2023-08-29 12:26:18
बहुआयामी व्यक्तित्व एवं समाज सुधारक कार्यों के कारण आज भी उत्तराखंड क्षेत्र का पिछड़ा समाज टम्टाजी को श्रद्धा व सम्मान के साथ उत्तराखंड का डॉ. अंबेडकर के रूप में याद करता है। हरीप्रसाद टम्टा (hariparshad tamta) का जन्म 26 अगस्त 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा almora जनपद के एक ताम्रकार परिवार में हुआ। आप अपने पिता मा. गोविंद प्रसाद व माता मा. गोविंदी देवी की प्रथम संतान थे। उनके अतिरिक्त एक बहन कोकिला और भाई ललित था। बचपन में ही पिताजी का देहांत हो गया। बाद में पालन-पोषण उनके मामा मा. कृष्ण टम्टा ने किया।
शिक्षा
वेद कालीन समाज व्यवस्था के कारण शूद्रों के लिए शिक्षा ग्रहण करना वर्जित था। हालांकि अंग्रेजी शासन में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क कर दी गई थी। अत: सरकारी स्कूल में प्राथमिक कक्षा में प्रवेश लेना कोई कठिन कार्य नहीं था। लेकिन कुछ सामंती एवं ब्राह्मणी मानसिकता के लोग अछूत बच्चों की पढ़ाई में बाधा डाल रहे थे। इन बाधाओं के होते हुए 1892 में मामा कृष्ण टम्टा ने अपने भांजे को एक आदर्श स्कूल डिग्गी बंगला प्राइमरी स्कूल में प्रवेश दिला दिया। इसके बाद मिशन के हाई स्कूल से 1902 में टम्टाजी ने उच्च श्रेणी से हाई स्कूल पास किया और उर्दू भाषा में विशेष योग्यता (डिस्टिंगशन) प्राप्त किया। विद्यालय के अधिकारियों ने टम्टाजी को मुंशी उपाधि से सम्मानित किया। सामंतवादी और ब्राह्मणी मानसिकता के कारण टम्टाजी अपनी शिक्षा आगे नहीं बढ़ा सके।
समाज सुधार
टम्टाजी बचपन से ही मेधावी, परिश्रमी, निर्भीक, अपने समाज की सेवा करने की प्रबल भावना रखते थे। इस भावना के कारण अछूत जाति के पुनरुत्थान के कार्य अपने मामा कृष्ण टम्टा के सहयोग से 1903 से ही प्रारंभ कर दिए। अछूतों की तरफ से जो भी शिकायते आती, ध्यान से सुनते और पिटीशन तैयार कर जिलाधिकारी कार्यालय में संबंधित अधिकारी के पास भेज देते थे। इस कार्य में जो भी खर्चा आता, टम्टाजी स्वयं वहन करते थे। उच्च वर्ण द्वारा अछूतों पर होने वाले अत्याचार, शोषण को रोकने एवं उनको सामाजिक, राजनैतिक अधिकार दिलाने हेतु 1905 में टम्टाजी की अध्यक्षता में टम्टा सुधार सभा की स्थापना की गई। 1914 में टम्टा समाज सुधार के स्थान पर शिल्पकार समाज सुधार की स्थापना टम्टाजी की अध्यक्षता में की गई।
हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कंपनी
टम्टाजी के प्रयास से सबसे पहले नैनीताल से हल्द्वानी आने जाने वाले लोगों की सुविधा के लिए 1920 में हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कंपनी की स्थापना की गई।
धोली डांडा सम्मेलन
24, 25 सितंबर 1925 को अल्मोड़ा के पास धोली डांडा ग्राम में शिल्पकार समाज का एक विशाल सम्मेलन हुआ। जिसकी अध्यक्षता टम्टाजी ने की। इस अवसर पर शिल्पकार समाज की उन्नति के लिए 21 प्रस्ताव पास किए गए। जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं।
1. जिला बोर्ड, नगर पालिका में शीघ्र से शीघ्र प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य व नि:शुल्क की जाए।
2. कुमाऊं क्षेत्र में शिल्पकारों की उन्नति के लिए उनकी संख्या के आधार पर जिला बोर्ड एवं नगर पालिका में सदस्य मनोनीत किए जाए।
3. सेना में शिल्पकार के नाम से बटालियन का गठन किया जाए।
4. शिल्पकारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए खेती योग्य भूमि आवंटित की जाए।
5. अछूतों के बच्चों को पढ़ाने के लिए अधिक से अधिक विद्यालय खोले जाएं।
6. कुमाऊं क्षेत्र के लिए शिल्पकार सभा की स्थापना की जाए।
7. शिल्पकारों में भ्रातृत्व भावना की वृद्धि की जाए।
