Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

आरक्षण विरोधी ताकतें न्यायालय की ओट में कर रही खेल

News

2024-08-23 13:18:35

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 6-1 से फैसला देकर बताया है कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटे के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। राज्य सरकारें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए सबकैटेगरी बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति में सब कैटेगरी नहीं बना सकती। इस वर्तमान संविधान पीठ में मुख्य न्यायधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीशचंद शर्मा थे।

आरक्षण की व्यवस्था? संविधान में अनुसचित जाति के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण है; अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण है। अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमीलेयर और नॉन क्रीमीलेयर का प्रावधान है। आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण है जो अन्य सभी आरक्षण के अतिरिक्त है। ईडब्ल्यूएस का आरक्षण आर्थिक आधार पर है। ईडब्ल्यूएस श्रेणी में आरक्षण सामान्य वर्ग के उन लोगों को मिलता है जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम है।

संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को विशेष दर्जा देते समय उनकी जाति का वर्णन नहीं है। कौनसी जातियाँ किस श्रेणी में आएंगी यह अधिकार सिर्फ केंद्र के पास है। अनुच्छेद 341 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित जातियों को एससी/एसटी कहा जाता है। एक राज्य की अधिसूचित जाति दूसरे राज्य में एससी/एसटी नहीं भी हो सकती है।

संवैधानिक पीठ में अपना असहमति वाला फैसला देते हुए जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने अनुसूचित जाति में उपवर्गीकरण को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध बताया। जस्टिस त्रिवेदी के अनुसार संविधान के अनुच्छेद-341, जिसमें अनुसूचित जातियों का विवरण है, वह राज्यों को हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देता।

जस्टिस त्रिवेदी ने पाँच जजों की संविधान पीठ द्वारा 2004 में सुनाए गए फैसले पर सवाल उठाते हुए 2020 में तीन जजों की खंडपीठ द्वारा मामला सात जजों की संविधान पीठ को सौंपे जाने को भी कानूनी प्रकिया के तय मानदंडों के विरुद्ध बताया।

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने 84 पन्नों में दिये अपने फैसले में संविधान सभा में हुई बहस और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति की अलग सूची तैयार करने का मूल आधार हिन्दू समाज में व्याप्त छुआछूत है और इसे सामाजिक शैक्षिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। जस्टिस त्रिवेदी के अनुसार, अनुसूचित जाति में क्रीमीलेयर द्वारा अलग वर्गीकरण की इजाजत भी अनुच्छेद-341 नहीं देता, जिसमें पूरी जाति अनुसूचित जाति के रूप में दर्ज है। उनके अनुसार अनुसूचित जाति एक समान समूह को प्रतिबिंबित करता है, उसमें विभाजन नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, समाज में समानता लाने के लिए सकारात्मक उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन ये कानूनी व संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध नहीं होने चाहिए।

राज्य सरकारें अब क्या कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकारें सब-कैटेगरी बनाकर आरक्षण देने का महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। राज्य सरकारें सामाजिक और आर्थिक आंकड़ें एकत्रित करके विभिन्न सब-कैटेगरी की स्थिति का आंकलन कर सकती है। विभिन्न सब-कैटेगरी में आंकलन करने और आरक्षण की जरूरत को समझने के लिए एक्सपर्ट कमेटियों का गठन भी कर सकती है। राज्य सरकारें सब-कैटेगरी रिजर्वेशन को कानूनी मान्यता देने के लिए विधान मंडल में विधेयक पेश कर सकती है। अगर कोई कानूनी चुनौती आती है तो सरकार इस पर न्यायिक समीक्षा कराकर कोर्ट में अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकती है। सरकारें अपने राज्यों में सार्वजनिक परामर्श आयोजित कर सकती है, जिसमें विभिन्न समुदायों के नेताओं, सामाजिक संगठनों और नागरिकों की राय ली जा सकती है।

अनुसूचित जातियों में उप-जातियों की संख्या: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार देश में 1263 एससी की जातियाँ हैं। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, अंडमान और निकोबार एवं लक्ष्यद्वीप में कोई भी समुदाय अनुसूचित जाति के रूप में चिन्हित नहीं है।

