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पेरियार जी के विचारों के आगे सनातन धर्म कुछ नहीं

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2023-09-09 09:49:12



सनातन का शाब्दिक अर्थ है अनादि काल से। मनुवादी संस्कृति के लोग सनातन धर्म को हिन्दू धर्म कहते हैं। सनातनी कहते है उनका धर्म किसी पैगंबर या अवतार द्वारा संचालित न होकर प्रकृति के शाश्वत नियमों से संचालित है। हिंदुत्व के नेता कहते हैं की सनातन धर्म हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ था। सनातन हिन्दू धर्म के अंतर्गत वैदिक धर्म, ब्राह्मण धर्म तथा महाकाव्य एवं पौराणिक कथाएं आती है।

हिंदुत्व की विचारधारा वाले मनुवादी लोग अपनी काल्पनिक अवधारणाओं के आधार पर हिन्दू धर्म को सनातन बताते हैं, जो वास्तविकता के आधार पर सत्य नहीं लगता है। हिन्दू शब्द की उत्पत्ति और उसकी व्याख्या न तो वेदों में है और न ही पुराणों में है। ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर हिन्दू शब्द की उत्पत्ति दसवीं शताब्दी के बाद से पायी जाती है। हिन्दू नाम के धर्म को भारत के सर्वोतम न्यायालय ने भी धर्म नहीं माना है। हिन्दू धर्म वास्तविकता के आधार पर कुछ भी नहीं है। यह सिर्फ ब्राह्मणों द्वारा अन्य जातीय समूह को जोड़कर ब्राह्मणी संस्कृति को बढ़ाने-फैलाने का षड्यंत्र मात्र है। शूद्र वर्ग जो देश में अधिसंख्यक हैं, सनातन धर्म में उनको कोई भी मानवीय अधिकार नहीं है। न उनको शिक्षा, संपत्ति, सामाजिक व अन्य मानवीय अधिकार है। सनातन धर्म की प्रथाओं के चलते प्राचीन, मध्य और वर्तमान काल में शूद्र कहे जाने वाली जातियों से आने वाले संतों, महात्माओं और राजाओं का हमेशा अपमान हुआ है। सनातन धर्म मानने वाले अलंबरदारों से शूद्र वर्ग को हमेशा छल और कपट ही मिला है।

वर्तमान समय में तथाकथित सनातनीयों को जब मुस्लिमों से लड़ना होता है तो शूद्र समाज की पिछड़ी व दलित जातियों को हिन्दू बनाया जाता है और उन्हें मुस्लिमों से लड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। उत्पत्ति के बाद से मनुष्य पूर्णतया विकसित और सभ्य नहीं था। वह जंगलों में रहता था, घूम-घूमकर पेड़ों के फल-छाल आदि खाकर जीवित रहता था। मनुष्य की स्थिति एक जंगली इंसान जैसी थी। अगर जंगल में उसे कोई भेड़िया या अन्य हिंसक जानवर मिल जाता था तो या तो वह उसे मारकर खा जाता था या फिर वह जानवर का निवाला बन जाता था। इसी प्रकार की व्यवस्था में मनुष्य का जीवन सैंकड़ों वर्षों से अधिक चला। धीरे-धीरे मनुष्य जाति के लोगों में समुदाय बनने की प्रवृति शुरू हुई और मनुष्य ने सभ्यता की तरफ कदम आगे बढ़ाए। उस समय यहाँ के सभी मनुष्य मूलनिवासी थे। जो जंगलों में समूह बनाकर रहते थे और प्रकृति के नियमों का पालन करते थे। प्रारम्भिक काल में उनका कोई घोषित धर्म नहीं था, वे प्रकृति व उसके नियमों को ही सबकुछ मानते थे।

यूरेशिया से आए आर्य ब्राह्मणों ने यहाँ के मूलनिवासियों की सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था पर कब्जा करने के उद्देश्य से पूरे समाज को चार वर्णों और 6743 जातियों में विभक्त किया। वर्गीकरण का आधार यूरेशियाई आर्यों (ब्राह्मणों) ने स्वनिर्मित आधार पर बनाया। मूलनिवासियों को गुमराह करने के लिए यूरेशियन ब्राह्मणों ने खुद (ब्राह्मण) को श्रेष्ठ बताया चूंकि वह ‘ब्रह्मा’ के मुख से पैदा हुआ है। उनका यह वक्तव्य अव्यवहारिक और अवैज्ञानिक था।

