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धनबल की ताकत से ध्वस्त हो रहा प्रजातंत्र

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2024-03-23 09:09:33

भारत में राज्य व्यवस्था प्रजातंत्र के सिद्धांत पर आधारित है। प्रजातंत्र का शाब्दिक अर्थ भी ‘प्रजा का राज्य, प्रजा के लिए है।’ संविधान की प्रस्तावना भी ‘‘हम भारत के लोग......’’ के साथ शुरू होती है। जिसका अर्थ है-‘‘भारत की राज्य व्यवस्था में भारत के लोग ही सर्वोपरि है।’’ जिसका प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में अर्थ है कि देश की जनता ही, देश की मालिक है बाकी देश की व्यवस्था को संभालने वाले नौकरशाह और उस व्यवस्था में लगे सभी मंत्री-संतरी, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक जनता के नौकर हैं। जनता की भावना और जरूरतों को समझकर उनके द्वारा चुनकर भेजे गए प्रत्याशियों द्वारा शासन चलाना सभी राजनैतिक दलों का कर्तव्य है। लेकिन देश के राजनैतिक दलों ने इस देश की जनता को अपना गुलाम समझकर उनको वर्षों से दमित किया है, उनके अधिकारों को कुचला है और जनता को जागरूक नहीं होने दिया है। आज देश के आर्थिक हालात इस स्तर पर पहुँच चुके हैं कि आम आदमी देश के मौजूदा चुनाव की दौड़ से बाहर हो रहा है। सरकार ने देश के चुनाव को इतना खर्चीला बना दिया है कि देश की 90 प्रतिशत जनता इतना चुनावी खर्च करने की क्षमता नहीं रखती। ऐसा सरकार व व्यापारी मित्रों के गठजोड़ से संभव हुआ है। चुनाव आयोग और सरकार की मिलीभगत से चुनाव में संघी खेल चल रहा है। दोनों आधार प्रजातंत्र के विरोधी है। पिछले दस सालों में मोदी-संघी सरकार ने चुनाव आयोग को इतना अशक्त और तर्कहीन बना दिया है कि अब देश की जनता का उससे भरोसा उठ चुका है। उदाहरण के तौर पर देश में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए चुनावी खर्च की सीमा 95 लाख रुपये है। देश के आर्थिक हालात के मुताबिक आज आम जनमानस के कितने लोग चुनाव में 95 लाख रुपए खर्च करने की क्षमता में हैं? जनता के आंकलन में शायद एक भी ईमानदारी से कमाने वाला व्यक्ति ऐसी आर्थिक स्थिति में नहीं मिल पाएगा जो अपनी नेक कमाई से 90-95 लाख रुपए खर्च करके चुनाव लड़ सके? चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव लड़ने का खर्च 95 लाख कर देने का अर्थ है कि देश की 90 प्रतिशत आबादी को चुनाव लड़ने की परिधि से बाहर कर देना। संसद में बैठे 543 चुने हुए सांसदों ने चुनावी खर्च के मुद्दे पर कुछेक वामपंथियों को छोड़कर आजतक अन्य एक ने भी इस खर्चीली व्यवस्था का विरोध नहीं किया है। इस चुनावी खर्च को सही अर्थों में समझकर स्पष्ट तौर पर यह कहा जा सकता है कि देश के गरीब, ईमानदार, मेहनतकश व अन्य समकक्ष लोगों को परोक्ष रूप में चुनाव लड़ने से बाहर कर दिया गया है। सामाजिक विडंबना यह है कि देश की जनता ने अभी तक इस चुनावी खर्च की गंभीरता को समझा ही नहीं है और न प्रजातंत्र पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभाव का आंकलन करने की क्षमता रखते है। इसे न समझने वाली जनता की श्रेणी में बहुजन समाज के लोग अधिक है उनमें समझ और जनचेतना का अभाव है। वे भेड़-बकरियों के झुंड की तरह चुनाव में अधिक पैसा खर्च करने वालों की चमक-दमक का ड्रामा करने में जो अधिक दिखते हैं। समाज की जनता उसी धनाढ्य व्यक्ति की चमक-दमक के पीछे चल देती है। बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा की बहसों में प्रजातांत्रिक व्यवस्था को अधिक मजबूत और कारगर बनाने पर जोर दिया था। उन्हें यह अच्छी तरह से पता था कि देश का बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) आर्थिक रूप से सबल नहीं है कि वह यहाँ के पूंजीपतियों और उनके राजनैतिक मित्रों का मुकाबला कर सके। बाबा साहेब चाहते थे कि देश का गरीब, मजदूर, किसान व सभी कामगार समाज के लोग देश के चुनाव में अपनी सक्रिय भूमिका निभाये और अपने जागरूक लोगों को नेता बनाकर चुनाव लड़ा सकें और जो चुनकर आयें वे अपने समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप समाज की आवाज को विधान सभा व संसद में उठा सकें। बाबा साहेब का यह मत देश की सभी सरकारों ने अपने आचरण से मिटाने का प्रयास किया है। पिछले दस वर्षों में बाबा साहेब की इस अवधारणा को मोदी-संघी भाजपा ने ध्वस्त कर दिया है। इसके मजबूत साक्ष्य अब जनता के सामने चुनाव बॉन्ड के माध्यम से आ चुके हैं। जनता को अब अपने विवेक से सरकार के पास चुनावी बॉन्ड से जो अकूत धन पूंजीपतियों की साँठ-गाँठ से आया है उसका पदार्फाश हो चुका है।

