2024-05-24 12:47:26
पिछले करीब 12 वर्षों से देश में राजनैतिक नेता (लीडर) बनने पर जोर कम और सामाजिक डीलर बनने पर जोर अधिक है। इन 12 वर्षों में संघी मानसिकता का उभार हुआ है। संघी मानसिकता का मूल स्रोत इटली के मुसोलिनी तानाशाह की वैचारिकी से है। संघ के उदय से पहले डॉ. मुंजे मुसोलिनी से मिलने इटली गए थे और वहाँ पर इटली के तानाशाह मुसोलिनी से भारत और इटली के समाज पर डॉ. मुंजे ने चर्चा की थी। डॉ. मुंजे का मुसोलिनी से मुलाकात करने का उद्देश्य गांधी की विचारधारा ‘अहिंसा’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ के असहमति के दो अहम बिन्दु थे। इटली की यात्रा करने से पहले मुंजे कांग्रेस के ही एक सक्रिय कार्यकर्त्ता थे मगर वे गांधी के उपरोक्त दोनों वैचारिक बिंदुओं से सहमत नहीं थे। उन्होंने इसी को आधार बनाकर 1924 में कांग्रेस को छोड़ने का निर्णय किया था। डॉ. मुंजे इटली से लौटने के बाद डॉ. बलीराम हेडगावर से मिले और उन्होंने मुसोलिनी से की गई मुलाकात और अपने विचार-विमर्श का पूरा संदर्भ हेडगावर के सामने रखा। जिसमें मुसोलिनी से बातचीत के दौरान यह बात उभरकर सामने आई कि ‘इटली के लोग अच्छे है, उनमें सहनशीलता है, भाईचारा है और सभी लोग मिलकर सद्भाव के साथ रहते हैं लेकिन इटली के लोग अपने पूर्व के महान रोमन साम्राज्य के इतिहास पर गर्व नहीं करते हैं।’ डॉ. बलीराम हेडगावर के मस्तिष्क में यही वैचारिक बिन्दु उनके अन्दर तक घुस गया और इसी वैचारिक बिन्दु को लेकर 1925 में बलीराम हेडगावर ने ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ (आरएसएस) की स्थापना की। यहाँ यह बात स्पष्ट है कि संघ की वैचारिकी का ‘बीज बिन्दु’ इटली के तानाशाह मुसोलिनी की वैचारिकी है। इसी आधार पर संघियों को फासिस्ट कहा जाता है। देश और दुनिया के सभी प्रबुद्धजन यह जानते हैं कि फासिस्ट (तानाशाही) मानसिकता के व्यक्ति आमतौर पर अपने आपको श्रेष्ठ और अपनी वैचारिकी को ही सर्वोपरि मानते हैं।
मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में अवतरण: 2014 तक मोदी जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब संघियों की मिलीभगत से 2002 में गुजरात में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए और इन दंगों में हजारों लोग मारे गए थे। ये सांप्रदायिक दंगे गुजरात प्रदेश की सरकार द्वारा प्रायोजित बताए जाते हैं। ये दंगे इतने भयानक थे कि सुनकर लोगों की आज भी रूह काँप जाती है। इन दंगों में गर्भवती महिलाओं के पेट चीरकर उनके अंदर से बच्चों को निकालकर मारा गया था। इन दंगों का सबसे चर्चित केस बिलकीस बानो का है। जिसमें उनके ही सामने उनकी 3 साल की मासूम बेटी को पटक-पटककर मार दिया गया था। कुल मिलाकर बिलकीस बानो के परिवार के 7 सदस्यों की हत्या की गई थी। बिलकीस बानो ने अपने साथ हुए इस हैवानियत भरे हत्याकांड को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार बॉम्बे हाईकोर्ट में लड़ा। इस केस में बॉम्बे हाईकोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाये 11 अभियुक्तों को 15 अगस्त 2023 को गुजरात की सरकार ने संस्कारी और अच्छे चाल-चलन का बताकर सजा की अवधि से पहले ही रिहा कर दिया था। जिसकी पूरे न्यायिक जगत में आलोचना हुई और इस केस को लेकर बिलकीस बानो पुन: सुप्रीम कोर्ट में गयीं। बिलकीस बानो की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर संज्ञान लिया और इन सभी 11 अभियुक्तों को पुन: जेल भेजने का आदेश दिया। गुजरात सरकार ने इस केस में सजा पाये सभी अभियुक्तों को छोड़ने का जो निर्लज्जता भरा फैसला लिया था वह देश की जागरूक जनता में चर्चा का विषय बना और इस केस को लेकर गुजरात सरकार की बहुत भर्त्सना भी हुई।
