2024-11-16 09:09:35
भारत में मेलों व पाखंड रचित उत्सवों का बड़ा महत्व है। कार्तिक पुर्णिमा पर गंगा स्नान करने का महत्व ब्राह्मणी संस्कृति के पाखंडियों ने जनता को फँसाये रखने के उद्देश्य से किया है। काल्पनिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने मतस्य अवतार लिया था और उस दिन किये गए कर्मों का फल अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा होता है। कार्तिक पुर्णिमा देव दीपावली के नाम से भी जानी जाती है। परंतु ब्राह्मणी संस्कृति के पाखंडियों ने देश की भोली-भाली जनता को यह नहीं बताया कि गंगा में हर वर्ष कार्तिक पुर्णिमा को करोड़ों की संख्या में लोग स्नान करते हैं क्या उन सभी को मोक्ष मिल चुका है? इन सब बातों का उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इस तरह के अनेकों पाखंड ब्राह्मणी संस्कृति के पाखंडियों ने ही गढ़े हैं। कार्तिक पुर्णिमा पर गंगा स्नान के लिए लोग हरिद्वार, ऋषिकेश, गढ़मुक्तेश्वर, वाराणसी, नाशिक, कुरुक्षेत्र, पुष्कर आदि कई अन्य स्थानों पर जाते हैं। परंतु जाने वाले किसी भी व्यक्ति के पास कोई भी ठोस साक्ष्य व वैज्ञानिक आधार नहीं है। इस तरह के आयोजन भारत जैसे अतार्किक देश में ही देखने को मिलते हैं। बिना सोचे-समझे करोड़ों लोग भेड़-बकरियों की तरह लाईने लगाकर एक जगह से दूसरी जगह गंगा स्नान के लिए पहुँचते हैं। देश की जागरूक जनता को इसका संज्ञान लेकर बताना चाहिए कि यह सबकुछ ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों द्वारा गढ़ा गया पाखंड है। जनता को ऐसे कथित धार्मिक आयोजनों से परहेज करना चाहिए चूंकि ऐसा करने से आर्थिक और शारीरिक नुकसान उन्हीं का होता है।
ऐसी पाखंडी प्रक्रियाओं से पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। हर वर्ष कार्तिक पुर्णिमा पर गंगा में करोड़ों की संख्या में लोग स्नान करते हैं, मल-मूत्र व अन्य गंदगी भी वहीं छोड़ जाते हैं, जिससे पर्यावरण दूषित होता है। देश में जितना जोर पाखंडी प्रचारों व उत्सवों पर है उसका एक चौथाई हिस्सा भी पर्यावरण को स्वस्थ रखने पर नहीं है। भारत की जनता को पर्यावरण प्रदूषित होने का ठीक से ज्ञान नहीं है और यहाँ की जनता अपनी इसी मानसिकता के तहत पर्यावरण को प्रदूषित करती रहती है। जिसका कारण हमें हिंदुत्व की कथित धार्मिक प्रवृति में मिलता है। हिंदुत्व की धार्मिक प्रवृति में प्राय यह पाया जाता है कि गंदगी और प्रदूषित करने का अधिकार सिर्फ हिंदुत्ववादी मानसिकता के पास ही है। जिसमें सुधार की बात कहीं भी नहीं है। वर्तमान समय में कुछेक वैज्ञानिक एजेंसिया इस ओर जनता का ध्यान आकर्षित करती हैं और सुधार भी सुझाती हैं। परंतु दिशानिदेर्शों का पालन करने वाले और उन पर अमल करने वाले व्यक्ति तो ब्राह्मणी संस्कृति से निर्मित हंै। जो इन सभी दिशा-निर्देशों और सुधारात्मक कार्य करने में रुचि नहीं लेते। जिसके फलस्वरूप साल-दर-साल सभी चीजें अपनी पुरानी स्थिति में ही चलती रहती हैं।
हिंदुत्ववादियों का गंगा के विषय में प्रपंच: पौराणिक कथाओं के अनुसार धरती पर गंगा का अवतरण भागीरथ जी के प्रयास से संभव हो सका। काल्पनिक कथाओं के अनुसार गंगा को उनकी बहन सरस्वती ने मृत्युलोक जाने का श्राप दिया था। धरती पर आने की बात सुनकर गंगा घबरा गई। उन्हें यह सोचकर ही घबराहट हो गई थी कि पापी लोग उनके जल से स्नान करेंगे और अपने पापों को वहां छोड़ कर चले जायेंगे, जैसा आज हिंदुत्ववादी भारत में कर रहे हैं। इस कारण उन्होंने बहुत अनुनय विनय किया सरस्वती से कि मुझे धरती पर नहीं जाना है। मुझे ब्रह्मा जी के कमंडल में ही रहना है। जहां मैं आजाद हूं और कभी भी, कहीं भी आ जा सकती हूं। उसी समय एक घटना घटी। हर ब्राह्मणी घटना के पीछे कोई न कोई कारण छुपा होता है। उस काल में एक बहुत ही प्रतापी राजा सगर राज्य करते थे। पूरी धरती पर उनकी शक्ति का लोहा माना जाता था, इस कारण उन्होंने अश्वमेध यज्ञ कराने की सोची। अपने साठ हजार पुत्रों को सैनिकों के साथ प्रत्येक दिशा में घोड़े को