2025-08-08 19:28:58
आर्यों (ब्राह्मणों) का मूल मकसद यहाँ के मूलनिवासी जो आज के एससी/एसटी/ओबीसी वर्ग में वर्गीकृत है उन्हें परास्त करके ब्राह्मणी संस्कृति को भारत में स्थापति करना था। भारत के मूलनिवासी (एससी/एसटी/ओबीसी) साधारण: सीधे-सादे लोग हैं, वे छल-कपट और षड्यंत्र को समझने में असक्षम हैं। इस प्रकार यहाँ का मूलनिवासी समाज आर्यों (ब्राह्मण) से पराजित समाज है। आर्यों ने अपना आधिपत्य अनिश्चितकाल तक जमाये रखने के उद्देश्य से यहां के मूलनिवासियों को 6743 जातियों में बांटा और उनमें क्रमिक ऊंच-नीच के आधार पर उप-जातियाँ भी बनाई, ताकि यहाँ के मूलनिवासी एकत्रित और संगठित न हो पाये। जिसके फलस्वरूप ब्राह्मणी संस्कृति की मनुवादी सत्ता यहाँ स्थापित होकर चलती रहे।
पुष्यमित्र शुंग ने दसवें बौद्ध शासक ब्रहदत्त की धोखे से हत्या करके उसके शासन पर अपना आधिपत्य स्थापित करके बौद्ध भिक्षुओं का बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया। बौद्ध मंदिरों को ध्वस्त किया, भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं को रूपांतरित करके उन्हें अलग-अलग नाम देकर हिन्दू मंदिरों में परिवर्तित किया गया। आज देशभर में जो बड़े-बड़े हिन्दू मंदिर हैं जैसे तिरुपति बालाजी, जगन्नाथ पुरी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर व अन्य बड़े बौद्ध विहारों को हिन्दू मंदिरों में परिवर्तित किया और उनसे बौद्ध भिक्षुओं का आधिपत्य हटाकर उन्हें हिन्दू मंदिर बना दिया गया। सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध गया में बनाए गए बौद्ध महाविहार में ब्राह्मणों द्वारा अनैतिक आधिपत्य जमाने के लिए ब्राह्मण पुजारियों को स्थापित किया, जो आजतक बरकरार है। वहाँ पर बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध मतावलंबियों के द्वारा महाबोधि विहार को पाने के लिए आंदोलन मुख्य रूप से श्रीलंका से आए बौद्ध संत अनागरिक धर्मपाल द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने 1891 में महाबोधि सोसाइटी की स्थापना की थी। तब से यह आंदोलन बौद्ध भिक्षुओं द्वारा इस मांग के साथ चल रहा है कि महाबोधि विहार (बोध गया) पर बौद्धों का आधिपत्य होना चाहिए। परंतु मनुवादी सरकारें बौद्ध समुदाय की मांग को अनदेखा करती आ रही है, तार्किक प्रश्न यह है कि जब जैन मंदिरों पर जैन समुदाय का अधिपत्य है, हिन्दू मंदिरों पर हिन्दू समुदाय का आधिपत्य है, गुरुद्वारों पर सिखों का आधिपत्य है, मस्जिदों पर मुस्लिम समुदाय का आधिपत्य है तो बौद्ध मंदिर पर बौद्धों का आधिपत्य क्यों नहीं है? देश की मनुवादी सरकारें इस षड्यंत्र में शामिल है, इसलिए वे बौद्धों को उनका अधिकार नहीं देना चाहती। आज देश में मोदी-संघी सरकारें बाबा संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। इन बाबाओं में जिनके आश्रम हरिद्वार व देश के अन्य स्थानों पर स्थापित है। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि देश में पाले जा रहे बाबाओं में 80 प्रतिशत बाबा अपराधिक कृत्यों में लिप्त होकर अपने आपको छिपाने के लिए बाबा बने है। देश की भोली-भाली जनता को पाखंड परोसकर ये बाबा कई-कई हजार करोड़ों की संपत्ति का साम्राज्य स्थापित करके जनता को निरंतरता के साथ ठग रहे हैं। भोली-भाली जनता की इस प्रकार से ठगाई करना एक अपराधिक कृत्य है इसलिए बहुजन स्वाभिमान संघ की वर्तमान सरकारों से मांग है कि इन कथित बाबाओं के अतीत के इतिहास को पूरी तरह से खंगाला जाये और उसे जनता के सामने लाया जाये।
