2024-01-12 12:25:15
इंडिया गठबंधन में 28 राजनैतिक दलों का गठजोड़ हैं, ये सभी 28 राजनैतिक दल भिन्न-भिन्न विचारधारा के हैं। इनमें से कई राजनैतिक दलों का अतीत मनुवादी, संघी, ब्राह्मणवादी और सामंतवादी रहा है। इसलिए बहुजन समाज को कांग्रेस व अन्य दल जो अपने आपको धर्मनिरपेक्ष बता रहे हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से सावधान रहे चूंकि इन दोनों दलों का अतीत और चरित्र मनुवादी-संघी रहा है। अखिलेश यादव के पिता श्री मुलायम सिंह यादव एक उद्दंड, जातिवादी, मनुवादी, सामंतवादी विचारधारा के समर्थक रहे हैं। उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में चोर-उचक्के और अपराधियों को भरपूर संरक्षण दिया था। खुद मुलायम सिंह का अतीत भी अपराधिक कृत्यों में लिप्त रहा और अपने गृह क्षेत्र मैनपुरी, इटावा, जसवंत नगर, सैफई आदि क्षेत्र में मुलायम सिंह और उसके साथियों की गुंडाई का जलवा रहा है। इस क्षेत्र के दलितों व अन्य अति पिछड़ी जातियों जैसे कुम्हार, नाई, बढ़ई, लौहार, गडरिया, व अन्य भूमिहीन समकक्ष जातियों के साथ उत्पीड़न और शोषण की अनेकों घटनाओं को अंजाम दिया। इसी तरह की प्रवृति का दूसरा राजनैतिक गुट केजरीवाल की ‘आप’ पार्टी है। केजरीवाल का अतीत मनुवादी और संघी प्रवृति का रहा है। केजरीवाल स्वयं और उनका परिवार जन्म से संघी है। वे और उनका परिवार संघ की शाखाओं में हिस्सा लिया करते थे। ऐसा कई मौकों पर केजरीवाल ने स्वयं जनता को बताया है। इसी मानसिकता के चलते केजरीवाल ने दिल्ली की ‘जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी’ और ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ व अन्य शिक्षण संस्थानों में दलितों के आरक्षण को लेकर शिक्षण संस्थानों के छात्रों को भड़काया और जगह-जगह आरक्षण विरोधी प्रचार भी किया था। दिल्ली में अन्ना आंदोलन के मुख्य शिल्पकार केजरीवाल थे और जो विवेकानंद फाउंडेशन के सक्रिय सदस्य थे। विवेकानंद फाउंडेशन के सदस्यों में अजीत डोभाल और राजनाथ सिंह व कई अन्य संघी भाजपाई सदस्य थे। इन सभी का चरित्र आरक्षण और बहुजन समाज विरोधी था। केजरीवाल हरी घास का हरा साँप है। जो आम जनता को दिखाई नहीं देता है मगर वह आम शूद्र जनता के हित को अपने जातिवादी जहर से खत्म करता रहता है। मुफ्त की रेबडियां बाँटने का राजनीति में चलन केजरीवाल ने ही शुरू किया। केजरीवाल ने फ्री में पानी, बिजली, राशन, कमसमझ बहुजन समाज की जनता को बाँटकर उन्हें गुलाम व मुफ्तखोर बनाने का काम किया। संघी मानसिकता के तहत दिल्ली के वैश्य समाज ने अपनी ब्राह्मणवादी नीति के तहत फैसला किया था कि दिल्ली में केजरीवाल और केंद्र में मोदी सरकार। पिछले करीब 9 वर्षों से संघियों के साथ मिलकर दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल और केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी, ब्राह्मणवादी-मनुवादी इसी मंत्र से काम कर रहे हैं। पूरा बहुजन समाज (ब्राह्मणी वर्गीकरण के अनुसार सभी शूद्र जातियां) केजरीवाल के संघी छलावे में फँसकर अपना वोट संघी केजरीवाल को देकर उसको सत्ता की चाबी सौंप रहे हैं। जबकि उन्हें पता होना चाहिए कि मुफ्त में मिलने वाली सारी सेवाएं या वस्तुएं केजरीवाल के बाप-दादा के घर से नहीं आ रही है, इन सभी सेवाओं व वस्तुओं की कीमत जनता से टैक्स लेकर ही, जनता को दी जा रही हंै। केजरीवाल ने अपनी सरकार के सभी विभागों में खासतौर से शिक्षण संस्थानों में ठेके पर कर्मचारी रखकर उनको बर्बाद कर दिया है। 