2023-12-16 11:34:00
विपक्ष के इंडिया गठबंधन में 28 विभिन्न पार्टियों का गठजोड़ हैं लेकिन चुनाव परिणामों ने यह स्पष्ट करके बता दिया है कि विपक्षी पार्टियों के गठबंधन में ब्राह्मणवाद (मनुवाद) अवर्णित रूप में हावी रहा। गठबंधन आबाध्य नहीं दिखा। चूंकि चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान गठबंधन में शामिल पार्टियाँ अपनी-अपनी पार्टी को अलग-अलग लेकर चल रही थी। इन पार्टियों का गठबंधन सिर्फ हवा में ही था। गठबंधन के कुछेक दल गठबंधन के साथी दल को वोट न देने की अपील जनता से करते देखे गए थे। जनता ने गठबंधन में शामिल दलों के इस तरह के व्यवहार को देखकर अनमने मन से वोट दिया होगा जिसके कारण गठबंधन का प्रत्याशी चुनाव में हारा। चुनाव के परिणामों से यह साफ नजर आ रहा है कि भाजपा के प्रत्याशी को जितने प्रतिशत वोट मिले हैं अगर मुख्य विपक्षी दलों को मिले वोटों के साथ जोड़कर देखा जाये तो उसका कुल वोट भाजपा को मिलने वाले वोटों से ज्यादा होता है। राजस्थान में बीजेपी को 41.69 प्रतिशत वोट मिला और वह 115 सीटें जीतकर सत्ता की कुर्सी पर आसीन होने में कामयाब रही इसके विपरीत कांग्रेस पार्टी को 39.53 प्रतिशत वोट मिला और उसने राजस्थान की 69 सीटें जीती और राजस्थान से कांग्रेस की सत्ता गवा दी। चुनाव परिणामों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि राजस्थान में बीएसपी ने 1.82 प्रतिशत वोट पाया, सीपीआई (एम) ने 0.96 प्रतिशत वोट पाया और वहीं आरएलटीपी को 2.39 प्रतिशत वोट मिला। अगर इन तीनों पार्टियों को 5.17 प्रतिशत वोट मिला जो कांग्रेस को मिले मत प्रतिशत के साथ मिलाया जाये तो उसका योग 44.70 प्रतिशत हो जाता है। जिसके बाद कांग्रेस और इन तीनों पार्टियों के गठबंधन के विधायकों की संख्या राजस्थान की विधान सभा में 150 सीटों से अधिक हो सकती थी। जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनती। ऐसे ही परिणाम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधान सभाओं के हैं जिन्हें देखकर स्पष्ट हो जाता है कि इंडिया गठबंधन में शामिल राजनैतिक दलों की मानसिकता में स्वार्थ और ब्राह्मणवाद अधिक हावी था। गठबंधन में सभी दल एक होकर (२ीीे’ी२२ ेङ्मीि) चुनाव नहीं लड़ रहे थे। वे सभी अलग-अलग होकर अपने-अपने लिए चुनाव लड़ रहे थे। ऐसा करने से गठबंधन का कोई मतलब नहीं रह जाता, गठबंधन का फल तभी दिखेगा और मिलेगा जब सभी दल एक होने की भावना के तहत चुनाव लड़े। गठबंधन में शामिल सपा नेता अखिलेश यादव जनता में जाकर कांग्रेस को वोट न देने की अपील भी करते देखे गए थे। प्रदेशों की जनता ने विपक्ष को चुनाव में नहीं हराया है बल्कि जनता द्वारा दिये गए मत प्रतिशत को देखकर लगता है कि जनता भाजपा-संघी उम्मीदवारों को मन से हरा रही थी परंतु विपक्ष अपने अंतर्द्वंद और अदूरदृष्टि की सोच में कमी के कारण राजस्थान में हारी। जनता को विपक्ष की विफलता के कारण राजस्थान में भाजपा-संघी सरकार का मुंह देखना पड़ रहा है। चुनाव परिणामों को देखकर लगता है कि जनता भाजपा और संघी उम्मीदवारों के पक्ष में नहीं थी। वे किसी भी हालत में उनको रोकना चाहते थे परंतु इंडिया गठबंधन के राजनैतिक दलों में मनुवादी मानसिकता की प्रबलता और ईवीएम की धांधली के कारण विपक्ष हारा।
