2024-05-03 12:02:00
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, लोकतंत्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रजा का शासन होता है। जनता अपना प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा, लोकसभा व स्थानीय निकायों में भेजती है। भारत में सभी धर्म, जाति व संप्रदाय के लोग बसते हैं। जनता को अपनी मर्जी से वोट डालने का अधिकार है। चुनाव कराने के लिए देश में एक स्वतंत्र चुनाव आयोग की व्यवस्था भी है। वर्तमान समय में लोकसभा के आम चुनाव चल रहे हैं। देश के सभी राजनैतिक दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी चुनाव में खड़े किये हुए है। आमतौर पर यह देखा गया है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने के लिए कानून तो अच्छे हैं लेकिन इन प्रावधानों पर चलने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ जब अपने प्रत्याशी खड़े करती है तो राजनीतिक दल सिर्फ उन लोगों का ख्याल रखते हैं जो उनके लिहाज से जिताऊ हो, चाहे वह व्यभिचारी हो या भ्रष्टाचारी। इन सभी प्रत्याशियों को वोट तो जनता से ही मिलता है और उनकी वोट पाकर ही वे हारते या जीतते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ‘जनता’ ही इस पूरे प्रजातांत्रिक खेल में महत्वपूर्ण हैं। जनता अगर अपने महत्व को समझकर एक सम्यक विचार के उम्मीदवार को अपना वोट देकर चुने तो चुने हुए प्रत्याशी जन भावना के लिए उपयुक्त हो सकते हैं।
प्रत्याशी ईमानदार व जनोन्मुखी हो: जनता को अपना प्रतिनिधि चुनते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि जो व्यक्ति आपसे वोट माँग रहा है वह किस चरित्र का है, वह ईमानदार है या नहीं। जनता को ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए जैसे केजरीवाल और भाजपा के लोग बोलते रहते हैं बल्कि जनता को उसकी ईमानदारी उसके आचरण में दिखनी चाहिए। प्रत्याशी के बारे में अगर जनता को ज्यादा पता नहीं है तो मतदाता को वोट देने से पहले अपने माध्यमों से पता करना चाहिए कि व्यक्ति का आचरण कैसा है? यह आपकी वोट पाने के लिए उपयुक्त है या नहीं। इसको करने के लिए हर मतदाता को अपने स्तर पर थोड़ा श्रम करना चाहिए और उम्मीदवार की पूरी जानकारी मतदाता के पास होनी चाहिए।
उम्मीदवार सांप्रदायिक व जातिवादी मानसिकता का न हो: भारत किसी एक जाति, धर्म, सम्प्रदाय का देश नहीं है। यहाँ पर सभी धर्मों व संप्रदायों के लोग सदियों से रहते आए हैं इसलिए यहाँ पर किसी एक धर्म या जाति का वर्चस्व नहीं हो सकता और न ही देश को एक धर्म के आधार पर चिन्हित किया जा सकता है। इस देश में सदियों से विभिन्न वर्णों, विभिन्न धर्मों और 6743 जातियों में बंटा हुआ समाज रहा है। इन सब धर्मों, जातियों, वर्णों व संप्रदायों से मिलकर ही भारत बनता हैं। भारत किसी खाली एक भूभाग का नाम नहीं है, इस भूभाग पर जो व्यक्ति रह रहे हैं उन सभी से मिलकर यह देश बना है। इसलिए यह देश उन सभी का है जो यहाँ पर रह रहे हैं। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने संविधान निर्माण के वक्त इन सभी बातों को ध्यान में रखकर संविधान में इसी आधार पर सभी को समान अधिकार दिये, सभी को ‘एक वोट उसका एक मूल्य’ का प्रावधान दिया और उन्होंने देश में रह रहे सभी लोगों से आव्हान भी किया कि यह देश हम सबका है, किसी धर्म, जाति विशेष का नहीं है इसलिए संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग...’ शब्दों से शुरू होती है।
नेता संघी-मनुवादी न हो: मनुवादी-संघी विचारधारा के लोग इस देश में अतीत से हैं। मनुवादी-संघियों की विचारधारा विषमतावादी है, जो भारत के समाज को चार वर्णों 6743 जातियों में विभक्त करती है। जिसके कारण पूरा समाज जातीय टुकड़ों में विभक्त है। समाज में न एकता है, न भाईचारा है। संक्षेप में कह सकते हैं कि संघी-मनुवादी विचारधारा सामाजिक एकता व भाईचारे की सबसे बड़ी दुश्मन है। जिसके कारण समाज न समृद्ध हो पा रहा है और न सशक्त बन पा रहा है।