2-4 वर्ष तक ठेके पर काम पर रखकर केजरीवाल की संघी सरकार उनके आगे बढ़ने के सभी रास्ते बंद कर रही है। केजरीवाल ऐसे कर्मचारियों का आर्थिक शोषण भी कर रहें है। स्थायी कर्मचारी को अगर काम के लिए 50 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है तो केजरीवाल सरकार बनिया मानसिकता के तहत उनको ठेके पर रखकर करीब 10-12 हजार रुपए प्रतिमाह के वेतन पर रखकर काम करा रहे हैं। सरकारों की यह व्यवस्था असंवैधानिक है। चूंकि रेगुलर प्रवृति के कार्य सरकार को ठेके पर नहीं कराने चाहिए। परंतु केजरीवाल की मानसिकता जन्म से संघी है जो पहले दिन से ही भारतीय संविधान को नहीं मानते उनके गुरुओं ने उन्हें संविधान न मानने का आदेश दिया था और कहा था कि इस संविधान में हमारे लिए कुछ भी नहीं है। हमारे हिंदुत्व के संविधान ‘मनुस्मृति’ का इसमें अंश मात्र भी नहीं है। संघियों की इसी रणनीति के तहत केजरीवाल जनता की आँखों में धूल झौंककर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। वैश्यों जैसी चालाकी के तहत उन्होंने सरकार के किसी भी विभाग का दायित्व अपने पास नहीं रखा है। इस तरह के व्यवहार में उनकी छिपी चालाकी यह है कि वैसे भी सभी विभागों के कार्यों में केजरीवाल की मर्जी के बगैर पत्ता तक भी नहीं हिलता है। सरकार अगर अवैध गतिविधियों के माध्यम से धन बटोरती है तब भी केजरीवाल के ऊपर कोई आँच नहीं आएगी क्योंकि उनके पास किसी विभाग का कानूनन अधिभार नहीं है। अगर विभाग के अवैध कृत्यों के कारण कुछ लांच्छन विभाग के ऊपर आते हैं। तो भी केजरीवाल साफ बच निकलेंगे। ऐसी मानसिकता के लोग उच्च श्रेणी के शातिर बदमाश होते हैं। बहुजन समाज को ऐसे शातिर दिमाग के लोगों से अधिक सावधान रहने की जरूरत है।
केजरीवाल को दिल्ली विधान सभा के चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने 83 प्रतिशत और दलित, पिछड़े समाज के लोगों ने करीब 70 प्रतिशत से अधिक वोट दिया था। लेकिन जब मंत्री बनाने का वक्त आया तो कोटे के हिसाब से एक दलित और एक मुस्लिम को ही मंत्री बनाया गया। अन्य शेष ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले क्षत्रिय व वैश्य लोगों को ही मंत्री पद दिया गया। इसके अलावा दिल्ली से जब 3 सदस्यों को राज्यसभा में नामित करने का वक्त आया तो पहली बार एक राजपूत (ठाकुर) और 2 गुप्ताओं (वैश्यों) को राज्यसभा के लिए नामित करके सांसद बनाया। अब जब इन सांसदों का 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा है तो फिर से संजय सिंह (ठाकुर) जेल में होने के बावजूद उन्हें नामित किया जा रहा है, दूसरा नाम गुप्ता (वैश्य) भाई का है और तीसरा नाम स्वाती मालीवाल है जो वैश्य समाज की महिला हैं। केजरीवाल के इस तरह के राजनैतिक व्यवहार से स्पष्ट होता है कि केजरीवाल एक जातिवादी व दलित-मुस्लिम विरोधी व्यक्ति है। सोचने की बात है कि बहुजन समाज केजरीवाल को वोट क्यों दे? केजरीवाल की मानसिकता को देखने के लिए दूसरा उदाहरण पंजाब का है। पंजाब में केजरीवाल ने दलितों-मुस्लिमों का वोट भरपूर लिया परंतु जब राज्य सभा में भेजने का वक्त आया तो उन्हें दलित मुस्लिम याद नहीं आए और केवल सवर्ण समाज के लोगों को राज्य सभा में भेजा गया। इन उदाहरणों से केजरीवाल की मानसिकता बहुजन समाज की समझ में आ जानी चाहिए और अगर उनको समझ में अब भी नहीं आ रहा है तो फिर ऐसे लोग बहुजन समाज के लिए कलंक ही है, और बहुजन समाज को आज ऐसे लोगों की वजह से हर जगह नीचा देखना पड़ रहा है। साहेब कांशीराम जी ने अपना सब कुछ मिटाकर बहुजन समाज को जागरूक करने का काम किया था लेकिन ये फिर भी नहीं सुधर पाये। ऐसे व्यवहार को देखकर बाबा साहब डॉ. आंबेडकर का कथन है कि ‘हमारा आदमी हमारी बात न मानकर पंडित जी की बात मान रहा है।’ ऐसा लगता है कि इसी कारण वश बहुजन समाज के जातीय घटक जागरूक व समझदार नहीं हो पा रहे हैं। साहब कांशीराम जी ने बहुजन समाज के लिए नारा भी दिया था कि ‘वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा नहीं चलेगा।’ संघी मनुवादियों का हमेशा यह षड्यंत्र रहा है कि बहुजन समाज के महापुरुषों ने जो मंत्र बहुजन समाज को जागरूक करने के लिए दिये हैं उन्हें कैसे फेल किया जाये? केजरीवाल जैसे मनुवादी संघी लोग बहुजनों को लालच का दाना डालकर लोगों को फँसाते रहते हैं। इन्हीं से बहुजन समाज के विरुद्ध घातक षड्यंत्रों की रचना भी कराते रहते हैं। केजरीवाल के षड्यंत्र को दलितों व मुस्लिमों को समझना होगा और अगर उनमें समाज के लिए थोड़ी भी शर्म-हया बची है तो उन्हें अपना वोट केजरीवाल को नहीं देना चाहिए, चाहे वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा ही क्यों न हो? केजरीवाल जैसा संघी साँप बहुजन समाज को हमेशा छलावे के तहत अदृश्यता से डसता रहता है।
बहुजन समाज के जातीय घटकों को सोच समझकर फैसला करना चाहिए कि 2024 के चुनाव में हम मनुवादियों के छलावों में नहीं फँसेंगे और हम बहुजन समाज के आंबेडकरवादी व्यक्ति को ही अपना वोट देकर संसद में भेजेंगे। यह व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो समाज से जुड़े मुद्दों जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महँगाई, भ्रष्टाचार आदि को संसद में उठाएँ और समाज को इनसे राहत दिलाये। वर्तमान संसद में दलितों के आरक्षित वर्ग से 131 सांसद है लेकिन मोदी शासन में इन आरक्षित वर्ग से जीतकर संसद में आए व्यक्तियों की कोई आवाज नहीं है। 131 सांसदों की संख्या इतनी पर्याप्त है कि अगर मोदी-संघी सरकार इन सांसदों की बात न सुने तो ये सभी 131 सांसद अलग गुट बनाकर सरकार से अलग होकर सरकार को अल्पमत में लाकर गिरा भी सकते हैं। मगर ये सभी 131 सांसद मनुष्यों की तरह व्यवहार न करके ‘भेड़-बकरियों जैसा व्यवहार करके मनुवादी मोदी की गुलामी कर रहे हैं।’ भेड़-बकरी चरित्र वाले मनुवादी गुलाम दलितों का आरक्षित वर्ग से सांसद नहीं चुना जाना चाहिए। बहुजन समाज को पक्के आंबेडकरवादियों को ही चुनकर संसद में भेजना चाहिए। जो पार्टी विशेष का ख्याल न रखकर बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों का प्राथमिकता के आधार पर ख्याल रखे। उनकी पहली प्राथमिकता आरक्षित वर्ग के सभी जातीय घटकों के लिए होनी चाहिए। अगर वे ऐसा व्यवहार समाज में प्रदर्शित करने में विफल होते हैं तो उन्हें फिर दूसरी बार लोकसभा में चुनकर नहीं भेजना चाहिए।
इंडिया गठबंधन को अगर वर्तमान मनुवादी संघी सरकार को सत्ता से हटाना है तो इसका एक ही सटीक उपाय है कि इंडिया गठबंधन सूझबूझ के साथ ‘बहुजन समाज पार्टी’ की नेता ‘बहन मायावती’ के साथ सभी प्रदेशों में दिल से निर्बाध गठबंधन करें और मनुवादी शातिरों को महत्व न दें। गठबंधन के सपा व आप जैसे दलों को अधिक महत्व न दें चूंकि इन दोनों राजनैतिक दलों की कार्यशैली बहुजन समाज विरोधी और मनुवादी रही है। साथ ही इंडिया गठबंधन को इस बात से भी सावधान रहना चाहिए कि जिन राजनैतिक दलों का अतीत मनुवादी-संघी रहा है उनसे दूर ही रहना चाहिए, अगर दूर रखने में कोई तकनीकी पेंच हो तो फिर भी उन्हें कम महत्व ही देना चाहिए। आज पूरे देश में कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं है जहाँ पर ‘बहुजन समाज पार्टी’ की सुप्रीमो बहन मायावती का वोट नहीं है। केजरीवाल व सपा के अखिलेश देश के कुछेक भागों में बरसाती मेढ़क की तरह सक्रिय दिख सकते हैं, देश के सभी प्रदेशों में उनकी संख्या नगण्य है इसलिए उनको अधिक महत्व और भार देना रणनीतिक गलती होगी। कांग्रेस के वरिष्ठ रणनीतिकारों से अपेक्षा की जाती है कि मनुवादी संघी मानसिकता के नेता किसी भी राजनैतिक गठबंधन में हो या उनका अतीत मनुवादी संघी रहा हो तो उन्हें गठबंधन से दूर ही रखना चाहिए। बहुजन समाज के सभी जागरूक घटक आपसे ऐसी की अपेक्षा रखते हैं।
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