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शोषितों और वंचितों के मसीहा थे ‘लॉर्ड मैकाले’

जिनकी शिक्षा नीति ने बदल दी भारत की तस्वीर, बहुजन समाज के लिए खोले शिक्षा के द्वार
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2023-10-21 11:34:29

लार्ड मैकाले प्रथम ब्रिटिश विद्वान थे जिन्होंने विषमता पर आधारित हिंदुत्व, ब्राह्मणवाद तथा जातिवाद पर खुलकर हमला किया। वे बहुजनों के पक्ष में आवाज उठाने वाले मानवतावादी और विचारक अंग्रेज थे, जिन्होंने आधुनिक विज्ञान आधारित शिक्षानीति लागू कर भारत में शिक्षा क्रान्ति की मशाल जलाई। उन्होंने गुरुकुल की जगह कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त किया। लार्ड मैकाले न होते तो मुमकिन था कि अब भी शिक्षा गुरुकुलों में कैद होती, जहाँ चंद जातियों के लोग ही पढ़ रहे होते। अगर उन्होंने आईपीसी न बनायीं होती तो आज भी मनुस्मृति से देश चल रहा होता और भारत के पहले आतंकवादी नाथूराम गोडसे को फांसी न हो पाती।

लॉर्ड मैकाले जिनका पूरा नाम ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’ था। वे प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि, निबन्धकार, इतिहासकार तथा एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। मैकाले का जन्म 25 अक्टूबर, 1800 ई. में रोथले टैंपिल इंग्लैण्ड के लेस्टर शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम जकारी मैकाले था, जो एक कुशल व्यापारी थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा केंब्रिज के पास एक निजी विद्यालय में, फिर एक सुयोग्य पादरी के घर पर, उसके बाद ट्रिनिटी कालेज कैंब्रिज में हुई। 1823 ई. में बैरिस्टर बने और 1826 में वकालत शुरू की। वर्ष 1830 में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट का सदस्य चुना गया, तथा 1834 में गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल का पहला कानून सदस्य नियुक्त होकर भारत आये। भारत का प्रशासन उस समय तक जातीय द्वेष तथा भेदभाव पर आधारित तथा दमनकारी था। उन्होंने ठोस उदार सिद्धान्तों पर प्रशासन चलाने की कोशिश की। सन 1834 ई. से 1838 ई. तक वह भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान भी रहे। भारतीय दंड विधान से सम्बन्धित ‘दी इंडियन पीनल कोड’ की लगभग सभी पांडुलिपि उन्होंने ही तैयार की थी। अंग्रेजी भाषा को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाकर गुलामी, बेरोजगारी अशिक्षा दूर करने में मैकाले का बड़ा हाथ था।

6 अक्टूबर 1860 को लॉर्ड मैकाले द्वारा लिखी गई भारतीय दण्ड संहिता (इंडियन पेनल कोड) लागू हुई। आई पी सी लागू होने पर कानून के समक्ष ब्राह्मण - शूद्र सभी बराबर हो गए, और मनुस्मृति का विधान खत्म हुआ। इसके पहले भारत में मनुस्मृति के काले कानून लागू थे, जिनके अनुसार अगर ब्राह्मण हत्या का आरोपी भी होता था तो उसे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जाता था और वेद वाक्य सुन लेने मात्र से अपराध से मुक्त हो जाता था वहीं दूसरी तरफ अपराधी शूद्रों के कानों में शीशा पिघलाकर डालने का प्रावधान था। लार्ड मैकाले भारत के बहुजनों के लिए किसी फरिस्ते से कम नहीं थे वे हजारों साल से शिक्षा के अधिकार से वंचित बहुजन समाज के लिए मुक्ति दूत बनकर भारत आये। उन्होंने शिक्षा पर ब्राह्मणों के एकाधिकार को समाप्त कर सभी को समान रूप से शिक्षा पाने का अधिकार प्रदान किया तथा पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों की किस्मत के दरवाजे खोल दिए।

