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दिल्ली को चाहिए बहुजन समाज का सीएम

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2023-07-11 06:03:44

राजधानी दिल्ली की जनसांख्यिकी में करीब 20 प्रतिशत दलित और 20 प्रतिशत के आसपास मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। इनके अलावा बहुजन समाज की अति पिछड़ी जातियाँ जैसे लौहार, नाई, बढ़ई, गडरिये, सक्के, कुम्हार, तेली, तमोली, भड़बूझे आदि अन्य समकक्ष जातियाँ भी है। जिनका दिल्ली में आगमन उनके व्यवसायिक काम-धंधों के कारण हुआ है। बहुजन समाज के इन सभी समुदायों में अधिकतर विभिन्न तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाले कामगार हैं। जो अपनी और अपने परिवार की जीविका छोटे-छोटे तकनीकी कार्य करके चलाते हैं। ये सभी तकनीकी कामगार आज के समाज की जरूरत है और इनके बिना समाज के बहुत सारे तकनीकी काम होना असंभव है। ये सभी तकनीकी कामगार दिल्ली की जनसांख्यिकी का लगभग 40-45 प्रतिशत हिस्सा हैं। दिल्ली में बहुजन समाज के इन सभी घटकों की जनसंख्या लगभग 75-80 प्रतिशत है। लेकिन सरकार में इनकी भागीदारी नगण्य है जबकि प्रजातंत्र के स्वर्णिम सिद्धांत के अनुसार ‘बहुसंख्यक लोगों की ही सत्ता स्थापित होनी चाहिए मगर दिल्ली और देश में भी प्रजातंत्र के इस स्वर्णिम सिद्धांत का घोर उल्लंघन हो रहा है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल है जो जाति के आधार पर बनिया (वैश्य) है। वैश्यों की जनसंख्या दिल्ली में मुश्किल से 6-7 प्रतिशत है जिनके वोट के आधार पर दिल्ली में वैश्यों (बनियों) का एक पार्षद भी नहीं बन सकता, विधायक और सांसद बनना तो दूर की बात है। केजरीवाल लगभग 9 वर्षों से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। वे दिल्ली के लोगों को प्रपंच और छलावों के आधार पर मूर्ख बना रहे हैं; केजरीवाल की मानसिकता जन्म से ही संघी और मनुवादी है; वे हिंदुत्व के कट्टर समर्थक है; पिछले 9 साल के शासन में दिल्ली की जनता ने उन्हें बहुत नजदीक से देखा और समझा है; केजरीवाल और मोदी की मानसिकता में फर्क नहीं है; दोनों मनुवाद को जन्म देते हैं; हिंदुत्व के कट्टर समर्थक है; पाखंड और प्रपंच फैलाने में दोनों की महारथ है; दोनों की राजनीति में धर्म, देवी-देवताओं का पूरा घालमेल है; दोनों ही शासन की सभी चाबियाँ अपने कब्जे में रखना चाहते हैं; दोनों ही झूठ बोलने में श्रेष्ठ हैं; दोनों ही संविधान के प्रावधानों का खुला उल्लंघन करते हैं। मोदी ने यूपीएससी को बाइपास करके 130 से अधिक संयुक्त सचिव (ज्वाइंट सेक्रेटरी) लेबल के पदों पर अपने मित्रों की कंपनियों द्वारा सुझाए गए व्यक्तियों को नियुक्त किया, जिनकी न कोई परीक्षा हुई और न इंटरव्यू हुआ। उन्हें सीधे संयुक्त सचिव नियुक्त कर दिया गया। केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव लेबल का पद देश की नीति निर्धारण के लिए अहम होता है।

