2024-02-02 11:33:21
सयाजीराव गायकवाड जी महाराज का जन्म 11 मार्च 1863 इसवी में कल्वाने नाम के एक देहात में हुआ। कल्वाने गाँव महाराष्ट्र राज्य के खानदेश से जुदा हुआ है। माता-पिता ने उनका मूल नाम गोपाल रखा था। गोपाल काशीनाथ गायकवाड़ ने अपने गरीब माता-पिता के घर जन्म लिया। बचपन से ही गोपाल को गरीबी की समस्या ने घेरे हुआ था। उम्र के 12 साल तक गोपाल को अपने कल्वाने गाँव में जानवरों, पशुओं को चराने वाले चरवाहे का काम करना पड़ा था। इतना ही नहीं 12 साल की आयु तक पाठशाला का मुंह तक भी नहीं देखा था। क्ल्वाने गाँव के काशीनाथ गायकवाडं का सम्बन्ध बड़ौदा राज्य के राज घराने से था।
बड़ौदा राज्य के राणी यमुनाबाई गायकवाड़ की गोद दुर्भाग्यवश से खाली थी। अपने राज्य की राजगद्दी चलाने वाले वारिश के रूप में राणी यमुनाबाई ने गोपाल को गोद लिया। गोपाल को गोद लेने का समारोह 27 मई 1875 में संपन्न हुआ और गोपाल का नाम सयाजीराव गायकवाड़ रखा गया। 27 मई 1875 से सयाजीराव गायकवाड़ बड़ौदा राज्य की राजगद्दी के वारिस बने।
12 साल तक अनपढ़ रहे सयाजीराव गायकवाड को शिक्षा देकर लायक बनाने की योजना राणी यमुनाबाई ने बनाई। बड़ौदा राज्य के ब्रिटिश रेजिडेंट तथा दीवान राजा ने सयाजीराव गायकवाड़ को शिक्षित करने की जिम्मेदारी निभाई। सयाजीराव गायकवाड़ बचपन से ही तीव्र बुद्धि के रहे थे। अपनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद सयाजीराव गायकवाड़ का राज्याभिषेक 18 साल की आयु में 28 नवम्बर 1881 में हुआ। आयु के 18 साल में ही श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड बड़ौदा राज्य की राजगद्दी पर विराजमान हुए और कारोबार के सत्तासूत्रों को अपने हाथ में लिया। कुछ ही दिनों में महाराज ने सफल कारोबार चलाने का अध्ययन किया। बचपन से ही महाराज होशियार, होनहार तथा जिद्दी स्वभाव के थे। इन्हीं गुणों से महाराज ने बहुत ही कम समय में अपना व्यासंग सिद्ध करके राजा की योग्यता पाई।
शूद्र राजाओं के अपमान का इतिहास
भारत के इतिहास में जितने भी शूद्र राजा हुए, ब्राह्मणों ने उन्हें धर्म के नाम पर गुमराह करके अपमानित किया। यह भी एक ऐतिहासिक कड़वी सच्चाई है। छत्रपति शिवाजी महाराज को भी शूद्र कहकर ब्राह्मणों ने राज्याभिषेक करने को इंकार कर अपमानित किया। आगे जब शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया वह भी वेदोक्त पद्धति से ना होकर पुराणोक्त पद्धति से किया गया। हिन्दू राज की स्थापना करने वाले शिवाजी महाराज को ब्राह्मणों ने बुरी तरह से अपमानित करने का नीच कार्य किया।
इतिहास में ब्राह्मण जाति द्वारा शूद्र राजाओं को अपमानित करने का सिलसिला बहुत जोर से चला। छत्रपति बड़े शाहूजी महाराज ने अष्ट प्रधान मंडल रद्द करके ब्रह्मण पेशवा को पेशवापद पर बिठाने के आदेश देने से ब्राह्मण तिलमिला उठे और आक्रामक बने। ब्राह्मणों ने जब ब्राह्मणी राज में वेदोक्त पद्धति को महत्व देकर शूद्र राजाओं का और शूद्र समाज का धार्मिक और सामाजिक छल किया। नाना फडणवीस ने तो षड्यंत्र रचकर सतारा के दूसरे शाहू जी महाराज को भी अपमानित किया। उसी प्रकार से सतारा के राजा प्रताप सिंह को भी ब्राह्मण पंडितों से अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। राजऋषि छत्रपति शाहू जी महाराज कोल्हापुर के शूद्र राजा थे। ब्राह्मण पुरोहितों ने उनका राज्याभिषेक भी विधि पुराणोक्त पद्धति से करके उनको भी अपमानित किया था।
