2023-07-01 06:52:52
भारत की अति पिछड़ी जातियाँ जैसे नाई, कुम्हार,
बढ़ई, गडरिये, लौहार, कुशवाहा, तेली, पटेल,
तमौली व अन्य सभी समकक्ष जातियाँ हिंदुत्व के
वर्गीकरण के अनुसार शूद्र हैं। जिनको हिंदू धर्म
में संपत्ति, शिक्षा व रोजगार पाने का अधिकार नहीं
है। इन अति पिछड़ी जातियों से मिलकर बना शूद्र
समाज हिंदू धर्मशास्त्र ‘मनुस्मृति’ में सभी मानवीय
अधिकारों से वंचित है। आजादी के बाद इन अति
पिछड़ी जातियों की पहचान करके उनके लिए
कारगर उपाय सुझाने के लिए काका कालेलकर
आयोग का गठन 29 जनवरी 1953 को हुआ।
संविधान के अनुच्छेद 340 में पिछड़ों के लिए
आयोग का गठन करने का प्रावधान है। इस आयोग
का उद्देश्य था पिछड़ी जातियों की गणना करना,
उनके विकास के लिए उपाय सुझाना। यह आयोग
काफी समय तक अस्तित्व में रहने के बाद भी
अपना उद्देशित कार्य नहीं कर पाया था।
जनता पार्टी के शासनकाल में बिन्देश्वरी प्रसाद
मंडल की अध्यक्षता में फिर पिछड़े आयोग का
गठन किया गया। इस आयोग को भारत में
सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछडों के विषय
में रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सौंपा गया। कमीशन
का गठन साल 1978 में जनता पार्टी की सरकार
द्वारा किया गया था। इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट
1980 में तैयार करके सरकार को सौंपी थी।
1989 में मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने देश
की पिछड़ी जातियों को जागरूक करने के लिए
पूरे देश में घूम-घूमकर जनता को जागरूक करने
के कार्यक्रम चलाये थे। मान्यवर साहेब कांशीराम
जी ने पिछड़ों के संबंध में सरकार को एक
बहुचर्चित नारा भी दिया था कि- ‘मंडल
कमीशन लागू करो, वरना कुर्सी खाली करो।’
मान्यवर साहेब कांशीराम जी का यह नारा पूरे
देश में गूँजा और देश की अति पिछड़ी जातियों
जैसे नाई, कुम्हार, बढ़ई, गडरिये, लौहार,
कुशवाहा, तेली, पटेल, तमौली व अन्य सभी
समकक्ष जातियों में ऊर्जा का संचार शुरू हुआ
और उनमें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने
की भावना भी पैदा हुई।
1992 के इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च
न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह
लाभ और सुरक्षा के उद्देश्य से विभिन्न पिछड़े वर्गों
के समावेशन और बहिष्करण पर विचार करने
तथा जाँच एवं सिफारिश के लिये एक स्थायी
निकाय का गठन करे। इन निदेर्शों के अनुपालन
में संसद ने वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
अधिनियम पारित किया और एनसीबीसी का गठन
किया। वर्ष 2017 में 123वाँ संविधान संशोधन
विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया ताकि पिछड़े
वर्गों के हितों को अधिक प्रभावी ढंग से संरक्षित
किया जा सके। अगस्त 2018 में इस विधेयक को
राष्ट्रपति की सहमति मिली और एनसीबीसी को
संवैधानिक दर्जा मिला।
भाजपा ने पिछड़ी जातियों को अधिकार देने
का हमेशा विरोध किया: मूल रूप से भाजपा का
डीएनए मनुस्मृति आधारित है। जिसमें सभी वर्गों
की महिलाओं व शूद्र वर्ग को कोई भी अधिकार
देने का प्रावधान नहीं है। इसी भावना के तहत जब
दिल्ली में पिछड़ी जातियों के विकास के लिए मंडल
कमीशन बनाया गया तब देश में वी.पी. सिंह की
अगुआई में जनता पार्टी की सरकार थी जिसमें
भाजपा की मूल पार्टी जनसंघ भी शामिल थी। उस
समय के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी,
अटलबिहारी वाजपेयी, मदनलाल खुराना,
केदारनाथ साहनी, आदि अनेकों हिदुत्व के कट्टर
समर्थक नेता सरकार में मंत्री थे। मंडल कमीशन
की रिपोर्ट को लागू न होने देने के लिए भाजपा के
नेताओं ने प्रपंचकारी षड्यंत्र के तहत देश के
स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में जाकर छात्रों
को भड़काया और देश में जगह-जगह मंडल
कमीशन की रिपोर्ट के विरोध में छात्रों से प्रदर्शन
कराये। भाजपा के इस प्रचंड प्रदर्शन के दौरान कई
छात्रों की जाने भी गई। देश में जगह-जगह
आगजनी हुई देश की संपत्ति को काफी नुकसान
हुआ था। राजीव गोस्वामी नाम के छात्र ने सितम्बर
1990 में पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने
की अनुसंशा के विरोध में अपने आपको आग
लगा ली। षड्यंत्र के पीछे मनुवादी संस्कृति का
हाथ था जिसके तहत गरीब राजीव गोस्वामी को
फुसलाकर अपनी जहरीली मानसिकता के तहत
शूली पर चढ़ा दिया था। राजीव गोस्वामी खुद एक
पिछड़ी जाति के ही थे। मगर मनुवादी मानसिकता
का षड्यंत्र इतना छिपा होता है कि वह मनुष्य को
पता ही नहीं लगने देता कि इससे नुकसान होगा
या फायदा? भाजपा आज देश की राजनैतिक सत्ता
में है और अपनी षड्यंत्रकारी प्रपंची चालाकियों
से बाज नहीं आ रही है। मोदी शासन ने कुछ महीने
पहले ही पिछड़ों का कार्ड खेलकर सहानुभूति
बटोरने व उसी आधार पर उनके वोट को अपनी
तरफ मोड़ने की कोशिश की थी। भाजपा ने कुछेक
पिछड़े समाज के गुलाम पकड़कर उन्हें मंत्री
बनाया। इन पिछड़ी जातियों से बनाए गए मंत्रियों
का न कोई जनाधार है और न ही उनमें उस लेवल
की सूझबूझ है, जिसके बल पर वे अपने समाज
का कोई भला कर सके। अभी 3-4 दिन पहले
पिछड़े वर्ग के भाजपा के वरिष्ठ कहे जाने वाले
नेता भूपेन्द्र यादव ने शायद मोदी को खुश करने
के लिए कहा था कि विपक्षी दलों के शासित राज्यों
में ओबीसी को उनके लाभ नहीं दिये जा रहे हैं,
उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा
रहा है। भूपेन्द्र यादव करीब 9 सालों से मोदी शासन
में मंत्री है उन्हें अपने ओबीसी समाज को बताना
चाहिए कि मंत्री रहकर मैंने मोदी शासन में पिछड़ों
के लिए ये मुख्य काम किये हैं? मंत्री जी का यह
बयान पिछड़ों की एकता और वोट शक्ति को
विकेंद्रित करने की सुपारी ही लग रहा है। चूंकि
आज पिछड़े वर्ग की जातियाँ धीरे-धीरे जागरूक
हो रहीं है और वे समझ रहीं हैं कि मोदी ने अपने
कुछेक पालतू गुलाम को मंत्री बनाकर पिछड़े वर्ग
की अति पिछड़ी जातियों की आँखों में धूल झोंकी
है। भूपेन्द्र यादव द्वारा मोदी शासन में पिछड़ों का
ढ़ोल पीटना एक सगूफा मात्र है। मोदी जी द्वारा अपने
आपको पिछड़ा बताना तथ्यों की तसदीक नहीं करता
यह सिर्फ मतदान के समय उनकी वोट शक्ति से
सत्ता में आने का एक साधन मात्र लगता है।
पिछड़ों की बदहाली का आईना: मंडल
कमीशन के तहत पिछड़े वर्ग की जातियों को 27
प्रतिशत आरक्षण दिया गया जबकि उनकी
वास्तविक जनसंख्या 60 प्रतिशत से अधिक है।
देश के सरकारी संस्थानों में पिछड़े वर्ग की जातियों
की भागीदारी 10 प्रतिशत से नीचे है। देश में करीब
48 केंद्रीय विश्वविद्यालय है जिनमें पिछड़े वर्ग की
जातियों के प्रोफेसरों की संख्या नगण्य है। इसी
प्रकार असिस्टेंट प्रोफेसर व अन्य वरिष्ठ पदों पर
भी उनकी संख्या नगण्य है। पिछड़े वर्ग की अति
पिछड़ी जातियों के समुदायों को सरकार से यह
माँग करनी चाहिए कि उनको दिया गया 27 प्रतिशत
आरक्षण सभी सरकारी नौकरियों में एक समय
सीमा के तहत पूरा किया जाये। मनुवादी
मानसिकता का दुश्चक्र चलाकर इन अति पिछड़ी
जातियों के मस्तिष्क में जहर भरने की कोशिश
की जाती है कि अति पिछड़ी जातियों का हिस्सा
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोग
खा रहे हैं। पिछड़ी जातियों के अकल के अंधों
को यह 27 प्रतिशत आरक्षण का साधारण सा
गणित समझ में नहीं आ रहा है कि जब पिछड़े
वर्ग के लिए 27 प्रतिशत हिस्से का प्रावधान है तो
वह आज तक 10 प्रतिशत भी पूरा क्यों नहीं है?