इसी के समानांतर केजरीवाल ने भी 400 से अधिक ऐसे लोगों को दिल्ली सरकार में नियुक्त किया हुआ है जिन्हें संघी मानसिकता के अनुरूप कार्य करने के लिए उपयुक्त समझा गया। इन सभी लोगों की न कोई परीक्षा व न ही कोई इंटरव्यू हुआ। ऐसे व्यक्तियों के चयन में एससी/एसटी के आरक्षण का कोई प्रावधान भी नहीं रखा गया। इस प्रकार की कार्यप्रणाली संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत है, साथ ही बहुजनों को उनकी जनसंख्या के अनुरूप हिस्सा देने के भी विपरीत है। केजरीवाल जब से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने है तभी से उनका दिल्ली के उपराज्यपाल से शक्ति द्वंद चल रहा है, केजरीवाल सत्ता के सभी निकायों पर अपना पूर्ण कब्जा व वर्चस्व चाहते हैं। शुरू से ही उनकी माँग रही है कि दिल्ली पुलिस और जमीन का अधिकार क्षेत्र दिल्ली के मुख्यमंत्री के अधीन होना चाहिए। ऐसा करने के पीछे उनकी संघी मानसिकता है जो पूर्णत: मोदी से मेल खाती है। जबकि प्रजातंत्र में सत्ता विकेंद्रीकृत रूप में सभी निकायों, विभागों, संस्थाओं में समाहित रहती है। केजरीवाल ऐसा नहीं चाहते वे सभी पर अपना एक छत्र कब्जा रखना चाहते हैं। ऐसी मानसिकता वाला व्यक्ति भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं होना चाहिए क्योंकि उसकी कार्यप्रणाली और सत्यनिष्ठा में खोट है। केजरीवाल ने अपनी सरकार के सभी मलाईदार विभाग ब्राह्मणपंथी सवर्ण समाज के लोगों के अधीन रखे हैं। मुफ़्त का राशन, पानी, बिजली के छलावे में फँसकर मुस्लिम समुदाय ने केजरीवाल को 83 प्रतिशत वोट दिया इसी प्रकार दलित व अन्य पिछड़ी जातियों ने भी केजरीवाल को मुμत की रेवड़ियों के चक्कर में 70 प्रतिशत से अधिक वोट देकर दिल्ली के शासन पर स्थापित किया। लेकिन केजरीवाल ने अपनी संघी मानसिकता के अनुरूप मुख्यमंत्री बनने के पश्चात बहुसंख्यक बहुजन समाज के जातीय घटकों को याद नहीं रखा। उन्होंने अपने संघी चरित्र के अनुसार केवल ब्राह्मणपंथी वैश्य समाज के लोगों को ही दिल्ली व पंजाब से राज्यसभा में भेजा। बहुजन समाज के सभी घटकों को केजरीवाल से जनसांख्यिकी के आधार पर दिल्ली व पंजाब की सरकार में उचित हिस्सा माँगना चाहिए अन्यथा उसे आगामी चुनाव में हराना चाहिए। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मान्यवर साहेब कांशीराम जी का मूल सिद्धांत ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी’ एकदम तर्कसंगत है। इसी के अनुरूप विधान सभा हो या संसद सभी में जनसांख्यिकी के आधार पर बहुजन समाज को अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। उसके लिए सरकार पर संवैधानिक दबाव भी बनाना चाहिए। केजरीवाल व मोदी के प्रपंचों में नहीं फँसना चाहिए।

केजरीवाल के व्यवहार और कार्यप्रणाली को देखकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की है कि आपकी सरकार के पास विज्ञापन के लिए तो पैसा है लेकिन विकास के कार्यों ‘रेपिड रेल’ आदि के लिए नहीं। माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश ने केजरीवाल से पूछा है कि ‘आपकी सरकार ने पिछले तीन साल में विज्ञापन पर कितना खर्च किया है।’ इसके जवाब में दिल्ली सरकार के वकील ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि केजरीवाल सरकार ने पिछले 3 साल में लगभग 1868 करोड़ विज्ञापन पर खर्च किया है। तो फिर आपके पास विकास के लिए पैसा क्यों नहीं है? केजरीवाल हमेशा प्रचार में बने रहना चाहते हैं हर वक्त उसी मानसिकता से काम करते हैं।

