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अब की बार दिल्ली में ‘बहुजन सरकार’

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2024-09-20 13:33:32

‘बहुजन’ शब्द सबसे पहले इस देश में भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों में इस्तेमाल किया। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘बहुसंख्यक’। बहुसंख्यक से तात्पर्य है कि प्रजातंत्र में बहुसंख्यक समाज की सरकार प्रदेश या केंद्र में बननी चाहिए। देश की जनसांख्यिकी को देखने से पता चलता है कि हमारे देश में एससी/एसटी, पिछड़े व पसमांदा अल्पसंख्यक समुदाय संख्या के हिसाब से अधिक हैं। इसलिए प्रजातंत्र के मूल आधार ‘संख्या’ को देखकर इस देश में बहुजन समाज की सरकार स्थापित होनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है, जिसका मुख्य कारण है देश में गहराई तक ब्राह्मणवाद, मनुवाद, हिंदुत्व की वैचारिकी का समाहित होना है। जो बहुसंख्यक समाज को यह बोध ही नहीं होने देता कि तुम इस देश के सम्मानित नागरिक हो और तुम्हारा भी इस देश की सत्ता और सम्पदा में हिस्सा है। बहुजन समाज को देश की सत्ता में भागीदारी के लिए अपने सभी जातीय घटकों में एकता, सामूहिकता और क्रमिक ऊँच-नीच की भावना को छोड़कर एक साथ आना होगा और सभी के अंदर देश और प्रदेशों की सत्ता में भागीदारी की इच्छा को जाग्रत करना होगा। ब्राह्मणवाद, मनुवाद और हिंदुत्व की वैचारिकी का त्याग करना होगा। भगवान बुद्ध के संदेश ‘अत्त दीपो भव:’ को आत्मसात करके सभी के अंदर अपना दीपक स्वयं बनने की भावना को जाग्रत करना होगा। ऐसा करना हम सभी को बोलकर तो आसान लगता है लेकिन इस भाव को अपने अंदर और अपने आचरण में समाहित करना शायद उतना भी आसान नहीं है, हम सभी को एक साथ मिलकर ऐसा करने के लिए संकल्पबद्ध होना पड़ेगा। अगर हम सब ऐसा कर पाते है तो यह बहुत आसान भी होगा। इससे बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को अंदरूनी संतुष्टि और संपन्नता भी प्राप्त होगी, जो हर मनुष्य के सफल जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

प्रजातंत्रिक सत्ता का आधार: प्रजातंत्र में जनसांख्यिकी का साधारण सा गणित है कि समाज में जिसकी संख्या अधिक है सत्ता भी उसी समाज के हाथ में होनी चाहिए। भारत में आजादी के बाद से प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था और संविधान सत्ता सर्वोपरि है। परंतु चुनाव दर चुनाव देश की जनता को देखने में मिल रहा है कि देश में अल्पमत वाले समुदाय प्रदेश और केंद्र की सत्ता में निरंतरता के साथ बने हुए हैं। बहुजन समाज हमेशा सत्ता के हाशिये पर है उनका इस देश की सरकार में कोई सम्मानित स्थान नहीं है। देश में आए दिन बहुजन समाज के व्यक्तियों के साथ मनुवादी और हिंदुत्व की वैचारिकी की प्रताड़नायें घटित होती रहती है जिनका हिंदुत्ववादी वैचारिकी की सरकारें न्यायिक संज्ञान नहीं ले रही है। ऐसा करना उनकी मानसिकता में हिंदुत्व की वैचारिकी के खोट को दर्शाता है। चूंकि हिंदुत्व की वैचारिकी में बहुजन समाज के जातीय घटकों के साथ प्रताड़नायें करना न्यायिक है। हिंदुत्व की वैचारिकी के तथाकथित मूल ग्रंथ मनुस्मृति में बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों और देश की सभी वर्गों की महिलाओं के साथ ऐसा करना धर्मसम्मत माना गया है। मनुस्मृति हिंदुत्व की वैचारिकी का मूल ग्रंथ है जो समाज में ब्राह्मणवाद और अमानवीय अत्याचारों को बढ़ावा देती है।

