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केजरीवाल की मानसिकता व अनुवांशिकता बहुजन समाज विरोधी

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2023-07-01 07:51:37

वर्तमान परिदृश्य में राजनैतिक पार्टियों का गठबंधन आवश्यक दिखाई पड़ता है। लेकिन गठबंधन के पूर्व और पश्चात के संबंधित परिणामों पर भी ध्यान देना चाहिए। पटना में 23 जून को 18 राजनैतिक पार्टियों ने गठबंधन पर विचार-विमर्श किया और सभी राजनैतिक पार्टियाँ भाजपा के विरुद्ध एक मत दिखी, केजरीवाल को छोड़कर। गठबंधन की बैठक में केजरीवाल की मनोदशा मनुवादी दिखी। जिसका प्रमाण 29 जून को नवभारत में छपी एक खबर में देखने को मिला जिसमें ‘यूनिफोर्म सिविल कोड’ पर केजरीवाल मोदी व भाजपा के साथ खड़े दिखाई दिए। यह सिद्ध करता है कि केजरीवाल और मोदी दोनों की मानसिकता संघी है; दोनों हिंदू-मुस्लिम विरोधी है। आज देश का राजनैतिक वातावरण दो धाराओं का है। दक्षिणपंथी मनुवादी भाजपा और दूसरी ब्राह्मणपंथी पार्टियाँ। जो राजनैतिक दल भाजपा के विरुद्ध इकट्ठे हुए हैं उनमें से कुछेक दल मनुवादी भाजपा की सरकार में पहले मंत्री भी रह चुके हैं। जब वे वहाँ मंत्री थे तब उन्होंने हिंदुत्व का कभी विरोध नहीं किया, मनुवादी मलाई खाते रहे। राजनीति में अपना कद ऊँचा करने और लालच में मनुवादियों से अलग होकर प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी बन गए। जैसे-नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल इनमें प्रमुख है। इन राजनैतिक दलों के मस्तिष्क में यह क्यों नहीं आता कि अंसगत विचारधारा का गठबंधन टिकाऊ नहीं हो सकता? टिकाऊ गठबंधन के लिए नेताओं में समान विचारधारा की प्रबलता का होना आवश्यक तत्व है जो इनमें दिखाई नहीं पड़ता। संघियों ने अन्ना आंदोलन के सहारे केजरीवाल को दिल्ली में उतारा था। केजरीवाल का डीएनए मनुवादी संस्कृति से निर्मित है जिसका लक्ष्य दलित-मुस्लिम विरोधी है। विडंबना यह है कि केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में दलितों-मुस्लिमों को ही सबसे ज्यादा मूर्ख बनाया है। उसने इन्हें यह आभास ही नहीं होने दिया कि वह और उसकी मानसिकता दलित-मुस्लिम विरोधी है। मुस्लिम समुदाय के ऊपर 2020 में जब दिल्ली में भाजपा-संघियों ने साम्प्रदायिक दंगें प्रायोजित किये थे तब मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला और न मुस्लिमों की रक्षा के लिए कोई शांति मार्च निकाला था। केजरीवाल और उसके कैबिनेट मंत्री अशक्त मुद्रा में मुस्लिमों के व्यवसायिक स्थलों व घरों को जलते व लूटते देखते रहे। यह घटना दर्शाती है कि उनकी मानसिकता गहराई तक मनुवादी है।

2008 में केजरीवाल ने संघ की रणनीति के तहत तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाकर जनता को दिग्भ्रमित किया था। उसने कांग्रेस को भ्रष्टाचार की गंगोत्री बताया था परिणामस्वरूप कांग्रेस को दिल्ली में कुर्सी गवानी पड़ी थी। केजरीवाल महा मौकापरस्त, महाप्रपंचकारी, मीडिया की सुर्खियों में बने रहने के लिए झूठ-पाखंड की बुनियाद पर संघियों की तरह बवंडर खड़ा करके जनता को दिग्भ्रमित करने की महारथ रखते हैं।

आरक्षण विरोधी है केजरीवाल: संघी मानसिकता व संस्कृति में पले-बड़े केजरीवाल आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों के अगुवा रहे हैं। दिल्ली की ‘जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी’ और ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ के परिसरों में उन्होंने मुख्यमंत्री बनने से पहले आरक्षण विरोधी सभाएँ की थी। लोगों को यह संदेश दिया था कि ‘आरक्षण’ देश विरोधी है। ऐसे संघी छलावे युक्त व्यक्तित्व के केजरीवाल ने 2008 में संघी रणनीति के तहत बहुजन समाज की जनता को यह दर्शाने की कोशिश की थी कि केजरीवाल दलित हितैषी है। जबकि जनता को यह अच्छी तरह पता है कि गांधी कभी भी दलित हितैषी नहीं थे। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जब दलितों के मानवीय अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे तब गांधी पूरे दलित समुदाय के अधिकारों के विरुद्ध खड़े थे। गांधी का मत था कि ‘जाति हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है।’ जबकि बाबा साहेब का तर्क था कि ‘‘जाति व्यवस्था व हिंदू धर्म के तथाकथित धार्मिक ग्रंथों में शूद्रों के लिए की गई सामाजिक व्यवस्था अमानवीय, अवैज्ञानिक, अतर्किक व अति पीड़ादायक है।’’

