2025-06-06 20:04:43
असली अम्बेडकरवादियों को जानने के लिए उनकी आंतरिक संरचना व चारित्रिक कार्यप्रणाली का अवलोकन करके अपने बुद्धिबल से उनमें व्याप्त अम्बेडकरवाद की गहराई को समझना चाहिए। उसके बाद अपने स्वयं के विवेक से फैसला करो कि वह व्यक्ति असली है या नकली। जो व्यक्ति अपने आपको अम्बेडकरवादी कहता है उन्हें साधारण स्तर पर समझने के लिए सीधा सा पैमाना है। जैसे- जिस व्यक्ति की कार्यप्रणाली में सोते-बैठते, खाते-पीते अम्बेडकरवादी सिद्धांत ही रचते-बसते हों तभी वे असली अम्बेडकरवादी हो सकते हैं। जो व्यक्ति अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए या अपने स्वयं के कार्यकलापों के लिए अम्बेडकरवाद का स्वांग रचते हैं और जनता के जन-धन-बल के आधार पर अपने आपको प्रदर्शित करने का पूरा स्वांग रचते हैं वे प्राय निश्चित रूप में नकली अम्बेडकरवादी ही होते हैं।
अम्बेडकरवाद ब्राह्मणवाद से सीधे टकराता है, अम्बेडकरवाद मानवतावादी, समतावादी, न्यायप्रिय और सभी के लिए बराबरी और भाईचारे की बात करता है। ब्राह्मणवाद ठीक इसके उलट है, वह विषमतावादी, गैर-बराबरी, समाज के सभी जातीय घटकों में क्रमिक ऊँच-नीच की बात करता है, और जाति को अपने धर्म का अभिन्न अंग मानता है। जाति नाम की बीमारी देश में एक भयंकर मानवता नाशक बीमारी है, जिसे आज भाजपा संघी सरकार सत्ताबल के सहारे समाज में हर रोज परोस रही है। जाति के आधार पर ही आज समाज के लोगों का कत्ल किया जा रहा है, जाति के आधार पर ही लोगों को रास्ते चलते टोका जा रहा है, जातिवाद अब इस कदर बढ़ चुका है कि हर जातीय घटक का व्यक्ति अपने को दूसरे व्यक्ति से श्रेष्ठ समझ रहा है। सब यह जानते हैं कि जाति एक विभाजनकारी व्यवस्था है जिसके कारण भारत का संपूर्ण समाज 6743 जातियों में विभक्त हैं। समाज का इतना बड़ा विभक्तिकरण देश को कैसे मजबूत बना सकता है? उनमें एकता कैसे हो सकती है? उनमें भाईचारे की भावना कैसे जाग्रत हो सकती है? वे देश की सुरक्षा के लिए इकट्ठा होकर कैसे लड़ सकते हैं? ये सभी प्रश्न समाज के जागरूक लोगों के लिए विचारणीय होने चाहिए और विचार-विमर्श के बाद इन्हें समाज और देशहित में एक साथ कैसे संजोया जा सकता है? इतना ही नहीं दलित समाज (एससी) के जातीय घटकों में भी देश में 1000 से अधिक जातियाँ हैं जिनमें आपस में एक साथ-बैठकर विचार-विमर्श करना कठिन है। एक-एक जातीय घटक में दर्जनों उपजातिया हैं सभी अपने आपको दूसरे जातीय घटक से श्रेष्ठ मानते हैं, यही श्रेष्ठता का भाव सबसे बड़ा कारण है कि दलितों के जातीय घटकों में भी एकता नहीं है। 78 वर्षों के दौरान सबने देखा और महसूस किया है कि जिन दलित जातीय घटकों में अम्बेडकरवाद की विचारधारा जाग्रत हुई है वे ही कुछेक लोग समाज में जागरूक, अग्रणीय और सम्पन्न बन पाये हैं।
शातिर किस्म के कुछेक अम्बेडकरवादी छिपे ढंग से मनुवादियों के मुखबीर हैं उनके कार्य कलापों को देखकर लगता है कि वे कहीं न कहीं परोक्ष रूप में मनुवाद को मजबूत कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा जो पुराने संसद भवन के परिसर में माननीय बी.