बसपा से उदासीन बहुजन समाज
2022-12-17 07:49:45
मान्यवर साहेब कासीराम जी ने 14 अप्रैल 1984
को बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। उसके बाद
दिल्ली व अन्य प्रदेशों में हुए विधान सभा चुनावों में
बसपा ने भाग लेना शुरू किया। 1989 तक बसपा
को कोई खास सफलता नहीं मिली। मान्यवर साहेब
कासीराम जी ने इस दौरान पूरे भारत में घूम-घूमकर
बसपा का प्रचार किया और इस प्रचार के माध्यम से
सभी अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/
ओबीसी/ अल्पसंख्यक समूहों को जोड़ा और उन्हें
यह एहसास कराया कि तुम सब इकट्ठा होकर इस
देश के शासक बन सकते हो। बाबा साहेब डॉ.
अम्बेडकर ने महाराष्ट्र की एक सभा में कहा था कि ‘‘जाओ
अपनी दीवारों पर लिख लो, तुम एक दिन
इस देश की सत्ताधारी जमात बनोगे।’’ मान्यवर
साहेब कासीराम जी बाबा साहेब के इसी कथन को
स्थापित करने के लिए संघर्षरत थे और बहुजन
समाज के सभी घटकों को इकट्ठा करने में लगे हुए
थे। इसी मुहिम के तहत 1989 से बहुजन समाज के
मूवमेंट को सफलता मिलनी शुरू हुई। बहन कुमारी
मायावती बिजनौर से पहली बार लोक सभा की
सांसद चुनी गई। बहन जी ने भी पूरी सिद्दत के साथ
अम्बेडकर मूवमेंट को जमीन पर उतारने का प्रयास
किया और उन्होंने कासीराम जी के आंदोलन को
आगे बढ़ाने में मान्यवर साहेब कासीराम जी का पूरा
साथ दिया।
बसपा का संक्षिप्त इतिहास
बहन जी के काम व समाज के कुछेक घटकों
की जागरूकता को देखते हुए मान्यवर साहेब
कासीराम जी का बहन मायावती पर विश्वास बढ़ा
और उन्हें लगा कि अब बहुजन समाज के मूवमेंट
का कारवाँ बहन जी सँभाल सकती है, बहुजन
समाज पार्टी व समाज में एकता लाने का कार्य वह
बखूबी निभा सकती हैं तो उन्होंने बहन मायावती जी
को बहुजन समाज पार्टी व संगठन का पूरा कार्यभार
सौंप दिया। इसके उपरांत मान्यवर साहेब कासीराम
जी को ब्रेन स्ट्रोक हो जाने से उनका 9 अक्तूबर
2006 में परिनिर्वाण हो गया। बहुजन समाज पार्टी
व संगठन का पूरा अधिपत्य बहन जी के कंघों पर
आ गया। अप्रैल 2006 में ही बहन मायावती जी की
अगुआई में उनके सोशल इंजिनरिंग के बलबूते पर
उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार आयी और
वह मुख्यमंत्री बनी।
बहन जी के काम: ऐतिहासिक कार्यों द्वारा
बहुजन समाज में जन्में महापुरुषों की याद में
स्मारक/पार्क तथा संस्थानों आदि की स्थापना; 88
हजार बी टी सी शिक्षकों की भर्ती की गयी; 23 नए
जिलों/जिला अस्पतालों/जिला एवं सत्र
न्यायालयों/पुलिस लाइनों का गठन व निर्माण;
41000 कांस्टेबलों/108848 सफाई कर्मियों की
भर्ती; 6 इंजीनियरिंग कॉलेज/24 पॉलिटेक्निक
कॉलेज/100 से अधिक आईटीआई खोले गए;
‘कासीराम शहरी आवास योजना’ के तहत एक
लाख एक हजार लोगों को आवास मिले; प्रदेशों में
20 जिलों में अम्बेडकर पी जी छात्रावास की
स्थापना की गयी; छत्रपति शाहू महाराज, मेडिकल
एवं आई.ए.एस, आई.पी.एस., ट्रेनिग सेंटर; 2195
गाँवों में 3332 किलोमीटर सड़क का निर्माण; गंगा
एक्सप्रेसवे/यमुना एक्सप्रेसवे/नोएडा एक्सप्रेसवे का
निर्माण; 2 पैरामेडिकल कॉलेज/2 होम्योपैथिक
कॉलेज का निर्माण; 6 नए मंडलों/45 से अधिक
नयी तहसीलों/40 से अधिक विकास खंड का
गठन/निर्माण; 6 विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों का
निर्माण; 2 इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर सहित);
200 से अधिक डिग्री कॉलेजों/200 से अधिक इंटर
कॉलेजों का निर्माण; 28419 अम्बेडकर ग्रामों में
विकास कार्य/2400 से अधिक सामुदायिक केंद्रों
का निर्माण; दिल्ली-नोएडा मैट्रो का निर्माण; बहन जी
अम्बेडकरवाद का पालन करती है। इसलिए
संविधान की रक्षा तथा सभी कमजोर वर्गों, मुस्लिम
