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रामजी मालोजी सकपाल अम्बेडकर

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2022-11-11 12:23:21

डॉ.अम्बेडकर का पूर्वज गांव अंबावडे है, महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक छोटे से शहर मंडनगढ़, तहसील दापोली से पांच मील दूर है। डॉ.अम्बेडकर के दादाजी मालोजी सकपाल ईस्ट इंडिया कंपनी की बॉम्बे सेना में हवलदार थे। कहा जाता है कि युद्ध के मैदान में बहादुरी के कृत्यों के लिए उन्हें कुछ जमीन आवंटित की गई थी। रामजी मालोजी सकपाल का जन्म 14 नवंबर 1838 में हुआ था। मालोजी सकपाल के 4 बच्चे थे- रामजी मालोजी सकपाल, बलवंत, आनन्द (पुत्र) और मीरा बाई (बेटी)। अपने पिता की तरह, रामजी भी सेना में शामिल हो गए। रामजी कद, काठी से बहुत ही आकर्षक और रौबदार व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। वह एक प्रबुद्ध व्यक्ति थे जिन्होंने कठोर परिश्रम किया और अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त की। पूना में सेना सामान्य स्कूल से शिक्षण में डिप्लोमा प्राप्त किया। नतीजतन आर्मी स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली, हेड मास्टर के रूप में कार्य किया और सूबेदार मेजर का पद प्राप्त किया। रामजी कबीर पंथ के मानने वाले थे।

रामजी सकपाल के 14 बच्चे थे, 14 वें भीमराव (डॉ.अम्बेडकर) थे। हालांकि केवल तीन बेटे बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियां, मंजुला और तुलसा ही जीवित रहीं। महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन ने रामजी सकपाल के परिवार को प्रभावित किया था, रामजी सकपाल ने अपने बच्चों को सख्त धार्मिक माहौल में पाला था। इस प्रकार बचपन के दौरान भीमराव भक्ति गीत गाते थे। रामजी सकपाल का दृष्टिकोण अपने बच्चों के विकास के प्रति जिम्मेदारी भरा था। वे बच्चों के विकास में दिलचस्पी रखते थे। रामजी 1894 में महू छावनी से सेवानिवृत्त हुए। रामजी सेवानिवृत्ति के बाद परिवार सहित रत्नागिरी जिले के दापोली कैंप में आकर रहने लगे। इसके लिये उनकी पत्नि तथा ससुराल वाले सहमत नहीं थे। उस समय दापोली में 36 सूबेदार परिवार, अनेक सैनिक कर्मचारी तथा पेंशनर रहते थे। वहां कैम्प में स्कूल, अस्पताल, डाकघर तथा पुलिस स्टेशन जैसी सभी सुविधाऐं थी, इसलिये रामजी वहां अपना मकान भी बनाना चाहते थे। उन्हें मात्र 50 रुपये मासिक पेंशन मिलती थी जिससे परिवार का काम चलाना मुश्किल हो रहा था। सन 1896 में उन्हें सतारा में पीडब्ल्यूडी में स्टोर कीपर की नौकरी मिल गई। इसलिये वे दापोली छोडकर परिवार सहित सतारा आ गये। बाद में रामजी ने 7 नवम्बर 1900 को भीमराव का सतारा के हाई स्कूल में अंग्रेजी की कक्षा में प्रवेश करा दिया। सतारा की नौकरी अस्थाई थी, अत: यह नौकरी छूटने पर सूबेदार रामजी दिसंबर 1904 में परिवार सहित बम्बई आ गये तथा लोअर परेल की डबक चाल में एक छोटी सी खोली में रहने लगे। पहले आनन्द राव और भीमराव दोनों भाईयों का प्रवेश बम्बई के मराठा हाई स्कूल में करा दिया। इस स्कूल का शिक्षा स्तर बढ़िया नही होने के कारण तुरंत ही दोनों भाइयों का प्रवेश सरकारी एल्फिन्सटन हाई स्कूल में करा दिया जहां से भीमराव ने सन 1907 में हाई स्कूल परीक्षा पास की।

सन 1891 तक सेना में सभी जाति व धर्म के लोग थे। लेकिन 1891 में भारत के मुख्य सेनापति लार्ड किचनर ने सेना में अछूतों की भर्ती नहीं करने का आदेश जारी कर दिया। इस देश में अपना राज कायम करने के लिये सवर्णों को खुश करना ही इस का मुख्य उद्देश्य था। इस अन्याय के विरूद्ध रामजी आगे आये। इसके लिये मा. गोपालबाबा वलंगकर, सूबेदार रामजी इत्यादि समाज सुधारकों ने सरकार के उच्च अधिकारियों को पिटिशन देने के लिए मसौदा तैयार किया। सूबेदार रामजी की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। जस्टिस रानाडे इस पिटिशन को देखकर दंग रह गये। इसे महादेव गोविंद रानाडे के पास मशविरा के लिये ले गये, इसे उन्होंने कुछ संशोधन के साथ रामजी को दे दिया। यह निवेदन दापोली कै म्प के डाकघर से 6 मार्च 1895 को रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा गया। अंत में सूबेदार रामजी के निवेदन पर विचार करके सरकार ने सेना में अछूतों की पुन: भर्ती शुरु कर दी। इस प्रकार सूबेदार अपने सामर्थ्य पर यह लड़ाई जीतने में सफल रहे। कुछ समय बाद भीमराव की मां (भीमा बाई) की मृत्यु हो गई। परिवार की देखभाल की मजबूरी के कारण रामजी सकपाल ने दूसरा विवाह कर लिया। बच्चों की देखभाल उनकी बुआ मीराबाई ने की। हालांकि, रामजी सकपाल ने भीमराव की महत्वाकांक्षा को उसकी शिक्षा की दिशा में कम नहीं होने दिया। रामजी सकपाल अपने बच्चों के सुधार और विशेष रूप से भीमराव की बौद्धिक आकांक्षाओं के प्रति दृढ़ और प्रतिबद्ध थे।