धौली डांडा का विशाल सम्मेलन एक बड़ी लड़ाई की शुरूआत थी। यह लड़ाई शिल्पकार समाज के लिए न्याय, समानता व व्यक्तित्व की गरिमा की लड़ाई थी। शिल्पकार शब्द व्यवहार में 1914 से ही प्रारंभ हो गया था लेकिन बड़े ही संघर्ष के बाद सरकार ने इस शब्द को जाति के रूप में 1926 में मान्यता प्रदान की
डॉ. अम्बेडकर और टम्टाजी
1932 में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड ने भारत की समस्याओं को जानने हेतु भारत के कुछ नेताओं को जाति के आधार पर लंदन में आमंत्रित किया। इस सभा में डॉ.अंबेडकर के आने पर गांधीजी एण्ड पार्टी को आपत्ति हुई। गांधीजी ने प्रधानमंत्री जी से पूछा आपने डॉ.अंबेडकर को क्यों आमंत्रित किया? प्रधानमंत्री जी ने उत्तर दिया क्योंकि डॉ. अंबेडकर अछूतों के सबसे बड़े नेता हैं। पटेल आदि नेताओं ने कहा हिंदुओं के नेता गांधीजी है न कि डॉ. अंबेडकर। यह सूचना सारे भारत में आग की तरह फैल गई। स्वामी अछूतानंद एवं टम्टाजी ने सेंकड़ों टेलीग्राम प्रधानमंत्री जी के पास भिजवाए जिसमें लिखा था कि अछूतों के एकमात्र नेता डॉ. अंबेडकर है न कि गांधीजी। पूना पैक्ट में भी टम्टाजी ने डॉ. अंबेडकर का साथ दिया। तब से दोनों एक दूसरे के मित्र बन गए।
समता साप्ताहिक पत्र
शिल्पकार समाज के लोगों में सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षणिक आत्मगौरव की भावना और नई चेतना जागृत करने हेतु टम्टाजी ने 1935 में समता साप्ताहिक पत्र के स्थापना की। इस पत्र के द्वारा शिल्पकार समाज में गुलामी की भावना कम हुई और उनमें नई चेतना आई।
अछूतों की दुर्दशा के कारण
जब टम्टाजी 16 वर्ष के ही थे। तभी उन्हें भली-भांति अनुभव हो गया था कि अछूतों की दुर्दशा का मुख्य कारण अशिक्षा, संगठन का अभाव और आर्थिक अभाव (धन, धरती, खेत आदि) है। सबसे पहले उन्होंने शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने कहा कोई भी व्यक्ति व समाज बिना शिक्षा के उन्नति व सम्मान प्राप्त कर ही नहीं सकता। विभिन्न विषयों का ज्ञान शिक्षा के द्वारा ही संभव है। ब्रिटिश सरकार से अछूतों के बच्चों की पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक विद्यालय खोलने एवं कुछ विद्यालयों में अछूत अध्यापक रखने की मांग की गई। जब टम्टाजी 1946-1952 में नगरपालिका अल्मोड़ा के अध्यक्ष बने। उन्होंने शिल्पकार (अछूत) बच्चों की पढ़ाई का विशेष ध्यान रखते हुए अपने क्षेत्र में 150 प्राथमिक विद्यालय एवं रात्रि विद्यालय भी खुलवाए। उनके लिए छात्रवृत्ति का भी प्रबंध करवाया गया। अछूतों की आर्थिक स्थिति बहुत चिंताजनक थी, अपनी कोई जमीन, संपत्ति न होने के कारण उच्चवर्ण लोग अपमानित करते थे। इस महत्वपूर्ण कमी को दूर करने के लिए टम्टाजी ने ब्रिटिश सरकार से 30000 एकड़ जमीन डिस्फॉरेस्ट कराकर शिल्पकार समाज में वितरित करा दी गयी।
समाज की उन्नति एवं सरकार से अपनी मांग मनवाने के लिए एक मजबूत संगठन की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति हेतु टम्टाजी ने बिखरी हुई 51 अछूत जातियों को एक सूत्र में पिरोकर शिल्पकार शब्द (जाति) में समावेश करा दिया। यह टम्टाजी की बहुत बड़ी उपलब्धि थी।
अकाल व महामारी
टम्टाजी जहाँ एक कुशल प्रशासक, राजनीतिज्ञ व समाज सेवी थे, वहीं उनके ह्रदय में बीमार व असहायो के प्रति करूणा व उदारता की भावना भी थी। सन 1960 तो 1945 में उत्तराखंड में भयंकर अकाल पड़ा। टम्टाजी ने कुमाऊं क्षेत्र के गाँव में सरकारी सस्ते अनाज की दुकानें खुलवाई। इससे लोग भुखमरी से बच गए। इसी तरह सन 1944 में इंफ्लुएंजा नामक संक्रामक रोग फैला। इस बीमारी से बचने हेतु टम्टाजी ने शीघ्र ही 1500 स्काउटों की नियुक्ति की और उनको दवा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों की सेवा के लिए भेजा। ग्रामीण जनता उनके इस पुनीत कार्य से लाभान्वित हुई। क्षेत्र के लोग टम्टाजी की उदारता से बहुत प्रभावित हुए।
