2024-01-25 12:53:29
आदरणीय बौद्ध विपश्यना आचार्य सत्यनारायण गोयनका जी विपश्यना ध्यान के प्रसिद्ध बर्मी-भारतीय गुरु थे। उनका जन्म बर्मा में हुआ, उन्होंने सायागयी उ बा खिन का अनुसरण करते हुए 14 वर्षों तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1969 में वे भारत प्रतिस्थापित हो गये और ध्यान की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया। 1976 में धम्म गिरि मेडिटेशन सेण्टर, इगतपुरी में पगोडा की स्थापना की।
जीवन
गोयनका जी का जन्म 30 जनवरी 1924 को बर्मा (वर्तमान म्याम्यार) में हुआ। उनके माता पिता मारवाड़ी जातीयता समूह के भारतीय लोग थे, गोयनका का पालन पोषण रूढ़िवादी हिन्दू सनातनी घर में हुआ। वो 1955 तक एक सफल व्यवसायी थे, 31 वर्ष की आयु में उन्हें आधासीसी नामक सरदर्द ने अपना शिकार बना लिया। उचित राहत पाने में असमर्थ होने के बाद वे एक मित्र के सहयोग से विपश्यना गुरु सायज्ञी यू बा खिन (1899-1971) से मिले। हालांकि बा खिन शुरू में अनिच्छुक थे लेकिन बाद में उन्होंने गोयनका को अपना शिष्य स्वीकार कर लिया। विपश्यना एक प्रकार की साधना है जिसे भगवान बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले खोजा था। यह मनुष्य के दुखों के निवारण करने की एक प्रक्रिया है। इस शिक्षा के द्वारा मनुष्य स्वयं के द्वारा अपने दुखों पर नियंत्रण कर सकता है। यह जानने योग्य बात है कि यह ज्ञान भारत से लगभग 1000 साल पहले राजनीतिक परिवर्तन के कारण विलुप्त हो गया था जब सेनापति पुश्यमित्र शुंग ने मौर्य राजा वृह्दर्थ का चालाकी से वध करके खुद राजा बन गया और मनुवाद की स्थापना की। इसके बाद अल्लाऊद्दीन खिलजी के शासन के दौरान ब्राह्मणवादियों के बहकावे में आकर नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगा दी गई। नालंदा विश्वविद्यालय बर्बाद हो गया और चीन, बर्मा आदि देशों के विद्यार्थी अनेक उपयोगी तथा महत्वपूर्ण ग्रंथों को अपने देश ले गये।
गोयनकाजी विपश्यना के महर्षि थे। विपश्यना बौद्ध काल से चली आ रही अदभुत साधना पद्धति है। वह भारत में लगभग लुप्त हो गई थी लेकिन बर्मा में एक बौद्ध संत उबा सिन उसे जीवित रखे हुए थे। उन्होंने सारे इलाज करा लिए। जापान और अमेरिका के डॉक्टर भी टटोल लिए लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। वे रंगून के विख्यात व्यवसायी थे। वे कट्टर आर्यसमाजी थे। एक दिन वे रंगून में अपनी कार से कहीं जा रहे थे कि उनकी नजर उबा सिन के शिविर पर पड़ी। वे उसमें शामिल हो गए। उन्होंने तीन दिन विपश्यना की और क्या देखा कि उनका सिरदर्द गायब हो गया। चित में अपूर्व शांति आ गई। उन्होंने अपने व्यापार आदि को तिलांजलि दी और विपश्यना साधना-पद्धति को पुनर्जीवित करने का संकल्प कर लिया। वे 14 वर्ष तक रंगून में ही विपश्यना का अभ्यास करते रहे और फिर 1969 में भारत आ गए। विपश्यना का सरल पाली नाम विपासना है। उन्होंने लाखों लोगों का विपासना सिखाई। इस समय 90 देशों में उनके 170 केंद्र चल रहे हैं। लगभग 60 भाषाओं में विपासना के शिविर आयोजित होते हैं। मुंबई में बोरीवली के पास पहाड़ी पर गोयनका जी ने एक विशाल मेडिटेशन सेंटर बनाया है। मेडिटेशन हॉल की क्षमता आठ हजार लोगों को एक साथ बैठने की है। यह शिविर 10 दिन का होता है। दसों दिन साधक को मौन रहना होता है। एक समय भोजन करना होता है। लगातार कई घंटों तक शरीर को हिलाए-डुलाए बिना एक ही मुद्रा में बैठे रहना होता है। और जो मुख्य काम करना होता है -वह है-अपनी आती और जाती सांस को निरंतर महसूस करते रहना होता है। यह अत्यंत सहज ध्यान प्रक्रिया है। आज संपूर्ण विश्व में गोयनका जी के द्वारा (वीडियो के द्वारा) इस शिक्षा का अभ्यास कराया जाता है और इसके बहुत ही लाभदायक परिणाम भी लोगों के द्वारा अनुभव किए गए हैं।
पुरस्कार
उन्हें 2012 में 63वें गणतन्त्र दिवस पर भारत के तृतीय सर्वोच्च्य नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। गोयनका जी को विश्व के अनेक मंच जैसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, संयुक्त राष्ट्र संघ पर आमंत्रित किया गया ताकि वह इस विषय में लोगों को अधिक जानकारी दे सके।
निधन
29 सितम्बर 2013 को उनके मुम्बई स्थित घर में उनका परिनिर्वाण हो गया। उनके पीछे घर में उनकी संगिनी इलायची देवी गोयनका और छ: पुत्र हैं।
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