मनुवादी सरकारों में बाबा संस्कृति अधिक फल-फूल रही: मोदी शासन के दौरान बाबा संस्कृति को जान-बूझकर अधिक बढ़ाया जा रहा है ताकि जनता में कथित बाबाओं के माध्यम से हिन्दुत्व की वैचारिकी को स्थापित किया जा सके। वर्तमान मोदी संघी सरकार की पूर्ण शक्ति इसी पाखंड पर केन्द्रित है। मोदी शासन में स्कूलों को बंद किया जा रहा है और पाखंडवादी वैचारिकी को बाबाओं के माध्यम से बढ़ाया जा रहा है। कुछेक अरबपति पाखंडी बाबा संघी मोदी सरकार के संरक्षण में मालामाल हो रहे हैं। मोदी सरकारें देश में गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा को षड्यंत्र के तहत बढ़ा रही है। मनुवादी सरकारों में बाबाओं की संपत्ति का साम्राज्य इतना विशाल हो गया है कि युवा जनता के बीच यह ‘जुमला’ आम है, कि अब ‘बाबा बनने में ही फायदा है’। कुछेक तथाकथित सरकार समर्पित पाखंडी बाबाओं का साम्राज्य निम्न प्रकार है:-
रामकृष्ण यादव उर्फ रामदेव: पिछले वित्त वर्ष में रामदेव ने दिव्य योग मंदिर और पतंजलि योगपीठ का कुल टर्नओवर 1100 करोड़ रुपए बताया था। लेकिन इसके अलावा भी रामदेव के कई प्रोजेक्ट हैं जिनपर करोड़ों रुपया लगना है। रामदेव की हरिद्वार में दिव्य फार्मेसी से हर साल 50 करोड़ रुपए की आय होती है। रामदेव हर साल योग कैंप लगाते हैं जिससे हर साल 25 करोड़ रुपए की कमाई होती है। इस कैंप में कुल 50 हजार लोग शिरकरत करते हैं और हर व्यक्ति से 5 हजार रुपए रजिस्ट्रेशन फीस वसूली जाती है। हर साल रामदेव की किताबों और सीडी की बिक्री से 2-3 करोड़ रुपए कमा लिये जाते है।
रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के नाम 34 कंपनियाँ है जिनका टर्नओवर 265 करोड़ रुपए हैं। यह जानकारी सरकार की ओर से लोकसभा में दी गई है। बालकृष्ण उत्तराखंड में पंजीकृत 23 कंपनियों के निदेशक हैं जिनका कारोबार 94.84 करोड़ रुपए है। इसके अलावा बालकृष्ण के नाम 5 कंपनियाँ उत्तर प्रदेश में पंजीकृत हैं जिनका व्यापार 5 लाख रुपए है और 4 कंपनियाँ दिल्ली में हैं जिनका कुल कारोबार 163.06 करोड़ रुपए है जबकि पश्चिम बंगाल में भी एक कंपनी है जिसका कुल व्यापार 8 करोड़ रुपए है। इसके अलावा बालकृष्ण महाराष्ट्र की एक कंपनी में भी निदेशक हैं लेकिन इसके कारोबार की पूरी जानकारी नहीं है।
सत्य साई बाबा: सत्य साई बाबा की मृत्यु के बाद पता चला कि उनके यजुर मंदिर में 34.5 किलो सोना, 340 किलो चांदी और 1.90 करोड़ रुपए नकदी था। उनके निधन के बाद मंदिर में जब खजाने की खोज हुई तो 11.56 करोड़ रुपए नकद, 95 किलो स्वर्णाभूषण, 307 किलो चांदी के सामान मिले थे। वहाँ से मिली कुल संपत्ति का सार्वजनिक होना अभी बाकी है। कहा जा रहा है कि सत्य साई द्वारा छोड़ी गई संपत्ति का मूल्य 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है।
वहीं पाखंडी निर्मल बाबा का सालाना टर्नओवर 238 करोड़ रुपए; पॉल दिनाकरण का सालाना टर्नओवर 5 हजार करोड़ रुपए; श्री श्री रविशंकर की संपत्ति 5 सौ करोड़ रुपए; माता अमृतानंदमयी की संपत्ति करीब 4 सौ करोड़ रुपए; आशाराम बापू का सालाना टर्नओवर 5 सौ करोड़ रुपए; बाबा राम रहीम की संपत्ति 3 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा; संत मोरारी बापू की संपत्ति 3 सौ करोड़ रुपए; महर्षि महेश योगी के पास 2008 में करीब 160 अरब की संपत्ति थी; पतंजलि के सह-संस्थापक आचार्य बालकृष्ण के पास 1 लाख 60 हजार करोड़ की संपत्ति है। अवधूत बाबा शिवानंदजी महाराज 45 करोड़; नीम करोली 50 करोड़ भारत और विदेशों में महत्वपूर्ण प्रभाव वाले आध्यात्मिक गुरु।
