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बहुजन नेताओं से जनता का उठ रहा भरोसा

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2024-05-10 13:39:41

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि-‘राजनीति सत्ता की वह मास्टर चाबी है जिससे आप अपनी तरक्की और सम्मान के सभी दरवाजे खोल सकते हैं’ उनका यह कथन सार्थक है और इसी सार्थकता को बनाने के लिए उन्होंने देश के हर व्यस्क नागरिक को ‘एक वोट का अधिकार’ और उस ‘वोट का मूल्य’ सभी के लिए समान रखा। उनकी शायद उम्मीद रही होगी कि जनता हालात के मुताबिक अपनी वोट का सही इस्तेमाल करके सही प्रतिनिधि को विधानसभा/संसद में भेजेगी।

बाबा साहेब डॉ. ने राजनैतिक सत्ता पाने के उद्देश्य से कई राजनैतिक संगठन बनाये। डॉ. अम्बेडकर ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन (जिसे बाद में रिपब्लिकन पार्टी का नाम दिया गया) अस्तित्व में आई। 1957 की दूसरी लोक सभा में 6 सीटें रिपब्लिकन पार्टी के खाते में आयीं और अम्बेडकरवाद की विचारधारा का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ। 1962 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत से बुद्ध प्रिय मौर्य (बी.पी.मौर्य) जी का भी पदार्पण हुआ, उनका बाबा साहेब की विचारधारा में अकूत विश्वास था, वे पक्के अम्बेडकरवादी थे, वे अच्छे वक्ता भी थे और उस समय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी में प्रोफेसर भी थे। उनका भाषण बहुत ओजस्वी होता था। उनके भाषणों में इतनी जान थी कि वे मुर्दा समाज में भी जान फूँक देते थे। उनके ओजस्वी भाषण को सुनने के लिए लोग उनकी सभा में 40-40 किलोमीटर दूर से साइकिलों से आते थे। समाज के जागरूक तबके में इतना जोश था कि वे मौर्य जी पर अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते थे। मगर उनका यह जोश बहुत दिनों तक टिक नहीं पाया और उन्होंने पता नहीं किस मजबूरी में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया को छोड़ दिया। उस समय बी.पी. मौर्य जी कांग्रेस के मुखर विरोधी थे। परंतु मौर्य जी ने रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया छोड़कर कांग्रेस का ही दामन थाम लिया था। कांग्रेस में जाकर उन्होंने एक बार चुनाव जीता और कांग्रेस सरकार में मंत्री भी बने।

मौर्य जी के कांग्रेस में चले जाने के बाद अम्बेडकरवाद करीब 10-15 वर्षों तक नेपथ्य में चला गया उसके बाद मान्यवर साहेब कांशीराम जी के आंदोलन की शुरूआत महाराष्ट्र से ही होती है। कांशीराम जी पंजाब के रूपनगर जिले के पिर्थीपुर गाँव से थे और पुणे में स्थित डीआरडीओ की लैब में वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत थे। उनके साथ उसी लैब में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी दीनाभाना भी थे। 14 अप्रैल को डीआरडीओ लैब के डायरेक्टर द्वारा अम्बेडकर जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा न करने के कारण दीनाभाना का विवाद शुरू हुआ जिसके कारण दीनाभाना को निलंबित कर दिया गया। बाबा साहेब की जयंती का सवाल लेकर दीनाभाना मान्यवर साहेब कांशीराम जी से मिले। कांशीराम जी ने दीनाभाना को सहयोग करने का आश्वासन दिया और इसी घटना के बिन्दु से मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को पढ़ना और जानना शुरू किया। इससे पहले मान्यवर साहेब कांशीराम जी बाबा साहेब अम्बेडकर के जीवन दर्शन से अनभिज्ञ थे।

मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के जीवन दर्शन से जुड़ी कुछेक किताबों को पढ़ना शुरू किया तो इन किताबों को पढ़ने के बाद उनके जीवन की राह बदल गई। उन्होंने अपने जीवन को बहुजन समाज की मुक्ति के लिए समर्पित किया। उन्होंने 1978 में बामसेफ की स्थापना की, 1981 में डीएस4 नाम की संस्था बनाई और अंत में 1984 में ‘बहुजन समाज पार्टी’ का गठन किया। पहली दोनों संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य बहुजन समाज (शूद्र) को आपस में जोड़ना और उनमें एकता की भावना को अंकुरित करना और समाज को परिशिक्षित करना था। चूंकि उनका मानना था कि समाज को बिना जागरूक किये और उनमें एकता की भावना भरे सामाजिक आंदोलन को गति नहीं दी जा सकती। कांशीराम जी का मत था कि ‘जिस समाज की गैर-राजनीतिक जड़े मजबूत नहीं होगीं, वो समाज राजनीति में कभी सफल नहीं हो सकता’ इसी सोच के साथ मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपने अम्बेडकरवादी आंदोलन को सीढ़ी-दर-सीढ़ी आगे बढ़ाया। उन्होंने कभी भी एकदम शिखर पर पहुँचने की जल्दबाजी नहीं की जबकि आज समाज के अंदर जो तथाकथित सामाजिक जातीय संगठन और राजनैतिक पार्टियाँ हंै उनके अधिकतर अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों में तुरंत शिखर पर पहुँचने की महत्वाकांक्षा अधिक दिखाई देती है।

