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बसपा की सोचसमझ पर उठते सवाल

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2024-03-18 09:51:29

बहुजन समाज का मतलब एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक से हैं जिनका जनसांख्यिकी के आधार पर देश में 90 प्रतिशत हिस्सा है। देश की ब्राह्मणवादी व मनुवादी सामाजिक व्यवस्था में बहुजन समाज का हिस्सा शून्य है। राजनीति व व्यवसाय में ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में भी बहुजन समाज की भागीदारी शून्य है। इनकी सामाजिक उपेक्षा का कारण मनुस्मृति का तथाकथित हिंदुत्व का धार्मिक प्रावधान व प्रचार है। बहुजन समाज के उत्पीड़न को देखकर लगता है कि ऐसे अमानवीय सामाजिक व धार्मिक प्रावधान देश की 90 प्रतिशत जनता को अशिक्षित रखकर उनको चिरकाल से ही चलाया जा रहा है। परिणामस्वरूप पूरा बहुजन समाज इस अमानवीय उत्पीड़न को सहने के लिए विवश हुआ और इस व्यवस्था के कारण पूरा बहुजन समाज सभी सामाजिक क्षेत्रों में पिछड़कर पशुओं से भी बदतर जीवन जीने के लिए विवश हुआ।

बहुजन समाज का राजनैतिक उद्भव: बहुजन समाज के ऊपर हो रहे अमानवीय उत्पीड़नों को अंग्रेजी शासन ने देखकर पाया कि भारत में चल रहे मनुवादी व ब्राह्मणवादी अत्याचार अवैज्ञानिक व अतार्किक है इसलिए उन्होंने यहाँ पर चल रहे मनुस्मृति आधारित अमानवीय कानूनी प्रावधानों को समानता के आधार पर बदलना शुरू किया। जिसका ब्राह्मणी मानसिकता के उस समय के कांग्रेसी राजनैतिक नेताओं ने उसका पुरजोर विरोध किया। ब्रिटिश शासन ने देश में चल रहे सभी अमानवीय व अतार्किक मनुवादी कानूनों को बदलना शुरू किया। इन कानूनी प्रावधानों के बदलाव में उस समय के बहुजन महापुरुष महात्मा ज्योतिबा राव फुले, माता सावित्रीबाई फुले, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर आदि का अहम योगदान रहा है। इन महापुरुषों के योगदान के चलते बहुजन समाज की राजनीति का उद्भव 1919 से बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के राजनैतिक सफर से शुरू होता है और यह राजनैतिक सफर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर से चलकर आजादी के बाद बहुजन समाज के अनेकों राजनेताओं से होते हुए मान्यवर साहेब कांशीराम जी व बहन मायावती तक का अहम सफर है। इस राजनैतिक सफर में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। लेकिन बहुजन समाज को अपने राजनैतिक सफर में दो अहम सामाजिक व्यवस्थाओं को परखना होगा और बहुजन समाज के हित में उसका आंकलन भी करना होगा। राजनैतिक सफर में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर व मान्यवर साहेब कांशीराम जी का योगदान अहम है। राजनैतिक दांव-पेच और पैतरेबाजी को देखते हुए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने ब्राह्मणवादी व मनुवादी कर्णधारों को स्पष्ट तौर पर बॉम्बे विधान सभा में दिये गए भाषण में कहा था कि मैं इस सदन में पुरजोर से कहना चाहता हूँ कि ‘जब कभी देश के हित और दलितों के बीच टकराव होगा तो मैं दलितों के हित को तरजीह दूंगा। अगर कोई आततायी बहुमत देश के नाम पर बोलता है तो मैं उसका समर्थन नहीं करूँगा। मैं सिर्फ किसी पार्टी का समर्थन इसलिए नहीं करूँगा कि वह पार्टी देश के नाम पर बोल रही है। जो यहाँ हैं और जो यहाँ नहीं हैं, सब मेरी भूमिका को समझ लें कि मेरे अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश के हित को तरजीह दूंगा, लेकिन अगर देश के हित और दलित वर्गों के हित के साथ टकराव होगा तो मैं दलितों के हित को तरजीह दूंगा।’ आज के तथाकथित बहुजन समाज के नेता स्वयं का आंकलन करें कि क्या आप बाबा साहेब के बताए गए रास्ते पर चल रहे हैं? अगर नहीं तो अम्बेडकरवादी होने का ढ़ोल न पीटे।

