2022-11-11 12:18:32
बहुजन का तात्पर्य एससी+ एसटी+ ओबीसी+ अल्पसंख्यक = 85 प्रतिशत देश की जनसंख्या से है। जिसके पास देश की एक प्रतिशत भी धन संपदा नहीं है। केजरीवाल ने कहा था कि हम यहाँ सत्ता हथियाने नहीं आये है बल्कि शासन को वापस जनता के हाथों में देने आये है। केजरीवाल जी आप कौन होते है शासन को वापस जनता के हाथों में देने वाले। जनता ने दिल्ली की शासन व्यवस्था बड़ी उम्मीद के साथ आपके हाथों में सौंपी थी। परंतु आप जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाये हैं। इसलिए जनता आपको सत्ता से उतारना चाहती है और दिल्ली को केजरीवाल मुक्त करना चाहती है। दिल्ली की जनता ने आपका बहरूपिया स्वांग देख लिया है, इस नौटंकी में केजरीवाल ने मोदी की तरह जनता को छलावे व झूठ ही परोसे हंै। ईमानदार होने का सबसे ज्यादा ढोंग और ढ़ोल मोदी और केजरीवाल पीटते है जो उनकी बेईमानी का ही सबूत है। चूंकि कोई भी ईमानदार व्यक्ति अपने आपको दिन-रात ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं देता। ऐसा महाबेईमान प्रवृति के लोग ही करते है। केजरीवाल जी ने अपने घोटालें के सहवासियों को मलाईदार मंत्रालयों के 22 या 12 विभाग देकर जनता को यह बता दिया है कि अवैध धंधे तो सरकार में खूब चलेंगे, भ्रष्टाचार भी होगा लेकिन जनता को इसका पता नहीं लग पाएगा। चूंकि भ्रष्टाचार मंत्रालयों से शुरू होकर मुझ तक ही आएगा। उसका रास्ता अपारदर्शी है, सब ढूँढते रह जाएगे।
केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना वर्ष 2012 में की। 2013 में केजरीवाल ने दिल्ली की 70 विधान सभा सीटों में से 28 सीटें जीती और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनायी। परंतु केजरीवाल की सरकार अपने प्रपंचों के चलते सिर्फ 49 दिन ही टिक पायी। मुख्यमंत्री बनने के बाद का पहला ड्रामा था सिक्योरटी वापस करना। यह ड्रामा जनता में चमकने और बने रहने के लिए था। लोकपाल बिल भी केजरीवाल का जनता को छलने के लिए बड़ा मुद्दा था। 2015 में फिर से दिल्ली विधान सभा चुनाव हुए, जिसमें 70 में से 67 सीटों पर केजरीवाल को सफलता मिली और वे दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इतनी भारी जीत का कारण ‘बहुजन समाज’ का वोट था। दरअसल बहुजन समाज ने केजरीवाल को समझने में बड़ा धोखा खाया। बहुजन समाज का एक बड़ा व मजबूत घटक, केजरीवाल को वाल्मिकी समुदाय का हिस्सा समझकर तथा झाड़ू चुनाव चिन्ह को लेकर बुरी तरह से ठगा गया। तदउपरांत लोगों को पता चला कि केजरीवाल वाल्मिकी समाज न होकर कट्टर सवर्ण समाज (15 प्रतिशत) से है जो बहुजन समाज के संवैधानिक अधिकारों का घोर विरोधी है।
बहुजन समाज विरोधी काम: केजरीवाल संघी मानसिकता के कारण आरक्षण के घोर विरोधी है। 1992-93 में केजरीवाल ने षड्यंत्रकारी अफवाह फैलाई थी कि आरक्षण से दलित, आदिवासी और ओबीसी के लोग भारतीय चिकित्सा सेवा में आ जाते हैं वे इलाज नही कर पाते, रोगियों को मार देते हैं, आॅपरेशन करते हैं तो बैंडेज, रुई, पट्टी, कैंची, धागा आदि मरीज के पेट मे छोड़ देते हैं। देश में सभी ने अपनी आँखों से देखा कि कोरोना महामारी में सरकारी अस्पतालों में मरीज निजी अस्पतालों की अपेक्षा कम मरे, निजी अस्पतालों में बनियों के बच्चे डोनेशन के द्वारा डॉक्टर बनकर जनता को लूट रहे हैं और ज्यादा संख्या में मार भी रहे हैं। केजरीवाल की इस अफवाह के खिलाफ कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति स्मृतिशेष प्रो. रामनाथ जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘किसने, किसका, कितना हक मारा?’ केजरीवाल के आरोपों का तथ्यों के साथ खण्डन किया। रुई, पट्टी, बैंडेज, मरीज के पेट मे आरक्षण वाले नहीं बल्कि लाखों ंंंंरुपये डोनेशन देकर बने सवर्ण डॉक्टर छोड़ते हैं।
जेएनयू दिल्ली के ताप्ती होस्टल में 2 अगस्त 2008 को केजरीवाल ने आरक्षण के खिलाफ मोर्चा खोलने की योजना बनाई। यह कार्यक्रम ‘यूथ फॉर इक्वलिटी फोरम संगठन’ द्वारा आयोजित किया गया था। इस संगठन का गठन 2006 में आरक्षण का विरोध करने के लिए किया गया था चूंकि केजरीवाल छिपा हुआ संघी साँप है। लोग माहौल बनाने के लिए ट्विटर पर ट्वीट करके प्रश्न पूछते हैं। उसमें सबसे ज्यादा जवाब वही देते हैं जो उससे जुड़े होते हैं। केजरीवाल ने 17 दिसंबर 2012 को ट्वीट करके पूंछा था कि ‘क्या सरकारी नौकरियों की प्रोन्नति में भी दलितों, पिछडों को आरक्षण होना चाहिए?’ जवाब में सभी ने कहा नहीं होना चाहिए क्योंकि सारे फॉलोवर सवर्ण बनिये ही थे।
अप्रैल 2014 में इंडिया टूडे को दिए साक्षात्कार में केजरीवाल ने कहा था कि आरक्षण सिर्फ एक पीढ़ी को मिलना चाहिए। इसका विरोध यादव शक्ति पत्रिका के संपादक चंद्रभूषण यादव जी ने इस तर्क के साथ किया था कि केजरीवाल चाहता है कि बहुजन समाज के लोग केवल एक पीढ़ी तक आरक्षण पाएं ताकि वे केवल चपरासी और सफाईकर्मी ही बने रहें।
केजरीवाल को दिल्ली में अब दलितों, पिछड़ो और अल्पसंख्यकों का भी वोट चाहिए इसलिए आरक्षण का विरोध बोलकर नही करता लेकिन सरकारी नौकरियों की भर्ती भी नहीं निकालता! सब कुछ निजी ठेकेदारों को दे रहा है, ताकि आरक्षण न देना पड़े। अधिकतर ठेकेदार बनिये है और काम उन्हें ही दिया जा रहा है।
केजरीवाल का संघी खेल: दिल्ली में बसपा तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, 16 प्रतिशत तक वोट प्राप्त किए! 7-8 विधायक भी चुने गये। दिल्ली में 270 गांव जाट बाहुल्य हैं और 70 गांव गुर्जर बाहुल्य हैं। ऐसी संभावना हो सकती है कि यदि राष्ट्रीय लोकदल जाट-गुर्जर समाज को जोड़ ले और ये लोग उत्तर प्रदेश की तर्ज पर चुनाव लड़ें तो भविष्य में दिल्ली हमेशा के लिए मनुवादियों के हाँथो से निकल सकती है।
आरएसएस के अनुषांगिक संगठन ‘विवेकानंद फाउंडेशन’का गठन केजरीवाल के लिए किया गया था। इस संगठन का एक सदस्य अजमेर बम ब्लास्ट का आरोपी भी है। केजरीवाल की बीमार सोच बहुजन समाज को मेरिट में कम आँकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी दिल्ली से अलीपुर के आठवीं पास गूगन सिंह को उतारा और देश में ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों को यह संदेश दिया कि आरक्षित जातियों में ठीक-ठाक पढ़े-लिखे लोग नहीं है।
केजरीवाल बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी का नाम दलित जनता में इतनी सिद्दत के साथ लेकर दिखाते है कि बहुजन समाज के सभी घटकों के मानक फीके पड़ते दिखते हैं। दिल्ली का बहुजन समाज इसी भ्रमजाल के नाटक में फँसकर केजरीवाल को दिल्ली की सत्ता सौंप चुका है। साथ ही फ्री का राशन, बिजली, पानी ने दिल्ली की जनता की सोच को कुंद कर दिया है। वह अच्छे-बुरे का आंकलन करने में विफल हो रही है। दिल्ली के संघी बनिया इसी सोच को अधिक भाव दे रहे हैं।
केजरीवाल और संघ का अदृश्य लक्ष्य है कि बहुजन समाज के अम्बेडकरवादी मिशन को कमजोर किया जाये। संघी संस्थान इस लक्ष्य को कारगर रूप से जनता में परोसने के लिए केजरीवाल जैसे अपने प्यादों का इस्तेमाल कर ‘आप’पार्टी से चुनकर आये आरक्षित विधायकों का इस्तेमाल कर रहे है। आरक्षित विधायक बिना सोचे-समझे बहुजन समाज के अम्बेडकरवादी प्रत्याशियों को केजरीवाल के आदेश पर हराने का प्रचार कर रहे हैं। ऐसे अम्बेडकरवादियों में केजरीवाल के पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम व चौ. सुरेन्द्र कुमार जी ने यूपी चुनाव के दौरान यही मुख्य भूमिका अदा की थी। ऐसे राजनैतिक दलालों का इस्तेमाल करके ही प्रदेशों में भाजपा की सरकारें बनाने का धंधा चल रहा है। मोदी इसी संघी खेल से प्रजातांत्रिक सरकारों को पदस्त करके भाजपा की डबल इंजन की सरकारें बनाने का काम कर रहे हंै।
केजरीवाल की जातिवादी मानसिकता: दिल्ली की कुर्सी पर बैठकर केजरीवाल ने सबसे पहले ऐलान किया था कि वैश्य (बनिया) बहुत मेहनत और ईमानदारी से काम करता है और उसे उसका उतना लाभ नहीं मिलता। इसी दलील के साथ केजरीवाल ने दिल्ली में वैश्यों को अधिक लाभ पहुँचने के मकसद से वेट कम कर दिया था। केजरीवाल को 83 प्रतिशत वोट अल्पसंख्यकों का और 73 प्रतिशत वोट दलितों का मिला। परंतु जब चुनाव के बाद राज्यसभा में दिल्ली से तीन सांसद नामित किये गए थे तो केजरीवाल को दलित, मुस्लिम याद नहीं आये। राज्य सभा में भेजे गए संजय सिंह (ठाकुर), सुशील गुप्ता (बनिया) व नारायण दास गुप्ता (बनिया)।
बहुजन जनता को उल्लू बनाने के लिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को अपना आदर्श बताता है, जो एक कोरा धोखा है। बहुजन समाज को केजरीवाल के ऐसे धोखों से सावधान रहना होगा। ऐसे झूठे और दिखावटी प्रपंचों के आधार पर केजरीवाल पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब हो गया क्योंकि वहाँ पर दलितों की संख्या 33 प्रतिशत है जिन्होंने केजरीवाल को पंजाब की कुर्सी दी परंतु वहाँ पर भी जब पंजाब से राज्य सभा में पाँच सांसद नामित किये गए तो केजरीवाल दलितों और अल्पसंख्यकों को जान-बूझकर भूल गए, एक भी दलित न दिल्ली से और न पंजाब से राज्यसभा में भेजा; ये सभी तथ्य केजरीवाल की जातिवादी मानसिकता और उसके अंदर छिपी दलितों के प्रति घृणा हैं।
केजरीवाल आठ वर्षों से सत्ता में: केंद्र सरकार के बजट में एससी, एसटी कंपोनेंट प्लान में हर वर्ष अलग से प्रावधान किया जाता है। कंपोनेंट प्लान में अलग से धन राशि आबंटित की जाती है और इस तरह आबंटित बजट धन राशि किस मद में खर्च की गयी, उसका भी ब्यौरा देना होता है। मगर केजरीवाल आठ वर्षों से दिल्ली की सत्ता में है परंतु वे एससी, एसटी कंपोनेंट प्लान का हिसाब बहुजन जनता को नहीं दे रहे हंै ंंऔर उस धन राशि को सवर्णों के विकास कार्यकर्मों में खर्च कर रहे हैं। यह सीधा बहुजन समाज के हकों का हनन है।
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने समाज में व्याप्त हीरो बनने की प्रवृति के प्रति जनता को आगाह किया था कि हीरो वरशिप मत करो, लेकिन हमारे नेता अपने महापुरुषों की सीख से सावधान न होकर व्यक्तिगत स्वार्थ, त्याग की कमत्तरता व बुद्धिहीनता के कारण मनुवादी जाल में फँसकर समाज के लिए कुबार्नी व त्याग का स्वांग करते हैं। ऐसा ही स्वांग पूर्व मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने किया है। राजेन्द्र पाल गौतम इस प्रकरण में शुरू से अब तक केजरीवाल को निर्दोष साबित कर अपना नेता बताते रहे हैं जो उनकी महापुरुषों से ली गई शिक्षाओं पर सवाल खड़े करता है। जिस पार्टी को उन्होंने दोष मुक्त रखकर अपनी आहुति दी है न उसके सिरमोर केजरीवाल और न कोई विधायक या मंत्री समर्थन में न आया न बोला। केजरीवाल ने आजतक अपने सवर्ण समाज के भ्रष्ट व जेल में महीनों से बंद मंत्री को नहीं हटाया और दलित समाज से बने दो मंत्रियों की अभी तक बलि ले चुके है। बहुजनों जागों और केजरीवाल जैसे मनुवादियों को सत्ता में लाना बंद करो।
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