2023-11-25 09:16:06
देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है जिसमें सरकार को देश की प्रजा से जुड़े मामलों को अधिक महत्व देना चाहिए। सरकार के लिए जनता से जुड़े अहम मुद्दे हैं-रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, महँगाई, भ्रष्टाचार आदि जिनको लेकर सरकार कोई बात नहीं कर रही है। मोदी-संघी सरकार देश की जनता को बता रही है कि सरकार देश के 80 लाख से अधिक लोगों को मुफ्त में 5 किलो अनाज और 2 किलो चावल बाँट रही है। जिसके कारण उनका वोट मोदी-भाजपा को ही मिलने की संभावना है। बहुजन समाज आमतौर पर ‘मुँह खाये आँख लजाये’ का मुहावरा दिल से महसूस करता है और उसपर अधिकतर अमल भी करता है। चूंकि देश का गरीब ‘नमक हलाल’ है ‘नमक हराम’ नहीं। लेकिन बहुजन जनता को यह समझना चाहिए की देश की कुल आबादी एक करोड़ चालीस लाख है जिसमें 80 लाख सरकार के हिसाब से गरीब है और उन्हें मुफ्त में राशन बांटा जा रहा है। यह संख्या मोदी-संघी शासन में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय के सापेक्ष अधिक बढ़ी है। इसका मतलब साफ है कि मोदी-संघी शासन में गरीबी पहले के मुकाबले अधिक है। आज देश की जनता अपने परिवार के लिए रोटी, कपड़ा, मकान का इंतजाम भी नहीं कर पा रही है। वह तो सिर्फ सुबह से शाम तक अपना और अपने परिवार का पेट भरने की कवायद में ही व्यस्त है। उनके पास समय ही नहीं है कि वह सोच पायें कि उनकी यह स्थिति किस कारण बनी है? जब तक वह इसके कारण को नहीं समझ पाएगा तब तक इसके निवारण के बारे में भी नहीं सोच पाएगा। मोदी-संघी शासन का मूल मंत्र है कि देश के बहुजनों पर गरीबी का दबाव इतना बनाकर रखो ताकि वह अपना और अपने परिवार का पेट भरने के अलावा कुछ सोच ही ना पाये। मनुवादियों का मूल मंत्र यह भी है कि बहुजनों को भरपेट भोजन भी प्राप्त न हो वह तभी हिंदुत्ववादी सवर्णों की गुलामी करेगा।
देश में खाद्य पदार्थों व अन्य वस्तुओं की महँगाई भी चरम पर है। मोदी-संघी शासन ने 10 वर्षों में व्यापारी मित्रों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से खाद्य सामग्री के मूल्य को इतना बढ़ा दिया है कि बहुजन जनता अपनी रोजमर्रा की वस्तुएं जुटाने में कठनाई महसूस कर रही है। आज खाद्य पदार्थों की कीमत पूर्व के मुकाबले 3 से 5 गुना तक बढ़ चुकी है। जबकि आमदनी इस अनुपात में नहीं बढ़ी है। इसलिए वे संकट में हैं और उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि शिक्षा मनुष्य के विकास की कुंजी है, बिना शिक्षा मनुष्य का सर्वांगीण विकास नामुमकिन है। बहुजन समाज के महापुरुषों जैसे-जोतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर व बहुजन समाज के अन्य सभी महापुरुषों ने अपने विनाश का मुख्य कारण बहुजनों में शिक्षा न होने को ही बताया है। मोदी-संघी शासन ने नई शिक्षा नीति-2020 में बहुजन समाज को अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा से दूर करने का इंतजाम किया है। इस शिक्षा नीति में 30 प्रतिशत से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद करने का प्रावधान रखा गया है। उच्च व उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों में फीस की सीमा इतनी बढ़ा दी गई है कि बहुजन समाज के छात्र-छात्राएं उसे वहन करने में असमर्थ हैं। बहुजन समाज को इसका संज्ञान लेना चाहिए और ऐसी सरकारों को अपना वोट नहीं देना चाहिए। आज की संघी सरकार बहुजन समाज को मनुवादी काल में पूर्णतया धकेना चाह रही है। मनुवादी सरकार का समय रहते बहुजनों को प्रजातांत्रिक तरीके से इलाज कर देना चाहिए।