मैकाले का स्मरण-पत्र जिसने बदल दी भारत की शिक्षा नीति

ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक द्वारा गठित सार्वजनिक शिक्षा समिति के अध्यक्ष के रूप में लार्ड मैकाले ने अपने विचार सुप्रसिद्ध स्मरणपत्र 2 फरवरी 1835 में दिए और उनके विचार ब्रिटिश सरकार द्वारा 07 मार्च 1835 को अनुमोदित किए गए। मैकाले ने यहां का सामाजिक भेदभाव, शिक्षण में भेदभाव और दण्ड संहिता में भेदभाव देखकर ही आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव रखी और भारतीय दण्ड संहिता लिखी। जहां आधुनिक शिक्षा पद्धति में सबके लिये शिक्षा के द्वार खुले थे, वहीं भारतीय दण्ड संहिता के कानून ब्राह्मण और अतिशूद्र सबके लिये समान बने। मनुस्मृति की व्यवस्था से ब्राह्मणों को इतनी महानता प्राप्त होती रही थी कि वे अपने आपको धरती का प्राणी होते हुए भी आसमानी पुरुष अर्थात देवताओं के भी देव समझा करते थे। लॉर्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति से ब्राह्मणों को अपने सारे विषेषाधिकार छिनते नजर आये, इसी कारण से उन्होनें इस नीति का विरोध किया। इनकी नजर में लॉर्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति केवल बाबू बनाने की शिक्षा देती है। लेकिन लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से बाबू तो बन सकते हैं, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से तो वह भी नहीं बन सके। हां, ब्राह्मण सब कुछ बनते थे, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या नहीं, अन्य जातियों के लिये तो सारे रास्ते बन्द ही थे। अत: इन जातियों के लिये तो यह शिक्षा पद्धति कोहनी पर लगा गुड़ ही साबित हुई। ऐसी पद्धति की लाख अच्छाईयां रही होंगी, पर यदि शूद्रों को पढ़ाया ही नहीं जाता हो, गुरुकुलों में प्रवेश ही नहीं होता हो, तो वह उनके किस काम की?

मैकाले ने कहा था, ‘फिलहाल हमें भारत में एक ऐसा वर्ग बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो हमारे और हम जिन लाखों लोगों पर राज कर रहे हैं, उनके बीच इंटरप्रेटर यानी दुभाषिए का काम करे। लोगों का एक ऐसा वर्ग जो खून और रंग के लिहाज से भारतीय हो, लेकिन जो अभिरूचि में, विचार में, मान्यताओं में और विद्या-बुद्धि में अंग्रेज के तरह विकसित हो।’ यानि शक्ल से भारतीय हो अक्ल से ब्रिटिश हो। लार्ड मैकाले के नक्शे कदम पर ही जवाहरलाल नेहरू भी थे।

जब भी देश में शिक्षा के निरंतर गिरते स्तर पर चर्चा होती है तो इसके लिए सबसे पहले ब्रिटिश विद्वान लॉर्ड मैकाले को गाली देकर शुरूआत की जाती है। खासतौर से बुद्धिजीवी तबका तो अपनी नाकामी को छुपाने के लिए ब्रिटिश, अंग्रेजी और मैकाले पर ही सारी शैक्षणिक बबार्दी का ठीकरा फोड़ देते हैं। इससे बहुजन भी इतिहास की असलियत को जाने बिना मैकाले को दुश्मन मान रहा है। बारीकी से देखें तो ये सारे आरोप निराधार हैं। पाठ्य पुस्तकों में भारत की स्वाधीनता के लिए यादगार योगदान देने के लिए सामान्यत या गाँधी, सुभाष, भगत सिंह इत्यादि की खूब चर्चा होती है, किन्तु इसके पृष्ठ में जिस व्यक्ति का बुनियादी योगदान रहा, उस मैकाले की अहमियत को शून्य पर पहुँचाने का प्रयास हुआ। पाठ्य पुस्तकों में मैकाले का जिक्र होता है तो रावण के बाद सबसे बड़े खलनायक के रूप में, किन्तु सच्ची बात तो यह है कि अंग्रेजों से इंडियन लोगों को लिबरेट करने में सबसे बड़ी भूमिका लार्ड मैकाले की रही। उन्होंने भारत में अंग्रेजी शिक्षा नीति लागू करते समय बहुत ही शांत-चित्त से कहा था, ‘हम जो शिक्षा नीति इस देश को देकर जा रहे हैं, उसके फलस्वरूप हमें इस देश से चला जाना होगा, किन्तु वह जाना हमारे लिए गर्व की बात होगी।’

