2024-09-07 09:15:49
आज देश में जाति जनगणना का मुद्दा गरम है, सभी राजनैतिक दल जाति जनगणना को लेकर अपने-अपने बयान दे रहे हैं। आरएसएस कल तक जो जाति जनगणना का विरोध कर रहा था उसके प्रचारक भी अब जाति जनगणना को सही बता रहे हैं। जाति इस देश में हमेशा से ही एक विवादित मुद्दा रहा है। यहाँ पर अब सवाल उठता है कि जाति किसने बनाई और जाति व्यवस्था से किसको फायदा है? भारत की जाति व्यवस्था में ब्राह्मण सबसे ऊँचा है, और शूद्र समाज की सभी जातियों को नीचा माना गया है। ब्राह्मणों के तथाकथित शास्त्रों के मुताबिक ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ है इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ और सर्वोपरि है। दूसरे स्थान पर क्षत्रिय है जी ब्रह्मा की भुजाओं से पैदा हुए हैं और ब्राह्मणों के बाद उन्हें दूसरे नंबर पर श्रेष्ठ माना गया है, तीसरे स्थान वैश्य है जो ब्रह्मा ने अपनी जंघाओं से पैदा किए हैं और चौथे स्थान पर शूद्र है जो ब्रह्मा ने पैरों से पैदा किये हैं इसलिए उन्हें जाति व्यवस्था में सबसे नीचा स्थान दिया गया है। तार्किक आधार पर अगर इन कथित किवदंती को समझा जाये तो ये सभी कथित किवदंतियाँ किसी भी तर्क पर सही नहीं उतरती। ये सभी किवदंतियाँ ब्राह्मणों द्वारा कपोलकल्पित तरीके से गढ़ी गई है। ब्राह्मणों ने इन सब असत्य कहानियों को अपने प्रचार-प्रसार के माध्यम से जनता के जहन में वर्षों तक मसक्कत करके बैठाया है। आज के इस वैज्ञानिक युग में क्या कोई व्यक्ति किसी के मुख से पैदा हो सकता है यह किसी के गले से भी नीचे नहीं उतरता? इसी तरह क्या कोई व्यक्ति भुजाओं से पैदा हो सकता है या फिर जंघाओं से पैरों से पैदा हो सकता है? इस तरह की ये सभी कहानियाँ कपोल कल्पित गप है। इन्हीं के आधार पर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है और इन्हीं के आधार पर ब्राह्मण अपने आपको समाज में श्रेष्ठ मानकर आत्ममुग्ध हो रहे हैं। आत्ममुग्ध होकर अपने को सभी से श्रेष्ठ भी मान रहे हैं।
जाति का जनक कौन? जाति के जनक का अधिकारिक श्रोत तो कहीं दर्ज नहीं है लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर माना जा सकता है कि जाति के जनक ब्राह्मण है और जाति व्यवस्था से ब्राह्मणों को ही लाभ हुआ है। ब्राह्मणों ने जाति व्यवस्था स्थापित करके सभी सामाजिक फायदे अपने तरफ मोड़े और उनका भरपूर रसास्वादन किया। 21वीं सदी का जागरूक और समझदार भारतीय समाज जाति व्यवस्था को अच्छा नहीं मानता है और न ही जाति व्यवस्था के आधार पर किसी को ऊँचा और किसी को नीचा मानने की मान्यताओं को समर्थन देता है। फिर भी समाज में जाति एक ऐसा भयानक रोग है जो मनुष्य को जन्म के साथ ही मिल जाता है और उसके मरने के बाद भी जाति नाम की बीमारी उससे नहीं छूटती। भारत में ब्राह्मण समाज जाति व्यवस्था का समर्थक रहा है परंतु वे ये नहीं जानते कि समाज में जाति व्यवस्था से नुकसान है। जाति व्यवस्था से समाज विभाजित होता है, कमजोर होता है, जाति व्यवस्था में परस्पर क्रमिक ऊँच-नीच की भावना है, जो एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग करती है। क्रमिक ऊँच-नीच की व्यवस्था के कारण ही समाज में एकात्म भाव और सौहार्द नहीं है। जिसके कारण समाज में परस्पर मेलजोल नहीं बन पाता। 