नेता में जनसेवा की भावना हो: चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार अच्छी सोच-समझ, तार्किक बुद्धि का धनी होना चाहिए। मनुष्य का विकास उसके बुद्धि बल से जुड़ा है जो सामने से दिखता नहीं है। उसे जनता को समझना और उसका ठीक से आंकलन भी करना होता है। इसलिए उम्मीदवार अच्छी बौद्धिक क्षमता वाला हो, जिसका आंकलन जनता उसके आम जीवन के कार्यकलापों से लगा सकती है। फिर भी अगर जनता सही निष्कर्ष पर पहुँचने में विफल हो तो समाज के वरिष्ठ नागरिकों से विचार-विमर्श करके सही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है और सामूहिक रूप से फैसला करके जो भी प्रत्याशी तय हो उसे उसकी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के भेद के बिना अपना वोट देना चाहिए।
नेता को महापुरुषों के संघर्ष का ज्ञान हो: समाज में अनगिनत तथाकथित महापुरुष हंै। लेकिन ये तथाकथित महापुरुष वास्तविकता के आधार पर महापुरुष कहलाने योग्य हैं या नहीं इसका भी वास्तविक ज्ञान जनता को होना चाहिए। बहुजन समाज के लिए वे सभी महापुरुष कहलाने योग्य हैं जिन्होंने मानवतावाद, समतावाद के लिए विपरित सामाजिक हालातों में काम किया और निस्वार्थ भाव से समाज को सुधारने के प्रयास किये हों और समाज को उसका लाभ भी मिला हो।
नेता समाज से जुड़ा होना चाहिए : समाज में जातीय संगठनों की बाढ़ सी आई हुई है चूंकि देश में ब्राह्मणी संस्कृति के कारण जातिवाद है। जातिवादी मानसिकता भारत की विशिष्ट पहचान है। यहाँ हरेक व्यक्ति अपनी जाति पर गर्व करता है और यही जातिवादी श्रेष्ठता एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग करती है। देश में ब्राह्मणी संस्कृति के कारण क्रमिक ऊँच-नीच है। मनुवादी मानसिकता के लोग इसी का फायदा उठाकर समाज को जातीय टुकड़ों में बाँटकर रखना सही मानते हैं। चूंकि ब्राह्मणी मानसिकता के लोग जनसंख्या के आधार पर 8-10 प्रतिशत होंगे लेकिन सत्ता बल के लिए बहुसंख्यक होना आवश्यक है। इसे प्राप्त करने के लिए मनुवादी-ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों ने समाज को 6743 जातीय टुकड़ों में विभक्त किया हुआ है। संघियों का दूसरा मंत्र है कि इन जातीय टुकड़ों के व्यक्तियों में ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक महत्वाकांक्षा पैदा करो। मनुवादी-संघी लोग समाज के विभक्तिकरण को अपनी सत्ता की चाबी मानते हैं। ये लोग क्षेत्र की कुछेक बहुसंख्यक जाति के लोगों में से एक से अधिक लोगों को उम्मीदवार बनाकर वहाँ के बहुसंख्यक लोगों का वोट कई व्यक्तियों में बांट देते हैं। जिसका फायदा उनमें से एक गुलाम मानसिकता के मनुवादी व्यक्ति को होता है। देश में मनुवादियों का यही खेल पिछले 75 साल से सभी स्तरों पर चल रहा है जिसे यहाँ की बहुजन जनता (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) समझने और इसका सटीक हल ढूँढने में असफल है।
नेता में सबको साथ लेकर चलने की क्षमता हो: देश में जातिवाद है जिसके कारण समाज जाति, धर्म, संप्रदायों में बंटा हुआ है। देश के मतदाता का वोट ऐसे प्रत्याशी को जाना चाहिए जिसकी मानसिकता में समाज का हर जातीय घटक समान हो और किसी के भी प्रति उसके दिमाग में पक्षपात का जहर न हो। संविधान के अनुसार चलने की मानसिकता हो।
नेता न्यायप्रिय हो: जनता को अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते समय उसके चरित्र का आंकलन अवश्य करना चाहिए। चरित्र में बहुत सारी चीजें आती हैं, जैसे- ईमानदारी, स्पष्टवादिता, सामाजिक ज्ञान और क्षेत्र के बारे में समझ। प्रत्याशी के चरित्र को समझने का कोई स्पष्ट व तय पैमाना नहीं है। चरित्र का आंकलन तो सिर्फ प्रत्याशी के साथ रहने वाले व्यक्ति ही कर सकते हैं। उनमें भी व्यक्तिगत प्रवृति का फर्क हो सकता है। कभी-कभी अच्छे व्यक्ति के बारे में भी कुछेक लोग नकारात्मक भाव रखते हैं। इसलिए कुछेक लोगों की सोच के आधार पर किसी भी व्यक्ति के बारे में धारणा नहीं बनानी चाहिए बल्कि अधिसंख्यक लोगों की राय को ही सही मानना चाहिए। प्रत्याशी में इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि वह जनता में किसी भी कृत्य को बहुसंख्यक सोच के आधार पर गलत या सही को दृढ़ता के साथ कह सके।