ले जाने का निर्देश दिए। उनकी दूसरी पत्नी से एक पुत्र और था। वह एक ऋषि था और उसका नाम असमंजस था। उन्होंने पिता सगर को चेतावनी दी कि इससे कोई अपशगुन भी हो सकता है लेकिन राजा ने उनकी बात नहीं मानी और उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा। जगह-जगह राजा का पताका फहराने लगा। इससे राजा इंद्र को बड़ी ईष्या हुई। उन्हें अपना सिंहासन डोलता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने इसे रोकने के लिए एक युक्ति सोची। रात में जब सब सो रहे थे और उनके पहरेदार घोड़ों की रक्षा कर रहे थे तब इंद्रदेव ने कुछ ऐसी माया रची कि वे सब पहरेदार सो गए। इंद्र ने उनका घोड़ा उठाकर कथित कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। कपिल मुनि वर्षों से वहां जंगल में तपस्या कर रहे थे। जब सैनिकों ने और उनके पुत्रों ने देखा कि घोड़ा वहां से नदारद है तो सभी दिशाओं में वे दौड़ पड़े। पता चला कि वह घोड़ा तो कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है। वहां पहुंचकर राजकुमारों ने बिना कुछ सोचे, बिना कुछ जाने-समझे कपिल मुनि को अपशब्द कहना शुरू कर दिया। कपिल मुनि का ध्यान भंग हुआ तो उन्हें क्रोध आ गया और उनके तेज से वे सभी 60,000 पुत्र अग्नि में जल उठे और भस्माभूत हो गए। यह खबर जब राजा सगर को पता चली तो तत्काल उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई। इस बात का जब ऋषि असमंजस को पता चला तब वे बहुत ही दुख में पड़ गए और कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उन्होंने अपने भाइयों को मुक्त करने का उपाय पूछा? कपिल मुनि ने अपने तेज के द्वारा यह बताया कि इनको तारने के लिए गंगा को धरती पर लाना पड़ेगा। एक वही हैं जो इनको मुक्त कर सकती हैं। तब ऋषि असमंजस हिमालय पर चले गए और उन्होंने घोर तपस्या की लेकिन धीरे-धीरे उनका शरीर वहां पर छूट गया और वह उसी बर्फ में विलीन हो गए। फिर उनके पुत्र दिलीप ने इस साधना को आगे करना शुरू किया, लेकिन वह भी काल कालवित हो गए और बर्फ में समा गए। जब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ को यह बात पता चली तो उन्होंने गंगा के अवतरण की कृपा को प्राप्त करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। उन्होंने ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया। भागीरथ की घोर तपस्या देखकर पार्वती ने गंगा को समझाया कि वह अपनी जिद छोड़ दें और पुण्य कार्य करे। तब गंगा ने कहा कि मैं धरती पर उतर तो जाऊं लेकिन मेरा वेग बहुत प्रचंड होगा जिसे संभालना धरती के बस की बात नहीं होगी। तब अनायास ही बहुत सारे जीव जंतु मारे जाएंगे। इसके लिए सिर्फ महादेव ही हैं जो मेरे वेग को संभाल सकते हैं। तब भगीरथ ने महादेव से प्रार्थना करी। महादेव ने प्रसन्न होकर गंगा को अपनी जटा में उतार लेना स्वीकार किया। महादेव ने फिर अपनी एक जटा को खोलकर गंगा की लहरों को धीरे धीरे धरती पर उतारा। गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चल पड़ी और कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गयीं। वहां पर सगर के साठ हजार पुत्रों को तार दिया। इस प्रकार गंगा धरती पर आयीं और तब से कथित पापियों का उद्धार करती चली आ रही है।
शूद्रों के महापुरुषों की मान्यता: शूद्र वर्ग के श्रेष्ठतम संत शिरोमणि गुरु रविदास जी के द्वारा गंगा के संबंध में एक वैज्ञानिक कथन है कि ‘मन चंगा तो कटौती में गंगा’ यह बात गुरु जी ने शायद देश में फैले अंधविश्वास और पाखंड को देखकर ही कहीं थी। जो आज भी देश में निरंतरता के साथ जारी है और इसमें कोई सुधारात्मक प्रयास नहीं हो रहे हैं। गुरु जी का संदेश साफ था कि अगर मनुष्य का मन साफ है और उसमें किसी प्रकार का छल-कपट और गंदगी नहीं है तो कटौती (बर्तन, जिसमें जूते की मरम्मत के लिए चमड़ा भिगोया जाता है) गंगा भी वहीं वास करती है। हिदुत्व की प्रपंचकारी मानसिकता ने संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की कहानी में चमत्कारी लेप लगाया और जनता को