2024-05-24 18:24:17
बाबा साहेब भीमराव डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब ‘द बुद्धा एंड हिज धम्मा’ की भूमिका में एक महिला की तारीफ करते हुए लिखा, उन्होंने मेरी उम्र कम से कम 10 साल और बढ़ा दी। इस महिला पर बाद में अंबेडकरवादियों ने आरोप लगाया कि उनके नेता का निधन हत्या थी, जिसके लिए ये महिला जिम्मेवार है। केंद्र सरकार ने जांच कराई और इस महिला को क्लीन चिट दे दी गई। दरअसल ये महिला अंबेडकर के जीवन का सबसे अहम हिस्सा बनी थीं। बाद में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्यता का भी न्योता दिया लेकिन उन्होंने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। ये महिला थीं डॉक्टर सविता भीमराव अंबेडकर। विवाह पूर्व उनका नाम शारदा कबीर था लेकिन विवाह के बाद उनका नाम सविता अम्बेडकर हो गया। जिनका जन्म महाराष्ट्र के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वो डॉक्टर थीं। बाबा साहेब की दूसरी पत्नी बनीं। जिस समय अंबेडकर ने उनसे शादी की, उनके परिवारजन ही नहीं बल्कि बहुत से अनुयायी भी खासे नाराज हुए। अंबेडकरवादियों को समझ में नहीं आया कि जिन सवर्ण जातियों के खिलाफ बाबा साहेब ने लगातार संघर्ष का बिगुल बजाया, उसी वर्ग की महिला से क्यों शादी कर ली। सविता उस दिन अंबेडकर के साथ दिल्ली में थीं, जब उनका निधन हुआ। दरअसल दिन में सबकुछ ठीक था। बाबा साहेब शाम को कुछ मुलाकातियों से मिले। फिर उन्हें सिरदर्द की शिकायत हुई। उन्होंने सहायक से सिर दबवाया था। सोने से पहले पसंदीदा गीत गुनगुनाया। सोते समय किताब पढ़ी। सुबह बिस्तर पर मृत मिले। रात में ही हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था। उनके इस निधन को अंबेडकर को मानने वाले एक वर्ग ने संदेह की नजरों से देखा। उन्होंने आरोप लगाया कि ये निधन स्वाभाविक नहीं बल्कि साजिश का नतीजा है। सविता माई ने जब बाबा साहेब से शादी की तो वो उनके साथ उस आंदोलन में जोर-शोर से कूद पड़ी थीं, जिसे वे लंबे समय से चला रहे थे। वे सामाजिक कार्यकर्ता थीं, होनहार डॉक्टर थीं। बाबा साहब के साथ बौद्ध धर्म भी अपनाया था। अंबेडकर के अनुयायी और बौद्धिस्ट उन्हें माई या मेम साहब कहते थे। वैसे अंबेडकर ने तमाम किताबें लिखीं लेकिन जब वो ‘द बुद्धा एंड हिज धम्मा’ लिख रहे थे तो भूमिका में उन्होंने खासतौर पर माई साहेब सविता का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से केवल उनके कारण उनकी जिंदगी के 08-10 साल बढ़े हैं। सविता मुंबई में मराठी ब्राह्मण परिवार में 27 जनवरी 1909 को पैदा हुईं थी। तब बहुत कम महिलाएं पढाई करती थीं। ऐसे में उनका ना केवल पढाई करना बल्कि डॉक्टरी की पढाई करना असाधारण ही कहा जाएगा। आजादी से पहले के दशकों में एमबीबीएस करना बहुत बड़ी बात थी। सविता मेघावी स्टूडेंट थीं। उन्होंने मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। उनका परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक गांव से ताल्लुक रखता था। उनका परिवार शायद आधुनिक विचारों का था। आठ भाई-बहनों में छह ने अंतरजातीय विवाह किया था। सविता ने खुद ‘डॉ. अम्बेडकरच्या सहवासत’ शीर्षक से आत्मकथा में लिखी, हम भाई-बहनों के अंतरजातीय विवाह करने पर हमारे परिवार ने कोई विरोध नहीं किया। इसका कारण था कि पूरा परिवार सुशिक्षित और प्रगतिशील था। 1947 आते-आते डॉ. अंबेडकर की तबियत खराब रहने लगे थी। सविता ही उनका इलाज कर रही थीं। उन्होंने अंबेडकर का स्वास्थ्य बेहतर करने में काफी काम किया। लोकवामय गृह प्रकाशन, मुम्बई से प्रकाशित पुस्तक डॉ. बाबा साहेब में कहा गया कि 16 मार्च, 1948 को दादा साहब गायकवाड़ को लिखे पत्र में अंबेडकर ने कहा, सेवा-टहल के लिए किसी नर्स या घर संभालने के लिए किसी महिला को रखने पर लोगों के मन मे शंकाएं पैदा होंगी. इसलिए शादी कर लेना ही सबसे उचित रास्ता रहेगा. मैने पहली पत्नी के निधन के बाद शादी नहीं करने का निश्चय किया था लेकिन अब जो स्थितियां हैं, उसमें मुझको अपना निश्चय छोड़ना होगा।
15 अप्रैल 1948 को डॉ अंबेडकर का विवाह उनके दिल्ली स्थित घर पर डॉ. शारदा कबीर से हुआ। तब बाबा साहेब हार्डिंग एवेन्यू (अब तिलक मार्ग) में तब बाबा साहेब कानून मंत्री के रूप में रहते थे। शादी के लिए रजिस्ट्रार के तौर पर रामेश्वर दयाल डिप्टी कमिश्नर दिल्ली बुलाए गए। यह विवाह सिविल मैरिज एक्ट के अधीन सिविल मैरिज के तौर पर सम्पन्न हुआ। इस मौके पर सविता के परिजनों, बाबा साहेब के मित्रों समेत कई लोग मौजूद थे।
शादी के बाद सविता पर क्या आरोप लगते थे?
