2024-06-08 10:39:23
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का अम्बेडकरवादी संघर्ष पिछले चार दशक से देश में चल रहा है। जिसे मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने मिशन के तौर पर शुरू किया था। जब मान्यवर साहेब बहुजन समाज को जोड़ने के लिए देश में जगह-जगह घूम रहे थे, साइकिल रैलियाँ कर रहे थे, तब बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) का नौकरी-पेशा सामाजिक घटक मान्यवर साहेब कांशीराम जी के वक्तव्यों व उनकी रणनीति आधारित संगोष्ठियों को सुनकर, उनके कैडर अटेण्ड करके साहेब की तरफ आकर्षित हो रहे थे। बड़े पैमाने पर ये सभी पढ़े-लिखे लोग मान्यवर साहेब को यथासंभव आर्थिक सहायता व अन्य जरूरी संसाधनों का भी सहयोग दे रहे थे। नौकरी-पेशा प्रबुद्ध अम्बेडकरवादी लोगों की संख्या 2-4 या 10 नहीं थी, बल्कि पूरे देश में ये हजारों-लाखों की संख्या में थे। इन सभी लोगों के प्रारम्भिक योगदान से मान्यवर साहेब कांशीराम जी का बहुजन आंदोलन देश में खड़ा हुआ। इस बहुजन आंदोलन को खड़ा करने के लिए पहले उन्होंने ‘बामसेफ’ नाम का संगठन बनाया जिसके माध्यम से पढ़े-लिखे और नौकरी-पेशा लोगों को संगठन से जोड़ा। इसके बाद मान्यवर साहेब ने ‘डीएस-4’ नाम का संगठन बनाया जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के दलित, शोषित और उत्पीड़त लोगों को इकट्ठा करके संघर्ष के लिए तैयार करना था। साहेब के नेतृत्व में ये संगठन मजबूती के साथ खड़ा हुआ और देश के विभिन्न प्रदेशों में डीएस-4 के बैनर तले कुछेक प्रत्याशियों ने चुनाव भी लड़ा। बहुजन समाज के जो लोग राजनीति में जाने की इच्छा रखते थे उन्हें चुनाव लड़ने के लिए डीएस-4 के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया। बहुजन समाज के यहाँ तक के आंदोलन में बहन जी का कोई योगदान नहीं था। बहन जी का आगमन 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी बनने के बाद शुरू हुआ। बहुजन आंदोलन में बहन जी को साहेब कांशीराम जी के द्वारा अवतरित कराया गया। इस समय तक बहुजन आंदोलन से देश के लाखों लोग जुड़ चुके थे, साहेब के द्वारा दिये गए कैडर भी वे अटेण्ड कर चुके थे, देश के कई हजार प्रबुद्ध नौकरी-पेशा कर्मचारी बहुजन समाज का संगठन देश में चलाने के लिए नियमित रूप से हर महीने कम से कम 100 रुपए प्रति व्यक्ति साहेब को चंदा दे रहे थे।
बहन जी का आंदोलन में अवतरित होने पर हुई थी संगठन में प्रतिक्रिया: जब बहन जी साहेब के आंदोलन में आई तब तक साहेब का आंदोलन सुचारु और संगठित रूप से चलाने के लिए उनके पास देशभर में सैंकड़ों निस्वार्थ, समर्पित, निष्ठवान, पक्के अम्बेडकरवादी लोग काम कर रहे थे। ये सभी लोग पूर्ण रूप से बहुजन समाज के आंदोलन के लिए समर्पित थे। ये सभी अम्बेडकरवादी लोग साहेब के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए पूर्ण रूप से तैयार थे। बहन जी का इसी समय अचानक अवतरित होना इन सभी समर्पित और जागरूक लोगों को कुछ हद तक अच्छा नहीं लगा था। जिसका मुख्य कारण था कि इस समर्पित टीम को छोड़कर साहेब बहन जी पर ज्यादा विश्वास करने लगे थे। मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने इसे अपना एक अभूतपूर्व फैसला लिया और सभी समर्पित व कर्मठ अम्बेडकरवादियों को अपने पास से बिदा कर दिया। मान्यवर साहेब का ऐसा करना संगठन से जुड़े लोगों को अच्छा नहीं लगा था परंतु समाज और आंदोलन के हित को देखते हुए इनमें से अधिकतर लोगों ने कांशीराम जी के साथ काम करना जारी रखा, और यथासंभव आर्थिक योगदान भी देते रहे। इस स्टेज तक बहन जी का कांशीराम जी के आंदोलन में कुछ भी आर्थिक सहयोग नहीं था। बल्कि कांशीराम जी के साथ जुड़े लोगों में बहन जी के कारण गहरा मतभेद था। साहेब ने संगठन के चंदे में से 70 हजार रुपए बहन जी को अपने घर को ठीक-ठाक करने के लिए दे दिये थे। बहन जी की अगुआई में