पी. मौर्य के आंदोलन द्वारा स्थापित हुई थी। उसे मोदी संघी सरकार ने 3-4 जून 2024 की रात को चुपचाप तरीके से हटाकर पंडित पंत मार्ग के गेट की तरफ एक कोने में रख दिया। जब इस घटना की जानकारी समाज के लोगों को लगी तो अम्बेडकरवादियों में काफी उबाल आया। जिसके फलस्वरूप 9 अगस्त 2024 को दलित समाज के अम्बेडकरवादियों ने एक विशाल विरोध प्रदर्शन भी किया। विरोध प्रदर्शन के माध्यम से संघी सरकार को बताया गया कि बाबा साहब की प्रतिमा संसद भवन से विस्थापित करना एक गंभीर अपराध है। दलित समाज बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को भगवान तुल्य मानता है और ऐसा है भी। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा को हटाना सीधे तौर पर अम्बेडकरवादियों की आस्था पर सीधा हमला है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायी सरकार को बताना चाहते हैं कि देश में जबसे संघी मानसिकता की सरकार आई हैं तब से बड़े-बड़े फैसले जो कानूनी तौर पर असंवैधानिक हैं, उन्हें आस्था के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है। अयोध्या मंदिर का निर्माण और बाबरी मस्जिद का विध्वंस संवैधानिक ढांचे में असंगत है। जो आज भी पूर्ण रूप से असंवैधानिक और साक्ष्यहीन हैं।
सामाजिक संस्थाओं की भूमिका संदिग्ध: बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा को पुन: उसी स्थान पर स्थापित कराने के लिए समाज के 50 से अधिक संगठनों ने संयुक्त बैठक करके फैसला लिया था कि जबतक बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा उसी स्थान पर, उसी मुद्रा में वहीं पर स्थापित नहीं हो जाती तब तक हम संघर्ष करते रहेंगे। संघर्ष करना हमारा अधिकार है, सरकार ने हमारी आस्था पर चोट की है। संघर्ष की कमान समता सैनिक दल को सौंपी गई थी और बाकी सभी ने संघर्ष में साथ देने का वायदा किया था। अम्बेडकरवादी जनता ने इस आंदोलन में बड़ी संख्या में भाग लिया था और संघर्ष को सुचारू रूप से चलाने के लिए भरपूर सहयोग भी दिया था। 9 अगस्त के आंदोलन में सभी ने एक स्वर से तय करके घोषणा की थी कि सरकार ने अगर सकारात्मक कार्यवाही नही की तो पूरे देश का दलित समाज 14 अक्टूबर (धम्म दीक्षा दिवस) के अवसर पर हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेगा। ऐसी घोषणा करने वालों में राजेन्द्र पाल गौतम व अपने आपको दलित हितैषी कहने वाले अन्य गणमान्य लोग भी थे। राजेन्द्र पाल गौतम कई बार जनता में घोषणा कर चुके हैं कि वे भारत में 25 करोड़ बौद्ध बनाएंगे। लेकिन पिछले 12 वर्षों में समाज ने देखा है कि वे सिर्फ खाली बात कर रहे हैं, वे न बाबा साहब के विचारों को समाज में स्थापित कर रहे हैं और न ही बुद्ध धम्म को स्थापित करने के लिए कोई कार्य कर रहे हैं। अगर वे सच्चे मिशनरी (अम्बेडकरवादी) होते तो उन्हें पर्याप्त समय मिला। वे जब केजरीवाल की संघी मानसिकता वाली सरकार में अपने स्वार्थवश विधायक व मंत्री बने तो उन्हें अम्बेडकरवादी लक्ष्य पर काम करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया बल्कि उन्होंने समाज के साथ गद्दारी की। अगर वे सच्चे भीम मिशनरी होते तो बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संस्थाओं में रहकर ही अम्बेडकरवाद को मजबूत करते। लेकिन उन्होंने ऐसा न करके स्वार्थवश मिशन जय भीम नाम की संस्था बनाकर समाज के समृद्ध व बाबा साहब में आस्था रखने वाले लोगों से बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा किया और शायद उसी पैसे से अपने परिवार के लिए कुछ संपत्ति भी खरीदी। समाज को नहीं पता कि राजेन्द्र पाल गौतम जी का इसके पीछे का क्या मकसद है? उन्होंने आज तक समाज से जो वायदे किए हैं और उनमें से कितने पूरे किए हैं पहले वे समाज को यह बतायें?