मोदी प्रधानमंत्री नहीं बल्कि वे प्रचारमंत्री है: मोदी बचपन से ही संघ में रहकर संघ प्रचारक रहें है। उनकी आंतरिक संरचना में मुसोलिनी की तानाशाही प्रवृति कूट-कूटकर भरी है। मोदी जी राष्ट्रवाद की बात तो करते हैं मगर उनका राष्ट्रवाद एक कोरा दिखावा है, ये उनकी पूर्ण रूप से नाटकबाजी और जुमलेबाजी है, संघी मानसिकता में राष्ट्रवाद की भावना कहीं दिखाई नहीं देती है। जाँचने पर उनकी मानसिकता हमेशा राष्ट्र विरोधी ही दिखी है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में संघियों की कार्यशैली देश के विरुद्ध देखी गई। जब देश में हिन्दू-मुसलमान मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन कर रहे थे और देश को आजाद करने की माँग कर रहे थे तब संघियों के नेता व अन्य हिंदुत्व की मानसिकता के लोग अंग्रेजों के लिए मुकबरी कर रहे थे। संघियों के ऐसे कार्य देश विरोधी थे इसलिए संघियों की ऐसी कार्यशैली के बल पर संघियों को देशभक्त नहीं कहा जा सकता। संघियों ने हमेशा राष्ट्रभक्तों के विरुद्ध काम किया है। जब पूरा देश यहां तक की तबायफें भी अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहीं थी तब संघी तथाकथित नेता अंग्रेजों के साथ मिलकर उनके डीलर बने हुए थे और उनसे अपने व्यक्तिगत आंशिक फायदों के लिए देश विरोधी डील कर रहे थे। इसी डील की प्रक्रिया में संघियों के डीलर्स ने अंग्रेजों को मौखिक और लिखित मांफी नामे भी पेश किए थे। अंग्रेजी हुकूमत से संघियों ने अपनी डील के तहत ही देशभक्तों के खिलाफ मुकबरी की थी और देशभक्तों में से कई को फाँसी तक की सजा दिलाई थी। संघी कभी भी राष्ट्रभक्त नहीं रहे उनका चरित्र हमेशा ही संदिग्ध व देश विरोधी रहा। संघी अपने फासिस्ट मूल के कारण हमेशा देश में उथल-पुथल और नफरत के बीज बोते रहे हैं और इनके चरित्र में समाज के अंदर शांति, सद्भावना तथा भाईचारा कायम करना नहीं है। ये सभी तानाशाही प्रवृति के हैं। मोदी जी इसी तानाशाही प्रवृति में निपुण और दक्ष है।
मोदी के 10 साल में डीलरशिप के कारनामे: मोदी पिछले 10 साल से केंद्र की सत्ता में है और इन 10 सालों के दौरान उन्होने मुख्य रूप में 2 क्षेत्रों में डीलरशिप की है। पहला क्षेत्र हैं-24 घंटे चुनावी मोड में रहना और छोटे से छोटे चुनाव में भी संगठन और सत्ता की पूरी ताकत को झोंकना। इसी के माध्यम से रात-दिन बिना रुके-बिना थके जनता में निर्लज्जता के साथ झूठ परोसने की डील करना। चुनाव आयोग और चुनाव मशीनरी को अपना गुलाम बनाना। किसी भी हद तक जाकर बेर्शमी के साथ चुनाव जीतना। दूसरा क्षेत्र है-अपने व्यापारी मित्रों के साथ मिलकर डील करना और देश ने जो पिछले 75 वर्षों में जो संसाधन व संस्थायें पैदा की हैं उन्हें औने-पौने दाम पर अपने व्यापारी मित्रों को बेच देना। अडानी और अंबानी व कुछेक अन्य व्यापारी मोदी जी के प्रिय मित्रगण है। मोदी जी ने देश के संसाधनों को अपनी डीलरशिप की विशेषज्ञता प्रदर्शित करते हुए देश की रेल को बेच दिया, देश के पोर्ट बेच दिये, देश की सभी सरकारी कंपनियां बेच दी गई, अपने व्यापारी मित्रों का मोदी जी ने 16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया। मोदी जी के ये सभी कारनामे यह बताने के लिए पर्याप्त है कि मोदी देश के राजनैतिक नेता नहीं बल्कि वे देश के संसाधनों को अपने व्यापारी मित्रों को बेचने वाले डीलर है। राजनैतिक दृष्टि से देश को एक निस्वार्थ व काबिल लीडर की जरूरत है जबकि मोदी लीडर नहीं डीलर हैं। देश की जनता ने मोदी को चुनकर धोखा खाया है।
मोदी जी हैं एक योग्य डीलर: मोदी जी के 10 साल के प्रदर्शनों से देशवासियों को साफ दिख रहा है कि मोदी जी में देश के प्रधानमंत्री बनने की योग्यता नगण्य है। वे एक अच्छे प्रचारक, राजनैतिक नेताओं व संसाधनों की खरीद-फरोक्त के लिए उपयुक्त राजनीतिक डीलर है। देश में जितने भी राजनीतिक तथाकथित भ्रष्टाचारी व व्याभिचारी हंै उन सभी को मोदी जी ने भाजपा में शामिल करके और उन्हें निष्कलंक करार देकर भाजपा की डबल इंजन की सरकारों में शामिल किया है। मोदी जी ने ये सभी कार्य बहुत ही निम्न स्तर पर जाकर किए है। इन सभी कार्यों को करने के लिए उन्होंने अपनी गरिमा और प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं रखा है। मोदी जी ने निर्लज्जता की सभी हदें पार करके जनता से इतने झूठ बोले हैं कि वे झूठ बोलने में विश्व में सबसे महान डीलर बन चुके हैं।
डीलर के गुण धर्म: एक अच्छा डीलर अपने काम के लिए जो लक्ष्य निर्धारित करता है उसमें स्वार्थ सर्वोपरि होता है, फायदे को आंककर डीलर अपनी सभी मर्यादायें तोड़कर अपने हित में कार्य करने के लिए तत्पर रहता है। किसी भी स्तर तक जाकर वह अपने फायदे की डील पक्की करता है; वह लोक लिहाज और मान-मर्यादा की भी परवाह नहीं करता; डीलर एकल नायक के रूप में कार्य करना पसंद करता है। डीलर अपने को सर्वोपरि दिखाने के लिए अन्य सभी को छोटा करने में ही लगा रहता है। मोदी जी ने अपने 10 साल के शासन में भाजपा के अन्य किसी भी नेता को अपने सामने उभरने नहीं दिया है, सभी की बोलती बंद है। डीलर की प्रवृति होती है कि वह जो डील करता है उसमें उसके अलावा किसी अन्य की भागीदारी नहीं होनी चाहिए। डीलर एक बाजार में बैठे आड़ती की तरह काम करता है। मोदी जी भी राजनीति के अखाड़े में एक बड़े डीलर (आड़ती) की तरह काम करते हैं। आड़ती आमतौर पर खरीदने वाले व बेचने वाले दोनों से ही अपना कमीशन लेता है। मोदी जी ने भी अपनी डीलरशिप में राजनैतिक नेताओं को खरीदने में ऐसा ही प्रदर्शन किया है। मोदी जी ने अपनी डीलरशिप की महारथ दिखाकर कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें बनाई है। मोदी जी ने अपने राजनैतिक फायदे के लिए विधायकों व सांसदों को खरीदा है। देश के करीब सभी जिलों में भाजपा के आलिशान दफ़्तरों का निर्माण किया है। इन आलिशान दफ़्तरों के लिए धन कहाँ से आया किसी को पता नहीं है, कहने के लिए मोदी जी सर्वश्रेष्ठ व ईमानदार है।
डीलरशिप से भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ी: एक अच्छा डीलर अपने अंदर छिपे भ्रष्टाचार के लालच में जनता को कम गुणवत्ता वाले पदार्थों को भी बेचने की महारथ रखता है। मोदी जी पिछले 10 साल से केंद्र की सत्ता में बैठकर यही काम कर रहे हैं। वे राजनेता कम और दलाल डीलर अधिक दिखाई दे रहे हैं। कोरोना काल में मोदी जी ने देश की आपदा को भ्रष्टाचार के माध्यम से अवसर में बदला, मोदी जी ने अपने मदारी चरित्र के तहत देश के लोगों से कोरोना महामारी को भागने लिए थालियाँ बजवाईं और दीपक जलवाएँ। ऐसे अवैज्ञानिक कार्य एक मझा हुआ मदारी डीलर ही करवा सकता है। मोदी जी ने अपनी डीलरशिप की महारथ इस क्षेत्र में प्रमाणित की है।
देशवासियों को यह सोचना होगा कि देश को एक अच्छे राजनैतिक नेता (लीडर) की जरूरत है, मोदी जैसे झूठे, पाखंडी, नाटकबाज राजनैतिक डीलर की जरूरत नहीं है। देशवासियों को मोदी जी के 10 साल के काम के आधार पर चुनाव में उनके प्रत्याशियों को वोट नहीं देना चाहिए। मोदी जी अगर तीसरी बार ईवीएम और चुनाव आयोग के साथ डील करके देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब होते हैं तो यह देश के लिए बहुत ही विनाशकारी क्षण होगा और देश की बहुजन जनता के लिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा दिया गया संवैधानिक संरक्षण व नागरिक अधिकार नहीं बचेंगे। इसलिए देशवासियों जागो, अपना संविधान बचाओ और मोदी को इस देश की सत्ता से बाहर भगाओ।
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