केजरीवाल और गांधी में समानता: केजरीवाल और गांधी की मानसिकता को देखें तो पाते हैं कि ये दोनों जाति से बनिये; दोनों ही जाति समर्थक; दोनों ही हिंदू धर्म के पाखंड से परिपूर्ण; दोनों ही काल्पनिक देवी-देवताओं व भगवान में विश्वास करने वाले; दोनों ही अनशन की संस्कृति में निपुण; दोनों ही उच्च कोटि के प्रपंचकारी हैं। गांधी और केजरीवाल ने अपना तथाकथिक सामाजिक आंदोलन दलित बस्ती से शुरू किया था। गांधी ने मंदिर मार्ग (दिल्ली) की वाल्मीकि बस्ती में रहने का ड्रामा किया था और केजरीवाल ने सुंदर नगरी (दिल्ली) से अपना राजनैतिक मंच चलाने की शुरुआत की थी। सुंदर नगरी में रह रहे दलित व अति पिछड़े समाज की जनता को यह दिखाने की कोशिश की थी कि केजरीवाल भी आपके समाज का ही व्यक्ति है। इसी मानसिकता के तहत केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (आप) का गठन भी 2 अक्तूबर 2012 को नन्द नगरी में किया और उसका चुनाव चिन्ह भी ‘झाड़ू’ रखा। झाड़ू चुनाव चिन्ह होने से दलितों के महत्वपूर्ण घटक वाल्मीकियों ने समझा कि केजरीवाल भी ‘वाल्मीकि समुदाय’ से है। दलित, पिछड़े व मुस्लिमों ने उनके प्रपंचों में फँसकर समर्थन व वोट दिया। केजरीवाल के प्रपंचकारी नाटक में दलित और मुस्लिम दोनों फँसे। दलितों ने चुनाव में केजरीवाल को 73 प्रतिशत वहीं मुस्लिमों ने मुμत बिजली, पानी, राशन के लालच में 83 प्रतिशत वोट दिया। केजरीवाल दलित-मुस्लिमों से भारी वोट पाकर दिल्ली विधानसभा की 67 सीटों पर काबीज हुए। कुर्सी मिलने के बाद वह दलितों-मुस्लिमों को भूल गये और अपने बनिया (जातीय) भाइयों को ही राजनीति में आगे बढ़ाने का काम करने लगे।

घोर जातिवादी व्यक्ति केजरीवाल: अंधभक्तों को छोड़कर केजरीवाल की जातिवादी मानसिकता किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली के विधान सभा चुनाव के बाद जब दिल्ली से तीन राज्यसभा की सीटों के लिए नामांकन का वक्त आया तो केजरीवाल को एक राजपूत (संजय सिंह) ब्राह्मणपंथी और दो बनिया (सुशील गुप्ता, एन.डी. गुप्ता) याद रहे। जिन दलित-मुस्लिम समुदायों ने अपना अधिकतम वोट देकर दिल्ली की विधान सभा में प्रचंड बहुमत दिया केजरीवाल ने जान-बूझकर उनकी उपेक्षा की। पंजाब के विधान सभा चुनाव के बाद भी जब पाँच सदस्यों को राज्यसभा में नामित करने का समय आया तो केजरीवाल ने संघी मानसिकता के अनुरूप दलित व मुस्लिमों को याद नहीं किया। केजरीवाल के ये आचरण दर्शाते है कि केजरीवाल की मानसिकता दलित-मुस्लिम विरोधी है।