यदि अंग्रेजों द्वारा मिशनरी स्कूलों में वंचितों को प्रवेश नहीं मिलता तो ज्योतिबा फुले, डॉ.अंबेडकर पैदा ही नहीं होते क्योंकि वे शूद्र/अछूत वर्ग से थे। बाबा साहेब की अंग्रेजी व ज्ञान का भारत के ही नहीं बल्कि विदेशी लोग भी लोहा मानते थे। स्वामी विवेकानंद को अंग्रेजी ज्ञान के कारण अमेरिका में बहुत ख्याति मिली थी। मौर्य शासनकाल में भारत शिक्षा साहित्य कला विज्ञान समाज की दृष्टि से सोने की चिड़िया था। मौर्य सम्राट बृहद्रथ जो नाई जाति से था, की हत्या के बाद एक बार फिर वर्ण/जाति व्यवस्था का वर्चस्व हो गया। जिसको मैकाले व आधुनिक विज्ञान ने तोड़ा।

मैकाले ने अंग्रेजी के फायदे के बारे में विस्तृत रुप से बताया है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य इंसानों में गैर बराबरी को तोड़कर बराबरी स्थापित करना है। अंधविश्वास और गलत परंपराओं से मुक्ति दिलाना है। शिक्षा के अर्थ से पुरानी बातों को रटना, बार-बार दोहराना, स्वयं ही गुणगान करना दुनिया से कटे रहना नहीं है। बल्कि दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना है। वंचित समाज में लॉर्ड मैकाले व डॉ.अंबेडकर के कारण शिक्षा की जो किरण आई थी वह अब प्रतिनिधित्व के खात्मे, शिक्षा के निजीकरण व महंगीकरण, शिक्षा व सरकारी स्कूलों की उपेक्षा, शैक्षणिक संस्थानों पर पूंजीपतियों का कब्जा से वह धीरे धीरे बुझती जा रही है। गांव में बहुजन समाज के बच्चे आठवीं दसवीं से आगे बढ़ नहीं पा रहे हैं। क्लर्क डॉक्टर इंजीनियर बनना तो बहुत दूर की बात है। ब्राह्मण इल्जाम लगाते हैं कि मैकाले ने सिर्फ बाबू तैयार किए लेकिन अब तो उच्च वर्णों के खेतों फैक्ट्रियों महलों सड़कों पर काम करने के लिए गुलामों की पौध तैयार हो रही है जो बहुजन समाज की है। शोषक वर्ग की साजिश साकार होती नजर आ रही है कि शोषित को शिक्षा से दूर रखकर, हर हालात में तीर्थयात्रा, पूजापाठ, कर्मकांड, तीजत्योहारों में व्यस्त रखो। उसकी सारी कमाई येन-केन-प्रकारेण शोषक वर्ग की तिजोरी में ही जाए। आज बहुजन निरर्थक तीर्थयात्रा, पूजापाठ, कर्मकांड, तीजत्योहार, परंपराओं में मदहोश है। उसे अपनी भावी पीढ़ी की जरा भी चिंता नहीं है। आखिर यह वर्ग अपने सामाजिक शैक्षणिक विकास के प्रति कब सचेत होगा। बुद्ध-कबीर-फुले-अंबेडकर की शिक्षा को कब अपने जीवन में उतारेगा। अमेरिका में जो अब्राहम लिंकन व रूस सहित साम्यवादी जगत में जो कार्ल मार्क्स ने किया। वही भारत में लार्ड मैकाले ने किया। भारत में सबसे बड़ी क्रांति को लॉर्ड मैकाले ने जन्म दिया जिसके कर्ज से यहाँ के बहुजन कभी भी मुक्त नहीं हो सकते। लॉर्ड मैकाले के शिक्षा व कानून सुधारों से फकीर, पंडित, शूद्र सब समान माने जाने लगे। यह सच्चाई है कि मैकाले ने आगे आने वाली पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त किया जिसके कारण ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार रामास्वामी नायकर और डॉ. अंबेडकर जैसी महान विभूतियों का उदय हुआ। जिन्होंने भारत का नया अध्याय लिखा। लार्ड मैकाले ने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया।