बहनजी का राजनैतिक सफर: बहनजी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके माता-पिता साधारण पृष्ठभूमि के थे। उनके पिता कृषि भवन में एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। उनका परिवार इन्द्रपुरी की झोपड़-पट्टी में रहता था। बहनजी शुरूआती दौर में बी.पी.मौर्य जी के भाषणों से काफी प्रभावित थी और उनके अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षा जन्म लेने लगी थी। उस समय बाबा साहेब की जयंती के सभी कार्यक्रम अम्बेडकर भवन पर ही होते थे। बी.पी. मौर्य भी 14 अप्रैल को वहीं पर आते थे। अगर हम यूँ कहे कि शुरूआती दिनों में बहनजी पर बी.पी. मौर्य की कार्यशैली का काफी प्रभाव था तो गलत नहीं होगा। बहनजी के ओजस्वी भाषण और उनकी निडर कार्यशैली को देखकर मान्यवर साहेब कांशीराम जी उन्हें बहुजन समाज के आन्दोलन में लेकर आए। वे मान्यवर साहेब कांशीराम जी की छत्र-छाया में पली-बढ़ीं और अम्बेडकरबाद ने उनके अंदर गहराई तक जड़े जमायी। मान्यवर साहेब कांशीराम जी की छत्र-छाया में प्रशिक्षित होकर उन्होंने यूपी में कई बार चुनाव लड़े और यूपी जैसे बड़े प्रदेश में चार-चार बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब भी हुई। 2007-12 में उनकी उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बहुजन समाज के मान-सम्मान के लिए सम्राट अशोक के बाद स्मरणीय ऐतिहासिक काम का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह बहनजी को ही जाता है।

वर्तमान भारतीय राजनीति: देश में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं जिसकी सरगर्मी पूरे देश में जोरों पर है। सभी राजनैतिक पार्टियाँ अपनी-अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी चला रही हैं। चुनाव का ऐलान होने से पहले बहुजन समाज के अधिसंख्यक लोग बहनजी से उम्मीद कर रहे थे कि वे ‘इंडिया गठबंधन’ के साथ चुनाव में जा सकती हैं। मगर बहनजी का बयान कि ‘बसपा अपने दम पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी।’ इस तरह की बयानबाजी व फैसलों ने बहुजन समाज को पूरी तरह से आश्चर्यचकित व अचंभित किया। मगर चुनाव की घोषणा होने के बाद पूरी सूझबूझ के साथ समाज के अंदर जातीय समीकरणों को देखते हुए बहनजी ने जिन प्रत्याशियों को बसपा के टिकट पर मैदान में उतारा तो उनकी राजनैतिक कुशलता और दूरदृष्टि को देखकर पूरा समाज गद-गद था और उनकी प्रसंशा भी करने लगा था। बहुजन समाज को यह भी उम्मीद दिखने लगी थी कि बहनजी इस बार लोकसभा चुनाव में 2019 के मुकाबले अधिक सीटें जीतकर संसद में पहुँचेगी लेकिन उनके ताजा फैसलों ने पूरे बहुजन समाज को निराश कर दिया है।

आकाश आनंद प्रकरण: आकाश आनंद बहन मायावती जी का सगा भतीजा है। वह पढ़ा-लिखा व नौजवान भी है। उनकी प्राकृति गले की आवाज में उतना दम नहीं दिखता जितना एक राजनैतिक नेता की आवाज में दिखना चाहिए। बहनजी के इस फैसले पर शुरूआत में बहुजन समाज अचंभित था लेकिन बहनजी की बढ़ती हुई उम्र को देकर आकाश आनंद को बहनजी द्वारा बसपा का ‘राष्ट्रीय कोडिनेटर’ बनाना समाज ने मन से स्वीकार कर लिया था। आकाश आनंद को बहन जी ने अपनी चुनाव रैलियों में उतारकर उन्हें प्रशिक्षित किया। धीरे-धीरे चुनावी रैलियों में उनकी सभाओं में काफी भीड़ जुटने लगी और बहुजन समाज के अंदर भी उनके प्रति काफी उत्साह दिखने लगा। जहाँ-जहाँ आकाश आनंद और बहन जी की रैलियाँ हुई वहाँ-वहाँ पर बसपा के उम्मीदवार चुनाव जीतने के रेस में दिखने लगे। जिसे देखकर पूरा बहुजन समाज काफी खुश और गद-गद हो रहा था।