तथा दलितों के मान-सम्मान की रक्षा बहन जी ही
प्राथमिकता से कर सकती है।
अम्बेडकरवाद का सामाजिक आंदोलन:
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का सामाजिक आंदोलन
यू तो 1916 से शुरू होता है और 6 दिसम्बर 1956
तक उनकी अगुआई में निर्बाद रूप से चला। इसी
आंदोलन स्वरूप बाबा साहेब ने बहुजन समाज व
सभी समाज की महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई
लड़ी और इन समूहों को मानवीय अधिकार अंग्रेजी
शासन से और आजादी के बाद भारत का संविधान
लिखकर इनके अधिकारों को सुरक्षित व सुनिश्चित
किया। मगर बाबा साहेब ने जिन बहुजन समाज के
लोगों को छात्रवृतियाँ दिलाकर पढ़ने के लिए विदेश
भेजा, शिक्षा ग्रहण करके वापस देश में आकर
उन्होंने बाबा साहेब के अनुसार बहुजन समाज के
आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।
जिसके कारण 18 मार्च 1956 को उन्होंने आगरा
की एक रैली को संबोधित करते हुए रोये और कहा
था कि-
‘मुझे मेरे समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने
धौखा दिया है।’ उनके मन में बहुत गहरा दुख था,
उन्होंने जिन 16 लोगों को विदेश में पढ़ने के लिए
भेजा था उन्होंने शिक्षित होकर वापस देश में आकर
समाज के लिए काम नहीं किया। उनका यह सपना
उनके जीवनकाल में ही उन्हें टूटता हुआ नजर आया
था। इसलिए उन्होंने आगरा की उसी सभा में बहुजन
समाज की इकट्ठा हुई भीड़ से यह भी कहा था कि‘
मेरे समाज के लोगों, मैं समाज के आंदोलन का
कारवाँ बड़ी मुश्किल से यहाँ तक लाया हूँ अगर
आप इसे आगे भी न ले जा सके तो उसे पीछे भी न
जाने देना।’ लेकिन उनके जाने के बाद बहुत दिनों
तक यह कारवाँ आगे नहीं बढ़ा और न ही उनके
कद का या उनके जैसा कोई बहुजन समाज का नेता
सामने आया।
बी.पी. मौर्य का संघर्ष: बाबा साहेब डॉ.
अम्बेडकर के परिनिर्वाण के बाद उत्तर भारत में बी
पी मौर्य का बहुजन समाज के नेता के रूप में
अवतरण हुआ। बी पी मौर्य शुरू से ही वाकपटुता,
निडर व कुसाग्र बुद्धि के धनी थे। कानून में उच्च
शिक्षा हासिल करके अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में
कानून के प्रोफेसर भी बन गए थे। 1962 के
लोकसभा के आम चुनाव में वे रिपब्लिकन पार्टी
आॅफ इंडिया जो बाबा साहेब के अंतिम दिनों में बनी
थी परंतु अस्तित्व में 1957 में आई। इसी के बैनर
तले बी पी मौर्य सांसद चुने गए थे। इस चुनाव में बी
पी मौर्य की शैक्षिण व अन्य योग्यताओं के साथ-साथ
पिछड़े, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यकों ने भी मौर्य
जी का भरपूर साथ दिया था और उनको लोक सभा
में अलीगढ़ से सांसद बनाकर भेजा था। संसद में
पहुँचने के बाद मौर्य जी का संसद में जलवा पूरे भारत
व विशेषकर उत्तर भारत में मजबूत होकर सबको
नजर आ रहा था। मौर्य जी की भाषण शैली का उस
समय के लोगों पर इतना प्रभाव था कि उनका भाषण
सुनने के लिए लोग पैदल और 40-40 किलोमीटर
से साइकिलों पर आते थे। अगर संक्षिप्त में यंू कहा
जाये कि उत्तर भारत के कुछेक सामाजिक घटकों में
अगर बाबा साहेब के मिशन को स्थापित करने का
श्रेय अगर किसी को जाता है तो सिर्फ और सिर्फ बी
पी मौर्य जी को ही जाता है।
बहुजन समाज पार्टी को जनता नहीं, नेता दे
रहे धोखा: बहुजन समाज पार्टी के उभार से पहले
अम्बेडकरवाद उत्तर भारत की जनता में बी पी मौर्य
के समय से ही स्थापित था। जिसका फायदा बसपा
को मिला। उत्तर भारत की जनता ने मान्यवर साहेब
कासीराम जी व बहन मायावती जी पर पूरा भरोसा
किया उन्हें सभी प्रकार का सहयोग देकर देश में
बहुजन समाज का नेता स्थापित किया। जनता के
समर्थन के कारण ही बहन मायावती जी उत्तर प्रदेश
जैसे बड़े प्रदेश में चार-चार बार मुख्यमंत्री बन पाई
