2023-12-16 11:37:40
गुरु घासीदाज जी मूल निवासी बहुजन समाज के एक स्तंभ तथा युग प्रवर्तक रहे हैं। गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में अपने राजनीतिक जीवन में भूमिहीन कृषकों, मजदूर लोगों को जो विषम परिस्थितियों व गहन संकट से जूझ रहे थे, अपने ज्ञान व चेतनामयी स्थिति से उन्हें जाग्रत करने का पुरजोर प्रयास किया। उनका एक साधारण परिवार में जन्म हुआ और उन्होंने असाधारण कार्य कर दिखाया। वे सतनामी पंथ के प्रवर्तक माने जाते हैं। सतनाम का अर्थ है- सत्य की खोज करना। चेतनामय गुणों से युक्त व्यक्ति सतनामी कहलाता है। झूठ नहीं बोलना हिंसा का त्याग, समानता का पालन, प्राणी मात्र पर क्षमा, दया करना और प्रेम करना इन गुणों से युक्त व्यक्ति को ‘सतनामी’ तथा प्राणी जगत में सुख शांति एवं समृद्धि बनाये रखने वाली विचारधारा ही ‘सतनाम’ है।
गुरु घासीदास जी ने आजीवन समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष किया। छत्तीसगढ़ के लोगों के सामाजिक और आर्थिक उन्नति के यदि किसी महापुरुष का योगदान रहा है ,तो वो सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, समता के संदेश वाहक एंव छत्तीसगढ़ के उद्धारक सदगुरु गुरु घासीदास जी का है।
गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर, 1756 को छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में गिरौद नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम मंहगू दास तथा माता का नाम अमरौतिन था और उनकी धर्मपत्नी का सफुरा था। गुरु जी को ज्ञान की प्राप्ति छतीसगढ़ के रायगढ़ जिला के सारंगढ़ तहसील में बिलासपुर रोड (वर्तमान में) में स्थित एक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त प्राप्त हुआ माना जाता है। जहाँ आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गयी है। सतगुरु घासीदास जी का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में छुआछूत, ऊंचनीच, झूठ-कपट का बोलबाला था। ऐसे समय में गुरू घासीदास ने सतनाम पंथ के माध्यम से जाति-आधारित अत्याचार, छुआछूत और वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार किया, जिससे सिर्फ दलित वर्ग ही नहीं अपितु आदिवासी और पिछड़े तबके का एक बड़ा हिस्सा सतनामी बनने से स्वयं को रोक नही पाया। यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा जाति उन्मूलन आन्दोलन था, जिसने लोगों को सतनामी बनने के लिए प्रेरित किया एंव समाज में समाज को एकता, भाईचारे तथा समरसता का संदेश दिया। घासीदास जी ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी।
इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गए। फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में ’सतनाम पंथ’ की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं।
गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के ’सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है!
सतगुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं-
(1) सतनाम पर विश्वास रखना।
(2) जीव हत्या नहीं करना।
(3) मांसाहार नहीं करना।
(4) चोरी, जुआ से दूर रहना।
(5) नशा सेवन
(6) जाति-पाति के प्रपंच में नहीं पड़ना।
(7) व्यभिचार नहीं करना।
समतामूलक समाज की स्थापना
बाबा जी ने सभी मनुष्यों को एक सामान दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष किया तथा मनुष्य जाती को सर्वोपरि प्राथमिकता दी। उन्होंने मनुवादियों द्वारा बनाई जाति व्यवस्था को तोड़ने का आव्हान किया तथा ऊँच-नीच, जाती-पाती के भेद भाव को तोड़कर समाज में समता लाने का प्रयास किया।
सतनामी बनो ,संगठन बनाओ, संघर्ष करो, का नारा देना
बाबाजी ने जाती एवं वर्ण व्यवस्था को बहुजन समाज के विरोध में पाया, उस समय भी पाखंड वाद अपने चरम पर था जिसके विरोध में बौध्ध धर्म खड़ा था , जिसे समाप्त करने के लिए बाबा जी ने सतनामी बनो ,संगठन बनाओ ,सघर्ष करो , का नारा दिया े संगठन ही वह शक्ति है जिसके द्वारा अपना आत्म सम्मान हासिल किया जा सकता है!