बहनजी के अपरिपक्ता भरे फैसले: बहनजी ने बसपा के कई उम्मीदवारों को अचानक व आखिरी समय पर बदल दिया। जिनमें प्रमुख सीटें थी मछली शहर, जौनपुर, बस्ती, आजमगढ़ आदि। जौनपुर से बसपा उम्मीदवार श्रीकला रेड्डी थी। जो कद्दावर नेता धनंजय सिंह की पत्नी है। धनंजय सिंह का जौनपुर के आसपास की 3-4 लोकसभा सीटों पर अच्छा प्रभाव है, वे इस क्षेत्र के गरीबों के मसीहा वह बाहुबली भी माने जाते हैं। बसपा के ये सभी 3-4 उम्मीदवार जीतने की रेस में सबसे आगे थे, मगर इनके अचानक टिकट काटे जाने से क्षेत्र की जनता नाराज है। अब इस क्षेत्र की बहुजन जनता इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट देने का मन बनाये हुए है। इस क्षेत्र के जो लोग चुनाव में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं उनका कहना है कि बहनजी ने यह कदम मोदी-संघी सरकार के दबाव में उठाया है। समसामयिक हालात को देखते हुए आम जनता का यह आंकलन बहुजन समाज के बुद्धिजीवियों को सही ही प्रतीत हो रहा है। चूंकि बहनजी का यह निर्णय भाजपा उम्मीदवारों को मदद पहुंचायेगा।

आकाश आनंद को हटाना बहुजन समाज को कर रहा अचंभित: आकाश आनंद को अचानक हटाना कई प्रकार के संदेश दे रहा है-

1.

उनकी सभाओं, रैलियों में अधिक भीड़ का जुटना और आनंद द्वारा मोदी-भाजपा पर सीधे अटैक करना, भाजपाइयों को गहराई तक जख्मी कर रहा था जिसे लेकर मोदी-भाजपा ने आकाश आनंद को चुनावी रैलियों से दूर रखने के लिए बहन जी से कहा होगा?

2. राजनीति के इतिहास में कभी-कभी नजदीकी सगे-संबंधी भी दुश्मन की तरह देखे जाते रहे हैं शायद ऐसा तो नहीं है कि युवा आकाश आनंद की रैलियों में युवाआें की भारी भीड़ को देखकर बहनजी ने अपनी गिरती साख को बचाने के लिए ऐसा कदम उठाया हो?

3. बहनजी की अभी तक की राजनैतिक कार्यप्रणाली यही रही है कि अपने व्यक्तित्व के सामने किसी भी कार्यकर्ता के व्यक्तित्व को चमकने मत दो। इसी कारण सच्चे अम्बेडकरवादी मिशनरी लोग बहनजी के दफ़्तर व आयोजनों से दूर रहते है। बहनजी के आसपास और उनके दरवाजों पर अकसर राजनैतिक दलालों की भीड़ देखी जाती है।

बहनजी के ऐसे अपरिपक्व फैसलों से उनका व्यक्तिगत नुकसान नहीं होता है। ऐसे फैसलों से सिर्फ समाज का राजनैतिक नुकसान होता है और जिसकी भरपाई आसानी की नहीं की जा सकती। किसी भी राजनैतिक आंदोलन के ठहराव को सक्रिय बनाने के लिए कम से कम 10-15 वर्ष का समय लगता है। बहुजन समाज के मन में बहनजी के प्रति कई राजनैतिक आकांक्षाए जन्म ले रही हंै जिनमें प्रमुख है कि बहनजी ने कहीं न कहीं उपरोक्त फैसले मोदी-भाजपा के दबाव में लिये होंगे? और वे परोक्ष रूप में मोदी-भाजपा की सहायक बनी हुई हैं? बहुजन समाज का जागरूक तबका आज के परिदृश्य में मोदी-संघी भाजपा को अपना पहले नंबर का दुश्मन मानता है। इसलिए अब बहुजन समाज का जागरूक तबका इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को अपना वोट देने का फैसला कर रहा है। बहुजन समाज को अपना वोट अच्छे अम्बेडकरवादी, सुशिक्षित व संसद में समाज से जुड़े मुद्दे उठाने वाले व्यक्ति को ही देना चाहिए जिससे सच्चा अम्बेडकरवाद और सच्चा लोकतंत्र देश में स्थापित हो सकेगा।

जय भीम, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05