बहुजन समाज के नेता आज बाबा साहेब के नाम पर अपने समाज को धोखा दे रहे हैं और ब्राह्मणवादी व मनुवादी पार्टियों के लिए राजनैतिक दलाली करके धनाड्य बनने का सपना देख रहे हैं। आज के तथाकथित अम्बेडकरवादी सामाजिक नेता समाज के हित में कार्य न करके अपने भाई-भतीजों को चमकाने व समाज को लूटने की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे राजनैतिक परिदृश्य को देखकर बहुजन समाज को जागरूक व सचेत होकर समाज हित में फैसला करना चाहिए कि हम आज के सबसे बड़े राजनैतिक शत्रु से कैसे निपटे? आज बहुजन समाज के लिए राजनीतिक फैसले लेने की परीक्षा का समय है। आज देश में मनुवाद और ब्राह्मणवाद हावी है। बहुजन समाज के सामने महापुरुषों की राजनीतिक विरासत को बचाने की चुनौती है। इस चुनौती से पार पाने के लिए मान्यवर साहेब कांशीराम जी की विचारधारा के अनुसार राजनीतिक रूप से कमजोर दल को अपना सामाजिक समर्थन देकर जिताना चाहिए और फिर उस जीतने वाले से आततायी मानसिकता वालों का राजनैतिक विनाश कराना चाहिए, यही समाज के हित में होगा।

बहन जी की वर्तमान राजनीतिक कार्यशैली: बहन जी ने अभी तक बसपा की रणनीति जाहिर नहीं की है वे बार-बार एकला चलो की नीति का ही राग अलाप रही है। देश में राजनैतिक माहौल गरम हो चुका है। हर रोज नए-नए कयास लगाए जा रहे हैं। अभी हाल में कयास लगाया जा रहा है कि बहन जी मुस्लिम समाज के चेहरों को ज्यादा टिकट दे सकती है और कुछेक मुस्लिम चेहरों के नाम भी उजागर किये हैं मगर अभी तक बहन जी की चुनावी रणनीति पर बहुत धुंध छाया हुआ है। आम जनता के कयास के अनुसार अगर बीएसपी ज्यादा सीटों पर मुसलमानों पर दांव लगाती है तो बहुजन समाज के विचारकों का कहना है कि इस रणनीति से मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है? जिसके कारण नि:संदेह देश में मनुवादी और ब्राह्मणवादी ताकते कुछ हद तक मजबूत हो सकती है। पिछले दस वर्षों में मनुवादी-संघी आतताही सरकार ने संविधान और बहुजन समाज को कमजोर करने व उसे सताने का काम किया है। मनुवादी संघी शासन के दस वर्षों को देखकर समाज में संदेह नहीं होना चाहिए कि बहुजन समाज का सबसे बड़ा दुश्मन आज संघी-मनुवादी मानसिकता की सरकारें हैं। आज बहुजन समाज का एकमात्र लक्ष्य यह होना चाहिए कि संघी मानसिकता की सरकार से बहुजन समाज की मुक्ति कैसे हो सकती है? बहन जी बाबा साहेब की विचारधारा की प्रबल समर्थक और कट्टर अनुयायी है तो उन्हें बाबा साहेब के द्वारा दिया गया बॉम्बे विधान सभा का भाषण याद करके उसका अनुसरण करना चाहिए।

बहुजन समाज को किसे वोट करना चाहिए: नि:संदेह आज का राजनैतिक परिदृश्य यह स्पष्ट कर रहा है कि वर्तमान में देश के संविधान और बहुजन समाज के घटकों को सबसे अधिक खतरा मनुवादी संघी सरकार से है। इसलिए देश की जनता को सोच-समझकर सरकार को चुनने का फैसला करना चाहिए किसी आतताही के प्रचार-प्रसार, छलावों-जुमलों और झूठी गारंटियों में फँसकर अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहिए। अगर बहुजन समाज अब अपने चुनावी कर्तव्य में सही फैसला लेने से चूकता है तो वह समाज और देश के हित में सबसे घातक फैसला होगा। बहुजन समाज के सभी प्रबुद्ध लोगों से आग्रह है कि वे बाबा साहेब के उपरोक्त कथन को पढ़कर सामूहिक रूप से फैसला करें और किसी भी कीमत पर वर्तमान की आतताही सरकार को देश में तीसरी बार सरकार बनाने का मौका न दें।

संघी गारंटियों के छलावों में न फँसे: लोकसभा चुनावों की तारीख का ऐलान हो चुका है। मोदी संघी आतताही प्रचारक बड़े पैमाने पर प्रचार माध्यमों से देश की भोली-भाली जनता के सामने छलावामयी गारंटियों का जाल बिछा रहे हैं। इन गारंटियों का जाल वैसा ही है जैसे एक शिकारी पक्षियों को पकड़ने के लिए दाने डालता और फिर उस पर जाल बिछाता है। जब पक्षी अपना दाना उठाने के लालच में धोखे से जाल पर बैठ जाता है तो वह वहीं फंस जाता है, फिर जाल से नहीं निकल पाता और तब वह पूर्णतया शिकारी का गुलाम बन जाता है। वर्तमान समय में बहुजन समाज की पिछड़ी जातियों के घटक दल बार-बार आतताही के जाल में फँसकर गुलाम बनते जा रहे हैं और वे बार-बार फँसकर भी इससे कोई सबक नहीं लेते। बहुजन समाज का यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। 15 मार्च 2024 को मान्यवर साहेब कांशीराम जी का 99वाँ जन्म दिवस मनाया गया। मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने पिछड़ी, अति-पिछड़ी, अत्यंत पिछड़ी जातियों को जागरूक व एकजुट करने के लिए अपना पूरा जीवन लगाया परंतु आज भी ये जातीय घटक मनुवादी व संघियों के जाल में हर रोज पक्षियों की तरह फंस रहे हैं और अपने महापुरुषों द्वारा बताई गयी शिक्षाओं का कोई संज्ञान नहीं ले रहे हैं!

बहुजन समाज के सामने बड़ा सवाल?: आज बहुजन समाज के सामने बहन जी की अनिर्णायक व अस्पष्टता की नीति के कारण धुंध का साया है, समाज को कुछ भी सूझ नहीं रहा है। वे हमेशा की तरह अपना वोट बहन जी को देने का मन बनाए हुए हैं मगर उन्हें ऐसा करने में संकोच भी है। अगर वे अपना वोट संघियों के रणनीतिक जाल में फँसकर बहन जी को देते हैं तो उनके मन में डर है कि कहीं वोट का बँटवारा होने से संघी-मनुवादी लोग सत्ता में न आ जायें? इस दुविधा के समाधान के लिए लोगों को आपस में विचार-विमर्श करना चाहिए। समाज के जागरूक लोगों को आगे आकर समाज हित में बाबा साहेब के उपरोक्त कथन के अनुसार रणनीतिक फैसला करना चाहिए। वर्तमान में बहुजन समाज के नेता समाज हित में कम और ब्राह्मणवादियों के हित में अधिक काम करते नजर आ रहे हैं। ऐसा देखकर समाज को यह भी फैसला करना चाहिए कि अगर समाज और देश हित में आज बहुजन समाज पार्टी के अनुयायियों को बसपा को वोट देने की अपनी प्रतिबद्धता को त्यागना भी पड़े तो उसे त्याग देना चाहिए। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की तरह हमें (बहुजन समाज) समाज और देश हित को सर्वोपरि रखना चाहिए। किसी भी चुनाव में बहुजन समाज के मतदाताओं को अपने समुदायों के लोगों को वर्तमान आतताही संघी सरकार के षड्यंत्रकारी कारनामों से अवगत कराएं। हर रोज गली-मौहल्ले में नुक्कड़ बैठकें करें। मनुवादी संघियों की छलावामयी रणनीति से जनता को जागरूक करें। देश में पिछले दस सालों में मोदी ने जो वायदे किये हैं, गारंटियां दी हैं उनपर गहराई से विचार करें और अपनी बुद्धि से सच्चाई को परखें कि क्या आजतक मोदी संघी सरकार की एक भी गारंटी या एक भी वायदा पूरा हुआ है? नहीं, मोदी संघी शासन में एक भी लोकहित का कार्य नहीं हुआ, लोकतंत्र को विभिन्न तरीकों से ध्वस्त किया जा रहा है, देश में बेरोजगारी और महँगाई चरम पर है जिसका ज्यादा प्रभाव बहुजन समाज की जनता पर पड़ा है। आज पूरा समाज बेरोजगारी, महँगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य समस्याओं से त्रस्त है। मोदी-संघी शासन पिछड़ी जातियों की कमसमझ और अजागरूकता पर भरोसा करके और उन्हें झूठ व अपने छलावों में फंसाकर तीसरी बार देश में सरकार बनाने की झूठी गारंटी देकर जनता को ठगने का काम कर रहा है।

बहुजन समाज की भोली-भाली जनता से आग्रह है कि वे अपनी आने वाली पीढियों के भविष्य को ध्यान में रखकर किसी भी कीमत पर मोदी-संघियों के छलावों में न फँसकर भाजपा संघी प्रत्याशियों को चुनाव में भारी मतों से हराकर संविधान और समाज की रक्षा करने का पवित्र कार्य करने का संकल्प लें।

जय भीम, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05