उम्मीदवार संविधान में विश्वास रखता हो: भारत में प्रजातांत्रिक संविधान सत्ता है। इसलिए ऐसे प्रत्याशी को ही अपना वोट देने का मन बनाएँ जो प्रजातन्त्र, संविधान में अटूट विश्वास और श्रद्धा रखता हो। ढोंगी व पाखंडी प्रवृति के प्रत्याशियों को अपना वोट न दें। यहाँ पर सवाल उठता है कि ढोंगी और पाखंडी प्रत्याशी कौन हो सकता है? समाज में हर व्यक्ति अपने आपको ईमानदार, न्यायिक और बुद्धिमान समझता है तो फिर आम जनता इसका फैसला कैसे करे? आम जनता को इस विषय पर फैसला करने के लिए प्रत्याशी की पृष्ठभूमि को देखना और समझना चाहिए। अगर ऐसे प्रत्याशी की पृष्ठभूमि मनुवादी और संघी है तो वह व्यक्ति देश की विविधतावादी सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए चुनाव के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता। इसलिए ऐसे प्रत्याशी को न अपना वोट दें और न समर्थन करें।
नेता महिलाओं का सम्मान करने वाला हो: देश में हजारों साल से मनु विधान के कारण महिलाओं का सम्मान कमजोर रहा है। देश में पुरुषवादी सत्ता है, महिलाओं को पुरुषों से कम समझता जाता है। हिंदुत्व में महिलाओं का स्थान सम्मानजनक कभी नहीं रहा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि किसी भी कालखंड में ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों ने महिलाओं को सम्मान के काबिल नहीं समझा, उन्हें हमेशा भोग की वस्तु ही समझा। हिंदुत्व के तथाकथित संत व महापुरुषों ने तो महिलाओं को नरक का द्वार और ताड़ना का अधिकारी बताया है। ऐसी विचारधारा रखने वाले लोगों को आप अपना वोट न दें। ऐसी विचारधारा वाले लोग समानता और संविधान के विरोधी है। संविधान हम सबको समता और न्याय में विश्वास करना सिखाता है। हमें उसी का पालन करना चाहिए।
नेता में समता, स्वतंत्रता व न्याय की भावना हो: चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी सिर्फ कहने मात्र के लिए समता, स्वतंत्रता व न्याय का समर्थक नहीं होना चाहिए बल्कि यह सब उसके दैनिक जीवन में जनता को साफ नजर आना चाहिए। अगर जनता को ये सब तत्व उनके आम जीवन के आचरण में नजर आते हैं तो ऐसे प्रत्याशी को चुनाव में जिताना चाहिए।
बहुजन अपने दुश्मनों को पहचानें और उनहें वोट न दें: बहुजन समाज के हर नागरिक में अपने दोस्त और दुश्मनों को पहचाने का ज्ञान होना चाहिए। बहुजन समाज के लिए मनुवादी हिंदुत्व की विचारधारा वाले व्यक्ति दोस्त नहीं हो सकते बल्कि वे बहुजन समाज के दुश्मन है। अतीत के इतिहास से पता चलता है कि इसी मानसिकता के लोगों ने देश के मूलनिवासियों की छल-कपट से हत्या करके उनके राज्य हड़पे थे। अब अगर आप सबल है तो अपने पूर्वजों की हत्या का बदला ले सकते हैं। देश की वर्तमान सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए बहुजन समाज की अछूत जातियों को मुस्लिम समाज से मजबूत आत्मीय गठबंधन करना चाहिए। चुनाव में दोनों समुदायों को सूझ-बूझ के साथ तालमेल करके ब्राह्मणवादी-मनुवादियों को हराना चाहिए।
देश की जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए सही अध्ययन व आंकलन करने की जरूरत होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के लालच जैसे पाँच किलों अनाज, 500-1000 रुपए, पव्वा-बोतल पर अपना वोट देकर अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से नहीं खेलना चाहिए। आने वाली पीढ़ी के भविष्य को ध्यान में रखकर मनुवादी-संघियों को अपना वोट किसी भी कीमत पर नहीं देना चाहिए।
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