1904 में बॉम्बे प्रवास के दौरान परेल में किराए के कमरे पर, रामजी सकपाल ने भीमराव की विशेष रूप से अत्यधिक देखभाल की। वे अपने बेटे से जल्दी बिस्तर पर जाने के लिए कहते थे और खुद 2 बजे तक काम करते और अध्ययन के लिए अपने बेटे को जागृत करने के बाद बिस्तर पर जाते। अपने पिता के मार्गदर्शन में भीमराव ने अनुवाद कार्य में अनुभव प्राप्त किया। भीमराव का अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उनकी कक्षा के साथी की तुलना में अच्छा था, जो भाषा में उनके पिता की रुचि को सौजन्य देता था। रामजी सकपाल की गणित में बहुत रूचि थी। इसलिए वे भीमराव की गणित में भी सहायता करते थे। भीमराव की किताबों की इच्छा अत्यधिक थी जिसे उनके महान पिता द्वारा समर्थित किया गया था। सकपाल जी ने अविस्मरणीय रूप से भीमराव को नई किताबों की पूर्ति की उसके लिए अक्सर अपनी दो विवाहित बेटियों से धन उधार लेते हुए भी, अपने गहने को गिरवी रखते हुए, जो उन्हें शादी के उपहार के रूप में मिले थे, जिन्हें मासिक पेंशन प्राप्त करने के बाद छुड़ा लेते थे, जो मात्र पचास रुपये होती थी। भीमराव कहते थे मैं बहुत अच्छी तरह शिक्षा ग्रहण करूं। उसके लिये पिताजी कुछ भी करने के लिये तैयार रहते थे। इसके लिये पिता जी द्वारा कितने कष्ट झेले गये उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।

भीमराव बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ से केलुस्कर गुरु जी (भीमराव के शिक्षक) के माध्यम से प्रति माह पच्चीस रुपये की छात्रवृत्ति प्राप्त करने में सफल हुए थे। महाराजा ने एक साक्षात्कार में भीमराव के बारे में खुद को संतुष्ट करने के बाद इस राशि को मंजूरी दी थी। भीमराव ने 1912 में बीए उत्तीर्ण करने के बाद, जनवरी 1913 में बड़ौदा राज्य की सेवा में बड़ौदा राज्य सैन्यबल में लेफ्टिनेंट के रूप में सेवा में प्रवेश किया। डॉ अम्बेडकर को एक टेलीग्राम मिला जिसमें उन्हें सूचित किया गया कि उनके पिता बॉम्बे में गंभीर रूप से बीमार हैं। उन्होंने तुरंत अपने पिता के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बड़ौदा छोड़ा। घर जाने के बाद वह सूरत स्टेशन पर अपने पिता के लिए मिठाई खरीदने के लिए उतर गये और ट्रेन छूट गई। अगले दिन जब वह बॉम्बे पहुंचे तो उनके पिता की आंखें केवल अपने प्रिय बेटे को खोज रही थी जिन पर उन्होंने अपने विचारों, आशाओं और अस्तित्व को न्यौछावर किया था। उसने अपने कमजोर हाथ अपने बेटे की पीठ पर रखे और अगले पल उनकी आंखें बंद हो गईं। भीमराव के दुख का विस्फोट इतना बड़ा था कि सांत्वना के शब्द उसके दिल को शांत करने में नाकाम रहे और उसके बड़े विलाप ने परिवार के सदस्यों को शोक की लहरों को डूबा दिया। यह 02 फरवरी 1913 का दिन था, जो भीमराव अम्बेडकर के जीवन का सबसे दुखद दिन था।

इस प्रकार एक अस्पृश्य, सूबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल का निधन हो गया, जो अपने जीवन के अंत तक मेहनती, कठोर, भक्तिपूर्ण और महत्वाकांक्षी थे। वह उम्र में परिपक्व, लेकिन धन में गरीब, कर्ज के कारण; लेकिन चरित्र में अनुकरणीय। अपने बेटे में संसार भर की बुराइयों और दुखों से लड़ने की ताकत देकर, जीवन की लड़ाई लड़ने के लिए पीछे छोड़ गए । भीमराव के जन्म से बीए डिग्री पूरी करने तक रामजी सकपाल एक प्रेरणादायक प्रहरी के रूप में खड़े रहे। वे रामजी सकपाल ही थे जिन्होंने भीमराव के दिमाग और व्यक्तित्व को आकार दिया। रामजी सकपाल, भीमराव के धैर्य, भक्ति और समर्पण के मूर्तिकार थे। रामजी सकपाल द्वारा दिखाई गई राह ने भीमराव को विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने में मदद की और उन विचारों को विकसित करने में जो उन्हें पीड़ितों के मसीहा बनाने के लिए आवश्यक थे। डॉ अम्बेडकर ने अपने पिता और मां को, उनके अतुलनीय त्याग की याद में और उनके शिक्षा के मामले में दिखाए गई जागृति के प्रति कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में अपनी पुस्तक, द प्रॉब्लम आॅफ द रुपी समर्पित की। घोर गरीबी में भी अपनी लगन, साहस, बुद्धि, दृढ़ इच्छाशक्ति से अछूत होने के कारण सवर्ण समाज द्वारा कदम-कदम पर अनेक अड़चनों को पार करते हुए रामजी सकपाल ने भीमराव को विश्व के महानायक के रूप में विकसित किया। इस अतुलनीय कार्य के लिए रामजी सकपाल को हमेशा-हमेशा याद किया जायेगा।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05