नारी सम्मान हेतु संघर्ष
बाबाजी नारी जाति का बड़ा आदर करते थे नारी पवित्रता की देवी है नारी ही स्त्री पुरुष की जननी है तथा संसार व मानव निर्माण का कार्य वे ही करते है े उन्होंने बाल विवाह ,सती प्रथा का विरोध किया तथा विधवा विवाह संपन्न कराया एवं स्त्री को हर क्षेत्र में समानता का अधिकार दिलाया !
बलि प्रथा का विरोध
बाबा जी ने बलि प्रथा का विरोध किया अहिंसा पर बल दिया और बताया की सभी प्राणियों में समान आत्मा होती है और उन्हें इस संसार में समान रूप से जीने का अधिकार है। गुरू घासीदास अपने संपूर्ण जीवनकाल में ऊंचनींच, जात-पात व वर्ण व्यवस्था की मनुवादी व्यवस्था पर प्रहार करते रहे तथा लोगों को जागृत करते रहे। बाद में उनके दूसरे बेटे गुरू बालकदास ने पंथ को आगे बढ़ाया। ऐसा माना जाता है कि बालकदास एक बलशाली और बहुत ही साहसी पुरूष थे। उन्होंने होश सम्हालते ही अपने पिता के सतनाम आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए जगह-जगह ’राउटी प्रथा’ का आरम्भ कर दिया और सतनाम धर्म को मानने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती गई।
उस समय समाज में व्याप्त डोला प्रथा का भी कड़ा प्रतिरोध बालकदास ने किया, जिसमें संपूर्ण शूद्र समाज उनको भारी सहयोग दिया। सवर्ण समाज बालकदास जी को खतरे के रूप में देखने लगे और यहाँ तक कि उन्होंने बालकदास की हत्या का षडयंत्र रच डाला। 28 मार्च 1860 को ग्राम औराबांधा में जब बालकदास अपने अनुयायी के घर भोजन कर रहे थे तभी वहॉ के दूषित मानसिकता के जातिवादियों ने उन पर हमला बोल दिया। चंूकि वे निहत्थे थे और हमलावरों की संख्या सैकड़ों में थी। इस कारण वे न खुद को और ना ही अपने दो अंगरक्षकों सरहा और जोधाई को बचा सके। इस तरह उन्होंने सतनामी पन्थ के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। हालांकि आज भी गुरू के वंशजों द्वारा सतनाम आंदोलन चलाया जा रहा हैए लेकिन उसका तेज बालकदास के काल जैसा नहीं है।
इस तरह कहा जा सकता है की बाबा जी ने जिन आदर्शों के लिए संघर्ष किया उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए हमें समझना होगा और देश तथा समाज की रक्षा के लिए तत्पर रहना होगा। साथियों हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहबजी ने वह कर दिखाया जो उस दौर में सोच पाना भी मुश्किल था...
सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचे ऐसे ही एक तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्शियत क्रांतिकारी,महान संत शिरोमणि परमपूज्य गुरु घासीदास जी का नाम दबा है। गुरु घासीदास जी के नाम पर बिलासपुर (अब छत्तीसगढ़ राज्य), में गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की सन 1983 में स्थापना की गई। यह विश्वविद्यालय 655 एकड़ में फैला हुआ है।
सभी देशवासियों को सतनामी पंथ के संस्थापक, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सूर्यकोटि, परमपूज्य गुरु घासीदास जी की जंयती की हार्दिक शुभेच्छा एंव मंगलकामनाएं एंव शत-शत नमन!!
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |