2022-11-18 13:07:49
शूद्र वर्ग में भारत के वे सभी लोग हैं जो अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), पिछड़े वर्ग की सभी पिछड़ी व अति पिछड़ी जातियाँ (ओबीसी) है। साथ में भारत के अल्पसंख्यक है चूंकि वे समय अंतराल में इन्हीं जाति समुदायों से परिवर्तित हुए थे, वे भी अब बहुजन समाज का अंग है। ये सभी मिलकर भारत की कुल जनसंख्या का 85 प्रतिशत भाग है। परंतु भारत की सत्ता 10-15 प्रतिशत मनुवादी मानसिकता के लोगों के हाथों में है। जो सबके लिए विचारणीय प्रश्न है।
परम पूज्य बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपनी अंतिम साँस तक हजारों सालों से दबे, कुचले व शोषित गरीब, पिछड़े व दलित वर्ग के 90 प्रतिशत जनसंख्या और सभी वर्गों की महिलाओं को गुलामी से निकालकर देश की मुख्य धारा में लाने के लिए संघर्ष किया था। इसके लिए संविधान मे समानता, बंधुता, स्वतंत्रता तथा न्याय जैसे मूल्यों को स्थापित करके समतामूलक समाज स्थापित करने की नींव रखी थी, लेकिन देश की सरकारों ने कभी भी पूर्णत: संविधान को सही मानसिकता से लागू नहीं किया। फलस्वरूप संविधान भारतीय जनता के जहन में स्थापित नहीं हो पाया, जिसमें पीड़ित समाज का भी उतना ही दोष है। चूंकि अज्ञानता के कारण वे मनुवाद के चक्कर में पड़े रहे। इन्होंने न कभी संविधान को समझा, न अपने अधिकारों के प्रति सजग रहे, न बाबा साहेब को समझा और न ही सरकार पर अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए दवाब बनाकर रखा। इस निष्क्रियता के कारण डॉ. अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान पर आज खतरा मंडरा रहा है। मनुवादी ताकतें संविधान को ध्वस्त कर मनुवादी व्यवस्था लागू करने पर अमादा हैं। सरकार का मनुवादी एजेंडे के तहत निजीकरण पर अधिक जोर है। इस प्रक्रिया से वर्तमान संघी सरकार एक तीर से दो शिकार कर रही है। एक निजीकरण करके सरकार को आरक्षित वर्गों को आरक्षण नहीं देना पड़ेगा। नतीजतन इन वर्गों के लोग संपन्नता हासिल नहीं कर पायेंगे, वे गरीब ही रहकर समाज में अशक्त रहेंगे। आरक्षण को समाप्त करने की साजिश संघी सरकार द्वारा की जा रही है। इसलिए दलित वर्ग के लोगों पर अत्याचार भी बढ़ रहे हैं, और उन्हें आतंकित करके भयभीत किया जा रहा है ताकि उन्हें फिर से मनमाने ढंग से गुलाम बनाया जा सके। संघ व उसके अनुसांगिक संगठन जोर-शोर से अपने मुद्दों पर काम कर रहे हैं। संघी लोग इस मुद्दे पर बहुजन समाज के लोगों को कैसे बाँटकर रखा जाये; उनमें आपसी नफरत को कैसे बढ़ाया जाये; उनकी कम समझ, कम पढ़ी-लिखी महिलाओं में कथावाचकों और प्रपंचकारी पुरोहितों की घुसपैठ कैसे करायी जाये? आदि पर शोध आधारित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बहुजन समाज इन सबसे अनभिज्ञ है, परंतु उसका भविष्य खतरे में है।
संविधान की उद्देशिका:
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता
और अखण्डता सुनिश्चित कराने
वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
संविधान की उद्देशिका देश के विभिन्न धर्मों, जाति व संप्रदायों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती है। भारत की सामाजिक स्थिति संघी मानसिकताओं के नेताओं ने आज इस कदर खराब कर दी है कि बहुजन समाज अपने-अपने छोटे-छोटे जातीय टुकड़ों में बंट गया है। मनुवादियों ने उनके अलग-अलग जाति आधारित संगठन बनवा दिये हैं, ताकि वे संगठित होकर शक्तिशाली न बन पाये। यही जातीय बिखराव, मनुवाद को समाज में स्थापित कर रहा है। हमको सभी जातीय घटकों में एकता का भाव जगाना होगा और सामूहिक भावना के साथ एक मत से मनुवाद पर चोट करनी होगी। यहाँ यह जानना जरूरी है कि मनुवाद का मलतब सवर्ण जाति के लोगों से नहीं है इसलिए हमको सवर्ण जाति के हर व्यक्ति को जातिवादी न समझकर उसे अपने जैसा व्यक्ति ही मानना चाहिए। मनुवाद का मतलब जातीय आधार पर क्रमिक ऊँच-नीच और श्रेष्ठता की भावना के तहत व्यवहार करना है अगर कोई भी व्यक्ति ऐसी मानसिकता से व्यवहार करता है तो उसे ही मनुवादी मानसिकता से बीमार और बहुजन समाज विरोधी समझना चाहिए। साफतौर पर बहुजन समाज उस व्यक्ति के विरुद्ध है जो क्रमिक ऊँच-नीच के आधार पर व्यवहार करता है। अगर शूद्र वर्ग का व्यक्ति भी क्रमिक ऊँच-नीच की भावना रखकर समाज में ऐसा व्यवहार करता है तो वह भी मनुवादी है।
बहुजन समाज का अम्बेडकरवाद जाति विहीन समाज में विश्वास रखता है और एक ऐसे स्वस्थ समाज की कल्पना करता है जो समता, समानता, बंधुता, और न्याय में विश्वास रखता हो। प्रकृति के नियम के अनुसार दुनिया में कुछ भी 100 प्रतिशत सही और न ही गलत नहीं है, यही प्रकृति का वैज्ञानिक आधार है। जो समाज के लिए उपयुक्त और उपयोगी है वहीं बहुजन समाज का एकमात्र वैज्ञानिक ध्येय है। ‘बहुजन’ शब्द सबसे पहले भगवान बुद्ध ने प्रकृति के इसी सिद्धांत को वैज्ञानिकता का आधार मानते हुए- ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ का उपदेश दिया। व्यवहारिक रूप में वैज्ञानिकता का यही आधार सभी मनुष्यों के कल्याण में निहित है।
आज इक्कीसवीं सदी में भी मनुवादी मानसिकता के लोग जाति को ही अधिक महत्व दे रहे है। बहुजन समाज का बिखराव 6743 जातियों में है, जिन लोगों को जाति के आधार पर लाभ हो रहा है वे ही इस जाति व्यवस्था के जनक है। जिन जातियों में मनुवाद की भावना है वे ही अधिकतर समाज मे जाति को बनाये रखने के पक्षधर है। लेकिन उनमें ऐसा मत स्वार्थ पूर्ण है, यह मत लोकहित वैज्ञानिकता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता, इसका विरोध करना सभ्य और सुशिक्षित समाज का कर्तव्य होना चाहिए। जाति प्रथा के जनक नि:संदेह ब्राह्मण है और वे ही जाति को हिन्दू धर्म का अभिन्न बताते और मानते हैं। भारत के बड़े-बड़े मनुवादी मानसिकता के नेता जैसे- मोहन दास करमचंद गांधी, हेडगवार, सावरकर, बाल गंगाधार तिलक, आदि मनुवादी लोग थे जो जाति को हिंदू धर्म का अभिन्न अंग मानते थे। ऐसी बीमार मानसिकता वाले मनुवादी लोग ‘बहुजन समाज के दुश्मन है’ चूंकि इन्हीं 15 प्रतिशत लोगों ने आज जाति के आधार पर लोगों को बाँटकर सत्ता पर कब्जा किया हुआ है। बहुजन समाज ने अपने आप को जातीय घटकों में बांटकर अपनी जनसांख्यिकीय शक्ति को शून्य कर दिया है इसी शून्यता के कारण पूरा बहुजन समाज मनुवादियों के छलावे में फंसा हैं और अपने दुश्मनों को वोट देकर सत्ता की कुर्सी पर आसीन किये हुए है। जनता से अपील है कि वे अपने दिमाग की बत्ती जलाए और मनुवादियों के इस खेल को समझे, मनुवादियों को वोट न देने का दृढ़ संकल्प लें।