मैकाले द्वारा स्थापित की गयी दंड और शिक्षा व्यवस्था ने क्या भारतीयों के जीवन में एकरूपता का काम नहीं किया? और क्या यह हमारी राजनैतिक और सामाजिक आजादी का आधार नहीं बनी? इंडिया नाम की जिस असभ्य, गंवार, जंगली ‘कालोनी’ को उसने सभ्य-सुसंस्कृत बनाने के लिए अपने देश की महान भाषा और महान संस्कृति का पौधा रोपने का संकल्प लिया था, उसकी खेती आज यहाँ के गाँव-गाँव में लहलहा रही है। इस देश के लोग उपकार को हमेशा याद रखते हैं। इसीलिए यहाँ के लोगों ने न केवल मैकाले की बताई संस्कृति को अपनाया है, बल्कि इस संस्कृति से हमारा परिचय कराने के लिए मैकाले का उपकार मानते हुए उसे भी अपने सीने से लगा रखा है। हमारे देश में उनका जन्मदिन और पूण्यतिथि दोनों धूमधाम से मनायी जाती है क्योंकि लोगों ने यह मान लिया है कि मैकाले जैसे महापुरुष के कारण ही आज यह देश अंध-विश्वास, अज्ञानता और निर्धनता के अँधेरे से निकलकर आधुनिक विश्व के सुशिक्षित, अंध-विश्वासों से दूर, ज्ञानी और संपन्न लोगों के बीच उठने-बैठने योग्य बना है। अत: समझदार लोग उसका मुक्तकंठ से गुणगान करते हैं। परंपरावादी लोग ब्राह्मणों के शिक्षा पर एकाधिकार को चुनौती देने के कारण मैकाले की आलोचना करते हैं जबकि मैकाले ने शिक्षा में समता की धारा को प्रवाहित किया। मैकाले भारत का भाग्य विधाता है। मैकाले ही थे जिन्होंने गुरुकुल की जगह स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटियां स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त किया। आज मैकाले की आलोचना में वही लोग लगे है जो मनुवाद को अपना आदर्श मानते हैं। बहुजनों को मैकाले के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। यह कटु सत्य है कि भारत मे अंग्रेजों का आगमन बहुजनों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।

प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति:-

(1) इसका आधार प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रहे।

(2) इसमें शिक्षा मात्र ब्राह्मणों द्वारा दी जाती थी।

(3) इसमें शिक्षा पाने के अधिकारी मात्र सवर्ण ही होते थे।

(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड का बोलबाला रहता था।

(5) इसमें धर्मिक ग्रन्थ, देवी-देवताओं की कहानियां, चिकित्सा, तंत्र, मंत्र, ज्योतिष, जादू टोना आदि शामिल रहे हैं।

(6) इसका माध्यम मुख्यत: संस्कृत रहता था।

(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों का अभाव रहता था अथवा अतिश्योक्तिपूर्ण ढंग से बात कही जाती थी। जैसे:-राम ने हजारों वर्ष राज किया, भारत जम्बू द्वीप में था, कुंभकर्ण का शरीर कई योजन था, कोटि-कोटि सेना लड़ी, आदि आदि।

(8) इस नीति के तहत कभी ऐसा कोई गुरुकुल या विद्यालय नहीं खोला गया, जिसमें सभी वर्णों और जातियों के बच्चे पढ़तें हों।

(9) इस शिक्षा नीति ने कोई अंदोलन खड़ा नहीं किया, बल्कि लोगों को अंधविश्वासी, धर्मप्राण, अतार्किक और सब कुछ भगवान पर छोड़ देने वाला ही बनाया।

(10)गुरुकुलों में प्रवेश से पूर्व छात्र का यज्ञोपवीत संस्कार अनिवार्य था। चूंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों में शूद्रों का यज्ञोपवीत संस्कार वर्जित है, अत: शूद्र तो इसको ग्रहण ही नहीं कर सकते थे, अत: इनके लिये यह किसी काम की नहीं रही।

(11) इसमें तर्क का कोई स्थान नहीं था। धर्म और कर्मकाण्ड पर तर्क करने वाले को नास्तिक करार दिया जाता था। जैसे चार्वाक, तथागत बुद्ध और इसी तरह अन्य।

(12) इस प्रणाली में चतुर्वर्ण समानता का सिद्धांत नहीं रहा।

(13) प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में शूद्र विरोधी भावनाएं प्रबलता से रही हैं। जैसे कि एकलव्य का अंगूठा काटना, शम्बूक की हत्या आदि।

(14) इससे हम विश्व से परिचित नहीं हो पाते थे। मात्र भारत और उसकी महिमा ही गायी जाती थी।

(15) इसमें वर्ण व्यवस्था का वर्चस्व था और इसमें व्रत, पूजा-पाठ, त्योहार, तीर्थ यात्राओं आदि का बहुत महत्त्व रहा।

मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति:-

(1) इसका आधार तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उत्पन्न आवश्यकतायें रहीं।

