ज्वलंत मुद्दों पर सरकार का ध्यान खींचना सभी की जिम्मेदारी
2022-08-22 08:38:04
प्रजातंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है, जनता से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर सरकार का ध्यान खींचना सभी की जिम्मेदारी है। प्रजातंत्र में जनता ही सरकार बनाकर शासन करती है। परोक्ष रूप में जनता ही शासनकर्ता जमात है तब उसी की जिम्मेदारी बनती है कि समय-समय पर जनता के मुद्दे सरकार के समक्ष रखे। मुद्दे सरकार के संज्ञान में लाने के लिए संवैधानिक व्यवस्था है कि जनता अपने प्रतिनिधि चुनकर संसद या राज्य की विधानसभाओं में भेजे और ये चुने हुए प्रतिनिधि जनता से जुड़े मुद्दों को संसद या विधानसभाओं के सदन में रखकर सरकार को ध्यान दिलाये और मुद्दोें की गंभीरता को भी बतायें तथा सरकार को ध्यान देने के लिए मजबूर करें, समाधान निकालें और जनता की समस्या को हल किया जाये। परंतु अब सवाल उठता है कि क्या यह सब आज की मोदी सरकार में व्यवहारिक है? नहीं, देखने में और आम व्यवहार में यह दूर-दूर तक भी नजर नहीं आ रहा है। चुने हुए प्रतिनिधियों की पूरे देश में कोई आवाज नहीं है जिसका साफ मतलब है कि प्रजातंत्र में प्रजा की आवाज को सुनने और उसे जानने का रिवाज खत्म कर दिया गया है। प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था सिर्फ कागजों पर ही नजर आ रही है, जमीनी व्यवहार में प्रजातंत्र कहीं नहीं दिखाई पड़ता।
सरकार को जनता का डर?
वर्तमान मोदी सरकार ने जनता की आवाज के सभी स्रोत बंद कर रखे हैं। मीडिया जो प्रजातंत्र का मुखौटा होता है वह वास्तविकता में गायब है। सारा मुख्य मीडिया मोदी सरकार का गुणगान करने में व्यस्त है। जनता के ज्वलंत मुद्दों के लिए उसके पास समय नहीं है। मीडिया अपना काम नहीं कर रहा है तो जनता कहाँ जाये। मुख्य मीडिया के अभाव में अब जनता सोशल मीडिया पर ज्यादा भरोसा कर रही है और यही कारण है कि सोशल मीडिया की पहुँच जनता में बढ़ रही है। देश में क्या चल रहा है सरकार से जनता को कुछ पता नहीं चल पा रहा है। जनता जिन मुद्दों से हर पल दो-चार हो रही है सरकार उन पर बात करने के लिए तैयार नहीं है। संसद के दोनों सदनों में 750 से अधिक सांसद है लेकिन देश के ज्वलंत मुद्दों पर एक की भी आवाज नहीं आ पा रही है। कभी-कभी वरुण गांधी जैसे अन्य नेताओं की आवाज के रूप में जनता की आवाज जरूर सुनायी देती है या फिर विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी जनता की आवाज को देश के सामने रखते नजर आते हैं।
वर्तमान सरकार का जनता से व्यवहार एक डरे हुए निरंकुश शासक की तरह दिख रहा है। सरकार ने जनता से बातचीत के सभी दरवाजे बंद कर रखे है। आज जनता अपने ज्वलंत मुद्दों को लेकर त्राहिमान-त्राहिमान कर रही है। मगर सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। सरकार सिर्फ अपने मातृ संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ (आरएसएस) के मुद्दे ‘हिन्दू राष्ट्र’ को आगे बढ़ाती दिख रही है बाकी मुद्दे उसके लिए गौण है। देश के सामने ज्वलंत मुद्दा है बेरोजगारी, महँगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था। देश में कानून व्यवस्था संविधान सम्मत नहीं दिख रही है। जनता को बांटो और राज करो के सिद्धांत पर मोदी शासन चलाया जा रहा है।
बेरोजगारी का मुद्दा
