2023-12-09 11:10:21
बहुजन विचारधारा से प्रभावित बसपा, सपा, असपा, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, जननायक जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय लोक दल का चुनावी प्रदर्शन बेहद निराशा जनक रहा है और इन सभी के 90% प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई हैं।
चुनाव परिणाम के बाद डैमेज कंट्रोल को ध्यान में रखते हुए क्या इंडिया गठबंधन बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में शामिल करने के गंभीर और ईमानदार प्रयास करेगा? यदि इंडिया गठबंधन में बसपा की एंट्री होती है तो उत्तर भारत की राजनीति में यह गठबंधन मजबूत हो। और इंडिया गठबंधन और एनडीए में कांटे का मुकाबला होगा, पलड़ा इंडिया गठबंधन का भारी रहेगा।
उत्तर भारत के तीन राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के चुनाव में बहुजन राजनीति का प्रचार सोशल मीडिया पर खूब देखने को मिला था। बहुजन समाज पार्टी ने इस चुनाव को गंभीरता से लेते हुए पार्टी प्रमुख मायावती ने 22 रैलियां भी की थी। आजाद समाज पार्टी में भी इन चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे थे और राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी से समझौता कर चुनाव लड़ा था। बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। अजीत जोगी की पार्टी ने भी छत्तीसगढ़ में पूरे दमखम से चुनाव लड़ा था। बहुजन राजनीति से अलग आम आदमी पार्टी का भी प्रदर्शन निराशा जनक रहा और उन्होंने तीन राज्यों में अपने 50 से 90 तक प्रत्याशी उतारे थे।
इन चार राज्यों में भाजपा बनाम कांग्रेस था इसमें भाजपा ने बाजी मारी और कांग्रेस चारों खाना चित हो गई। यह राष्ट्रीय राजनीति का एक नजारा था लेकिन जहां तक बहुजन समाज की राजनीति है उसकी अस्मिता और आंदोलन को चुनाव परिणाम स्पष्ट संकेत देता है कि बहुजन राजनीति का उभार मान्यवर काशीराम जी के समय में हुआ था उसकी गति अब बेहद धीमी हो चुकी है और देश की राजनीति मे बहुजनों की प्रासंगिकता खत्म सी होती दिखाई दे रही है। यह बहुजन राजनीति के लिए खतरे की घंटी है जिस पर राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता है। इन सभी बहुजन राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, कर्मचारी संगठनो, बुद्धिस्ट, अंबेडकरवादी, रविदास, बाल्मीकि, कबीर एवं गाडगे महाराज से संबंधित सभी संगठनों को यह विचार करना होगा कि यदि राजनीतिक परिदृश्य में हम शून्य होते जा रहे हैं तो सामाजिक परिदृश्य में भी हम कोई कुछ नहीं कर पा रहे हैं बल्कि हम आपस के अंतर्द्व के कारण सामाजिक आंदोलन भी हाशिए पर आ चुका है।
चुनाव परिणाम पर यदि एक नजर डालें तो मध्य प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का इस बार खाता भी नहीं खुला है और वोट परसेंट 4 प्रतिशत से नीचे रहा है पिछले बार 2 सीट जीतकर 5 प्रतिशत वोट पाकर सरकार को बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। आजाद समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ा था लेकिन उनका भी खाता यहां नहीं खुला है। छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को दो सीट मिली थी और उनको वोट परसेंट भी 4 प्रतिशत से ऊपर था लेकिन इस बार बसपा कोई भी सीट नहीं जीत पाई है और वोट प्रतिशत में भी गिरावट आई है। यहां पर अजीत जोगी की पार्टी ने पिछली बार 5 सीट जीतकर मजबूत स्थिति दर्ज की थी जबकि इस बार उनका खाता नहीं खुला है और वोट प्रतिशत में भारी कमी देखने को मिली है। मध्य प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का बसपा के साथ समझौता था लेकिन उनका भी खाता ना मध्य प्रदेश और ना छत्तीसगढ़ में खुल पाया है।
