Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

कांग्रेस का अतीत ब्राह्मणवादी और अम्बेडकरवाद विरोधी

News

2024-06-14 13:10:45

देश के तथाकथित स्वतंत्रता आंदोलन का अवलोकन करने से पता चलता है कि इस आंदोलन की बागडोर मनुवादी संस्कृति की मानसिकता वाले ब्राह्मणों के हाथों में थी। प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक, डॉ. मुंजे व उन जैसी मानसिकता के अन्य सैकड़ों ब्राह्मण नेता थे। डॉ. मुंजे व बाल गंगाधर तिलक मनुस्मृति के अनुसार आचरण करने के कट्टर समर्थक थे। बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के सर्वेसर्वा रहे थे और उनके काल में कांग्रेस से ब्राह्मणों का कोई मतभेद नहीं था। लेकिन बाल गंगाधर तिलक के बाद कांग्रेस की बागडोर 1924 में गांधी जी के पास गयी, गांधी ने कांग्रेस के संविधान में दो प्रावधान जोड़े, पहला ‘धर्मनिरपेक्षता’ और दूसरा ‘अहिंसा’। ये दोनों ही प्रावधान कट्टर मनुवादी मानसिकता के कांग्रेसी ब्राह्मणों को ठीक नहीं लग रहे थे। डॉ. मुंजे जैसे कट्टर ब्राह्मणवादी नेताओं ने इसी मुद्दे पर कांग्रेस को छोड़ दिया था। मुंजे स्वयं हिन्दू महासभा में चले गए और डॉ. बलीराम हेडगवार को डॉ. मुंजे ने इटली के तानाशाह मुसोलिनी का इतिहास समझाकर ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ की स्थापना कराई।

अम्बेडकर विरोधी कांग्रेस : कांग्रेस की मूल संस्कृति ब्राह्मणवादी थी इसलिए वे कांग्रेस के अंदर केवल ब्राह्मणों को ही आगे बढ़ाते थे। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का राजनीतिक सफर 1919 से शुरू होता है उन्होंने जितना अपमान इस देश में ब्राह्मणवाद के कारण झेला उतना अन्य किसी ने नहीं झेला होगा! कांग्रेस में उस समय जितने भी अग्रणीय नेता थे वे बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के लिए उचित मान-सम्मान की भावना नहीं रखते थे। यहाँ यह कहना भी उचित होगा कि केवल ब्राह्मण कांग्रेसी नेता ही विषैली मनुवादी मानसिकता से बीमार नहीं थे बल्कि पिछड़े वर्ग की जातियों से आने वाले अन्य कांग्रेसी नेता भी बाबा साहेब के प्रति जहर उगलते थे। जहर उगलने का कारण उनमें जातिवादी और मनुवादी मानसिकता थी। उदाहरण के तौर पर सरदार बल्लभ भाई पटेल जो गुजरात के पटेल समुदाय से कांग्रेसी नेता थे मनुस्मृति के वर्गीकरण के अनुसार वे शूद्र वर्ण में ही आते थे। परंतु जब 1942 के बाद संविधान निर्माण की प्रक्रिया देश में शुरू हुई तब कांग्रेस के प्रमुख नेता सरदार बल्लभभाई पटेल ने एक सार्वजनिक बयान देकर कहा था कि ‘हमने डॉ. अम्बेडकर के लिए संसद में घुसने के सभी दरवाजें, रोशनदान व अन्य रास्ते बंद कर दिये हैं। अब हम देखते हैं कि डॉ. अम्बेडकर देश की संविधान सभा में कैसे घुस पाते हैं।’ कांग्रेस की पृष्ठभूमि अतीत से ही बाबा साहेब विरोधी थी। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में जाने के लिए महाराष्ट्र की भंडारा सीट से अपना नामांकन किया था लेकिन ब्राह्मण संस्कृति के कांग्रेसियों ने बाबा साहेब के सामने उन्हीं की जाति के एक अनपढ़ व्यक्ति को उतारकर बाबा साहेब को हरवाया था, ब्राह्मणी संस्कृति के कांग्रेसियों का उद्देश्य था कि ऐसा करने से बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा में पहुँच नहीं पायेंगे और एक मामूली आदमी से हारकर उनका मनोबल भी क्षीण होगा और उनके द्वारा दलितों के उत्थान के लिए चलाया जा रहा आंदोलन कमजोर पड़ेगा। यह सब देखकर डॉ. जोगिंदर नाथ मंडल ने बाबा साहेब से आग्रह किया कि आप बंगाल से चुनाव लड़िए हम आपको जीताकर संविधान सभा में भेजेंगे। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने जोगिंदर नाथ मंडल की सलाह मानकर खुलना सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया और वे वहाँ से भारी मतों से जीतकर संविधान सभा में आ गए थे। ब्राह्मणी संस्कृति के कांग्रेसी नेता अपने षड्यंत्र से बाज नहीं आये। देश के बँटवारे का जब प्रक्रिया शुरू हुई तो ब्राह्मणी संस्कृति के कांग्रेसी कर्णधारों ने बंगाल की खुलना सीट को पाकिस्तान के हिस्से में दे दिया। जिसके कारण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को बाद में वहाँ से भी इस्तीफा देना पड़ा। ये सभी दृष्टान्त यह बताने के लिए पर्याप्त है कि ब्राह्मणी संस्कृति के सभी कांग्रेसी बाबा साहेब और उनके विचारों के घोर विरोधी थे।

अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेसी ब्राह्मणों का ऐसा अन्यायिक चरित्र देखकर समझ लिया था कि इस देश के ब्राह्मण व मनुवादी संस्कृति के लोग बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को संविधान सभा में भेजने के विरोधी है। तब अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेसी नेताओं को बुलाकर साफ-साफ कह दिया था कि भारत का संविधान जब तक बनकर तैयार नहीं होगा तब तक देश को आजाद नहीं किया जाएगा। साथ में कांग्रेसियों को साफ संकेत दे दिया था कि देश के संविधान का निर्माण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर से कराकर दलित-पिछड़े लोगों को देश की मुख्यधारा में जोड़कर उन्हें उचित सम्मान दिया जाये। इस हालात को भाँपकर तब गांधी ने मोर्चा सँभाला और कांग्रेसियों को इस बात के लिए राजी किया कि डॉ. अम्बेडकर को संविधान सभा में जीताकर लाना होगा और देश के संविधान का निर्माण भी उन्हीं से कराना होगा। ऐसी स्थिति को देकर गांधी व नेहरू ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के सामने देश के संविधान निर्माण का प्रस्ताव रखा और बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने समाज के हित में उसे स्वीकार भी कर लिया। संविधान निर्माण के लिए सात सदस्य कमेटी बनाई गई जिसके अध्यक्ष बाबा साहेब थे। संविधान कमेटी में नाम मात्र के लिए सात सदस्य थे मगर इन सात में से एक-दो मर गए, एक-दो विदेश चले गए, एक-दो स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण कमेटी में भाग नहीं ले पाये। कुल मिलाकर संविधान निर्माण का पूरा भार बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के कंधों पर आ गया। उन्होंने अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बिना भारतीय संविधान का कार्य 2 साल 11 महीने 18 दिन में पूरा किया और वह 25 नवम्बर 1949 को देश के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को सौंप दिया था। देश के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान सौंपते हुए उन्होंने संविधान सभा में अपने आखिरी भाषण में देश के नेताओं को चेतावनी भी दी थी। जिसमें बाबा साहेब ने देश के ब्राह्मणी-मनुवादी चरित्र को देखते हुए कहा था कि-‘26 जनवरी 1950 को हम अंतर्विरोधों से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी जबकि सामाजिक और आर्थिक जीवन असमानता से भरा हुआ होगा’, उन्होंने नवनिर्मित संविधान को राष्ट्रपति के हाथों में सौंपते हुए कहा था कि ‘जितनी जल्दी संभव हो, नागरिकों के बीच आर्थिक व सामाजिक समता लाने के जतन करें क्योंकि इस अंतर्विरोध की उम्र लम्बी होने पर उन्हें देश में लोकतंत्र के विफल हो जाने का अंदेशा सता रहा था, जिसके तहत ‘एक व्यक्ति-एक वोट’ की व्यवस्था को हर संभव समानता तक ले जाया जाना था।’ इसका आज की परिस्थिति में सबसे सटीक उदाहरण मोदी संघियों का 10 साल का शासन है। इन 10 सालों के दौरान मोदी संघियों ने संविधान को अपनी मर्जी के मुताबिक कुचला है और उनके कई मनुवादी साथियों ने समय-समय पर संविधान को बदलने की बात को एक स्वर में दोहराया है। वर्तमान में 18वीं लोकसभा के चुनाव में मोदी-संघी कट्टरपंथियों का नारा था कि ‘अबकी बार 400 पार’ जिसके तहत 400 सीटें मिलने पर संघी इस संविधान को बदल देंगे और हिंदुत्व आधारित मनुस्मृति लागू होगी। इन वक्तव्यों के आधार पर देश की प्रबुद्ध जनता और अम्बेडकरवादियों ने इसका गंभीर संज्ञान लिया और उन सभी ने अपने अन्तरमन में मोदी-संघी सरकार को हराने का फैसला कर लिया था।

