2022-11-18 09:42:32
एक महान भारतीय क्रांतिकारी लहुजी साल्वे जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने देश को आजाद करने के लिए समर्पित किया और मरते दम तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति की नयी मशाल जलाने वाले लहुजी साल्वे जिन्होंने हजारो क्रांतिकारियों का निर्माण किया। लहूजी राघोजी साल्वे का जन्म 14 नवंबर 1794 को एक बहादुर परिवार मे हुआ था। उनका जन्म मराठा साम्राज्य के पुरंदर किल्ले के क्षेत्र मे आनेवाले पेठ गाँव मे हुआ था। उनके पिता का नाम राघोजी साल्वे व माता का नाम विठाबाई था। साल्वे परिवार के वीर पुरुषों की बहादुरी देखकर शिवाजी राजा ने अपने कार्यकाल मे पुरंदर किल्ले की सुरक्षा की जिम्मेदारी लहूजी साल्वे के दादाजी के ऊपर सौंप दी थी। साल्वे परिवार युद्ध कला में निपुण था। साल्वे को अपने परिवार के वीर पुरुषों से ही युद्ध कला की सीख मिली थी। लहूजी बचपन से ही तलवारबाजी, घुड़सवारी, बंदूक चलाना और निशानेबाजी इन युद्ध कला मे निपुण थे। लहूजी साल्वे के पिता राघोजी साल्वे एक बहादुर योद्धा थे अपनी बहादुरी के लिए वे उस समय प्रसिद्ध वीर पुरुष थे। एक दिन उन्होंने जंगल मे बाघ के साथ युद्ध करके जिंदा बाघ को पकड़कर पेशवों के राजदरबार मे पेश किया था। उस समय पूरे भारत मे अंग्रेजों की हुकूमत थी और देश मे अंग्रेजों का राज्य था। महाराष्ट्र राज्य के सिर्फ पुणे शहर का कारोबार पेशवों के हवाले था। अंग्रेज सरकार धीरे-धीरे पुणे शहर को अपना निशाना बना रही थी और पुणे शहर को अपने कब्जे मे लाने की पूरी तैयारी कर रही थी। सन 5 नवंबर, 1817 मे अंग्रेज और पेशवों के बीच पुणे के खड़की मे युद्ध हुआ। इस युद्ध मे लहूजी के पिता राघोजी साल्वे और 22 साल के लहूजी ने अपना योगदान दिया और अपने जान की पर्वा न करते हुये अंग्रेजो के खिलाफ लढते रहे। लहूजी के पिता राघोजी साल्वे अंग्रेजो के बीच हुये इस युद्ध मे अपनी तलवार से अंग्रेजों का सर एक ही वार मे शरीर से अलग कर देते थे। राघोजी की बहादुरी और उनका क्रोध देखकर अंग्रेज घबराने लगे थे और अंग्रेजोंने अपने बचाव के लिए एक साथ राघोजी पर वार किया और राघोजी इस युद्ध मे शहीद हुये। 22 साल के साल्वे को अपने पिता को अपने ही आंखो के सामने मरता देखकर बहुत क्रोध हुआ और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने उसी समय अंग्रेजों को देश के बाहर निकाल ने की और जीऊँगा तो देश के लिए और मरूँगा तो देश के लिए ऐसी शपथ ली। पेशवे इस युद्ध मे हार चुके थे। सन 1818 मे पुणे के शनिवारवाडा से अंग्रेज सरकार ने मराठा साम्राज्य का ध्वज निकालकर अपना युनियन जैक का ध्वज शनिवारवाड़ा पे लहराया। देशभक्ति और अपने पिता की मृत्यु की आग मे जलने वाले लाहूजी साल्वे ने बड़ी श्रद्धा के साथ अपने पिता की समाधि का निर्माण पुणे के वाकड़ेवाड़ी मे किया। लहूजी ने यह जान लिया था की, अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए शूर वीरोंकी जरूरत है। इसलिए लहूजी ने पुणे मे सैन्य प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण किया। लाहूजी साल्वे इस आखाडे मे कई सारे क्रांतिकारियों को युद्ध कला का प्रशिक्षण देने लगे थे। लहूजी ने इस आखाडे मे कई सारे अछूत समाज के युआवों को भी भर्ती करवाया था और उन्हे भी युद्ध कला का प्रशिक्षण देने लगे थे। इस आखाडे मे वासुदेव बलवंत फडके, जोतिबा फुले, लोकमान्य तिलक, गोपाल गणेश आगरकर, और चाफेकर बंधू जैसे महान क्रांतिकारी भी प्रशिक्षण ले चुके थे। मृत्यु ऐसे महान क्रांतिकारी की मृत्यु 17 फरवरी 1881 हो गई। लहूजी साल्वे भारत देश की स्वतंत्रता के लिए जीवन भर अविवाहित रहे। उनकी समाधि पुणे शहर के संगमवाडी इलाके में है। (महान क्रांतिकारी लहूजी साल्वे जी को उनकी 228वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन!)
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