस संस्था को यह बता दिया था कि समय परिवर्तनशील है, तब तक दुनिया में चार्ल्स डार्विन ने भी यह नहीं बताया था कि दुनिया में बदलाव निरंतरता के साथ चलता रहता है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि तथागत भगवान बुद्ध आज के महानतम वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक हैं और ऐसा श्रेय भारत में भगवान बुद्ध को ही जाता है। इसीलिए देश में भगवान बुद्ध की वैचारिकी के अनुसार सामाजिक और राजनैतिक संगठनों में तथागत बुद्ध के द्वारा सुझाए गए वैचारिक संघ की स्थापना हो। बहुजन समाज की वैचारिकी को मजबूत और स्वतंत्र रखने के लिए ऐसा करना आवश्यक है कोई भी विचार विभिन्न विचारों से ही मिलकर शक्तिशाली व श्रेष्ठ बनता है। अगर ऐसा करने में बहुजन समाज के सामाजिक और राजनीतिक संगठन विफल होते हैं तो वे हमेशा ही कमजोर बने रहेंगे और समय-समय पर स्वार्थवश फिसलते और बिकते भी रहेंगे। जिसे रोकना आज पहले से ज्यादा आवश्यक हो गया है। बहुजन समाज की कीमत पर कुछेक सामाजिक व राजनीतिक संगठन कुछ समय के लिए सफल होते नजर आ रहे हैं लेकिन उसके बाद उनका असर समाज में कम होता जाता है और इनके कर्ता-धर्ता व संचालक अपने मिशन में फेल होते दिख रहे हैं। अंतत: ये सामाजिक और राजनैतिक दल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। आज बहुजन समाज के सामाजिक और राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के दल-दल में गहराई तक धँसे हुए हैं और वे अपने मूल सिद्धांत से भटक चुके हैं। इसलिए सभी सामाजिक और राजनैतिक संगठनों में वैचारिक संघ की स्थापना आवश्यक हो गयी है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05