भाग्य और भगवान में फंसा बहुजन समाज: बहुजन समाज के ज्यादातर जातीय घटक सदियों से ब्राह्मणवाद और मनुवाद को ढो रहे हैं। जिसके कारण उनमें अच्छे बुरे का बोध ही नहीं रह गया है। वे ये भी नहीं समझ पा रहे हैं कि हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है? उन्हें यह आभास ही नहीं हो पा रहा है कि हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए कौन सा रास्ता अच्छा है जिस पर चलकर हम अपने जीवन को आगे बढ़ाए? समाज में ऐसी अवस्था मनुवादी वैचारिकी की बारम्बारता सदियों से चली आ रही है, इसी बारम्बारता के कारण उनमें यह भाव गहराई तक समाहित हो चुका है कि हमारे भाग्य में ऐसा ही होना था और हम ऐसे ही रहेंगे। उनकी आंतरिक संरचना में भाग्य और भगवान की मान्यता समाहित हो चुकी है और अब वे उसी आधार पर आचरण करते हैं। हिंदुत्व की इसी वैचारिकी के कारण उनमें दरिद्रता है, सोच और समझ में तार्किक स्पष्टता नहीं है और इसी हिंदुत्व की वैचारिकी का संक्रमण उनमें गहराई तक व्याप्त हो चुका है। इसलिए हिंदुत्व के संक्रमण से मुक्ति का मार्ग एक ही है ‘हिंदुत्व की वैचारिकी और तथाकथित हिन्दू धर्म से मुक्ति’। इस बीमारी से मुक्ति पाने के लिए बहुजन समाज के श्रेष्ठतम महापुरुष बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी ने बहुजन समाज को समतावादी ‘बुद्ध धम्म’ अपनाने का मार्ग सुझाया था। बहुजन समाज के कुछेक जागरूक लोग उनके सुझाए हुए ‘बुद्ध धम्म’ की शरण में गए और बुद्ध धम्म में जाकर वे सभी समान हो गए, कोई छोटा-बड़ा या असमान नहीं रहा। इतिहास इस बात का गवाह है बहुजन समाज के जिन जातीय घटकों ने बाबा साहेब को जाना और आत्मसात किया वे सभी जातीय घटक अपेक्षाकृत जागरूक और सम्पन्न दिख रहे हैं और जिन जातीय घटकों ने बाबा साहेब के विचार को आत्मसात नहीं किया वे अभी भी समाज के निचले पायदान पर हैं, और हिंदुत्व के कारण अपमान व दरिद्रता झेल रहे हैं। ऐसे सभी समुदायों के व्यक्तियों से आग्रह है कि शीघ्र अति शीघ्र सभी बाबा साहेब के विचार को अपनाये और अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुधारे। ध्यान रखे कि मनुष्य का विकास उसके बुद्धि बल से जुड़ा है। अतीत से चली आ रही रूढ़िवादिता को ढोना न तर्कसंगत है और न उससे फायदा होने वाला है।