सरकार ने चुनावी बॉन्ड से की प्रजातंत्र की हत्या: देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था संविधान के लिए मील का पत्थर है मगर इस मील के पत्थर को ध्वस्त करने के लिए मनुवादी संघियों ने पूंजीपतियों को साथ लेकर उनके द्वारा कमाये गए अवैध धन को अपने मनसूबों के मुताबिक चुनाव परिणाम पाने का जरिया बना लिया और उसी को इस्तेमाल करके मोदी-संघी शासन व्यवस्था केंद्र में पिछले दस साल से है। उससे पहले 12-13 वर्षों तक गुजरात में शासन करके उसे ‘गुजरात मॉडल’ के नाम से जनता में खूब प्रसारित कर रही थी। संघी और उनके व्यापारी मित्र इस प्रचार-प्रसार में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे और बड़े पैमाने पर अवैध तरीकों से धन इकट्ठा करके देश की जनता में भ्रामकता का एक माहौल पैदा कर रहे थे। तथाकथित गुजरात मॉडल में आम जनता का विकास नहीं हुआ, गुजरात की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था देश में निम्नतम स्तर पर पहुँच गयी है। केंद्र में मोदी- संघी सत्ता आने के बाद मोदी की छलावामयी गारंटियों और वायदों का दौर शुरू हुआ। मोदी की फर्जी गारंटियों के दौर में मोदी ने व्यवसायी मित्रों से अकूत धन इकट्ठा किया और बदले में जनता के पैसे (टैक्स) से पैदा किये गए सार्वजनिक संस्थानों, कंपनियों, बंदरगाहों, हवाई अड्डे, रेल इत्यादि को व्यापारी मित्रों को दिया गया। यह दृश्य और इससे जुड़े अन्य तथ्य जनता को बताने और समझाने के लिए पर्याप्त है। मोदी-संघी शासन ने आजतक जनता के लिए कोई भी हितकारी कार्य नहीं किया। उसने अपने फर्जी वायदों, जुमलों से प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को निम्नतम स्तर पर पहुँचा दिया है। आज देश मानव विकास के मानकों पर पाकिस्तान, बंगला देश, श्रीलंका आदि से भी नीचे पहुँच चुका है। लेकिन मोदी के जुमले और फर्जी गारंटियां देश की अधिसंख्यक जनता को गर्त में धकेल रही है। वैतनिक अंधभक्तों की फौज देश में बड़े पैमाने पर खड़ी कर दी गई है जो जनता से जुड़े मुद्दों को सरकार के सामने आने ही नहीं देती। देश की गरीब, मुफ्त में खाने की लालसा रखने वाले व अन्धभक्ति में खुश दिखने वाले निठल्लों की घातक फौज खड़ी कर दी गई है जिसके कारण आम जनता का असली दु:ख-दर्द और असली चेहरा दिखाई नहीं दे पा रहा है।

