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सामाजिकराजनीतिक आलोचना के प्रखर जनकवि अदम गोंडवी

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2025-10-18 16:00:23

समाज के संचालन के लिए मनुष्य के अंदर संवेदना महत्वपूर्ण तत्व है। भौतिक प्रगति के साथ आज हमने जो सबसे मूल्यवान चीज खोई है, वह है संवेदनशीलता। व्यवस्था से जोंक की तरह चिपके हुए लोग आखिर संवेदनहीन व्यवस्था के प्रति विद्रोह का रुख कैसे अख़्तियार करें? हिंदी गजल साहित्य में ऐसे बहुत कम नाम हैं जो ‘संवेदना का स्वर’ देने की कोशिश करते हैं, जिनकी आवाज में जड़त्व व्यवस्था के प्रति विद्रोह का भाव होता है।

22 अक्टूबर, 1947 भारत की आजादी के बाद की एक महत्त्वपूर्ण तारीख है। इस तारीख को गोंडा, उत्तर प्रदेश, परसपुर के आटा गाँव में, एक ऐसे व्यक्ति का जन्म हुआ जिसकी कलम हमेशा आजाद रही। एक ऐसा नाम, जिसने कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाया। एक ऐसा गजलकार, जिसने गजल की दुनिया में दुष्यंत के तेवर को बरकरार रखा। एक ऐसा रचनाकार, जिसकी रचनाएँ नारों में तब्दील हो गईं। एक ऐसे गजलकार जो गजल की शानो-शौकत को दुनिया से अलग गाँव की पगडंडियों तक ले जाता है। उस जनकवि का नाम है अदम गोंडवी। श्री मांडवी सिंह एवं श्रीमती देवी कली के सुपुत्र अदम का मूल नाम रामनाथ सिंह था। एक छोटे से गाँव से निकलकर अदम गोंडवी ने हिंदी गजलों की दुनिया में अपना विशिष्ट स्थान बनाया और भारतीय साहित्य को समृद्ध किया। एक ऐसा कवि जो बौद्धिक विलासिता से दूर किसान, गरीब, मजदूर, दलित, शोषित और वंचित तबकों की बात करता है। एक ऐसा रचनाकार जिसकी रचनाओं में व्यवस्था के प्रति व्यंग्य और आक्रोश भी है और अथाह पीड़ा भी। अदम गोंडवी ने कभी भी सत्ता की सरपरस्ती स्वीकार नहीं की। वे लगातार भारतीय समाज में विद्यमान जड़ताओं और राजनीतिक मौकापरस्ती पर प्रहार करते रहे। अदम गोंडवी की प्रमुख गजल संग्रह-‘धरती की सतह पर’ और ‘समय से मुठभेड़’ हैं।

अदम गोंडवी एकदम खाँटी (बिना लाग-लपेट के) अंदाज में अपने समय और परिवेश के नग्न यथार्थ को प्रस्तुत करते हैं। जिंदगी की बेबसी को व्यक्त करते हुए अदम कहते हैं-

‘आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है जिÞन्दगी

हम गरीबों की नजर में इक कहर है जिÞन्दगी।’

अदम गोंडवी महिलाओं पर हिंसा और बलात्कार की घटनाओं का बयान बड़ी बेबाकी से करते हैं-

‘चीख निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई

छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया

वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया।’

अदम गोंडवी हमेशा बेबाकी से सधे हुए लहजे में अपनी बात रखते हैं। अदम संविधान में किए गए प्रावधानों के बावजूद आधारभूत जरूरतों से वंचित वर्ग की स्थिति का चित्रण करते हुए कहते हैं कि-

‘आइए महसूस करिए जिÞन्दगी के ताप को

मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको।’

गोंडवी हिंदी गजल को शृंगार की परिधि से निकालकर आम जन के जीवन तक ले जाते हैं। ग्रामीण जीवन को एक विशेष पारदर्शी चश्मे से देखने वाले गोंडवी कहते हैं-

‘गजल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नजारों में

मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में।’

भुखमरी के दौर में आमजन की गरीबी का मजाक उड़ाने वाली शानो-शौकत का सजीव चित्रण करते हुए अदम गोंडवी कहते हैं कि-