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने 25 नवम्बर 1949 को यह भी चेतावनी दी थी कि ‘मैं संविधान की अच्छाई और बुराई गिनाना नहीं चाहूँगा, फिर भी संविधान कितना भी बुरा हो मगर उसको लागू करने वाले लोग अच्छे हंै तो वह संविधान अच्छा ही साबित होगा और कोई भी संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो यदि उसको लागू करने वाले लोग बुरे हैं तो वह बुरा ही साबित होगा’ इसका भी सटीक उदाहरण मोदी-संघियों का 10 साल का शासन है। मोदी-भाजपा में बैठे विवेक राय जैसे अंधभक्त व उनके गुलाम मानसिकता के लोग है जिन्होंने संविधान को आजतक माना ही नहीं। मोदी-भाजपा ने संवैधानिक पदों पर उन गुलाम मानसिकता के लोगों को स्थापित किया जिन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं को लांगते हुए असंवैधानिक कार्यों को अंजाम दिया। जिसके सटीक उदाहरण हो सकते है पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, वर्तमान राष्ट्रपति आदरणीय श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, पूर्व सीजेआई गोगोई, पूर्व और वर्तमान के चुनाव आयुक्त राजीव कुमार जिन्होंने अपने पद की गरिमा और संविधान की मर्यादाओं के तहत काम नहीं किया।

वर्तमान कांग्रेस का चरित्र: वर्तमान समय में कांग्रेस के अध्यक्ष, राज्यसभा के सांसद मल्लिकार्जुन खडगे जी हैं। लेकिन कांग्रेस के सभी फैसले राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खडगे जी द्वारा मिलकर ही लिए जाते हैं। पार्टी का प्रमुख होने के कारण उन्हें स्वतंत्र रूप में कार्य करने देना चाहिए। देश के दलित, पिछड़ों व मुसलमानों ने कांग्रेस को कई बार राजनैतिक संकट से निकाला है, जिसमें मान्यवर बाबू जगजीवन राम जी का भी विशिष्ट योगदान रहा है। लेकिन सत्ता की मलाई कांग्रेस सरकार में हमेशा ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्यों के हिस्से में रही है।

राहुल गांधी की आंतरिक संरचना असंवैधानिक: राहुल गांधी बाह्य आचरण और आवरण से सज्जन और योग्य व्यक्ति लगते हैं लेकिन अपनी आम भाषा में वे बार-बार देश का नाम हिन्दुस्तान कहकर पुकारते है जो पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। देश का संवैधानिक नाम ‘भारत’ या ‘इंडिया’ है। राहुल गांधी जी को इसका सटीक संज्ञान लेना चाहिए, वे अपनी मनुवादी-ब्राह्मणी मानसिकता के कारण ही देश का नाम भारत न पुकारकर बार-बार हिंदुस्तान पुकारते हैं। वे हर रोज सैकड़ों बार भारत या इंडिया की बजाय देश के नाम का उच्चारण ‘हिंदुस्तान’ बोलकर ही करते हैं। देश के अम्बेडकरवादियों को राहुल जी के ऐसे आचरण पर आपत्ति है वे उनसे आग्रह करते हैं कि इस देश का सही नाम पुकारें।

मोदी को हराने का श्रेय न लें राहुल-अखिलेश: देश की जनता मोदी के 10 साल के शासन के दौरान बुरी तरह से प्रताड़ित हो रही थी, देश में चरम सीमा पर महँगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य समस्याएँ, दलितों के साथ गंभीर अपराधिक घटनाएँ, मुस्लिमों के साथ लिंचिंग व बुलडोजर की घटनाएँ हर रोज की जा रही थी, इन सबका संज्ञान लेते हुए देश के सभी अम्बेडकरवादियों व अन्य प्रबुद्ध जनों ने जनहित और देश हित में स्वत: संज्ञान लेकर अपने मन में फैसला लिया था कि इस बार मोदी को हराने के लिए सभी को सामूहिकता के साथ वोट देना है न कि राहुल, अखिलेश या अन्य को जीतने के लिए। राहुल, अखिलेश या अन्य अपने कान खोलकर सुन ले कि देश की अम्बेडकरवादी और जागरूक जनता ने आपको वोट नहीं दिया है उन्होने किसी भी हद तक जाकर मोदी को हराने का संकल्प लिया था जो उन्होंने पूरा किया है। अगर कोई भी राजनीतिक पार्टी अधिक सीटें जीतने का गुमान मन में लेकर अपने को बड़ा व महान समझेगी तो आने वाले चुनाव में इस देश कीअम्बेडकरवादी और जागरूक जनता उन्हें उनकी औकात दिखा देगी।

बहुजन समाज जनहित और देशहित में रणनीतिक फैसला लेता हैं। वे ये सभी फैसले गुलाम मानसिकता के तहत अंधभक्ति में नहीं लेते। उनके लिए समाज और देशहित सर्वोपरि होता है। देश की जनता यह भी न समझे कि दलित-मुस्लिमों ने बसपा को छोड़ दिया है। मनुवादी राजनैतिक पार्टियों के विरुद्ध बसपा का संघर्ष जारी रहेगा।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05