भारत में बेरोजगारी चरम पर है, सत्ता में आने के लिए 2014 में मोदी ने प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने की बात कहीं थी। जबकि वायदे के उलट दो करोड़ रोजगार मोदी जी ने अपने शासन काल में प्रतिवर्ष समाप्त किये है। पिछले आठ वर्षों में 16 करोड़ से ज्यादा रोजगार जनता से छीने गए है। साथ ही इन वर्षों में जो महिला-पुरुष रोजगार पाने की उम्र पार करके स्थायी रूप से अशक्त कर दिये गए है वे जीवन भर मोदी कुशासन का दंश झेलने को विवश रहेंगे। भारत में बेरोजगारी दर चार माह के उच्च स्तर पर पहुँच गयी है। दिसम्बर 2021 में बेरोजगारी दर 7.9 प्रतिशत थी जो सीएमआईई के आँकड़ों के अनुसार नवम्बर 2021 में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत थी जबकि दिसम्बर 2021 में 7.9 प्रतिशत थी, जो मई महीने में 11.9 प्रतिशत पहुँच गयी। बेरोजगारी की सबसे अधिक मार बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक) पर ही पड़ती है। इसका प्रमुख कारण है कि बहुजन समाज के जातीय घटकों के पास कृषि योग्य भूमि नगण्य है, व्यापार में भी इनकी हिस्सेदारी न के बराबर है। बहुजन समाज के सभी जातीय घटक ज्यादातर तकनीकी कामगार है और उसी आधार पर अपना व परिवार का जीवन यापन करते है। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और उसके बाद कोरोना महामारी ने बहुजन समाज के कामगारों की कमर तोड़कर रख दी है। सरकार की देश के तकनीकी कामगारों के लिए कोई योजना नहीं है।
शिक्षा का मुद्दा
देश के चहुंमुखी विकास के लिए शिक्षा का होना आवश्यक तत्व है। मगर मोदी- भाजपा शासन की शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा का निजीकरण कर दिया है। जो जनता पर थोप जा रहा है। निजीकरण के बाद शिक्षा का महंगा होना निश्चित है, बहुजन समाज के सामर्थ्य से शिक्षा को नीतिगत तरीके से दूर किया जा रहा है। मोदी-भाजपा शासन परोक्ष-रूप से मनुस्मृति आधारित शिक्षा को देश की जनता पर थोंपने का मन बना चुकी है। उसी सरकार शिक्षा पर जो बोल रही है और जो जमीन पर कर रही है उसमें कोई समाजस्य नहीं है। सरकार झूठ और फरेब जनता को परोसकर मनुवादी षड्यंत्रकारी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। सरकार की नियत में खोट है। इस नीति से सरकार एक तीर से दो शिकार करने का काम करने जा रही है। इस वर्तमान शिक्षा नीति को देखकर बहुजन समाज के सामने संदेश साफ है कि देश में मनुवादी शिक्षा व्यवस्था बनाई जा रही है। सरकार की विभिन्न प्रचार माध्यमों से कोशिश है कि उनका मनुवादी शिक्षा प्रणाली का छिपा खेल बहुजन समाज की भोली-भाली जनता को समझ में न आये। पर सवाल यह है कि खेल कितनी देर तक समझ नहीं आएगा। चूंकि बहुजन समाज को जागरूक करने वाली शक्तियाँ भी मनुवाद की वर्तमान मानसिकता को भाँपकर सक्रिय हो चुकी हैं। सोशल मीडिया में बहुजन समाज के सक्रिय लोग भी अपना भरपूर योगदान दे रहे हंै। हाँ यह बात सत्य है कि मनुवादी षड्यंत्रों और फरेबों का पता थोड़ी देर से लगता है परंतु लगता जरूर है। दुनिया अब संचार क्रांति के दौर में है, जानकारी स्रोतों का अभाव नहीं है। शिक्षा नीति को सोशल मीडिया व अन्य शिक्षाविदों द्वारा जनता तक पहुँचाया जा रहा है।
स्वास्थ्य का मुद्दा
स्वास्थ्य जनता के लिए अहम और आवश्यक मुद्दा है, सरकार द्वारा स्थापित देश के स्वास्थ्य तंत्र की कोरोना काल में पूरी तरह पोल खुल गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या तुलनात्मक दृष्टि में सबसे अधिक बतायी गई है लेकिन उस पर भारत सरकार का झूठ तंत्र अपनी कमियों को छिपाने के मद्देनजर सहमत नहीं है परंतु सच्चाई सबको पता है। कोरोना काल में स्वास्थ्य तंत्र के चरमराए हुए ढांचे की वजह से हरिद्वार से लेकर बंगाल तक गंगा में तैरते शव पूरी दुनिया ने देखे और रेत में पड़े हुए लावारिश शव, चील, कौओं द्वारा खाते सब ने देखे। ऐसा वीभत्स दृश्य सिर्फ भारत में ही देखने को मिला अन्य किसी और देश में नहीं। इस तरह के दृश्य यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि भारत का स्वास्थ्य तंत्र जमीन पर मौजूद ही नहीं है। परंतु फिर भी केंद्र और राज्य सरकारें झूठ तंत्र के सहारे अपनी तथ्यहीन श्रेष्ठता का प्रदर्शन करने में कोई शर्म महसूस नहीं करती। हिंदुत्व की यही विशेषता है कि वह घटिया से घटिया काम करके भी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करने का नाटक करता है।