आरक्षित सीटों से जीतकर आये प्रतिनिधियों को आगामी चुनाव में हराओ: केजरीवाल मनुवादी नीति के तहत आरक्षित सीटों पर ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ाते हैं जो अम्बेडकरवाद के विरुद्ध हो; कम पढ़े-लिखे हो; हिंदुत्व की भावना से बीमार हो; ब्राह्मणपंथी पाखंड में विश्वास रखते हो; काल्पनिक देवी-देवताओं में आस्था और मान्यता हो; तर्कशक्ति व वैज्ञानिकता में विश्वास न हो; बाह्य दिखावे में राजेन्द्र पाल गौतम जैसे कमजोर व कम शिक्षित तथाकथित अम्बेडकरवादी हो। केजरीवाल का यह चुनावी चरित्र गांधी से पूर्णतया मेल खाता है। गांधी ने भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को उन्हीं के समुदाय (महार) के अनपढ़ व्यक्ति से 1952 में उनका कद छोटा दिखाने की नियत से हरवाया था। केजरीवाल ने भी 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा ही प्रदर्शन किया था। केजरीवाल ने दिल्ली की सुरक्षित सीट से बवाना के रहने वाले दलित समुदाय के आठवीं पास गुगन सिंह को लोकसभा चुनाव में उतारकर दलित समुदाय को अपमानित करने की नियत से यह संदेश देने की कोशिश की थी कि दलित समुदाय में उच्च स्तर के शिक्षित लोग हैं ही नहीं। केजरीवाल ने 2022 में यूपी विधान सभा चुनाव के दौरान अपने प्रचार के लिए दिल्ली की सुरक्षित सीटों से जीते हुए कुछेक व्यक्तियों को अपनी पार्टी के प्रचार के लिए यूपी भेजा था। जिनमें मुख्य भूमिका राजेन्द्र पाल गौतम और चौ. सुरेन्द्र कुमार की रही थी। केजरीवाल ने अपनी आरक्षित सीटों से जीते हुए व्यक्तियों को यह भी निर्देश दिया था कि उत्तर प्रदेश में जहाँ-जहाँ बहुजन समाज पार्टी को अधिक वोट मिलने की संभावना है वहाँ-वहाँ अधिक प्रचार करना है और बसपा को मिलने वाले वोटों की संख्या को कम करना है। ये सभी आरक्षित उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में केजरीवाल द्वारा दी गई सुपारी पर खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक प्रचार कर रहे थे। चूंकि चुनावी आँकड़ों को देखते हुए दलित-मुस्लिम समुदाय का अधिक वोट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा को ही मिलता रहा है।

केजरीवाल की मानसिकता और अनुवांशिकता भ्रष्ट: केजरीवाल ने अपने पिछले नौ साल के शासन काल में दिल्ली की जनता को यह नहीं बताया कि बजट में जो एससी/एसटी के मद में बजटीय राशि मिलती है वह कहाँ और कैसे खर्च की गई है? उसमें कोई पारदर्शिता नहीं है। संविधान व्यवस्था के तहत एससी/एसटी मद में दिया गया पैसा एससी/एसटी विकास योजनाओं के लिए ही खर्च होना चाहिए। परंतु केजरीवाल शुरू से ही इस संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन जान-बूझकर कर रहे हैं। विडंबना यह है कि आरक्षित सीटों से जीतकर आये प्रतिनिधियों ने भी इस अहम मुद्दें पर कभी सवाल नहीं किये हैं। क्या समाज को ऐसे चुने हुए प्रतिनिधि की जरूरत है? नहीं, बिल्कुल नहीं। आरक्षित सीटों से चुने हुए विधायक इस मुद्दें पर मौन क्यों हैं? सभी आरक्षित सीटों के विधायकों से उम्मीद की जाती है कि वे इस एससी/एसटी मद में मिले पैसे का पूर्ण ब्यौरा रखे। अगर वे ऐसा करने में विफल रहे तो उनको दोबारा उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर समाज द्वारा उनके विरुद्ध प्रचार करके हराया जाये। बहुजन स्वाभिमान संघ इस तरह की मनुवादी व्यवस्था का गंभीता से संज्ञान ले रहा है और वह प्रदेश और देश की आरक्षित सीटों पर ऐसी जागरूक व्यवस्था बनाने का प्रयास करेगा कि आरक्षित सीटों पर निकम्मे, नाकारा, अम्बेडकर विचारधारा विरोधी मानसिकता के लोग चुनाव न जीत पायें।

देश में आजादी के बाद जितने भी घोटाले जनता के संज्ञान में आये हैं उन सबमें कहीं न कहीं एक व्यापारी (बनिया) अवश्य शामिल रहा है। केजरीवाल सरकार में जो कामों के ठेके दिये जा रहे हैं वे अधिकतर व्यापारी समुदाय को ही दिये गए है। केजरीवाल का दिल्ली में शराब घोटाला, स्कूल की पुरानी बिल्डिंगों में नए कमरे जोड़ने का घोटाला, संविदा पर रखे जा रहे कर्मचारी व गेस्ट टीचर्स घोटाला, संविदा व ठेके पर रखे जा रहे कामगारों में आरक्षण का कोइ प्रावधान नहीं, ब्राह्मणपंथियों को सभी कार्यों में वरीयता। आर्य समाज प्रचारक बेधड़क महाशय जी अपने उद्बोधन में अक्सर कहा करते थे कि-भिखारी (ब्राह्मण) और व्यापारी (बनिया) कभी देशभक्त नहीं हो सकते! हालांकि सभी समुदाय में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। परंतु जिसमें अधिकता पायी जाती है वही गिनी जाती है और समाज के संज्ञान में भी वही आती है।

अब सोचना हिंदू-मुसलमान दोनों समुदाय को है कि वे ऐसी मानसिकता वाले केजरीवाल का समर्थन क्यों करें? बल्कि ऐसे व्यक्ति को सामूहिकता के साथ वोट न देकर हराने का संकल्प लें। दिल्ली में जनसांख्यिकी के आधार पर बहुजन समाज का मुख्यमंत्री होना चाहिए। केजरीवाल हटाओ

दिल्ली बचाओ

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05