बड़ौदा राज्य भी ब्राह्मण पुरोहित जाति बड़ौदा राजघराने के सम्बन्ध में सभी विधि पुराणोक्त पद्धति से कर रही थी। श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड महाराज को भी यूरोप से लौटने के बाद शूद्र होने के नाते प्रायश्चित करना पड़ा था। अपने संसथान में सयाजीराव गायकवाड ने राजोपाध्याय राजाराम शास्त्री को वेदोक्त विधि करने की आज्ञा दी परन्तु राजाराम शास्त्री ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। शूद्र राजाओं के ऊपर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इस ब्राह्मण ने इस्तीफा देना पसंद किया मगर शूद्र राजा सयाजीराव गायकवाड की आज्ञा नहीं मानी। शूद्र राजाओं को ब्राह्मणों द्वारा अपमानित करने वाली कहानियां इतिहास में बहुत पढ़ने को मिलती हैं। शूद्र राजाओं को अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर समय ब्राह्मणों से संघर्ष करना पड़ा। श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड महाराज को ब्राह्मणों ने शूद्र कह कर अपमानित किया, यह एक एतिहासिक सत्य है। स्वाभिमानी और प्रतिभा संपन्न श्रीमंत सयाजीराव महाराज इन घटनाओं से बहुत दुखी होते थे। ब्राह्मणों के इस व्यवहार से महाराज का क्रांतिकारी मन ब्राह्मणी धर्म के विरुद्ध संघर्ष करने को जाग उठा था। अपने जीवन के काल खंड में सयाजीराव गायकवाड महाराज ने ब्राह्मणी समाज व्यवस्था को नष्ट करने का क्रांतिकारी कार्य करके क्रांति संग्राम के सेनानी साबित हुए।
सत्य शोधक समाज से प्रेरित सयाजीराव गायकवाड़
प्रत्येक इंसान का अपना एक चरित्र होता है। महापुरुषों के अपने चरित्र असामान्य होते हैं। अपने जीवन काल में इंसान किसी न किसी के चरित्र से प्रभावित होता है। सामाजिक क्रांति संग्राम के प्रणेता महात्मा फुले ने 1890 तक बहुजन समाज को मुक्ति दिलाने हेतु अपना जीवन समर्पित किया। राजा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड ने भी अपने जीवन काल में क्रांतिकारी कार्य को प्राथमिकता दी थी। 1885 तक महात्मा फुले के क्रान्तिकार्य ने सारे महाराष्ट्र को प्रभावित किया था। अपने सत्य शोधक समाज आन्दोलन से बहुजन समाज को जागृत करने में महात्मा फुले जी समर्पित थे। महाराष्ट के हर तालुका और गाँव-गाँव में उनके सत्य शोधक समाज के कार्यकर्ता थे।
1885 में श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड पेशवाओं के पूना में आये थे। महात्मा फुले और उनकी भेंट पूना में ही हुई थी। सयाजीराव गायकवाड़ पूना में दो महीने तक रुके थे। इन दो महीनों में महाराज का महात्मा फुले के साथ सहवास बढ़ा। महात्मा फुले ने उनका राजा के नाते सम्मान करके स्वागत समारोह रखा था। महात्मा फुले तथा उनके अनुयायियों ने इस शुभारंभ में सत्य शोधक समाज के तत्व और कार्यप्रणाली पर विचार रखे। सत्य शोधक समाज की मतप्रणाली से महाराज बहुत प्रभावित हुए। अपने दो महीने के काल में सयाजीराव गायकवाड स्कूलों के कार्यक्रमों में उपस्थित रहे। युवा सयाजीराव गायकवाड़ महात्मा फुले के बहुजन समाज के उद्धार के कार्य से प्रभावित हुए। इसी प्रभाव के संस्कार को लेकर सयाजीराव गायकवाड़ बड़ौदा चले गए।
ब्राह्मणों के पाखण्डवाद के विरुद्ध रचनात्मक कार्य
एक चरवाहे से लेकर बड़ौदा राज्य के राजा बन कर राजगद्दी सँभालने तक सयाजीराव गायकवाड़ महाराज को जिन्दगी ने बहुत सारे अनुभव दिए थे। गरीबी की रेखा के नीचे जिन्दगी जीने वाले माँ-बाप और जिन्दगी के साथ झेल रहे संघर्ष को उन्होंने अनुभव किया था। बड़ौदा राज्य के राजा बनने से उनको शिक्षा का ज्ञान मिला था। शिक्षा के ज्ञान से उनको हर समस्याओं की जड़ खोजने की शक्ति मिली थी। राजा बनने की हैसियत से यूरोप आदि देशों में जाने का मौका मिलने से नया नया ज्ञान प्राप्त हुआ था। नया-नया ज्ञान प्राप्त करने से स्वभाव से क्रांतिकारी ठहरे उनके मन में क्रांतिकारी संस्कारों में अभिवृद्धि हो चुकी थी। राजा बनकर भी शूद्र कहकर अपमानित करने वाले, ब्राह्मणी समाज व्यवस्था से प्रभावित रुढ़ीवादी परम्पराओं के शिकार ठहरे ब्राह्मणी समाज के दुखों को उन्होंने नजदीकी से अनुभव किया था। इन अनुभवों के परिणाम स्वरूप राजा सयाजीराव ने ब्राह्मणी समाज व्यवस्था को उखाड़ने के लिए अपने राज्य में ब्राह्मणों के विरुद्ध संघर्ष करने का निश्चय करके रचनात्मक कार्य को उन्होंने शुरू करने का मन में ठान लिया था। सत्य शोधक समाज के तत्वप्रणाली से प्रेरित सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने अपने राज्य में ब्राह्मणी समाज व्यवस्था के विरुद्ध बहुजन समाज को क्रांति प्रवीण करने का क्रांतिकारी कार्य शुरू किया।
