2024-05-10 13:57:10
महाराष्ट्र में जिन संतों ने जाति-पाति का भेदभाव मिटाकर भगवान की भक्ति की उनमें संत चोखामेला का नाम बड़े आदर से लिया जाता हैं। उन्हें विठ्ठल कृपा प्राप्त थी। संत ज्ञानेश्वर की संत मंडली में चोखामेला का बड़ा आदर-सम्मान था। वे महार जाति के थे। जो उस समय अस्पर्श मानी जाती थी। संत चोखामेला जी का जन्म कब हुआ व जन्म के बारे में अधिक जानकारी नहीं हैं। लेकिन बताया जाता है कि इनका जन्म सन 1270 के आसपास हुआ था। ये महाराष्ट्र के मेहुणपुरी, तालुका देऊलगाव, जिला बुलढाणा से थे।
संत चोखामेला परिवार में पत्नी सोयरा, बहन निर्मला, साला बंका और उनका बेटा कर्ममेला आदि थे। चोखामेला जी और उनका परिवार श्री विट्ठल के बडेÞ भक्त थे। नामदेव जी के प्रवचन सुनने के पश्चात इनके जीवन की दिशा ही बदल गई और वे उनकी राह पर चल पड़े।
प्राचीन हिन्दू वर्ण प्रणाली में चार वर्ग थे। क्षत्रिय, वैश्य, क्षुद्र तथा ब्राह्मण मगर म्हार जाति के लोगों को इनमें से किसी वर्ग में न रखकर वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था। इन्हें शिक्षा का कोई अधिकार नही था. यहाँ तक कि गाँव के सार्वजनिक कुँए पर इन्हें पानी भरने की इजाजत भी नही थी।
मृत्यु: संत चोखामेला जी का देहावसान 14 मई सन 1338 में पंढरपुर के पास मंगलवेदा गांव में हुआ था। मजदूरी का काम करते समय उनके उपर दीवार गिर गई थी जिस हादसे में उनकी मृत्यु हुई। उनका अंतिम संस्कार विट्ठल मंदिर के सामने किया गया, जहाँ इनकी समाधि भी बनाई गई।
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