21वीं सदी का समाज जाति व्यवस्था को अच्छी नजर से नहीं देखता फिर भी ब्राह्मण समाज के कुछेक जाति समर्थक लोग जाति व्यवस्था को अच्छा मानते हैं। उनका मत है कि जाति व्यवस्था हिंदुत्व का अभिन्न अंग है और यह मान्यता सिर्फ आम लोगों की ही नहीं है बल्कि समाज के विशिष्ट व अग्रणी लोग भी इसी में विश्वास रखते हैं। महात्मा गांधी खुद भी ऐसा ही मानते थे और कहते भी थे। गांधी ने अपने जीवनकाल में जाति को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग बताया और साथ ही यह भी कहा कि अगर हिन्दू धर्म से जाति को निकाल दिया जाये तो वह जीवित नहीं रह जाएगा।
जाति व्यवस्था से फायदा किसको: भारतीय समाज में जाति व्यवस्था चिरकाल से है। इसे ब्राह्मणों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी पोषित किया है। ब्राह्मण जाति व्यवस्था का जनक, पोषक और वाहक भी है। ब्राह्मणों को समाज में जाति व्यवस्था से अहम फायदा यह है कि जाति व्यवस्था से ब्राह्मण समाज में श्रेष्ठ है और श्रेष्ठ बनने से उसमें आत्ममुग्धता आती है। जिसके कारण वह समाज में अपने आपको सम्मानित महसूस करता है। हालांकि इस सामाजिक मुग्धता का कोई सटीक आधार नहीं है फिर भी समाज में खुश रहने की प्रवृति तो दिखती है।
भारतीय भूभाग पर जाति रूपी बीमारी का आनंद सिर्फ ब्राह्मण ही भोग रहे हैं। जाति के आधार पर ही ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी रखा जा रहा है जहाँ से वे अकूत धन सम्पदा पाखंड के आधार पर बटोर रहे हैं। देश में 1,40,000 मंदिर बताए जाते हैं, इन सभी मंदिरों पर ब्राह्मण पुजारियों का कब्जा है। सभी ब्राह्मण मंदिरों में दान और चढ़ावे के बल पर फल-फूल रहे हैं। मंदिरों की आड़ में अवैध धंधे भी चला रहे हैं। जनसंख्या के हिसाब से ब्राह्मणों की संख्या 3.5 प्रतिशत है जिनमें एक भी ब्राह्मण बेरोजगार नहीं है जो ब्राह्मण अच्छे पढ़े लिखे हैं वे सरकार में बैठकर अच्छी नौकरियां कर रहे हैं और जो नौकरी करने के योग्य नहीं है वे मंदिरों में बैठकर पुजा-पाठ के बहाने देश की भोली-भाली जनता को छलावों और पाखंड में फंसाकर लूट रहे हैं।
आरएसएस जातिवाद का प्रबल समर्थक है: संघी व्यवस्था अधिकारिक तौर पर पिछले 100 साल से मौजूद है। परंतु हिंदुत्व की वैचारिकी देश के लोगों में सदियों से व्याप्त है। आरएसएस स्थापित होने से पहले भी इस मानसिकता के लोग सदियों से देश में थे। वर्तमान समय में आरएसएस की विचारधारा जाति समर्थक रही है लेकिन जब से राजनीतिक पार्टियों ने जाति जनगणना की बात शुरू की हैं तब से आरएसएस के प्रचारक भिन्न-भिन्न किस्म के बयान दे रहे हैं। कुछेक जाति जनगणना के समर्थन में बयान दे रहे हैं और उनमें से कुछेक जाति जनगणना के विरोध में बयान दे रहे हैं। जिससे लगता है कि आरएसएस में जाति जनगणना के मुद्दे पर भ्रामकता है। जाति जनगणना के मुद्दे को लेकर न वे निगल पा रहे हैं और न वे उगल पा रहे हैं। इसलिए देश का बुद्धिजीवी वर्ग आरएसएस के विरोधाभासी बयानों को लेकर चिंतित है और उसमें कोई एकरूपता नहीं देख रहा है। ऐसी स्थिति को देखकर आरएसएस के सरसंघचालक कबूतर की तरह अपनी आँखे बंद करके नहीं रह सकते उसे स्पष्ट तौर पर यह बताना चाहिए कि क्या वे जाति जनगणना के पक्ष में है या विरोध में। अब देश स्पष्टता चाहता है भ्रामकता नहीं। ब्राह्मणों की इस भ्रामकता और छलावामयी नीतियों से अब देश का जागरूक वर्ग सचेत हो गया है और आरएसएस को बचके नहीं निकलने देना चाहता।
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