इंडिया गठबंधन को मोदी-संघियों से सीख लेनी चाहिए: मोदी के संघी गठबंधन में 38 राजनैतिक दल है। इन राजनैतिक दलों में दर्जन भर राजनैतिक दल ऐसे हैं जिनके पास न विधान सभा में और न संसद में प्रतिनिधित्व हैं। अगर किसी राजनैतिक दल का प्रदेशों की विधान सभाओं में एक या दो विधायक हैं तब भी मोदी ने देश में अपनी मनोवैज्ञानिक बढ़त और विस्तार को दिखाने के लिए इन दलों को एनडीए गठबंधन में शामिल किया हुआ है। नंबर के हिसाब से इन राजनैतिक दलों का कोई महत्व नहीं है। परंतु जनता को दिखाने के लिए इनका मनोवैज्ञानिक महत्व है और इन छोटे राजनैतिक दलों के लोगों को भी मंत्री आदि बनाकर महत्व दिया गया है। उदाहरण के लिए रामदास अठावले, अनुप्रिया पटेल व कई अन्य अमहत्वपूर्ण राजनैतिक दलों को अपने गठबंधन में शामिल करके और उनके साथ जुड़े जातीय मतों को अपने पाले में खींचने का काम किया है। सभी बुद्धिजीवियों को पता है कि मनुवादी व्यवस्था में इस देश की जनता को कई हजार जातीय टुकड़ों में बाँटकर उनको राजनैतिक रूप में अशक्त बनाया हुआ है। इन सभी छोटे राजनैतिक दलों से जुड़े जातीय समूहों का एक या आधा प्रतिशत वोट है। मगर जब ऐसे 5-7 जातीय समूहों का वोट प्रतिशत मिलकर 5-7 प्रतिशत हो जाता है तब यह वोट प्रतिशत हार को जीत में बदलने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इन पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव में मोदी-संघ ने इसी रणनीति को अपनाकर जीत हासिल की है और अगर कुछ कसर रहती दिखती तो उसे उन्होंने अपने वंशागत छल-बल और ईवीएम व अदृश्य वोटों के द्वारा हासिल किया और हार को जीत में बदला। याद रखो मनुवादी ब्राह्मण समय और मतलब पड़ने पर गधे को भी बाप बना लेता है। उन्हें सत्ता में हर हालत में आना है चूंकि उन्होंने जो सत्ता के दौरान असंवैधानिक काम किये है। सत्ता जाने पर उनमें जेल जाने का डर बहुत है। वर्तमान समय में ईवीएम द्वारा चुनाव कराना जनता के मतों के साथ एक बड़ा धोखा है और इस प्रक्रिया को कई चिंतक और बुद्धिजीवी लोगों ने जाहिर भी किया है। देश की सक्षम अदालतों में ईवीएम से चुनाव न कराने के लिए याचिकाएं भी पेंडिग है। परंतु न जाने ये सक्षम अदालतें ईवीएम से हुई धांधली में फैसला लेने में क्यों विलंब कर रही हैं? शायद विलंब में भी ब्राह्मणवादी मनुवादी मानसिकता छिपी है। आज दुनिया भर के देश जो उन्नत तकनीक के क्षेत्र में विशिष्टता रखते हैं उन देशों में भी ईवीएम से चुनाव नहीं हो रहे हैं, वहाँ पर चुनाव मत पत्रों के द्वारा ही कराए जा रहे हैं। परंतु भारत में तकनीकी विशेषज्ञता और उत्कृष्टता की कमी के बावजूद भी ब्राह्मणवादी मानसिकता की सरकारें ईवीएम से चुनाव कराने के पक्ष में हैं। जिसके कारण देश की जनता का इस चुनाव व्यवस्था से भरोसा उठ रहा है। प्रजातंत्र में जनता का भरोसा और विश्वास ही महत्वपूर्ण होता है। अगर जनता का विश्वास और भरोसा इन सरकारी व्यवस्थाओं से उठेगा तो जनता किसी भी दिन ऐसी व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने के लिए सड़कों पर आने के लिए मजबूर हो जायेगी।
मोदी उगा रहे देश में ब्राह्मणवाद: मोदी छलावे के तहत देश की जनता को बता रहे हैं कि मैं पिछड़ी जाति का हूँ। लेकिन मोदी का अपने आपको पिछड़ी जाति का बनाने में मोदी के षड्यंत्र का ही हाथ है। मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने अपनी जाति (घांची) को पिछड़ी जाति की सूची में शामिल कराया और तब से वे अपने आपको देश की जनता को धोखा देने के लिए पिछड़ा बता रहे हैं। जो संघियों की षडयंत्र कारी रणनीति का एक हिस्सा है। उनको पता है कि देश में पिछड़ों की आबादी 65 प्रतिशत से अधिक है। जिनके वोट के बिना आज कोई भी व्यक्ति ग्राम प्रधान का भी चुनाव नहीं जीत सकता। उसका मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनना तो असंभव है। सामाजिक व्यवसाय के आधार पर मोदी की जाति बनिया-तेली में गिनी जाती है जो व्यवसाय के कारण धनाढ्य व सवर्ण समाज की ही हिस्सा है। मोदी की मानसिकता में अंतर्निहित मनुवादी छलावे और उनके षड्यंत्रकारी चालों को भांपकर