संघी मानसिकता के केजरीवाल के साथ क्यों गए? केजरीवाल का राजनीति में आने से पहले सबको पता था कि वह एक कट्टर मानसिकता का संघी है। संघी मानसिकता के व्यक्ति और अम्बेडकरवादी मानसिकता के व्यक्ति तराजू के एक ही पलड़े में नहीं रह सकते। तो फिर राजेंद्र पाल गौतम जी ने यह फैसला, अम्बेडकरवाद को त्यागकर अपने स्वार्थ में लिया था? राजेन्द्र पाल गौतम को हम बचपन से जानता हैं वे कभी अम्बेडकरवादी न थे; न ही वे कभी बहुजन समाज वादी थे, वे हमेशा से ही एक स्वार्थी व्यक्ति रहे हैं और वे अपने स्वार्थ वश ही समाज का संख्या बल दिखाकर केजरीवाल की पार्टी में गए और वहाँ पर जाकर मंत्री भी बने। केजरीवाल की सरकार में वे 7 साल 8 महीने मंत्री भी रहे। समाज राजेन्द्र पाल गौतम जी से पूछना चाहता है कि करीब 8 साल के मंत्रित्व काल में उन्होंने अपने समाज के किन्हीं 8 लोगों का भी भला किया है? हमारे सज्ञान में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है।
राजेन्द्र पाल गौतम के आचरण से समाज आहत: राजेन्द्र पाल गौतम ने केजरीवाल की सरकार में मंत्री रहते हुए बाबा साहब द्वारा दी गई 22 प्रतिज्ञाओं को जनता में पढ़कर सुनाया। जिसे लेकर संघी मानसिकता की केजरीवाल और केंद्र की मोदी सरकार ने हल्ला मचाया और कहा कि राजेन्द्र पाल गौतम हिंदुओं के देवी-देवताओं का अपमान कर रहे हैं। इसी मुददें पर केजरीवाल की संघी सरकार ने राजेन्द्र पाल गौतम से इस्तीफा माँगा और उन्होंने केजरीवाल के कहने पर अपना इस्तीफा दे भी दिया। राजेन्द्र पाल गौतम को इस मुद्दे पर इस्तीफा नहीं देना चाहिए था अगर उनमें समाज के प्रति श्रद्धा और अम्बेडकरवादी मानसिकता होती तो वे केजरीवाल से उन्हें पार्टी से निकालने के लिए कहते। मगर राजेन्द्र पाल गौतम के इस तरह के आचरण से अम्बेडकरवादी समाज आहत है। राजेन्द्र पाल गौतम के साथ आज सिर्फ कुछेक समाज के ठग और लुटेरे घूम रहे हैं जो शायद चंदे का धंधा कर रहे हैं, इनसे सभी को सावधान रहने की जरूरत है। ये सभी पिटे हुए मोहरें हैं।
नकली अम्बेडकरवादियों से सावधान: आज दलित समाज के सभी अहम आंदोलन विफल क्यों हो रहे हैं? चूंकि इन आंदोलनों में मनुवादी संघी संस्कृति के लोगों की घुसपैठ हो चुकी है और जो लोग अम्बेडकरवाद का ढ़ोल पीट रहे हैं उनकी आंतरिक संरचना में मनुवादी संघी संस्कृति के जीवाणु घुस चुके हैं। समता सैनिक दल की अगुवाई में चलाया गया बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा विस्थापन का आंदोलन भी इसीलिए फेल हुआ चूंकि उसमें जो सर्वे-सर्वा बने हुए थे उनमें से एक राजेन्द्र पाल गौतम भी थे। वे वहाँ पर इसलिए थे ताकि बाबा साहब के नाम पर इकट्ठा हुई भीड़ को अपने आकाओं को दिखाकर राजनीति में अपने लिए स्थान सुरक्षित कर सकें। यहां यह