जस्टिस गवई ने अपने फैसले में जो रेल के डिब्बे का उदाहरण दिया है वह तर्कहीन है चूंकि आज जो एससी समुदाय के लिए आरक्षण की 15 प्रतिशत व्यवस्था है, करीब 75 वर्ष के बाद भी आरक्षण 10-12 प्रतिशत तक ही सीमित रहा है। 75 वर्षों के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों ने 15 प्रतिशत के आरक्षण की सीमा को आज तक नहीं भरा है जिसके आधार पर जस्टिस गवई को केंद्र और राज्य सरकारों को पहले यह आदेश देना चाहिए था कि आरक्षण की निर्धारित सीमा को पहले पूर्ण किया जाये और फिर किसी अन्य विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सरकार द्वारा लिखवाया गया लग रहा है: देश में संघी भाजपा की सरकार है जो मूल रूप से एससी/एसटी के आरक्षण की विरोधी रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी-संघी सरकार जोर-जोर से नारा देकर कह रही थी कि ‘अब की बार 400 पार’ संघी-भाजपा का इस नारे का मन्तव्य था कि लोकसभा में हमें 400 सीटें पार कराओ तो बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान को बदल देंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ चूंकि देश की बहुजन जनता ने उनकी मानसिकता को भाँप लिया और अपनी तय भावना के अनुरूप वोट दिया। संघी-भाजपा को लोकसभा में 140 सीटों पर ही सीमित कर दिया। इन 140 लोकसभा सीटों में भी मोदी-संघी सरकार ने बड़े पैमाने पर शासन तंत्र के घालमेल से करीब 80 से 100 सीटों की हेरा-फेरी की। अगर संघी सरकार यह नहीं करती और चुनाव प्रक्रिया को ईमानदारी के साथ पारदर्शी बनाकर रखती तो मोदी-संघी भाजपा को लोकसभा चुनाव में 100 सीटें भी नहीं मिल पाती।