महिला शिक्षा पर टम्टा जी के विचार
उत्तराखंड देश के अन्य भागों से अधिक पिछड़ा, अंधविश्वासी और परंपरावादी है। इसके कारण उत्तराखंडवासी प्राय: कहा करते थे, लड़कियां पराया धन होती है। लेकिन टम्टाजी प्रगतिशील विचारों के होने के कारण स्त्री शिक्षा के पक्के हिमायती थे। उनका मानना था लड़की शिक्षित होने से परिवार, आदर्श परिवार बन जाता है। आदर्श परिवार ही एक आदर्श नागरिक का निर्माण कर सकता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए टम्टा जी ने अपने क्षेत्र में सरकार के द्वारा लड़कियों के लिए स्कूल खुलवाए। उनके प्रयास से 1930 में उनकी भांजी ने हाईस्कूल, 1934 में स्नातक (उत्तराखंड में प्रथम महिला स्नातक) और 1935 में मनोविज्ञान से एम. ए. किया।
महिला सशक्तिकरण
शिल्पकार समाज में अशिक्षा के कारण बाल विवाह, बेमेल विवाह होते रहते थे। विधवा स्त्री को देखना पाप समझा जाता था। टम्टाजी इन प्रथाओं के विरोधी थे। वे चाहते थे समाज में विधवाओं का अपमान न हो, विधवा समाज पर भार न बने, आत्मनिर्भर बने, उनकी अपनी नियमित आय हो, इस विचार को पूरा करने के लिए टम्टाजी ने रोजगार गृह खुलवाएं। सिलाई, बुनाई, कटाई के लिए ट्रेनिंग सेंटर खुलवाए ताकि उनकी नियमित आय हो सके। जो व्यक्ति अपने समाज में प्रतिष्ठित, शांतिप्रिय और न्यायप्रिय हो और साथ ही साथ अंग्रेज सरकार के कार्यों में सहयोग करता रहा हो। ऐसे व्यक्ति को ब्रिटिश सरकार सम्मानित करती थी। सरकार की दृष्टि से टम्टाजी ऐसे ही व्यक्ति थे। इसलिए उन्हें 1935 में स्पेशल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया। रायबहादुर उपाधि से सम्मानित किया। अपने समाज के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय नेता होने के कारण टम्टाजी को 1947 में गोंडा जिला, उत्तर प्रदेश से विधान सभा का सदस्य निर्विरोध निर्वाचित किया गया।
महादानी
टम्टाजी ने 1903 से ही समाज सेवा का कार्य प्रारंभ कर दिया था। इसके लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करना पड़ता था। अधिकांश कार्यक्रमों में होने वाले व्यय को वह स्वयं ही वहन करते थे। अकाल के समय अनाज आदि का प्रबंध करके लोगों को जीवन दान दिया। महामारी के दौरान बीमारी के लिए दवा आदि का प्रबंध करवाया। 1930 में अल्मोड़ा में हाईस्कूल नहीं था। हाई स्कूल खोलने के संबंध में एक प्रबंध समिति का गठन किया गया। समिति को कहीं जगह नहीं मिली। निराश होकर वे टम्टाजी के पास गए उनसे अनुरोध किया। टम्टाजी के पास मुख्य बाजार में जमीन पड़ी थी उस पर पांच कमरे बना भी चुके थे। समिति के अनुरोध पर उन्होंने जगह देना स्वीकार कर लिया और छात्रों के खेलने के लिए कि स्टेडियम भी बनवा कर दिया। शिल्पकार समाज के जीवन से संबंधित ऐसा कोई भी पहलू शेष नहीं रहा जिस पर टम्टाजी का ध्यान न गया हो। उत्तराखंड विशेषकर कुमाऊं क्षेत्र में जो परिवर्तन आया है उसका श्रेय मुंशी रायबहादुर हरिप्रसाद टम्टा जी को ही जाता है उनकी उपलब्धियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि वह शिल्पकार समाज के एक कर्मठ, समाजसेवी, कुशल प्रशासक, दूरदर्शी, दानवीर एवं लोकप्रिय नेता थे।
यदि आज के समाजसेवी और नेता उनसे प्रेरणा लेकर काम करें तो बहुत सीमा तक देश की समस्या का समाधान हो सकता है। ऐसे कर्मयोगी, दानवीर रायबहादुर हरिप्रसाद टम्टा जी को शत-शत नमन!
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