(2) लॉर्ड मैकाले ने शिक्षक भर्ती की नई व्यवस्था की, जिसमें हर जाति व धर्म का व्यक्ति शिक्षक बन सकता था। तभी तो रामजी सकपाल (बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के पिताजी) सेना में शिक्षक बने।

(3) जो भी शिक्षा को ग्रहण करने की इच्छा और क्षमता रखता है, वह इसे ग्रहण कर सकता है।

(4) इसमें धार्मिक पूजापाठ और कर्मकाण्ड के बजाय तार्किकता को महत्त्व दिया जाता है।

(5) इसमें इतिहास, कला, भूगोल, भाषा-विज्ञान, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, प्रबन्धन और अनेक आधुनिक विद्यायें शामिल हैं।

(6) इसका माध्यम प्रारम्भ में अंग्रेजी भाषा और बाद में इसके साथ-साथ सभी प्रमुख क्षेत्रीय भाषाएं हो गईं।

(7) इसमें ज्ञान-विज्ञान, भूगोल, इतिहास और आधुनिक विषयों की प्रचुरता रहती है और अतिश्योक्ति पूर्ण या अविश्वसनीय बातों का कोई स्थान नहीं होता है।

(8) इस नीति के तहत सर्व प्रथम 1835 से 1853 तक अधिकांश जिलों में स्कूल खोले गये। आज यही कार्य केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही निजी संस्थाएं भी शामिल हैं।

(9) भारत में स्वाधीनता आंदोलन खड़ा हुआ, उसमें लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति का बहुत भारी योगदान रहा, क्योंकि जन सामान्य का पढ़ा-लिखा होने से उसे देश-विदेश की जानकारी मिलने लगी, जो इस आंदोलन में सहायक रही।

(10) यह विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लागू होती आई है।

(11) इसको ग्रहण करने में किसी तरह की कोई पाबन्दी नहीं रही, अत: यह जन साधारण के लिये सर्व सुलभ रही। अगर शूद्रों और अतिशूद्रों का भला किसी शिक्षा से हुआ तो वह लार्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से ही हुआ। इसी से पढ़ लिख कर बाबासाहेब अंबेडकर डॉक्टर बने।

(12) इसमें तर्क को पूरा स्थान दिया गया है। धर्म अथवा आस्तिकता-नास्तिकता से इसका कोई वास्ता नहीं है।

(13) यह राजा और रंक सब के लिये सुलभ है।

(14) इसमें सर्व वर्ण व सर्व धर्म समान हैं। शूद्र और अतिशूद्र भी इसमें शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन जहां-जहां संकीर्ण मानसिकता वाले ब्राह्मणवादियों का वर्चस्व बढ़ा है, वहां वहां इन्होनें उनको शिक्षा से वंचित करने की भरपूर कोशिश की है।

(15) इससे हम आधुनिक विश्व से सरलता से परिचितहो रहे हैं।

लार्ड मैकाले ने संस्कृत-साहित्य पर प्रहार करते हुए लिखा है कि क्या हम ऐसे चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कराएं जिस पर अंग्रेजी पशु-चिकित्सा को भी लज्जा आ जाये। क्या हम ऐसे ज्योतिष को पढ़ायें जिस पर अंग्रेज बालिकाएं हँसें। क्या हम ऐसे भूगोल बालकों को पढ़ाने को दें जिसमें शीरा तथा मक्खन से भरे समुद्रों का वर्णन हो। लार्ड मैकाले संस्कृत, तथा फारसी भाषा पर धन व्यय करना मूर्खता समझते थे।

लार्ड मैकाले ने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जिसके कारण ज्योतिवा फुले, शाहु जी महाराज, पेरियार रामास्वामी और बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर जैसी महान विभूतियों का उदय हुआ जिन्होंने भारत का नया इतिहास लिखा। इस प्रकार शिक्षा और कानून के क्षेत्र में शूद्रों और अतिशूद्रों के लिए किये गये कार्यों के लिए लार्ड मैकाले बेजोड़ स्तंभ हैं और हमेशा रहेंगे। मानवता के मसीहा और आजीवन अविवाहित रहने वाले मैकाले का केवल 59 वर्ष की आयु में 28 दिसंबर 1859 को देहावसान हो गया। भारत में ऐसे विद्धानों की कमी नहीं है जो प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का गुणगान करते नहीं थकते और लॉर्ड मैकाले की आधुनिक शिक्षा पद्धति को पानी पी-पीकर गालियां देते हैं। ऐसे सभी लोग मनुवाद की बीमारी से ग्रस्त हैं।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05