प्रपंचकारी कहानियों के माध्यम से बताया कि जब शिरोमणि संत गुरु रविदास जी ने गंगा का आव्हान किया तो उनकी कटौती में गंगा प्रकट हुई और उन्होंने गुरु जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सोने का एक कंगन भेंट किया। ब्राह्मणी संस्कृति की मानसिकता वालों ने इस कथा को फैलाने के लिए जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया। ब्राह्मणों ने इस कथा को अपने फायदे के लिए व्यवसाय में बदल दिया। हर वर्ष कार्तिक पुर्णिमा पर गढ़मुक्तेश्वर में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है और उत्तर भारत के सभी समुदायों के लोग इस अवसर पर भारी संख्या में एकत्रित होते हैं। इस दिन से अगले वर्ष की कार्तिक पुर्णिमा आने तक के दौरान जिन परिवार में व्यक्तियों की मृत्यु हुई है उसी का बहाना लेकर कार्तिक पुर्णिमा पर जाकर वहाँ मृतक के नाम से दीये जलाए जाते हैं, पूजा-अर्चना कराई जाती है, मृतक का परिवार पुजारी-पंडे को कपड़े, धन, खाने-पीने की सामग्री दान भी करता है। दान की इसी सामग्री को बटोरने के लिए कार्तिक पुर्णिमा पर करीब एक हफ्ते का मेला लगाकर वहाँ पर आगंतुक व मृतक के परिवार से लाखों की संख्या में इकट्ठे हुए पंडे-पुजारी अकूत धन अन्य सामग्री बटोरते हैं।
बहुजन समाज में गंगा स्नान को लेकर अज्ञानता: बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों में एक आम समस्या है कि वह अपने महापुरुषों द्वारा बताए गए सीधे-साढ़े तथ्यात्मक व वैज्ञानिक रास्ते पर नहीं चलते और ब्राह्मणी संस्कृति के द्वारा बताए गए प्रपंची व पाखंडी छलावों में अधिक विश्वास करते हैं। उन्हीं के द्वारा जो पाखंडी रास्ते सुझाए जाते हैं वह उन्हीं पर चलकर अपने आपको सभी तरह से लुटवाता है। ऐसी अज्ञानता भरी कार्यशैली में लिप्त होकर वहाँ लुटकर भी प्रसन्नता महसूस करते हैं। यह दलितों, पिछड़े समुदाय के लिए बहुत ही घातक व शर्मनाक है। गंगा स्नान के मेले में जाने वाले लोगों को मुख्य तौर पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है। पहला-वह जो अपनी अज्ञानता के कारण वहाँ जाकर आर्थिक और शारीरिक रूप से लुटता है जिनमें अधिसंख्यक लोग वे हैं जो दलित, पिछड़े व खेतिहर मजदूर है। और दूसरा वर्ग वह है जो गंगा स्नान के मौके पर पहुँचकर हिंदुत्ववादी प्रचार-प्रसार का काम करते हैं और वहाँ पर इकट्ठा हुए सभी लोगों से दान-दक्षिणा के नाम पर अकूत धन बटोरते हैं।
वर्तमान समय में भारत की अजागरूक जनता को धार्मिकता के नाम पर फैलाए और लगाए जा रहे मेले-ठेलों का निषेध करना चाहिए। ऐसा करने से समाज के पिछड़े, दलित व अन्य समकक्ष समुदायों को बुद्धि से काम लेकर अपने मृतकों के नाम पर दीये लगाए जाने वाली प्रथा को बंद करना चाहिए। समाज को बड़े पैमाने पर अपने तार्किक व वैज्ञानिक प्रचार-प्रसार से ऐसा करने के लिए तैयार भी करना चाहिए। बड़े पैमाने पर भारत की जनता अवैज्ञानिक व अजागरूक है, ऐसे प्रसंगों को लेकर मृतक के परिवार से संबंधित अन्य लोग भी उनके साथ जाने के लिए तैयार रहते हैं और मृतक के परिवार के खर्चे पर ही वहाँ जाकर पिकनिक जैसा आनंद प्राप्त करते हैं। ऐसे पाखंडी उत्सवों पर सभी खर्च मृतक का परिवार ही उठाता है चाहे उसे कर्जा लेकर यह कार्य करना पड़े।
पाखंड फैलाने में वरिष्ठों का योगदान अधिक: लंबे समय से देखने में आ रहा है कि दलित व पिछड़े वर्ग की महिलाओं में प्रचार-प्रसार अधिक है। इनकी वर्तमान युवा पीढ़ी अपनी बुद्धि से सोचकर इन सभी प्रकार के कर्म काण्डों को गलत मानती है परंतु फिर भी अपने परिवार के वरिष्ठ व मान्य सदस्यों के कहने पर इस प्रकार के कर्मकांड कर लेते हैं, शायद मन से नहीं दिखावे के लिए। इसलिए वर्तमान पीढ़ी को अपने वरिष्ठ व मान्यों के द्वारा बताएँ गए कर्मकांड को दृढ़ता के साथ नकारना पड़ेगा तभी इन कुरीतियों से दलित व पिछड़ी जातीय घटकों को छुटकारा मिल सकेगा और वे अपनी बुद्धिबल से काम लेकर आगे बढ़ने में अपना सामर्थ्य लगा पायेंगे।
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