तो एससी/एसटी के लोग फिर पिछड़ों का हिस्सा
कैसे खा रहे हैं? देश में एक हजार के करीब
विश्वविद्यालय है। चालीस हजार से अधिक
कॉलेज है। 25 उच्च न्यायालय है, एक उच्चतम
न्यायालय है। इसी तरह कई हजार अन्य सरकारी
संस्थान व कंपनियां (पीएसयू) है। जिनमें अति
पिछड़ी जातियों की संख्या नगण्य है। इन सभी
जातियों को इसका सही संज्ञान लेकर सरकार के
सामने अपनी हिस्सेदारी की तस्वीर पेश करनी
चाहिए और सही हिस्सेदारी की माँग करनी चाहिए।
मनुवादी लोगों की अतार्किक और तथ्यहीन बातों
पर यकीन नहीं करना चाहिए।
वर्तमान सरकार द्वारा अति पिछड़ी जातियों
की जनगणना न होने देना: वर्तमान में मोदी संघी
शासन समाज में भ्रामक बातें फैलाकर कोशिश
कर रहा है कि पिछड़े वर्ग की जातियों की गणना
न हो। मोदी संघी शासन की हठधर्मिता किसी हद
तक इसमें सफल भी दिख रही है। चूंकि जनगणना
2011 में होनी थी मगर अब 2023 आने तक भी
सरकार ने इस पर कोई काम शुरू नहीं किया है।
मोदी संघी शासन जाति आधारित जनगणना को
देशहित के विरुद्ध बता रहा है। चूंकि मनुवादियों
को डर है कि अगर जाति आधारित जनगणना हो
गई तो सभी पिछड़ी व अति-पिछड़ी जातियों को
उनकी सटीक संख्या मालूम हो जाएगी और वे
उसी के अनुरूप हिस्सेदारी की माँग सरकार के
सामने रखेंगे। उदाहरण के तौर पर अगर ब्राह्मणों
की संख्या देश में 3.5 प्रतिशत है और सरकार में
उनकी हिस्सेदारी 70 से 90 प्रतिशत तक है। जाति
आधारित जनगणना होने के बाद इन सभी पिछड़ी
जातियों की मानसिकता में यह सवाल हमेशा ही
कौंधेगा कि जब हमारी जनसंख्या देश में 60
प्रतिशत से अधिक और सरकार में हिस्सेदारी
केवल 10 प्रतिशत से भी कम है जबकि ब्राह्मणों
की जनसंख्या 3.5 प्रतिशत होकर भी उनकी
सरकार में हिस्सेदारी 70 से 90 प्रतिशत क्यों?
जब इस सवाल का अति पिछड़ी जातियों को
मनुवादी से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलेगा
तो वे अपना उचित हिस्सा माँगने के लिए सरकार
से माँग करेंगे और न मिलने पर आंदोलन/विद्रोह
करने को मजबूर होंगे।
मोदी शासन में जनता उपयोगी कोई काम
नहीं हुआ: पिछले 9 वर्षों में मोदी-संघी शासन
का फोकस झूठ, फरेब, जुमले, शगूफे व जनता
विरोधी षड्यंत्रों के निर्माण पर ही रहा है। मोदी
शासन का कार्य जनता में नफरत का भाव फैलाना,
धार्मिक प्रपंचों से हिन्दू-मुसलमान, गाय-गोबर,
मॉब-लिंचिंग, गौरक्षकों द्वारा मुस्लिम समाज के
युवकों की हत्या, पाखंडी बाबाओं द्वारा धार्मिक
वैमनस्यता बढ़ाने पर रहा है। इसके साथ ही मोदीसं
घी शासन की विफलताओं को जनता से
छिपाकर फर्जी मोदी केंद्रित प्रचारों पर रहा है।
मनुवादी शासकों को आज इसी बात का भय
है कि जो अति पिछड़ी जातियाँ आज तक
मनुवादियों की गुलाम थी वे जातीय जनगणना के
बाद उनके नियंत्रण से बाहर हो जाएंगी। जब इन
अति पिछड़ी जातियों की संख्या देश में 60 प्रतिशत
से अधिक है तो यह सिर्फ अति पिछड़ी जातियों
की कम सोच और समझ का ही परिणाम है। जो
5 से 7 प्रतिशत जनसंख्या वाले सवर्ण समाज को
सत्ता में स्थापित किये हुए है। अगर ये अति पिछड़ी
जातियाँ अपनी जनसंख्या के अनुरूप अधिकार
माँगने के लिए जागरूक हो गई तो फिर ये अति
पिछड़ी जातियाँ मनुवादी सत्ता को भारत से उखाड़
फैंकेगी।
भारत में मनुवादी संघियों की सत्ता अति पिछड़ों
व दलितों की मूर्खता के कारण ही चल रही है।
जब तक ये हिंदुत्व के गुलाम बने रहेंगे और समाज
में गुलाम, विभीषण व समाज तोड़क लोग जिंदा
रहेंगे। तब तक मनुवादियों की सत्ता रहेगी।
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