पाखंडी धूर्त बागेश्वर (धीरेन्द्र शास्त्री): धीरेन्द्र शास्त्री की कुल संपत्ति लगभग 19.5 करोड़ रुपए है। वह हर महीने लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपए कमाते हैं। सालाना आय लगभग 40 लाख रुपए हैं।
स्वामी नित्यानद: नित्यानंद ध्यानपीठम फाउंडेशन के संस्थापक हैं। उनकी संपत्ति का अनुमान 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। साल 2010 में नित्यानंद पर रेप का आरोप लगा और यहीं से स्वामी नित्यानंद की क्राइम कुंडली खुलना शुरू हो गई। 2019 में नित्यानंद भारत से भाग गया और उसने दक्षिण अमेरिका के इक्वाडोर में एक बड़ी जमीन खरीद ली। इस जगह पर उसने ‘कैलास’ बसा लिया और बाद में दावा किया कि यह एक अलग देश है।
अनिरुद्धाचार्य: कहा जाता है कि वे 200 से अधिक वृद्ध माताओं की देखभाल करते हैं और 20 हजार संत और बेसहारा लोगों को भोजन कराते हैं, उनकी अनुमानित संपत्ति 41 करोड़ रुपए है।
गौर गोपाल दास: गौर गोपाल दास एक प्रसिद्ध साधु, वक्ता और जीवनशैली के शिक्षक हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान और व्यक्तिगत विकास पर केन्द्रित प्रेरक व्याख्यानों के लिए जाने जाते हैं। लगभग 11.21 करोड़ डॉलर की अनुमानित संपत्ति के साथ, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई हुई है।
जया किशोरी: जया किशोरी एक प्रेरक वक्ता है, वह एक लोकप्रिय आध्यात्मिक गायिका है। उनकी अनुमानित कुल संपत्ति लगभग 2 करोड़ रुपए है।
पाखंडी भोले बाबा: यूपी के एक स्वयंभू भोले बाबा के सत्संग में कई सौ भक्तों की भगदड़ में मौत हो गई। बाद में पता चला कि भोलेबाबा के पास 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है और उनकी अपनी सिक्यारिटी फोर्स है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव: ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव की नेट वर्थ करीब 18 करोड़ रुपए है। जाने-माने आध्यात्मिक और योगा गुरु जग्गी वासुदेव की गिनती दुनिया के सबसे बड़े पाखंडी बाबाओं में है। जग्गी वासुदेव के बड़े साम्राज्य में कई योगा सेंटर, ईकोलाजिकल प्रोजेक्ट और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन हैं जिसके चलते वह देश के सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार हैं।
देवकीनंदन ठाकुर: आज के समय में देवकीनंदन ठाकुर महाराज बहुत ही लोकप्रिय वाचक बन चुके हैं। इनके भागवत कथा, राम कथा, कृष्ण कथा प्राचीन ग्रंथों के कथाओं के कार्यक्रम में लाखों लोग शामिल होते हैं। देवकीनंदन ठाकुर अपने कार्यक्रम के लिए 1 लाख से भी ज्यादा चार्ज करते हैं। उनकी कुल संपत्ति छह से सात करोड़ रुपए बताई जाती है।
कथित बाबाओं के पास इतनी भारी संपत्ति के होने का क्या स्रोत? बाबाओं की संपत्ति को देखकर लगता है कि इतनी भारी मात्रा में एकत्रित की गई संपत्ति वैध तरीकों से अर्जित नहीं की जा सकती है। इस अवैध तरीके से एकत्रित की गई संपत्ति के खेल में कुछ न कुछ अवैध राजनैतिक घालमेल भी लगता है। हमारे अनुमान के अनुसार देश में राजनीतिक नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार से कमाये गए धन को पाखंडी बाबाओं के यहाँ धार्मिक चंदा दिखाकर सफेद किया जाता है। ये सभी कथित बाबा अंदर से किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए होते हैं और उनके लिए धन शोधन का कार्य करते हैं। पिछले 10 सालों के दौरान मोदी-संघी सत्ता ने इन बाबाओं, कथावाचकों, सत्संगकत्तार्ओं आदि को बड़े पैमाने पर अपने राजनैतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है, जिसके