आज जनता के सामने स्वास्थ्य की समस्या विकराल होती जा रही है। स्वास्थ्य पर आधिपत्य वैश्य समाज का है। वैश्यों का मूल सिद्धांत देश की जनता को निचोड़कर धन कामना ही रहा है। आज देश में वैश्य समाज के धन्नासेठ अपने बच्चों को डोनेशन के माध्यम से डॉक्टर बना रहे हैं और डोनेशन के माध्यम से बने डॉक्टर ना तो योग्य है और न वे स्वास्थ्य के क्षेत्र में दक्ष है। उनमें मानवता का अंश भी नहीं है। वे तो सिर्फ अपने नर्सिंग होम, अस्पताल, लेबोट्ररी के माध्यम से बहुजन समाज की मजबूर जनता को निचोड़ रहे हैं। वे तो सिर्फ इस देश में अपने मूल मुहावरे के अनुसार ‘बूढ़ा मरे या जवान सिर्फ हत्या से काम’ इसी को सही मानकर चल रहे हैं। देश में दो से तीन दशक पहले संघियों के साथ मिलकर देश की जनता को बताया जा रहा था कि आरक्षण की वजह से अयोग्य डॉक्टर बन रहे हैं जो आँकड़ों के अनुसार सही नहीं था। अयोग्य डॉक्टर तो आज वैश्यों व सवर्ण समाज के अन्य धन्नासेठों के डोनेशन व निजी संस्थानों द्वारा पैदा किये जा रहे हैं। कोरोना काल के आंकड़े देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी अस्पतालों के सापेक्ष निजी अस्पतालों में कोरोना के मरीज ज्यादा संख्या में मरे थे।
आज देश में भ्रष्टाचार चरम पर है और इस भ्रष्टाचार के खेल में वैश्य व अन्य सवर्ण समाज पूरी तरह से लिप्त है। इस भ्रष्टाचार को ढकने के लिए संघी मनुवादी लोग मैदान में हैं। देश में पाखंडी पुजारियों के माध्यम से पाखंड फैलाया जा रहा है। ब्राह्मणी संस्कृति के संघियों का सुनियोजित षड्यंत्र है कि बहुजन समाज, विशेषकर महिलाओं को पाखंड में अधिक फंसाओं, उनको पाखंड में शामिल करके कलश यात्राएं निकलवाओ, मंदिरों में कीर्तन, भजन व जलपान की व्यवस्था रखो ताकि वे और उनके अबोध बच्चे अपने आप मंदिरों की ओर आकर्षित हों। यह तथाकथित धार्मिक अनुष्ठान व कार्यक्रम भ्रष्टाचार के माध्यम से ही पोषित किए जा रहे हैं और वर्तमान प्रदेशों व केंद्र की सरकारे इसमें बड़े पैमाने पर लिप्त है। वर्तमान संघी सरकार का बहुजन जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाने व चलाने पर जोर नहीं है। उनका तो सिर्फ मंदिरों के निर्माण पर जोर है और मंदिरों के विकास को ही वे जनता का विकास बता रहे हैं। इसको समझने के लिए हम कुछेक उदाहरण आपके सामने रखते हैं-मध्य प्रदेश में 35 सौ करोड़ की लागत से 11 कॉरिडोरों का निर्माण किया जाएगा। चित्रकूट में वनवासी रामपथ, ओरछा में राजा राम लोक, दतिया में पीतांबरा पीठ कॉरिडर, इंदौर में अहिल्या नगरीय लोक, खरगोन में नवग्रह कॉरिडोर, सलकनपुर में माता के मंदिर में मंदिर लोक, ओम्कारेश्वर में एकात्म धाम, सागर में संत रविदास मंदिर धाम, ग्वालियर में शनि लोक, बड़वानी में नागलोक कॉरिडोर बनेंगे। यूपी की बात करें तो यहाँ एक हजार हेक्टर में मथुरा-वृंदावन कॉरिडोर को अमेरिकन कंपनी 250 करोड़ रुपए में बना रही है, जिसमें यमुना रिवर फ्रंट भी शामिल है। मथुरा वृंदावन कॉरिडोर में गोकुल, नन्द गाँव और बरसाना से जोड़े जा रहे है। अयोध्या में 797 करोड़ रुपए में राम जन्मभूमि कॉरिडोर बन रहा है। जो 2024 तक बनकर तैयार हो जाएगा। राजस्थान में विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं और वहाँ पर भी मंदिरों के कायाकल्प का काम तेजी से चलाया जा रहा है। राजस्थान में बहुजन समाज के नासमझ मतदाताओं को लुभाने के लिए 300 करोड़ रुपए में तीन कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। इनमें 100 करोड़ रुपए में गोविंद देव मंदिर, 100 करोड़ रुपए में तीर्थराज पुष्कर और 100 करोड़ में बेनेश्वरधाम का विकास किया जाएगा। इसी तरह असम की बात करें तो यहाँ कामाख्या मंदिर विकसित किया जा रहा है। यहाँ पर 500 करोड़ रुपए में मौजूदा परिसर को 3 हजार वर्ग फीट से बढ़ाकर 10 हजार वर्ग फीट करने की तैयारी चल रही है। बिहार में मंदिरों का काम तेजी से हो रहा है। भारत