महँगाई का मुद्दा: इस वक्त भारत की जनता महँगाई से त्रस्त है, खाने-पीने की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हंै। महंगाई लगातार बढ़ रही है। जनता के पास रोजगार मौजूद नहीं, जो थोड़े-बहुत रोजगार चल रहे थे वे भी सरकार की जनता विरोधी नीतियों के कारण बर्बाद हो चुके है। लोगों के पास काम नहीं है और न ही काम बाजार में उनको मिल रहा है जिसकी वजह से जनता महँगाई का मुकाबला करने में असमर्थ है। विभिन्न स्रोतों के मुताबिक भारत में महँगाई दर अपने पड़ोसी देशों से अधिक है और सरकार फिर भी श्रेष्ठता का ढ़ोल पीट रही है। अगर सरकार के आँकड़ों को सही मान लिया जाये तो देश की अस्सी करोड़ जनता को मुμत राशन वितरित किया जा रहा है। इसका मतलब साफ है कि देश की कुल 140 करोड़ आबादी में करीब 100 करोड़ लोग महँगाई और भुखमरी से जूझ रहे हंै। तकरीबन 80 प्रतिशत लोगों की प्रतिदिन की आमदनी देश में दो डॉलर प्रतिदिन से भी कम है। इन सब वैश्विक आँकड़ों के आधार पर जनता महँगाई से त्रस्त है और बेरोजगारी के चलते उसका मुकाबला करने में असमर्थ है।
कानून व्यवस्था का मुद्दा
मोदी सरकार 2014 से देश में शासन कर रही है। उसका मूल आधार ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर देश में काम कर रहा है। जनता में धार्मिक सांप्रदायिकता को बड़े पैमाने पर परोसा जा रहा है और उसी के आधार पर राजनैतिक ध्रुवीकरण करके सत्ता तक पहुँचने का रास्ता मशीनों व प्रशासनिक तंत्र के द्वारा बनाया जा रहा है। भाजपा संघी शासन को सत्ता में बने रहने लिए चुनाव आयोग और प्रशासनिक तंत्र को बड़े पैमाने पर शामिल किया जा रहा है। प्रजातंत्र में निष्पक्ष चुनाव का होना अहम है परंतु मोदी भाजपा सरकार ने चुनाव आयोग को पंगु बनाकर रखा है, उसके द्वारा दिये जा रहे सभी चुनाव संबंधी फैसले सरकार के पक्ष में दिये जा रहे है। चुनाव संबंधी कानून ताक पर रख दिये गए है कोई शर्म लिहाज नहीं रह गई है। देश का उच्चतम न्यायालय भी जनता विरोधी नीतियों को न्यायसंगत करार देकर जनता में न्याय के प्रति भरोसे को क्षीण कर रहा है। अभी दो-तीन दिन पहले उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किये हैं। सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने वाले कपिल सिब्बल का जनता भी समर्थन करती दिख रही है चूंकि जिनको चुनाव आयोग उच्चतम न्यायालय कानून की दृष्टि से सही बताते हैं उससे बहुजन समाज का हित अधिक प्रभावित हो रहा है। बहुजन समाज को इन सब अतार्किक और अन्यायिक संदर्भों का संज्ञान लेना चाहिए और अपनी जनता को जागरूक भी करना चाहिए।
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य के मद्देनजर जनता को ज्वलंत मुद्दों के लिए हल्ला बोल अभियान शुरू करना चाहिए। इस अभियान में सभी राजनैतिक दलों व सामाजिक संगठनों को विशेष रूप से हिस्सा लेकर इन ज्वलंत मुद्दों को उभारना चाहिए और अगर सरकार फिर भी जनता के मुद्दों से मुँह मोड़ती है तो सरकार को सत्ता से हटाने का देशव्यापी अभियान भी छेड़ना चाहिए। इस वक्त देश में जहाँ-जहाँ भाजपा संघ का शासन है वहाँ-वहाँ पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वर्ग का सत्ता में गठजोड़ है और बहुजन समाज (एससी+ एसटी+ पिछड़े+ अल्पसंख्यक) पर अत्याचार व उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ रही है। इन सब से मुक्ति के लिए बहुजन समाज को एकता और सामूहिकता की आवश्यकता है बहुजन समाज के पास उत्पीड़न और अत्याचार से मुकाबला करने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता बचा है कि सब मिलकर सामूहिकता के साथ दुष्ट मनुवादियों का लठ्ठ से मुकाबला करे।
‘शठे शाठ्यं समाचरेत्’
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।