भाजपा संघियों की नजर में आरक्षण: भाजपा संघी मानसिकता के लोग डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित संविधान और आरक्षण के शुरू से ही कठोर विरोधी हैं। भाजपा संघी मानसिकता के नेताओं ने संविधान का विरोध पहले दिन से ही किया, 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद संघी विचारधारा के कर्णधारों ने संविधान का खुलकर विरोध किया और कहा कि इस संविधान में कुछ भी हमारा नहीं है, हमारे देवी-देवताओं, वेदों व अन्य ग्रंथों का इसमें कोई जिक्र नहीं है। हमारी अतीत की वैभवशाली संस्कृति वेदों और पुराणों की इसमें चर्चा नहीं है। ऐसी ही अनेक बातें पाखंडी तथाकथित साधु-संतों के द्वारा की गई। इन पाखंडी संघी भाजपाइयों के मुख्य पाखंडी थे करपात्री महाराज जो देश में घूम-घूमकर संविधान विरोधी प्रचार कर रहे थे। यही पाखंडी देशभर में घूम-घूमकर अज्ञान जनता के द्वारा बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को गाली-गलोच और अपशब्द बुलवा रहे थे। भाजपाई संघियों के उस समय के प्रमुख नेता दीनदयाल उपाध्याय ने संविधान को लेकर टिप्पणी की थी कि इस संविधान में कुछ भी हमारा नहीं है इसलिए हम इसे नहीं मानते। उस समय के सभी संघी मानसिकता के नेता अंग्रेजों से मांफी माँगकर जेल से छूटने वाले नेताओं की मानसिकता इसी जहर से भरी हुई थी। ये सभी संघी मानसिकता के नेता एससी/एसटी के आरक्षण के घोर विरोधी थे और साथ ही ये देश की सभी महिलाओं को वोट का अधिकार देने के विरोधी थे।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर ‘भारत बंद’: भारत बंद का एलान किस सामाजिक संगठन ने किया यह आज तक किसी को नहीं पता है। मगर सरकार और सरकार के विभिन्न अंग व गोदी मीडिया इस भारत बंद को ऐसे प्रचारित कर रहे थे जैसे यह देशहित का बहुत बड़ा मुद्दा है। इसके पीछे मोदी-संघी सरकार की मानसिकता क्या है इसे समझने के लिए हर सामाजिक संगठन को अपने अंदर विवेकपूर्ण विश्लेषण करना चाहिए? और तार्किक फैसले पर पहुँचकर बंद का समर्थन या विरोध करना चाहिए। इस बंद के समर्थन में सरकारी तंत्र और भिन्न-भिन्न सामाजिक संगठन इसका समर्थन कर रहे हैं जो मूल रूप से एससी/एसटी समुदाय के विरोधी रहे हैं और आज भी हैं। यह बंद आरक्षित वर्ग के किसी भी जातीय घटक के लिए लाभदायक नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला, राजा बलि के वध करने जैसा: अतीत की दंतकथाओं के आधार पर भारत के मूलनिवासियों में एक बड़े शासक राजा बलि हुए हैं जिनका वध करने के लिए पेड़ की ओट से तीर चलाकर हिंदुत्ववादी राम ने वध किया था उसी तरह आज की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच से फैसला लिखवाकर एससी/एसटी वर्ग की जातियों को आपस में लड़वाया है। सरकार समर्थित बंद में समाज के विभिन्न सामाजिक संगठनों जैसे कर्णी सेना, जाट समुदाय, आरएसएस, हिन्दू महासभा आदि का भी समर्थन टीवी के माध्यम से दर्शाया गया। इसलिए एससी/एसटी के समुदायों को गंभीरता के साथ सोचने का समय है कि जो संगठन मूल रूप से एससी/एसटी समुदायों के विरोधी रहे हैं वे अपनी किस छिपी आकांक्षा को पूरा करने के लिए बंद का समर्थन कर रहे हैं? बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि ‘जब देश के अखबार मेरे कृत्यों की तारीफ करते हंै तो मैं समझता हूँ कि मैं कुछ गलत कर रहा हूँ और जब ये अखबार मेरी आलोचना करते हैं तो मैं समझ लेता हूँ कि मैं सही रास्ते पर हूँ।’ इसी को समझकर अनुसूचित जाति के सभी जातीय घटकों को आचरण करना चाहिए, मनुवादी बहकावे आदि में नहीं फँसना चाहिए।

राजनैतिक पार्टियों के नेताओं की भूमिका: बहुजन समाज के कई राजनैतिक नेताओं ने जैसे चंद्रशेखर आजाद (रावण), बहन मायावती जी, चिराग पासवान समेत कई अन्य ने भारत बंद का समर्थन किया। निश्चित रूप से बहुजन समाज के घोर विरोधी रहे हिंदुत्ववादी सामाजिक संगठनों व अन्य सभी ऐसे राजनेताओं के द्वारा की जा रही बयानबाजी बहुजन समाज के बुद्धिजीवियों को सोचने पर मजबूर करती है। जो लोग कल तक बहुजन समाज के कट्टर दुश्मनों की भूमिका में थे, वे कैसे आज उनके हितैषी और शुभचिंतक हो सकतें हैं? यह सोचने का विषय है, बुद्धि से आंकलन करके प्रत्येक बहुजन समाज के जातीय घटक का कर्तव्य है कि वह अपने तार्किक आंकलन के बाद ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर फैसला लें, किसी मनुवादी छलावे में संघियों के फायदे के लिए न फँसे।

बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों से निवेदन है कि वे मनुवादी षड्यंत्र में फँसकर आपस में ना बिखरें, आपस की एकता हर कीमत पर बनाए रखें। अगर समाज में कोई संवेदनशील मुद्दा पैदा होता है तो समाज के सभी जातीय घटकों के बुद्धिजीवी व प्रमुख लोग ऐसे मुद्दे पर बैठकर गंभीर चर्चा करके एकमत से सभी घटकों के हित को ध्यान में रखकर फैसला लें। यही मनुवादीयों के षड्यंत्रकारी छलावों का सटीक जवाब होगा और इसी आधार पर बहुजन समाज की बिखरी हुई राजनीति की भी शुरूआत हो सकती है।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05