शादी के बाद बहुत से लोगों की शिकायत ये रहने लगी कि अब डॉ. अंबेडकर से मुलाकात करना मुश्किल हो गया है। डॉक्टर सविता खुद तय करती हैं कि कौन उनसे मिलेगा और कौन नहीं। उनकी ब्राह्मण जाति भी अंबेडकर के अनुयायियों को नाराज करती थी। डॉ. सविता अंबेडकर पर बाद में कई किताबें लिखी गईं, जिनमें कहा गया कि उन्होंने ना केवल पत्नी बल्कि अंबेडकर के डॉक्टर की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई। डॉ. सविता एक डॉक्टर के रूप में बाबा साहेब के स्वास्थ्य व आराम का पूरा ध्यान रखती थी।
डॉ. अंबेडकर के निधन के बाद
निधन के बाद सविता दिल्ली में ही एक फॉर्म हाउस में रहने लगीं। अंबेडकर के परिजनों से उनके रिश्ते हमेशा से ही तनाव भरे थे। ऊपर से उसी पक्ष की ओर से उन पर अंबेडकर के निधन को लेकर लापरवाही का आरोप लगाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने अंबेडकर अनुयायियों के भारी दबाव के बीच जांच बिठाई लेकिन जांच में निष्कर्ष निकला कि ये एक नेचुरल डेथ थी।
राज्यसभा में आने का भी आॅफर मिला
बाद में जवाहर लाल नेहरू और फिर इंदिरा गांधी दोनों ने उन्हें राज्यसभा में आने का न्योता दिया लेकिन उन्होंने इसे विनम्रता से मना कर दिया। हालांकि जब भारत सरकार ने अंबेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया तो 14 अप्रैल 1990 के दिन यह सम्मान डॉ. आंबेडकर की पत्नी की हैसियत से उन्होंने अम्बेडकर स्टेडियम में आयोजित अम्बेडकर जयंती पर प्रधानमंत्री श्री वी.पी. सिंह से ग्रहण किया। दिल्ली में अंबेडकर को लेकर होने वाली कई गतिविधियों में वह सक्रिय रहती थीं। हालांकि उन्होंने खुद को सियासी गतिविधियों से काट रखा था लेकिन बाद में मुंबई जाकर उन्होंने सियासी तौर पर सक्रिय होने की कोशिश की।
नेहरू ने बड़ी नौकरी देने का भी प्रस्ताव दिया था
सविता अंबेडकर ने ‘डॉ. अम्बेडकरच्या सहवासत’ शीर्षक से आत्मकथा लिखी। ये मराठी में प्रकाशित हुई। फिर इसका हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ। उसमें उन्होंने लिखा, ‘‘डॉ. अंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद मुझे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सरकारी अस्पताल में मेडिकल आॅफिसर की नौकरी देने तथा राज्यसभा में लेने की बात कही थी, लेकिन मैंने स्वेच्छा से मना कर दिया।’’ कारण था कि बाबा साहेब ने मुझे किसी तरह की नौकरी से अलग रहने के लिए कहा था। फिर राज्यसभा की सदस्यता को स्वीकार करना कांग्रेस की मर्जी से चलने के लिए अपने आप को तैयार करना था, जो मैं नहीं चाहती थी। ये सब स्वीकार करना बाबा साहेब के विचारों के विरुद्ध जाना था।
उन्होंने आगे लिखा, ‘‘मुझे साहेब ने स्वीकार किया। मैं अंबेडकर मयी हो गई। मैंने उनका हमेशा साथ दिया। बीते 36 सालों से विधवा का जीवन जी रही हूँ, वह भी अंबेडकर के नाम के साथ। मैं अंबेडकर के नाम के साथ जी रही हूं और मरूंगी भी तो इसी नाम के साथ।’’
19 अप्रैल, 2003 को को मुबई के जे. जे. हॉस्पिटल में खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें भर्ती कराया गया। 29 मई, 2003 को उनका निधन हो गया।
(डॉ. सविता अम्बेडकर को उनके स्मृति दिवस पर शत्-शत् नमन!)
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