दिल्ली का अगला सीएम तय करे बहुजन समाज: दिल्ली में पिछले 12 वर्षों से अधिक समय से आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है और उसके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी है। अरविंद केजरीवाल एक संघी मानसिकता से प्रशिक्षित मनुवादी व हिंदुत्ववादी विचारधारा के व्यक्ति है। दिल्ली विधान सभा चुनाव में जनता ने केजरीवाल के मनुवादी छलावे में फँसकर अभूतपूर्व संख्या में वोट दिया। इनको वोट देने वालों में अधिसंख्यक समुदाय अति पिछड़ा, दलित व पसमांदा मुस्लिम रहा। जिन्होंने केजरीवाल के छलावे में फँसकर मुफ्त पानी, बिजली व राशन के चक्कर में केजरीवाल को 54.2 प्रतिशत मत देकर दिल्ली की सत्ता पर बैठाया। इन 54.2 प्रतिशत वोटों में करीब 40.0 प्रतिशत मत बहुजन समाज के जातीय घटकों का है। चूंकि उनमें भ्रम की स्थिति बनी रही और वे केजरीवाल को अपने जातीय घटक का सदस्य मानते रहे विशेषकर वाल्मीकि समाज ने समझा की केजरीवाल हमारा ही जातीय घटक का सदस्य है। केजरीवाल ने अपनी राजनीति गांधी की तर्ज पर झोपड़-पट्टी की कालोनी सुंदर नगरी (दिल्ली) से की। वहीं पर वाल्मीकि समाज के जातीय घटकों से तालमेल बनाया और उन्हीं को साथ लेकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की। दिल्ली में करीब 8 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद जनता को पता चला कि केजरीवाल दलित वर्ग से नहीं है बल्कि वह हरियाणा मूल के ‘अग्रवाल’ (बनिया) हैं और जन्म से वे और उनका परिवार संघी रहा है जिससे हिंदुत्व की वैचारिकी उनके रग-रग में समाही हुई है। केजरीवाल फर्जी ड्रामे रचने में गांधी से भी उत्कृष्ट है। वे जनता में प्रपंच रचने और दिखावा करने में गांधी से भी उत्तम है। केजरीवाल जी ने मान्यवर साहेब कांशीराम जी के नारे ‘जिसकी संख्या जितनी भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी’ को फेल कर दिया है। दिल्ली की जनसंख्या में वैश्यों (केजरीवाल) की संख्या 6-7 प्रतिशत से अधिक नहीं है। वे अपनी संख्याबल के आधार पर किसी गली-मौहल्ले का पार्षद भी नहीं बन सकते हैं। मगर वे दिल्ली के बहुजन समाज के वोट की ताकत के बल पर तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। अब चौथी बार के लिए भी बहुजन समाज की जनता को अपने छलावों में फंसा रहे हैं। दिल्ली में बहुजन समाज की करीब 45 प्रतिशत जनसंख्या (एससी/ एसटी/ ओबीसी और पसमांदा अल्पसंख्यक) को देखते हुए बहुजन समाज के लिए शर्म की बात है कि वे अपने समाज का मुख्यमंत्री न बनाकर ‘बनिया’ (वैश्य) को मुख्यमंत्री बना रहे हैं।

संघी मानसिकता के कारण केजरीवाल का हमेशा षड्यंत्रकारी दृष्टिकोण रहा है। दलित कोटे की आरक्षित सीटों पर उनके कम पढ़े-लिखे, कमसमझ, अम्बेडकरी विचारधारा के विरोधी व अतिमहत्वाकांक्षी व्यक्ति को आरक्षित सीट पर उतारकर कोटे की खानापूर्ति करते हैं। अभी हाल में आतिशी को दिल्ली को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव पास करके राज्यपाल को भेजा है जिसमें वे कैबिनेट के छ: मंत्री भी 22 सितंबर को मंत्री पद की शपथ लेंगे। दलित कोटे से मुकेश अहलावत को रखा गया है, जिनकी शिक्षा का स्तर 12वीं पास है शायद केजरीवाल दिल्ली की जनता को यह संदेश देना चाहते है कि दलित वर्ग में अच्छे पढ़े-लिखे लोग उपलब्ध ही नहीं है। इस तरह का ही नाटक केजरीवाल जी ने पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा चुनाव में गुग्गन सिंह को अपना प्रत्याशी बनाकर दिखाया था। चूंकि वे भी सिर्फ 8वीं पास हैं। इस तरह की संस्कृति संघियों की है जिसका केजरीवाल जी दलितों को नीचा दिखाने के लिए सअक्षर पालन करते हैं। अब 2025 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज को तय करना है कि वे अपने किस सक्षम व समर्पित व्यक्ति को वोट देकर विधायक बनाएं और फिर अपना मुख्यमंत्री चुनें।