भी बताना आवश्यक है कि राजेन्द्र पाल गौतम ने इस आंदोलन में एक भी रुपये का अपनी जेब से योगदान नहीं किया था। समाज में आज ऐसे कई नेता घूम रहे हैं जिन्हें किसी भी राजनीतिक दल में स्थान नहीं मिल रहा है, राजेन्द्र पाल गौतम भी उनमें से एक हैं। समाज हित के लिए विरोधी ताकतों से संघर्ष करके अगर कोई नेता सामने आता है तो समाज को उसी का साथ देना चाहिए, दलाल व ठग किस्म के सभी नेताओं का समाज को बहिष्कार करना होगा।
नकली अम्बेडकरवादी नेताओं को मारो ठोकर: बहुजन समाज ने देश में बहुत वर्षों से दमन और प्रताड़नाएं झेली हैं। समय-समय पर अपने हक और अधिकारों के लिए आंदोलन भी किए हैं लेकिन अधिकतर आंदोलनों में नकली अम्बेडकरवादियों ने बहुजन समाज का इस्तेमाल किया है और अपने निजी स्वार्थ के लिए कुछ लाभ भी उठाये हैं। अब बहुजन जनता ये सब समझ रही है और ऐसे नेताओं के छलावें, भहकावें में आने के लिए तैयार नहीं है। आज दलित समाज चाहता है कि उनके नेता ऐसे हो जैसे बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर जिन्होंने अपनी अंतिम साँस तक समाज के हित के लिए काम किया। उनकी आखिरी साँस में भी समाज के हित के लिए ही दर्द था। वे समाज के लिए ही हमेशा समर्पित रहे उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ और परिवार के लिए न कुछ किया और न सोचा। ऐसे नेता आज समाज में देखने को नहीं मिल रहे हैं, समाज चाहता है कि नेता अम्बेडकरवाद के रास्ते पर चलने वाला हो। इसलिए आज दलित समाज नकली अम्बेडकरवादियों से त्रस्त है। बहुजन समाज के हित में आज यही है कि वह अपने अंदर से नेताओं को विकसित करें जो बाबा साहब की तरह समाज के लिए संघर्ष करने वाली मानसिकता से निर्मित हो, मनुवादियों के हाथों बिकने वाले न हों, और न समाज की संख्याबल को दिखाकर अपने लिए राजनैतिक रोटियाँ सेकने वाले हों। अब समय आ गया है कि दलितों को नकली अम्बेडकरवादियों से मुक्ति चाहिए। नेताओं को उनकी पोशाक से मत जानो और पहचानो, उनके महलों को देखकर उससे प्रभावित न हों, उन्होंने समाज के हित में कितना संघर्ष किया है, और उनका संघर्ष समाज में सबको कैसा दिख रहा है, ये सब जानकर ही उन्हें अपना नेता मानो।
बहुजन स्वाभिमान संघ समाज को पूर्ण श्रृद्धा के साथ यह बताना चाहता है कि जो भी सहयोग बाबा साहेब की प्रतिमा विस्थापन के आंदोलन में आया था वह सुरक्षित हाथों में हैं। नकली अम्बेडकरवादियों को पहले ही बता दिया गया है कि इस मुद्दे पर इकट्ठे हुए धन को बाबा साहेब की प्रतिमा विस्थापन के लिए किये जा रहे संघर्ष व आंदोलन में ही खर्च किया जायेगा। नकली अम्बेडकरवादी अपने दलाल व चोर किस्म के गुर्गों को आगे करके इस धन को हड़पने के सपने न देखें।
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