मोदी व केजरीवाल का संघी डीएनए: भाजपा व आप का डीएनए एक ही है जो देश की बहुसंख्यक जनता के लिए कल्याणकारी नहीं है बल्कि ये दोनों बहुजन समाज के छिपे दुश्मन है। पिछले आठ वर्षों के इन दोनों के क्रियाकलापों से इसे आसानी से समझा जा सकता है। मोदी जी गुजरात की सत्ता में सन 2001 से मुख्यमंत्री पद पर रहे। किन्तु उन्होंने विधान सभा व लोकसभा में किसी भी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी तक नहीं बनाया था। जबकि गुजरात की जनता में मुस्लिमों की संख्या 7 प्रतिशत से अधिक है और कुछेक इलाकों में तो मुस्लिमों की संख्या 35-40 प्रतिशत तक भी है। फिर भी संघी मानसिकता की मोदी भाजपा ने मुस्लिमों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जो प्रजातंत्र का घोर अपमान है। दूसरा उदाहरण 2014 में जब संघी भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में जनता के सामने पेश किया तो मोदी भाजपा ने देश की 543 लोक सभा सीटों में एक भी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को प्रत्याशी नहीं बनाया। देश में मुस्लिमों की राष्ट्रीय औसतन जनसंख्या 15 प्रतिशत से ज्यादा है। मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व न देना मोदी के डीएनए की संघी मानसिकता को दर्शाती है। तीसरा उदाहरण मोदी भाजपा ने 2019 के लोक सभा चुनाव में भी अपनी इसी संघी मानसिकता का परिचय देते हुए अल्पसंख्यकों को कहीं भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया और न ही मंत्रिमंडल में इतने बड़े समुदाय का कोई व्यक्ति मंत्री बनाया। शायद इसमें अल्पसंख्यक मंत्रालय एक अपवाद हो सकता है। मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में 2002 के गुजरात दंगे में अल्पसंख्यकों के खिलाफ विश्वभर में विख्यात है, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गये थे।
भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 25 प्रतिशत जो हमेशा से मनुवादियों से पीड़ित व प्रताड़ित रहा है। जबसे केंद्र और कुछेक राज्यों में मोदी संघी भाजपा की सरकारें है तभी से एक योजनाबद्ध तरीके से इन समुदायों पर अत्याचार व अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है तथा इन्हीं समुदायों की महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ देश में घटने वाले ऐसे अपराधों का 10 प्रतिशत से अधिक है। जो संघी मानसिकता का एक सुनियोजित षड्यंत्र है और ये अपराधिक घटनाएँ सत्ता की भागीदारी के तहत विभिन्न इलाको में घटित करायी जा रही है। साफतौर पर ये सभी घटनाएँ दलित समुदायों को आतंकित व भयभीत करने की योजनाओं के तहत की जा रही है। बहुजन समाज को इन संघी मानसिकता के गुंडों का संज्ञान लेकर अपना दुश्मन घोषित कर उन्हें वोट न देने का फैसला करना चाहिए।
केजरीवाल संघी डीएनए से निर्मित व प्रशिक्षित मोदी की तरह ही हंै। दोनों की नीतियों में कोई फर्क नहीं है जो देश में दलित व अल्पसंख्यकों का वोट लेकर तथा उन्हें मुफ्त की रेबड़ियों का प्रलोभन देकर सत्ता की कुर्सी पर बैठे हैं। परंतु दलितों को उनका हिस्सा देने के लिए तैयार नहीं है। मनुवादी मानसिकता के तहत पिछले आठ साल से दिल्ली सरकार में सत्ता की कुर्सी पर बैठकर केजरीवाल आरक्षित वर्गों की सरकारी विभागों में भर्ती नहीं कर रहे हैं, सरकार के विभागों के अधिकतर काम ठेके पर दिये जा रहे हैं। जिनमें अधिकतर ठेकेदार केजरीवाल के वैश्य वर्ग से है। साफतौर पर केजरीवाल की यह संघी व जातिवादी मानसिकता का खुला प्रदर्शन है। केजरीवाल के आठ सालों के कार्यकालों को देखते हुए वह बहुजन समाज का एक बड़ा संघी शत्रु है। जिसे बहुजन समाज को वोट न देने का संकल्प लेना चाहिए।
जागो बहुजन जागो और बहुजन समाज के प्रत्याशियों को अपना वोट दो। मोदी और केजरीवाल को किसी भी कीमत पर वोट न दें।
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