बहुजन समाज बदले अपनी राजनैतिक रणनीति: जनसंख्या के हिसाब से दिल्ली में बहुजन समाज के जातीय घटकों का मुख्यमंत्री होना चाहिए, मगर अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। इसका मुख्य कारण बहुजन समाज के जातीय घटकों में एकता और राजनैतिक समझ की कमी का होना है। अन्यथा 5-6 प्रतिशत वाला ‘वैश्य’ (बनिया) समाज दिल्ली की शासन व्यवस्था पर काबीज नहीं हो सकता! अरविंद केजरीवाल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बहुजन समाज के जातीय घटकों के कोटे से बनाए गए मंत्रियों को अपमानित करके निकाला और पूरे बहुजन समाज के जातीय घटकों को कभी उचित सम्मान और स्थान नहीं दिया। दलित जातियों के उत्थान के लिए बजट में जो अलग आबंटन का प्रावधान होता है उसे भी केजरीवाल ने अपनी मनमर्जी के मुताबिक दूसरे मदों पर खर्च करके आरक्षित वर्गों के साथ अन्याय किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में दलित, पिछड़ा आरक्षण विरोधी अभियानों में सक्रिय भाग लेकर विवेकानन्द फाउंडेशन के बैनर तले छात्रों को भाषण दिये और उन्हें भड़काया। केजरीवाल जी ‘हरी घास में हरा साँप’ बनकर दिल्ली की बहुजन जनता को ठगकर डस रहे हैं। दिल्ली के ‘वैश्य’ समाज के कथित नेता बात करते हैं कि दिल्ली में ‘केजरीवाल’ और केंद्र में ‘मोदी’ होना चाहिए।

केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को दलितों, अति पिछडों व मुस्लिमों ने छक-छक कर अपना वोट दिया। जिसके बल पर केजरीवाल जी दिल्ली की सत्ता पर मजबूती के साथ तीन-तीन बार स्थापित होने में सफल हुए। परंतु जब दिल्ली के कोटे के तीन व्यक्तियों को राज्यसभा में सांसद बनाने के लिए नामित करना था तो उन्हें दलित, पिछड़े व मुस्लिम याद नहीं आये। तीनों सवर्ण समाज के व्यक्तियों-संजय सिंह (ठाकुर), एन.डी. गुप्ता (बनिया) और स्वाति मालीवाल (ब्राह्मण) को राज्यसभा भेजा। पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार है। पंजाब से सात सदस्यों विक्रम सिंह साहनी, बलबीर सिंह सीचेवाल, संजीव अरोड़ा, राघव चड्डा, डॉ. संजीव पाठक, हरभजन सिंह, अशोक मित्तल को राज्यसभा के लिए नामित किया तब भी उन्हें दलित, मुस्लिम व पिछड़े याद नहीं आये। वहाँ से भी सवर्ण समाज के व्यक्तियों को दिल्ली की तर्ज पर राज्यसभा भेजकर संसद भेजा। बहुजन समाज से आग्रह है कि केजरीवाल के चरित्र को उसके कार्यों से समझे, बहकावे में न बहे।

अक्ल और समझ के अंधे बहुजन समाज को इन सब षड्यंत्रकारी कृत्यों से सबक लेना चाहिए और दृढ़ संकल्प के साथ तय करना चाहिए कि हमारा वोट सिर्फ बहुजन समाज के प्रत्याशी को ही जाये चाहे वह किसी भी जातीय घटक से संबंधित हो। हमें आपस में न जाति को देखना है और न क्रमिक ऊँच-नीच को। हम सबको मिशन मोड में दृढ़ संकल्प के साथ काम करना है। आरक्षित वर्गों के सभी जातीय घटकों से अनुरोध है कि वे केजरीवाल की चाल, चरित्र और काम करने के तरीके को समझे अभी तक के 3 बार के मुख्यमंत्रित्व काल में अपने सवर्ण जाति के मंत्रियों को ही अधिक भाव दिया है और उन्हें सरकार में अधिक मलाईदार विभाग भी दिये हैं। दलित मुस्लिमों को सिर्फ कोटे के हिसाब से मंत्री बनाकर बिना किसी मान-सम्मान के खाना पूर्ति की हैं। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए आरक्षित वर्ग से बनाए गए 3-3 मंत्रियों से इस्तीफा लिया गया जो समाज को केजरीवाल की हिन्दुत्ववादी षड्यंत्रकारी मानसिकता को समझने के लिए पर्याप्त है। जागो बहुजन जागो, दिल्ली की सत्ता से केजरीवाल को हटाकर बहुजन सत्ता लाओ।

जय भीम, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05