साहेब बहुजन आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे। इस स्थिति तक साहब के साथ जुड़े सभी सामाजिक कार्यकर्ता समाजहित में चुप रहकर आन्दोलन के हित में संगठित होकर लगे रहे। इसके बाद साहेब ने संगठन और बहुजन समाज पार्टी की भी पूरी बागडोर बहन जी को सौंप दी। यह स्टेज कुछ हद तक संगठन में विस्फोटक भी बनी और बहुत सारे कर्मठ व उपयोगी साथियों ने साहेब का साथ छोड़ दिया था। बहुजन आंदोलन को खड़ा करने में समाज के हजारों लोग बर्बाद हुए, कई लोग संघर्ष करते हुए मारे भी गए, कई संघर्षरत लोग अपना मानसिक संतुलन खोकर पागल होने की स्थिति में भी पहुँच गए थे। लेकिन साहेब का आंदोलन जो बहन जी की अगुआई में चल रहा था उसने ऐसे लोगों की परवाह नहीं की थी। बहन जी ने हमेशा अपने व अपने परिवार के हित को ही सर्वोपरि रखा। जिसे मान्यवर साहेब का भी परोक्ष व मौन समर्थन था। फिर भी बहुजन समाज के प्रबुद्ध लोग साहेब के साथ इसलिए लगे रहे चूंकि वे जानते थे कि साहेब का त्याग उन सभी से कहीं ज्यादा था। साहेब की मनोवैज्ञानिक समझ ऐसी भी थी कि वे अपने से अधिक कुशाग्र, जागरूक, समर्पित व विलक्षण बुद्धि के पढ़े-लिखे विद्वानों को अधिक भाव नहीं देते थे। बहन जी औसत दर्जे की कार्यकर्ता थी और मन से अम्बेडकरवाद व बुद्धवादी भी थी। इसलिए समाज के बहुत सारे लोग धीरे-धीरे उनका भी सम्मान करने लगे थे।
बहुजन समाज के अम्बेडकरवादी आंदोलन का उद्देश्य: बहुजन समाज के आंदोलन का उद्देश्य देश में समता, स्वतंत्रता, भाईचारा, सम्मान के लिए निरंतरता के साथ मनुवादी, ब्राह्मणी संस्कृति से संघर्ष करना है। देश में बहुजन समाज की सत्ता स्थापित करना है। मगर ताजा लोकसभा चुनाव में बहन जी अदृश्य रूप में मनुवादी संघियों की मदद कर रही थी। बहुजन समाज को जब इसका एहसास होने लगा तो बहुजन समाज के जागरूक लोगों ने विशेषकर जाटव व मुस्लिमों ने गठबंधन के प्रत्याशियों को वोट देने का फैसला किया। इनके फैसले में बसपा को हराना नहीं था। ये सभी मोदी-संघियों को सत्ता से दूर रखना चाह रहे थे। इनका मुख्य दुश्मन मनुवादी और हिंदुत्व की ब्राह्मणी संस्कृति है जिसके लिए ये हमेशा संघर्ष करते आए है और आगे भी करते रहेंगे।
बहन जी ने यूपी में गठबंधन को 16 से अधिक सीटों पर नुकसान पहुँचाया: बहन जी सार्वजनिक रूप से कह रही थीं कि हमारी पार्टी चुनाव में किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। हम अकेले ही चुनाव में जाएँगे। लेकिन इस चुनाव के परिणामों को देकर लगता है कि बहन जी का मनुवादी-संघी भाजपा के साथ परोक्ष रूप से अदृश्य छिपा हुआ समझौता था। जिसे बहन जी के कुछेक वोटर्स समझ नहीं पाये थे। वे तो सिर्फ मोदी के अंधभक्तों की तरह बहन जी के ही अंधभक्त बने हुए हंै। जिसके कारण मोदी-संघी भाजपा यूपी में कम से कम 20 सीटें अधिक जीत पायी। यहाँ पर हम कुछेक संसदीय क्षेत्रों में बसपा को मिले मतों और हारने वाले गठबंधन के उम्मीदवार को मिले मतों के ब्यौरे से समाज के जागरूक लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं। अकबरपुर संसदीय क्षेत्र में बसपा के प्रत्याशी को 73140 मत प्राप्त हुए वहीं पर हारने वाले समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को 44345 मतों से हार मिली। वहीं अलीगढ़ में गठबंधन के उम्मीदवार को 15647 वोटों के अंतर से हार मिली और बीएसपी के उम्मीदवार को 123929 वोट मिले। अमरोहा में गठबंधन के प्रत्याशी को 28670 मतों से हार मिली और बसपा के प्रत्याशी को 164099 मत प्राप्त हुए। बांसगाँव में गठबंधन के प्रत्याशी को 13150 मतों से हार मिली और बसपा के प्रत्याशी को 64750 मत मिले जिसकी वजह से भाजपा संघियों का प्रत्याशी जीत गया। भदोही में भी गठबंधन के उम्मीदवार को 44072 मतों से हार मिली और बसपा प्रत्याशी को 155053 मत मिले। बिजनौर में 37508 मतों से गठबंधन के प्रत्याशी को हार झेलनी पड़ी और यहाँ पर बसपा प्रत्याशी ने 218986 मत प्राप्त किए। देवरिया में गठबंधन के प्रत्याशी को 34842 मतों से हार मिली और बसपा प्रत्याशी को 45364 मत मिले जिसके कारण भाजपा संघी प्रत्याशी जीता। फरुर्खाबाद में गठबंधन के प्रत्याशी को 12678 वोटों से हार मिली और बसपा के प्रत्याशी को 45390 मत प्राप्त हुए। फतेहपुर सीकरी में गठबंधन के उम्मीदवार को 43405 मतों से हार प्राप्त हुई और बसपा प्रत्याशी को 120539 मत प्राप्त हुए। हरदोई में गठबंधन के प्रत्याशी को 27856 मतों से हार मिली और बसपा प्रत्याशी को 122629 मत मिले। मेरठ में गठबंधन का उम्मीदवार मात्र 10845 वोटों से हारा और बसपा के उम्मीदवार को यहां 87025 मत प्राप्त हुए। मिजार्पुर में गठबंधन के प्रत्याशी को 37810 मतों से हार मिली और बसपा उम्मीदवार को 144446 मत प्राप्त हुए। मिश्रिख में गठबंधन के प्रत्याशी को 35406 मतों से पराजय मिली और बसपा को 111945 मत प्राप्त हुए। फूलपुर में गठबंधन के उम्मीदवार को 4332 मतों से हार मिली और बसपा को 82586 मत प्राप्त हुए। शाहजांहपुर में गठबंधन के प्रत्याशी को 55379 मतों से हार मिली और बसपा के प्रत्याशी को 91710 मत प्राप्त हुए। वहीं उन्नाव में गठबंधन के प्रत्याशी को 35818 मतों से हार मिली और बसपा प्रत्याशी को 72527 मत प्राप्त हुए। यह उत्तर प्रदेश के सिर्फ 16 संसदीय क्षेत्रों का आंकड़ा है जिसे देखकर साफ है कि बहन जी बार-बार जो एकला चलो की बात कर रही थी उसमें कहीं न कहीं परोक्ष रूप से छिपा हुआ संघी मनुवादियों का दबाव या डर था। इन आँकड़ों को देखकर स्पष्ट है कि बहन जी अगर गठबंधन में जाती। देश में गठबंधन के साथ समझौता करके 60-70 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती और पूरा चुनाव बहुजन समाज की ताकत और सम्मान को देखते हुए पूरे देश में चुनाव लड़ती। इस चुनाव में बहन जी कम से कम 50-55 लोकसभा की सीट जीतकर विपक्ष की एक मजबूत नेता बनती। मोदी संघियों की जीत का फासला जो अब 240 है वह बढ़कर 185-190 के आसपास सिमट जाता और तानाशाह मोदी व संघियों की सरकार बनने का सपना किसी भी हलात में पूरा नहीं होता।
लोकसभा चुनाव में बहन जी की रणनीति फेल: बहन जी ने इस चुनाव में अपने समाज की भावनाओं का सम्मान न करते हुए मनुवादी-संघियों को सत्ता सौंपने का काम किया है। समाज को अब अपने राजनैतिक नेताओं पर विश्वास न करके समाज के विभिन्न जातीय संगठनों को मजबूत करके उनमें राजनैतिक एकीकरण की भावना को उभारकर बहुजन समाज को राजनैतिक सफलता पाने के लिए समग्र रूप में जागरूक करना चाहिए और दलित जातियों को सभी आरक्षित सीटों पर उम्मीदवार, सभी जातीय घटकों की सहमति से चुनाव में उतारने चाहिए। आरक्षित सीटों पर आरक्षित समाज का आम सहमति से तय किया गया एक से अधिक उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला करना चाहिए।
बहुजन समाज जो अभी तक बहन जी को सम्मान और मिशनरी आंदोलन का अगुआ समझ रहा था हाल के चुनाव परिणामों को देखकर अब समाज को कुछ वैकल्पिक रास्ता खोजना पड़ेगा और यह वैकल्पिक समाधान खोजने के लिए पहले से मौजूद जातीय आधारित सामाजिक संगठनों के साथ राजनैतिक विचार-विमर्श करके उनमें एकरूपता पैदा करनी होगी। एक वैकल्पिक सशक्त व्यवस्था सर्वसम्मति से समाज के सामने रखनी होगी। सामाजिक जातीय संगठनों के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया चार-पाँच महीने में पूरी करके समाज की राजनीतिक रणनीति का वैकल्पिक प्रारूप समाज के सामने रखना होगा। इस पर विस्तृत विभिन्न जगहों पर विचार-विमर्श और संगोष्ठियाँ करके समाज में जनजागरण भी करना होगा और समाज को इकट्ठा भी करना होगा। समाज को किसी भी कीमत पर खुला व स्वतंत्र नहीं छोड़ना चाहिए चूंकि ऐसा करने पर मनुवादी संघियों का इस बहुजन संगठन में सेंध लगाकर इसे खत्म करने का खतरा हमेशा बना रहेगा।
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