हिन्दू धर्म न पहले सनातनी था और न आज सनातनी है। आज के समय में यह सत्ता हड़पने का एक हिंदुत्ववादी छलावा है ताकि हिंदुत्ववादी मानसिकता के लोग शूद्रों (बहुजन) को अधिक से अधिक संख्या में सनातन धर्म में फंसाकर उनके वोट ले सकें।

हिन्दू धर्म कभी भी सनातन नहीं था वह वास्तविकता के आधार पर ब्राह्मण धर्म था। जो देश के मूलनिवासियों पर जबरदस्ती थौंपा गया था। आज देश में मनुवादी सरकार है जो हिन्दू धर्म (ब्राह्मण) को सनातन धर्म बताकर अपने सत्ता बल से जनता पर थौंप रही है और इसी के बहाने उनका उत्पीड़न भी कर रही है। हाल ही में डीएमके के नेता उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि-‘सनातन धर्म डेंगू, मलेरिया, कोरोना की तरह एक वायरस है इसे खत्म करना देश व जनता के हित में होगा।’ वहीं इसपर संप्रग सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे ए.राजा ने कहा कि हिन्दू धर्म इससे भी घातक वायरस ‘एचआईवी’ व ‘कुष्ठ’ की तरह है। यह दोनों बयान इस देश की मनुवादी जाति व्यवस्था को नंगा करते हैं। हिंदुत्व की विचारधारा से संक्रमित लोग जो सरकार में है वे इसे लेकर भोली-भाली जनता को बरगलाने और न्यायालयों में उनके खिलाफ केस दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने हिंदुत्ववादी गुंडों को इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की अपील की है। बहुजन स्वाभिमान संघ अपील करता है कि तथाकथित सनातनियों के भहकावे में न आए। चूंकि सनातनी कहे जाने वाली हिंदुत्व की विचारधारा विषमतावादी जहर है, जो मानवता व न्याय विरोधी रही है, समाज में ऊँच-नीच की पक्षधर है, इसी विचारधारा ने बहुजनों को शिक्षा व संपत्ति से वंचित रखा।

हिंदुत्व को लेकर पेरियार के क्रांतिकारी विचार: पेरियार जी परंपरावादी हिन्दू परिवार में 17 सितम्बर 1879 को जन्में थे और उनका परिनिर्वाण 24 दिसम्बर 1973 में 94 वर्ष की आयु में हुआ था। वे बीसवीं सदी के एक महानतम सामाजिक, क्रांतिकारी नेता थे। पेरियार जी ने जिंदगी भर हिन्दू धर्म और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध किया। उन्होंने तर्कवाद आत्म-सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया। जाति का घोर विरोध किया। यूनस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें युग का पेगेंबर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आंदोलन का पिता, अज्ञानता, अन्धविश्वास और समाज में फैले बेकार के ब्राह्मणी रीति-रिवाज का क्रू-सेडर कहा।