संघी कर्णधारों ने देश में ब्राह्मणवाद को उगाने के लिए मोदी को संपूर्ण समर्थन दिया और गुजरात में मनुवाद की भावना को उगाने के लिए उपयुक्त पाया। गुजरात में मोदी द्वारा किये गए मनुवादी व ब्राह्मणी षड्यंत्रों की पाठशालाओं को देखते हुए संघियों ने मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए बड़े-बड़े झूठ, प्रपंचों व षड्यंत्रों का सहारा लिया और मोदी को केंद्र की सत्ता में स्थापित करने के लिए अपने वरिष्ठ संघी साथियों की बलि भी दी गई। देश में संघियों ने अपने जाने-माने चरित्र के अनुसार षड्यंत्रकारी छलावों का मंचन करने वाले मनुवादी नाटककारों को देश की जमीन पर उतारा, देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का आव्हान किया। तथा देश भर में कांग्रेस की सरकारों द्वारा कृत्रिम घोटालों व भ्रष्टाचारों की रचना करके अपने मनुवादी नाटकों का मंचन भी किया। जिसके परिणामस्वरूप देश की भोली-भाली जनता को ठगकर मोदी को सत्ता सौंपी गई। तभी से मोदी सत्ता का सहारा लेकर देश में ब्राह्मणवाद को मजबूत करके उगा रहे हैं।
अम्बेडकरवाद ही दिला सकता है ब्राह्मणवाद से मुक्ति: अम्बेडकरवाद सशक्त होकर देश में फैल रहे मनुवादी जहर के लिए विषहर औषधि है। मनुवादी जहर जनता में विषमता के रूप में फैलाया जाता है। जातिवाद की भावना को मजबूत किया जाता है। मनुवादी तथाकथित धर्मग्रंथों में मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद-भाव, उंच-नीच, छोटे-बड़े के होने के भाव को परोसा जाता है। समाज में ऊंच-नीच की भावना को मजबूती से फैलाया जाता है। मनुवाद में समता का भाव नहीं है और न उनमें समता का कोई स्थान है। सामाजिक विषमता, जातिवादी मानसिकता, ऊंच-नीच के तहत आपस में वैमनष्यता को बढ़ाया जाता है। मनुवाद समता और वैज्ञानिकता, तर्कवाद को नहीं मानता है। वह तो सिर्फ समाज के बीच विषमता और ऊंच-नीच का प्रबल समर्थक है। मनुवाद में काल्पनिक देवी-देवताओं, भगवानों, अगला-पिछला जन्म जनता में परोसकर उनको छला जाता है। जबकि अम्बेडकरवाद सभी को समान मानता है, समता, स्वतंत्रता, न्याय, तर्कवाद, समाज में आपसी भाईचारा उसके मूल डीएनए का अहम हिस्सा है। अम्बेडकरवाद न किसी को छोटा मानता है न किसी को बड़ा मानता है उसमें न जातिवाद है और न जातिवाद की भावना है। अम्बेडकरवाद में पाखंडवाद और अगले-पिछले जन्म के कर्मों के फलों का कोई स्थान नहीं है। वह पूर्णतया वैज्ञानिक और तर्कवाद पर टिका है। अम्बेडकरवाद में न कोई किसी के मुँह से पैदा होता है और न भुजाओं व उदर व पैरों से पैदा होता है। पैदा होना व मरना अम्बेडकरवाद में सभी के लिए समान और प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है। शिक्षा के द्वारा सभी के लिए समान रूप से खुले है सभी को समान रूप से आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होते हैं, आंबेडकरवाद में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ नहीं माना जाता है वहाँ पर व्यक्ति की श्रेष्ठता उसके व्यक्तिगत गुणों पर आधारित होती है जाति के आधार पर नहीं।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर मनुष्य जगत के विकास के लिए आंबेडकरवाद ही श्रेष्ठ है। उसे अपनाकर और उसके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर ही मनुष्य अपने जीवन में अपनी बुद्धि बल और श्रम के आधार पर उत्कृष्ट श्रेणी प्राप्त कर सकता है। मनुष्य का संपूर्ण विकास उसके आचरण व सश्रम शिक्षा से ही संभव है। इसलिए बहुजन समाज के सभी मनुष्यों को अम्बेडकरवाद अपनाकर और अम्बेडकरवाद के रास्ते पर चलकर श्रेष्ठ बनकर समाज उपयोगी रहना चाहिए।
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