भ्रष्टाचार में सबसे उत्तम केजरीवाल: दिल्ली की जनता को यह अच्छी तरह पता है कि देश के संघियों ने कांग्रेस मुक्त सरकार का नारा देकर केजरीवाल को भ्रष्टाचार के नाम पर आंदोलन में उतारा था। अन्ना हाजरे को आगे करके संघियों द्वारा सत्ता पाने का एक बड़ा तमाशा और षड्यंत्र रचा था। देश के संघियों ने पूरी शक्ति लगाकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को जनता के सामने तमाशे पर तमाशे दिखाकर भ्रष्ट घोषित करके सत्ता से हटाया था। केजरीवाल ने अपने पिछले 9 साल के शासन में झूठ आधारित प्रचार व जनता को न दिखने वाला भ्रष्टाचार का तंत्र खड़ा कर दिया है। केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद मंत्री सतेन्द्र जैन और मनीष सिसोदिया ही रहे हैं जो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं। लेकिन फिर भी केजरीवाल अपने संघी चरित्र के मुताबिक दोनों को कट्टर ईमानदार कह रहा है और जनता को गुमराह कर रहा है। 4 जुलाई 2023 को दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल के प्रिय मंत्री को अंतरिम जमानत देने के मुद्दे पर गंभीर टिप्पणी की और कहा है कि ‘मनीष सिसोसिया पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप है इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती।’ चूंकि वे केस से जुड़े साक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं। केजरीवाल संघी चरित्र के मुताबिक अपने मित्र मंत्रियों को जेल भेजे जाने पर भी मंत्री मंडल से नहीं हटाते हैं। सतेन्द्र जैन के मामले में केजरीवाल ने यह ड्रामा एक साल से अधिक चलाया और प्रपंची प्रचार से लोगों को मूर्ख बनाया। जब माननीय अदालतें केजरीवाल के छलावे व प्रपंचों से प्रभावित नहीं हुई तो केजरीवाल ने तब अपने भ्रष्टाचारी मंत्रियों को मंत्रिमंडल से हटाने की अधिसूचना जारी की। यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं आबकारी नीति के भ्रष्टाचार में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से केजरीवाल की संलिप्तता संदिग्ध है? अन्यथा वे एक साल से अधिक समय तक दोनों मंत्रियों को कट्टर ईमानदारी का प्रमाण पत्र नहीं देते? केजरीवाल की संलिप्तता इन दोनों मंत्रियों के घोटाले में संदिग्ध तो है ही जिसमें केजरीवाल खुद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल न रहे हो लेकिन जुडेÞ जरूर होंगे? ये तथाकथित घोटाले केजरीवाल सरकार ने अपनी सरकार द्वारा दिये गए ठेकों, गेस्ट टीचर भर्ती, पहले से बने हुए स्कूलों में नए कमरे बनाकर दिखाना इत्यादि हैं जहाँ पर भ्रष्टाचार का खुला खेल चला होगा? अभी हाल में केजरीवाल ने अपने सरकारी निवास के नवीनीकरण के काम के लिए 45-50 लाख रुपए खर्च दिखाये है, जो अपने आप में संदिग्ध लगता है। दिल्ली के मुख्य सचिव की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा इसकी जाँच कराई जा रही है। दिल्ली की आम जनता को भी इतना बड़ा खर्च नवीनीकरण के काम के लिए करना असंगत लग रहा है।

केजरीवाल ने अपने शासन काल में अधिकतर मोटे-मोटे ठेके वैश्य (बनिया) समाज के लोगों को ही दिये हैं। सामाजिक परिवेश के हिसाब से ठेकों व जनता से जुड़े सिविल कार्यों में भ्रष्टाचार की संभावना हमेशा ही बनी रहती है। भारतीय संविधान धर्म-निरपेक्ष है, जिसका अर्थ है कि सरकार अपने कृत्यों से किसी भी धर्म को न बढ़ावा देगी और न प्रचार में भागीदार बनेगी। परंतु केजरीवाल खुद जनता में जाकर अपने आपको हनुमान जी का परम भक्त बताते है और उसका प्रचार भी करते हैं। इसके साथ ही वे काँवड़ यात्राओं के दौरान दिल्ली की सड़कों को समीपवर्ती राज्यों से जोड़ने वाली सड़कों के किनारे कावड़ियों के लिए 400 से अधिक टैंट की व्यवस्था कर रहें है जिसमें भ्रष्टाचार होने की अधिक से अधिक संभावना है। समाज के वरिष्ठ लोगों को पाखंडी तीर्थ यात्राओं पर बस व रेल से भेजते हैं जो अपने आप में संविधान का उल्लंघन है। केजरीवाल की धार्मिकता से जुड़ी गतिविधियाँ संविधान के अनुच्छेद 51 का खुला उल्लंघन है। संविधान के अनुच्छेद 51 के मुताबिक जनता में वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम चलाने चाहिए परंतु केजरीवाल दिल्ली और पंजाब राज्य की जनता को पाखंड परोसकर उन्हें अज्ञानी बना रहे हैं। ताकि वे मनचाहे मनुवादी संस्कृति के कार्यों को अंजाम दे सके।

तथ्यों के आधार पर दिल्ली का बहुजन समाज जनता से अपेक्षा करता है कि दिल्ली की जनसांख्यिकी के आधार पर दिल्ली का मुख्यमंत्री बहुजन समाज के किसी भी जातीय व संप्रदाय के घटकों से ही बनना चाहिए। ब्राह्मणपंथी वैश्यों से नहीं अगर ऐसा करने में यह समाज विफल रहता है तो वह अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी नष्ट कर रहे हैं। इसलिए बहुजन समाज से अपील है कि शीघ्र-अतिशीघ्र केजरीवाल को दिल्ली की सत्ता से हटाकर बहुजन समाज की सत्ता स्थापित की जाये।

जय भीम, जय विज्ञान, जय संविधान॥

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05