ब्राह्मणों के विरुद्ध चलाया सामाजिक आन्दोलन
शिक्षा के कार्य के अलावा बड़ौदा राज्य में चले ब्राह्मणवादी विरोधी सामाजिक आन्दोलन को सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने प्रोत्साहित किया। महाराज की सोच समाज में मानवी मूल्यों को स्थापित करने की थी। सयाजीराव गायकवाड़ जातिभेद के कट्टर शत्रु थे तथा बहुजन समाज में फैले अज्ञान और अंध-विश्वास के दुश्मन थे। सारे देश के राज्यों में से एक महाराज सयाजीराव ही ऐसे थे, जिन्होंने अस्पर्श्यता विरोधी चले आंदोलनों को अपने राज्य से धन देकर और अपने विचार भी देकर प्रोत्साहित किया। महाराज इस क्रांतिकारी कार्य से ब्राह्मणों के दुश्मन बने। अपने राजकीय कारोबार में शामिल ब्राह्मणों ने महाराज के साथ चोरी- छुपे विरोध करके अपनी जाति का परिचय दिया।
19 मार्च 1918 में बम्बई में हुए छुआछूत विरोधी परिषद के अध्यक्ष बड़ौदा के नरेश श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड बने। बहुजन समाज का दूरदर्शी राजा दिन रात क्रांतिकारी के संग्राम में शरीर तथा बुद्धि से कार्यरत रहा। बम्बई में हुए इस छुआछूत विरोधी परिषद में महाराज ने कहा, सामाजिक नव-निर्माण और शास्त्रीय ज्ञान के तीव्र आक्रमकता के सामने अज्ञान मुल्क गलत फहमी और जाति अभिमान का ज्यादा देर तक टिक पाना मुश्किल है। हमें सभी लोगों को हमारे धर्म में व्यवाहरिक सुधार लाकर छुआछूत की बीमारी के प्रश्न को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहिए।
श्रीमंत नरेश सयाजीराव गायकवाड़ की प्रेरणा से बड़ौदा राज्य में सत्य शोधक समाज आन्दोलन का कार्य जोरों से चलता रहा। महात्मा फुले के अनुयायियों ने बड़ौदा राज्य में जाकर ब्राह्मणवाद विरोधी आन्दोलन चलाया। बड़ौदा राज्य में बहुजन जाग्रति लाने हेतु श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड जैसे राजा ने भी सत्य शोधक समाज के कार्य को प्रेरणा और हिम्मत दिलाई। भगवान और मनुष्य के बीच दलाली करने वाले दलाल बने ब्राह्मण पुरोहितों की जरूरत नहीं है। हम ही इसके लायक हैं और हमारी विधियाँ हम खुद कर सकते है। इसी विचार के आत्म सम्मान का आन्दोलन बड़ौदा राज्य में भी चला, जिससे शूद्रों में जाग्रति पैदा हो गयी और ब्राह्मण जाति देखती ही रह गई।
डा. अम्बेडकर को महानयोद्धा के निर्माण हेतु योगदान
सामाजिक क्रांति संग्राम के प्रणेता महात्मा फुले से प्रेरणा लेकर ब्राह्मणवाद को जड़ से उखाड़ फैंकने का क्रांतिकार्य करने वाले श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने बाबा साहेब डॉ. भीम राव आंबेडकर जी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 4 जून 1913 में छात्रवृति देकर महान कार्य किया। इस ऐतिहासिक घटना से ही महात्मा फुले का क्रांतिकारी कारवां आगे लेकर जाने वाले डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर का निर्माण हुआ। अपने जीवन काल में ब्राह्मण जाति से अपमानित शूद्र राजा सयाजीराव गायकवाड़ ब्राह्मणवाद की जड़Þ उखाड़ फैंकने का सपना देख रहे थे। उनके सपनों को साकार करने का काम बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर जी ने संविधान बनाकर किया।
महान क्रांतिकारी, समाज सुधारक तथा शिक्षा प्रेमी महाराज सयाजीराव गायकवाड का 6 फरवरी 1939 को 76 वर्ष की आयु में बड़ौदा में निधन हो गया।
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