बदले में इन्हें सरकार द्वारा संरक्षण और सुरक्षा प्रदान की जा रही है। हालांकि देश की सभी सरकारें इनको अपने लाभ के हिसाब से संरक्षण देती रही है मगर पिछले 10-11 वर्षों में इन तथाकथित बाबाओं का बड़े पैमाने पर राजनीतिक इस्तेमाल किया गया है। बाबाओं को जनता के बीच उतारकर मोदी-संघियों ने देश को अज्ञानता के भंवर में फंसाया है। जनता में बढ़ती वैज्ञानिकता को ध्वस्त किया गया है, जिसके कारण आज देश का हर व्यक्ति संघर्ष करके कमाने की बात न सोचकर बाबा बनना ही सही मान रहा है।
कथित पाखंडी बाबाओं से सावधान रहे बहुजन समाज: कथित पाखंडी बाबाओं में अधिक संख्या ब्राह्मण समाज के व्यक्तियों की है जिनका मुख्य कार्य हमेशा से ही देश की भोली-भाली जनता को पाखंड में फंसाकर उसका शोषण और दोहन करना रहा है। इसी को संज्ञान में रखते हुए बहुजन समाज के जागरूक लोगों को इन कथित पाखंडी बाबाओं से दूर रहना चाहिए। इन्हीं पाखंडी बाबाओं के छल-कपट से बहुजन समाज के राज्यों को ध्वस्त किया और उनके संसाधनों को हड़पा। वास्तविकता के आधार पर ये पाखंडी बाबा बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों के दुश्मन है। ये पाखंडी बाबा समता, स्वतंत्रता और न्याय के घोर विरोधी है। हमारा बहुजन समाज के सभी नागरिकों से अनुरोध है कि वे अपनी खून पसीने की कमाई में से एक भी पैसा उन्हें दान में न दें।
समाधान: कथित पाखंडी बाबाओं को इस देश में सरकारों का संरक्षण प्राप्त है इसलिए वे अनाप-सनाप ढंग से देश-विदेश से धन इकट्ठा करके अवैध संपत्ति का निर्माण कर रहे हैं। रामदेव जैसे पाखंडी इस देश में नकली दवाइयाँ बनाकर देश की भोली-भाली जनता को परोस रहे हैं। बहुजन स्वाभिमान संघ संबंधित सरकारी एजेंसियों से आग्रह करता है कि इन पाखंडी बाबाओं के खिलाफ कानून सम्मत अभियोग चलाकर, इनके द्वारा एकत्रित की गई संपत्ति को जनहित में जब्त करके वंचित समाज के समुदायों की शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग धंधों पर खर्च किया जाये। भारत का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब धार्मिक संस्थानों, मंदिरों, आश्रम आदि में धर्म के नाम पर आर्थिक धन संग्रह किया गया है तब-तब देश के दुश्मन उस धन से आकर्षित होकर धन को लूटने के लिए अपनी योजनाओं को अंजाम देंगे। इस बात को देखकर हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए और उसका निराकरण भी करना चाहिए। ये सभी कथित पाखंडी बाबा जनता को उपदेश देते हैं कि ‘माया महा ठगनी’, इसलिए माया से दूर रहो, इसे संग्रह मत करो यदि आपने कुछ जोड़ा है भी तो उसमें से ब्राह्मणों को दान दो। इन पाखंडी बाबाओं से तार्किकता के साथ कोई पूछे कि आप ये सभी संदेश अपने ऊपर लागू क्यों नहीं कर रहे हैं आपको इतनी धन संपत्ति की क्या आवश्यकता है? जनता से हमारा आग्रह है कि वह पाखंडी बाबा व योगियों को चुनाव में अपना मत भी न दें, योगी आदित्यनाथ जैसे पाखंडी को सत्ता की मलाई चाटने की क्या जरूरत है? योगी आदित्यनाथ पर मुख्यमंत्री बनने से पहले दर्जनों अपराधिक मामले दर्ज थे, जो सत्ता में आने के बाद खत्म है। जनता से हमारी बार-बार अपील है कि वे योगी जैसे पाखंडी को सत्ता में न आने दें। अगर वे सचमुच में योगी या संत है तो उन्हें सत्ता की क्या जरूरत है? संत रहना और सत्ता की मलाई चाटना साथ-साथ नहीं चल सकता; अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह जनता को ठगने के लिए कर रहा है।
शिक्षा बढ़ाओ, पाखंड हटाओ
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