‘काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में

उतरा है रामराज विधायक निवास में।’

वे गरीब अवाम की भूख की बेबसी को बहुत स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करते हैं-

‘बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को

भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।’

अदम गोंडवी राजनीति में विचारधाराओं के घालमेल को भी बखूबी चित्रित करते हुए कहते हैं कि-

‘पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत

इतना असर है खादी के उजले लिबास में।’

अदम भारतीय राजनीति में ब्रिटिश सत्ता के बचे हुए अवशेषों के आधार पर कहते हैं कि-

‘जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे

कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।’

वर्तमान सरकारों द्वारा बढ़ाई जा रही महंगाई पर भी अदम गोंडवी तीक्ष्ण व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि-

‘ये वंदे मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर

मगर बाजार में चीजों का दुगना दाम कर देंगे।’

आज की उथली राजनीति पर भी अदम गोंडवी व्यंग्य करते करते हुए लिखते हैं कि-

‘एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए

चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे।’

अदम गोंडवी जनता को सिर्फ व्यवस्था की जकड़न में यथास्थिति में रहने की वकालत नहीं करते बल्कि बगावत का उद्घोष करते हुए कहते हैं-

‘जनता के पास एक ही चारा है बगावत

यह बात कह रहा हूँ मैं होशो हवाश में।’

अदम गोंडवी स्वतंत्रता के बाद भी भारतीय समाज में विद्यमान ऊँच-नीच, भेदभाव और सांप्रदायिकता की समस्या पर मुखर होकर विचार करते हुए कहते हैं-

‘हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िए।

हममें से कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़्न है जो बात अब, उस बात को मत छेड़िए।

अगर गलतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले

ऐसे नाजुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए।’

गोंडवी आज की नौकरशाही में विद्यमान फीताशाही और पंचायती राज व्यवस्था की दुर्दशा को भी बखूबी बयान करते हैं-

‘जो उलझ कर रह गयी हैं फाइलों के जाल में

गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी

राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में।’

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों की तस्वीर को धूमिल होता देख अदम गोंडवी बोल पड़ते हैं कि-

‘देखना सुनना व सच कहना जिन्हें भाता नहीं

कुर्सियों पर फिर वही बापू के बंदर आ गए

कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नजर

आजकल बाजार में उनके कलेंडर आ गए।’

बहुजन महापुरुषों की विचारधारा समता-स्वतंत्रता-न्याय-बधुता को समाज में पूरी तरह से विकसित न होता देखकर अदम गोंडवी सपाट लहजे में कहते हैं कि-

‘वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है।

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का,

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।’

नई पीढ़ी के वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंतित अदम गोंडवी

पीड़ा के स्वर में बोल पड़ते हैं कि-

‘आप कहते हैं इसे जिस देश का स्वर्णिम अतीत

वो कहानी है महज प्रतिरोध की, संत्रास की।

इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया

सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फास की।’

अदम गोंडवी सामाजिक दुर्दशा को देखते हुए झूठ लिखना स्वीकार नहीं करते हैं। वे समाज की सच्चाई को चित्रित करते हुए कहते हैं कि-

‘घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है

बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है।’

अदम गोंडवी कविताओं में व्यक्त किए गए भाव का कारण भी स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि-

‘याद रखिये यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार

होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की।’

1998 में अदम गोंडवी को ‘दुष्यंत कुमार’ पुरस्कार तथा 2001 में शहीद शोभा संस्थान द्वारा ‘माटी रतन’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आलोचकों का मानना है कि अदम को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह काबिल थे। अदम गोंडवी सत्ता के किसी पद्म सम्मान की परवाह किए बगैर सदैव भारत के आम जन की आवाज बनते रहे। सत्ता और समाज की व्यवस्था को चुनौती देने वाले अदम गोंडवी 18 दिसम्बर 2011 को शरीर को त्यागकर हम लोगों के बीच से चले गये। लेकिन अदम गोंडवी की रचनाएँ नारों के रूप में आज भी भारत के अलग-अलग हिस्सों में जीवित हैं।

जनकवि-गजलकार अदम गोंडवी जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन!

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05