राजस्थान में आजाद समाज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, हनुमान बेनीवाल की पार्टी और एक आदिवासी पार्टी ने चुनाव लड़ा था यहां पर बहुजन समाज पार्टी को दो सीट मिली हैं हालांकि पिछली बार उनको 6 सीट मिली थी इस बार उनका वोट प्रतिशत भी गिरा है जबकि आजाद समाज पार्टी यहां पर खाता नहीं खोल पाई है हनुमान बेनीवाल की पार्टी को यहां 2 सीट मिली है और आदिवासियों की पार्टी को 3 मिली है राजस्थान में राष्ट्रीय लोकदल को भी एक सीट मिली है। आम आदमी पार्टी ने भी यहां पर चुनाव लड़ा था लेकिन अपना खाता नहीं खोल पाई है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इन बहुजन विचारधारा वाली पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और यह सभी मिलकर लड़ते तो परिणाम कुछ और होता और यह आंकड़ा 50 तक भी पहुंच सकते थे।
तेलंगाना में बहुजन समाज पार्टी ने अपना चुनाव पूरे दाम कम से लड़ा इस राज्य के बसपा प्रभारी आर एस प्रवीण कुमार ने जानदार तैयारी की थी और चुनाव के लिए और बसपा अध्यक्ष ने भी चुनाव से पहले और चुनाव में भी रैलियां की थी लेकिन परिणाम आशा के अनूरूप नहीं रहा। डॉ आर एस प्रवीण कुमार चुनाव हार गए हैं और बसपा का वोट प्रतिशत भी 3 प्रतिशत से कम रहा है हालांकि यह उम्मीद थी कि आर एस प्रवीण कुमार के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी का यहां खाता जरूर खुलेगा और यह आंकड़ा 3 से 5 तक जा सकता है लेकिन बहुजन समाज पार्टी को और बहुजन समाज को निराशा ही हाथ लगी है हालांकि एकीकृत आंध्र प्रदेश में बसपा को दो सीट तक भी मिल चुकी है।
चुनावी परिणाम के विश्लेषण पर यह स्पष्ट हो चुका है कि बहुजन समाज से संबंधित दलों का कोई जन आधार नहीं है। हालांकि बहुजन समाज यहां 40 परसेंट से ज्यादा है जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिम समाज को शामिल किया है यदि इसमें अति पिछड़ा वर्ग को जोड़ दिया जाए तो यह इनकी संख्या 60 प्रतिशत से ज्यादा हो जाती है लेकिन बहुजन समाज अपने राजनीतिक दलों को वोट देने में झिझक महसूस करता है। इन राज्यों में ब्राह्मणी संस्कृति की कांग्रेस और भाजपा ही दो बड़ी पार्टी पिछले 25/30 साल से चुनाव जीत रही हैं। किसी भी राज्य में बहुजन समाज ने विकल्प तैयार नहीं किया है यही कारण है कि बहुजन समाज के ऊपर बड़े पैमाने पर अत्याचार और जाति उत्पीड़न देखने को मिलता है।
2024 लोकसभा चुनाव पर भी इन चुनाव परिणाम का असर पड़ने वाला है अब यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस की रणनीति क्या होगी? कांग्रेस इंडिया गठबंधन में क्या भूमिका निभाएगा? क्या विपक्षी एकता मुहिम के सबसे बड़े सूत्रधार नीतीश कुमार को संयोजक बनाया जाएगा? क्या शरद पवार को महत्वपूर्ण पद दिया जाएगा? क्या सबको एक साथ आकर एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया जाएगा? क्या सीट शेयरिंग फामूर्ला जल्दी ही लागू किया जाएगा? क्या सांझा और सामूहिक स्तर पर चुनावी रैलियां की जाएंगी? देश भर में इंडिया गठबंधन का राष्ट्रीय स्वरूप क्या होगा। इस इन सब पर भी एक बड़ी बहस होने की आवश्यकता है।
सबसे बड़ी बहस इस बात पर होनी चाहिए कि क्या इस गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी को शामिल किया जाएगा? क्या इसमें चंद्रशेखर आजाद की कोई भूमिका होगी? क्या प्रकाश अंबेडकर की कोई भूमिका होगी? क्या अजीत जोगी की पार्टी की कोई भूमिका होगी? यह सब प्रश्न है जिनके सवाल इंडिया गठबंधन को देना है। इतना तो तय है यदि इन बहुजन समाज के राजनीतिक दलों को इंडिया गठबंधन में सही भूमिका नहीं मिलती है तो आने वाले चुनाव में गठबंधन क्या बीजेपी और सहयोगी दलों को टक्कर दे पाएगा? इस पर प्रश्न आज तो खड़ा है कल क्या होने होगा यह आने वाला वक्त बताएगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव
(राजनितिक विश्लेषक एवम पूर्व राष्ट्रीय मिडिया प्रभारी समता सैनिक दल)
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