नकली दवाईयां चुनावी बॉन्ड से बिकवाई: देश में दवाईयां बनाने वाली नामी-गिरामी कंपनियों की दवाईयों के सैंपल जब फेल हुए तो उन कंपनी के मालिक और प्रबंधकों ने सरकार के माध्यम से रास्ता निकाला कि चुनावी बॉन्ड से सरकार को पैसा दो और दवाईयां बेचते रहो। देश की 30 फार्मा एंड हेल्थ केयर कंपनियों ने 900 करोड़ रुपए से ज्यादा के चुनावी बॉन्ड खरीदे और उनकी फेल दवाईयां आजतक देश में धड़ाधड़ बिक रही है। बॉन्ड के खरीदारों में यशोदा सुपर स्पेसिलिटी हॉस्पिटल, डॉ. रेडीज लैबोट्री, टोरेंत फर्मिसीटिकल्स, नेटको फार्मा, हेटेरो फार्मा, जीवन बायोकोन लिमिटिड, शिपला, इत्यादि कंपनियों ने अपनी नकली व गुणवत्ता परीक्षण में फेल दवाईयों को सरकार की मिलीभगत से जनता के जीवन की परवाह किये बिना चुनावी बॉन्ड के माध्यम खूब बेचा। यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार को जनता के जीवन की कोई परवाह नहीं है उसे तो सिर्फ पैसा चाहिए जिसके माध्यम से वह प्रदेशों की सरकार की खरीद-फरोक्त करके विरोधी सरकार को गिरा सके; देश के सभी जिलों में भाजपा के आलिशान दफ्तर बनवा सकें; देश में अंधभक्तों की वैतनिक फौज खड़ी कर सकें; मीडिया को पूर्णतया पंगु बनाकर गुलाम बना सकें; सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग से देश के राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को भाजपा में लाकर उनका शुद्धिकरण कर सकें। मोदी भाजपा का यह खेल दस साल से निरंतर चल रहा है। देश की जनता मोदी-संघी सरकार का यह असंवैधानिक कृत्य अपनी आँखों से बेबस होकर देख रही है मगर अब चुनाव का समय है और देश की जनता मोदी-संघियों के इन गैर कानूनी कार्यों से मुक्ति चाहती है। अब सही निर्णय लेने का वक्त है हम सभी को मोदी-संघी भाजपा सरकार को चुनाव में हराकर सत्ता से बाहर करना चाहिए।

देश का प्रजातंत्र धन-बल से हो मुक्ति: संविधान में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए हिदायत है। सभी राजनैतिक दलों को चुनाव आयोग द्वारा समान स्तर का प्लेटफार्म प्रदान कराना चाहिए। परंतु देखने में आ रहा है कि भारत का चुनाव आयोग जो आम जनता की नजर में मोदी का आयोग बना हुआ है। वह मोदी और भाजपा के प्रचारकों द्वारा चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन करने पर एक भी एक्शन नहीं लेता। इसके विपरीत विरोधी पार्टियों के नेताओं पर हल्के से उल्लंघन पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही करता है। 15 मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता पूरे देश में लागू की गई, उसके बाद भी मोदी खुलेआम आचार संहिता का उल्लंघन करते दिख रहे हैं। जिसका संज्ञान लेकर कुछ विपक्ष के नेताओं ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की है मगर चुनाव आयोग शिकायत के बावजूद भी शिकायतों पर मोदी व उससे जुड़े व्यक्तियों पर कोई भी दंडात्मक कार्यवाही करने को तैयार नहीं है। ऐसे व्यवहार को देखकर ही देश की जनता आज चुनाव आयोग को मोदी आयोग कह रही है। चुनाव आयोग के ऐसे व्यवहार से लगता है कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पायेंगे। इसका ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ और दिल्ली में प्रजातांत्रिक तरीके से चुने गए मुख्यमंत्रियों को ईडी के माध्यम से जेल भेजना है।

देश की गरीब व कामगार जनता को मोदी संघियों से सावधान होकर जनहित और देशहित में सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका नाम ताजा वोटर लिस्ट में है या नहीं, उसे चेक करना चाहिए और अपने समूह के लोगों का वोट व्यापारी मित्रों के हितों की रक्षा करने वाली मोदी-संघी भाजपा के प्रत्याशी को नहीं देना चाहिए। साथ ही जो राजनीति दल के प्रत्याशी अपने धन-बल से मुफ्त की रेवडियां बाँटकर जनता का वोट खरीदकर सत्ता की कुर्सी तक जाने का काम करें ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव में सामूहिकता के साथ वोट न देकर उन्हें हराने का काम करें। देश की बहुसंख्यक जनता चाहती है कि देश का चुनाव सरकारी खर्च से कराया जाये। ऐसा करने से धन माफिया चुनाव पर हावी नहीं हो पाएगा और अच्छे, ईमानदार व जनता की जरूरत के अनुरूप कार्य करने वाले नेता विधानसभा व संसद में आ पाएगें। जिससे देश तरक्की की राह पर आगे बढ़ पायेगा। विप्पक्ष के बैंक खातों को सीज करना मोदी के अंदर छिपे हार के डर को दर्शाता है और ऐसा करना संविधान व जनतंत्र विरोधी कृत्य है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05