पेरियार जी के क्रांतिकारी विचार: ईश्वर की सत्ता स्वीकार करने के लिए किसी बुद्धि की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ़-विश्वास की जरूरत पड़ती है। यह उन्हीं लोगों के लिए संभव है जिनके पास तर्क और बुद्धि की शक्ति हो; धार्मिक व्यक्ति से आप किसी भी तर्कसंगत विचार की उम्मीद नहीं कर सकते; मैंने सभी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली सभी की तस्वीरों को जला दिया, मेरे द्वारा सबकुछ करने के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की संख्या में लोग आते हैं तो इसका मतलब है कि जनता जाग्रत हो रही है; उसे स्वाभिमान और बुद्धि का अनुभव हो रहा है; तथाकथित शास्त्र, पुराण उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वे सारे के सारे दोषी है; मैं जनता से उन्हें जलाने और नष्ट करने की अपील करता हूँ; ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है, जबकि वह खुद आरामदायक जीवन जी रहा है; अछूत कहकर तुम्हारी निंदा करता है; मैं आपको सावधान करता हूँ कि उनका विश्वास मत करो; सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं तो अकेले ब्राह्मण उच्च व अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है; आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई इन मंदिरों में क्यों लूटाते हो क्या कभी ब्राह्मणों इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान किया है? दुनिया में न कोई देवी है न कोई देवता है जिसने इनका आविष्कार किया वह धूर्त है; वह जो भगवान का प्रचार करता है एक बदमाश है; वह जो भगवान की पूजा करता है वह मूर्ख है; अगर देवता ही हमें निम्न जाति का बनाने का मूल कारण है तो ऐसे देवता को नष्ट कर दो; अगर धर्म में ऐसा है तो इसे मत मानों, अगर मनुस्मृति, गीता या पुराण आदि में है तो उन्हें जलाकर राख कर दो; अगर यह मंदिर, त्यौहार है तो इनका बहिष्कार करो; यदि हमारी राजनीति ऐसा करती है तो उसका खुले रूप में पदार्फाश करो; द्रविड़ कडगम आंदोलन का लक्ष्य है इस आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण-व्यवस्था का अंत कर देना; जिसके कारण समाज ऊँच-नीच व जातियों में बंटा है; यह आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण और जाति व्यवस्था जैसे को तैसा बनाए रखे हुए हैं; ब्राह्मणों ने हमें शास्त्र और पुराण की सहायता से गुलाम बनाया है; उसने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर, और देवी-देवताओं की रचना की; हमारा देश तभी आजाद समझा जाएगा, जब ग्रामीण लोग देवी-देवता, धर्म-अधर्म, जाति-अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएँगे; विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं, जबकि हम श्राद्धों में ब्राह्मणों द्वारा परलोक में बसे अपने पूर्वजों को कौओं के माध्यम से खीर भेज रहे हैं। क्या ये बुद्धिमानी है?; ब्राह्मणों द्वारा निर्मित देवी-देवताओं को देखो एक हाथ में भाला, त्रिशूल उठाकर खड़ा है तो दूसरा धनुष-बान और तीसरे देवी-देवता कोई गुर्ज, खंजर, ढाल के साथ सुशोभित है। यह सब क्यों है? यह किसको मारने के लिए है; उन देवताओं को नष्ट कर दो जो तुम्हें शूद्र कहें, उन पुराणों और इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं; उस देवता की पूजा करो जो वास्तव में दयालु, भला और बौद्धगम्य है; संसार का अवलोकन करने पर पता चलता है कि भारत जितने धर्म और मत-मतांतर कहीं भी नहीं है। यही नहीं इतने धर्मांतरण दूसरी जगह कहीं भी नहीं हुए हैं। यह इसलिए है कि निरक्षर और गुलाम प्रवृति के लोगों का उनके द्वारा धार्मिक शोषण करना आसान है; आर्यों ने हमारे ऊपर अपना धर्म थौंपकर असंगत, निरर्थक और अविश्वसनीय बातों में हमें फाँसा। अब हमें इसे छोड़कर ऐसा धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए जो मानवता की भलाई में सहायक हो; ब्राह्मणों ने हमें शास्त्रों और पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर और देवी-देवताओं की रचना की; सभी मानव एक है, हमें भेदभाव रहित समाज चाहिए। हम किसी को प्रचलित सामाजिक भेदभाव के कारण अलग नहीं कर सकते; समय बदल रहा है, ब्राह्मणों को नीचे आना होगा, तभी वे आदर से रह पायेंगे, नहीं तो एक दिन उन्हें बलपूर्वक और देशाचार के अनुसार सभी को मिलकर ठीक करना होगा।

सभी जातीय घटकों से निवेदन है कि वे अपनी बुद्धि और तर्क के आधार पर तथाकथित सनातनी हिन्दू धर्म का अवलोकन करें और देखें कि धर्म के प्रपंचों से फायदा किसको हो रहा है? और किसके बच्चे मंदिरों के चढ़ावों से विदेशों में जाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उसी के आधार पर वे यहाँ पर धनवान हो रहे हैं और अगर वे यहाँ लौटते है तो उन्हें मित्रों के व्यापारी प्रतिष्ठानों में उच्च अधिकारी नियुक्त किया जाता है या फिर उन्हें सरकार में बैकडोर से संयुक्त सचिव बना दिया जाता है, वे समाज में अल्पमत होकर भी सत्ताबल के सहारे मनुवादी व्यवस्थाओं का निर्माण करा रहे हैं। 200 से अधिक सेवानिर्वत मनुवादी अधिकारियों ने व गोदी मीडिया ने उदयनिधि के बयान को गलत बताया है। बहुजन समाज जो देश की जनसंख्या का 80 प्रतिशत है उसका कम से कम 60 प्रतिशत भाग उदयनिधि व ए. राजा व स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का समर्थन करता है और उनके बयान के साथ मजबूती से खड़ा है। देश में बहुजन समाज अधिसंख्यक है, मनुवादी सरकारों द्वारा प्रायोजित बाबाओं, सेवानिर्वत हुए ब्राह्मणवादी मानसिकता के लोगों का घोर विरोध करता है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05