और बहुजन समाज की जनता को लगने लगा कि
अब देश में बहुजन समाज के अच्छे दिन आ गए
हैं। परंतु मनुवादी व्यवस्था व हिंदुत्व के कठोर
नफरती आयामों के चलते यह अधिक दिन तक नहीं
रह पाया। देश में मनुवादी राजनीति का उभार हुआ
और 2012 में बहुजन समाज पार्टी चुनाव में परास्त
हुई और बहन मायावती जी का शासन खत्म हुआ।
बहन मायावती जी के शासन काल में किये गए कार्यों
को मनुवादी संघियों ने प्रदेश की जनता में घर-घर
जाकर यह फैलाया कि मायावती जी का शासन देश
विरोधी और विशेषकर सवर्ण समाज विरोधी है। वे
सिर्फ देश और प्रदेश का पैसा जनकल्याण व देशहित
में न लगाकर पत्थर ही मूर्तियाँ बनाने में लगा रही है।
बहुजन समाज की कमत्तर बुद्धि वाली जनता की
समझ में मनुवादियों द्वारा फैलाया गया षड्यंत्र घर कर
गया और बहन जी चुनाव में हार गई। यह सर्वविदित
है कि मनुवादी व्यवस्था व षड्यंत्र इस देश के लिए
घातक है जिसका हश्र देश सदियों से भुगत रहा है।
समाज का बसपा से उठता भरोसा: यह सभी
जानते हैं कि हर किसी घटना के पीछे कुछ कारण
होते हैं। उसी प्रकार बसपा का घटता असर भी
अकारण नहीं है और हमें यह सच्चाई कहने में पहेज
नहीं करना चाहिए कि बसपा के घटते असर का
कारण सिर्फ-और-सिर्फ बहन मायावती जी का
अदृश्य डर, लालच, भाई-भतीजों के परिवार की
चिंता और समाज द्वारा दी गई विरासत को
नजरअंदाज करना, मुख्य कारण है। उनकी
प्रशासनिक योग्यता और बहुजन समाज के मनोबल
को ऊँचा उठाने के लिए उन्होंने जो कार्य किये उस
पर बहुजन समाज को कोई संदेह नहीं है। परंतु बृहत
बहुजन समाज के विकास की तरफ कदम न बढ़ाने
के उनके अंदर न दिखना भी कारण है। आज की
परिस्थितियों को देखते हुए बहुजन समाज की सत्ता
कायम करने के लिए यह अति आवश्यक हो गया
है कि बहुजन समाज के सभी वर्गों में एकता व
जागरूकता आंदोलन निरंतरता के साथ चलाना
पड़ेगा और राजनैतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए
राजनेताओं के बजाय सामाजिक गठबंधनों को
महत्व देना पड़ेगा। मायावती जी इसी अहम कड़ी को
पकड़ने में विफल हो रही है। 2019 के लोकसभा
चुनाव में उनका समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन
इस दिशा में बढ़ाया गया कदम महत्वपूर्ण था जिसे
वे बहुत दिनों तक बरकरार नहीं रख पाई। बरकरार
न रखने के लिए समाजवादी पार्टी की गलती नहीं
दिख रही है, गलती सिर्फ और सिर्फ बहन मायावती
जी की थी। जिसने बहुजन समाज की आशाओं व
सपनों को चकनाचूर किया है। दिन-प्रतिदिन बहुजन
समाज पार्टी के नेताओ व प्रतिनिधियों से बहुजन
समाज की जनता का भरोसा उठ रहा है। बहन
मायावती जी ने अपने इर्ध-गिर्ध भ्रष्टाचारी व निकम्मे
लोगों को पनाह दे रखी है। समाज की जनता की
उनके साथ कोई कनेक्विटी नहीं है। बहुजन समाज
की जनता को उनमें अपने अयोग्य भाई-भतीजों को
लेकर उन्हें राजनीति में स्थापित करने व चमकाने की
ललक दिखाई दे रही है। देश की बहुजन जनता को
बाबा साहेब के उस वाक्यों को ध्यान में रखते हुए
कि-‘मैं यह कारवाँ बड़ी मुश्किल से लाया हंू उसे
पीछे नहीं जाने देना’ को याद रखना होगा। बहुजन
समाज के जागरूक घटकों को अम्बेडकरवाद के
मिशन को नेताओं के भरोसे न छोड़कर उसका भार
स्वयं ही वहन करना पड़ेगा। वर्तमान में समाज का
एक भी राजनैतिक इच्छा रखने वाला व्यक्ति
अम्बेडकरवादी मिशन को देश भर में स्थापित करने
के लिए सक्षम नजर नहीं आ रहा है। बहुजन समाज
के राजनैतिक घटकों को भी मनुवादी राजनीति से
निपटने के लिए बहुजन समाज के सामाजिक
गठबंधनों के विकल्प को महत्व देना चाहिए।
अम्बेडकरवाद जिंदाबाद
नोट: संपादक बसपा/मायावती के विरोधी
नहीं हैं बल्कि कट्टर समर्थक हैं आज भी।
वर्तमान में बसपा की कमजोरियों के बारे में
लिखने के लिए संपादक मजबूर हैं।