माला धार्मिक संपर्क योजना के तहत उच्चैठ भगवती स्थान से महिषी तारा स्थान को जोड़ने के लिए सरकार मधुवनी से सहरसा तक नेशनल हाईवे को 160 किलोमीटर से बढ़ाकर 180 किलोमीटर कर रही है। इस पर 7 हजार करोड़ रुपए खर्च होने है। महाराष्ट्र के कोलापुर में 250 करोड़ रुपए की लागत से महालक्ष्मी कॉरिडोर बन रहा है। इसी तरह नाशिक से त्र्यंबकेश्वर मंदिर तक कॉरिडोर की योजना बन चुकी है। गुजरात में भी मंदिरों के निर्माण की बड़ी तैयारी हो रही है। यहाँ ओखा से बैठ द्वारका को जोड़ने वाले 2320 मीटर लंबे फॉर लेन ब्रिज पर 870 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। 138 करोड़ में बैठ द्वारका आइलैंड में पहले फेज का काम जारी है। उत्तर प्रदेश काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर पर सरकार 9 सौ करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। सोमनाथ मंदिर कायाकल्प सरकार ने 2021 में कराया। जिसमें 47 करोड़ रुपए खर्च किए गए। त्रियाद्रि मंदिर तेलांगना में मंदिर के कायाकल्प में 13 सौ करोड़ खर्च किए गए। मध्य प्रदेश के चार अन्य धर्म स्थलों पर 3347 करोड़ सरकार ने खर्च किए। मध्य प्रदेश में विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं जहाँ पर सबसे ज्यादा 11 मंदिर कॉरिडोर बने हैं। देश में अभी करीब 13 हजार करोड़ रुपए के 21 मंदिर कॉरिडोर पर काम चल रहा है।
उपरोक्त मंदिर निर्माण के कार्यक्रम को देखकर लगता है कि मोदी-संघी सरकार के पास बहुजनों की समृद्धि के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है। वह तो सिर्फ पंडे-पुजारी, पाखंडियों के लिए मंदिरों के रूप में धन-शोधन और अय्यासी के अड्डे बहुजनों का धन लूटकर स्थापित कर रही है। मोदी-संघी शासन ने 2014 में सत्ता में आने के वक्त जनता से वायदा किया था कि मैं देश में विदेशों के बैंकों में छिपाये गए धन को वापस लाऊँगा और देश के हर नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपए डाले जाएँगे। आज 10 साल बीत जाने के बाद भी मोदी-संघी शासन ने विदेशों के बैंकों में काला धन रखने वाले एक भी व्यक्ति का नाम नहीं बताया है। जबकि देश के सरकारी बैंकों से करीब एक दर्जन व्यापारी मित्र भारी मात्रा में ऋण लेकर विदेश भाग गए हंै और सरकार उन्हें वापस लाने में अभी तक नाकामयाब है। उपरोक्त तथ्यों को देखकर लगता है कि मोदी-संघी शासन ने पिछले दस वर्षों में बहुजन जनता से किसी न किसी रूप में उनके धन को निचोड़ा है और बैंकों से अपने व्यापारी मित्रों को ऋण दिलाकर धनवान बनाने का काम किया है। इस दौरान बहुजन जनता की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो चली है। मोदी-संघी शासन का मूल मंत्र रहा है कि बहुजनों को अन्धविश्वास और अवैज्ञानिकता में अधिक फंसाओं, पाखंडी प्रचारों के द्वारा उनका शोषण करो और उनमें ज्ञान की रोशनी पैदा मत होने दो। इस हालात को देखकर बहुजन जनता को सजग होकर मनुवादी छलावों से बचना चाहिए और अपने विकास और समृद्धि के लिए उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त करके मनुवादी संघियों को अपना वोट नहीं देना चाहिए। बहुजनों के वोट से सरकार का निर्माण होता है परंतु सरकार में उनकी हिस्सेदारी नग्नय है। आज देश की संसद में 131 सांसद अनुसूचित जाति व जनजाति से हैं परंतु उनके समाज के लोगों पर आये दिन जो अत्याचार की घटनाएं हो रही हैं उस पर इन चुने हुए सांसदों ने संसद में एक भी सवाल अत्याचारों के संबंध में नहीं उठाया है। ऐसे सांसदों को बहुजन समाज को अपना वोट नहीं देना चाहिए और आगामी चुनावों में उनको चिन्ह्ति करके हराने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए।
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