2022-08-23 11:05:39
भारत में समतामूलक समाज की सरंचना में पहल करने वालों में साहूजी महाराज का विशिष्ट स्थान व योगदान है। साहूजी महाराज ज्योतिबा फूले के पश्चातवर्ती समरसता एवं समाजिक न्याय की योजना को मूर्तरूप प्रदान करने वाले फूलेवादी तथा डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर सुधारवादी के रूप में स्थापित अम्बेडकरवादी थे। 26 जुलाई 1902 को अपनी रियासत में 50% आरक्षण की घोषणा की जो कि माननीय उच्चतम न्यायाल द्वारा हूबहू बालाजी तथा इन्द्रा साहनी के मामले में अंगीकार व स्वीकार किया गया। उन्होंने अपने राज्य में नि:शुल्क एवम् अनिवार्य प्राथमिक शिक्षाा की व्यवस्था की थी जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के समान थी। साहूजी महाराज ने ही डॉ. अम्बेडकर को सम्मान तथा आर्थिक सहायता देकर शिक्षा पूरी करने के लिए सितम्बर 1920 में लंदन भेजा। डॉ. अम्बेडकर ने लंदन स्कूल आॅफ इकॉनोमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइन्स में पुन: प्रवेश लेकर एम.एस-सी तथा डी.एस-सी. की डिग्रियां प्राप्त की तथा ग्रेज-इन लंदन से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की।
कोल्हापुर नरेश छत्रपति साहूजी महाराज महान हिन्दू धर्मरक्षक, शौर्यवान, अप्रतिन साहस के धनी छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र तथा आपा साहेब घाटगे महाराज के पुत्र थे। साहूजी का जन्म 26 जुलाई 1874 को हुआ। इनका बचपन का नाम यशवन्त राव था। राज्यभिषेक के समय इन्हें छत्रपति साहूजी महाराज के नाम से गद्दी पर बैठाया। शाहूजी प्रतिभाशाली एवं प्रखर बुद्धि के धनी थे। इनकी शिक्षा मात्र भारत में ही न होकर लंदन में भी हुई। इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। वहीं से इन्हें डॉक्टर आॅफ लॉज की मानद उपाधि प्रदान की गई। इस विश्वविद्यालय से इन्हें यह डिग्री प्राप्त करने के लिए प्रथम भारतीय का गौरव प्राप्त हुआ। साहूजी महाराज देश-विदेश में शिक्षित होने के कारण भारतीय संस्कृति के गुण व दोषों को अच्छी तरह जानते थे। साथ ही वे ब्राह्मणों के पाखंड व ढोंग को अच्छी तरह समझते थे। उनमें चिंतनशीलता, वस्तु परखने, न्याय प्रियता, समता, स्वतंत्रता तथा बंधुता वाले सभी गुण थे। इसलिये पोंगा पंथी ब्राह्मणों द्वारा उन्हें बहकाना असंभव था। वे अपना निर्णय मानवीयता, समता, न्याय तथा पूर्ण स्वतंत्रता की कसौटी के आधार पर ही करते थे।
साहूजी महाराज ने जब अपने राज्य में प्रशासन पर नजर डाली तो उन्होंने पाया कि नौकरियों में उच्च पदों पर तथा अन्य श्रेणियों में ब्राह्मणों तथा उच्च जाति वालों का ही बोलवाला था। इन नौकरियों में पिछड़े तथा दलित वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्न बहुत कम था। शाहूजी समानता, स्वतंत्रता तथा न्याय के पक्ष पर थे और वे चाहते थे कि पिछड़े व दलित वर्ग के लोगों को भी समान अवसर मिलना चाहिये और वे लोग भी उन्नति के मार्ग पर चलें। लेकिन ब्राह्मणवादी लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते थे। अत: साहूजी महाराज ने एक बड़ा निर्णय लिया। महाराज ने अपने 26 जुलाई 1902 के आदेश द्वारा राज्य की नौकरियों में पिछडेÞ तथा दलित वर्ग के लोगों के लिये 50% का आरक्षण लागू कर दिया। इस प्रकार साहूजी महाराज भारत में आरक्षण के जनक माने जाते हैं।
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