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बामसेफ के संस्थापको में से एक यशकायी डी. के. खापर्डे

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2024-05-10 13:54:25

बामसेफ संगठन के संस्थापको में से एक यशकाई डी. के. खापर्डे का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी पूरी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी। पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के दौरान जब वे पुणे में थे, तभी माननीय दीना भाना और मान्यवर कांशीराम उनके सम्पर्क में आये। खापर्डे साहब ने ही मान्यवर कांशीराम को डा. आंबेडकर और उनके आन्दोलन के बारे में विस्तृत रूप से बताया था और बाबा साहब की लिखी प्रसिद्ध पुस्तक ‘जाति भेद का उच्छेद’ पढ़ने के लिए दी। इन तीनों महापुरुषों ने समाज के अन्य जागरुक साथियो के साथ मिल कर विचार किया कि अनुसूचित जतियों/ अनुसूचित जन जतियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग और उनसे धर्मांतरित अल्पसंख्यक समाज का अखिल भारतीय स्तर पर एक थिंक टेंक होना चाहिए जिसमें इस समाज के नौकरी पेशा कर्मचारी और अधिकारी हों और जो लम्बी प्लानिंग के साथ मूलनिवासी बहुजन समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए, फुले-अम्बेडकरी विचारधारा के तहत सामाजिक चेतना का काम करे। इसी के तहत ये तीन महापुरुषो ने समाज के और जागरूक साथियों के साथ मिलकर समाज की गैर राजनैतिक जड़े अर्थात सामाजिक जडे मजबूत करने के लिए बामसेफ की अवधारणा 6 दिसम्बर 1973 को पूना मे किया और 6 दिसम्बर 1978 को दिल्ली मे इसे मूर्त रूप दिया और तय किया कि बामसेफ को समाज के दिमाग का काम करना चाहिए और समाज से गाइड होने के बजाय उन्हे समाज को गाइड करना चाहिए।

बाद मे इसी संगठन से 1981 मे डीएस-4 का जन्म हुआ। इसके बाद मान्यवर कांशी राम ने 1984 में राजनीति के क्षेत्र मे कदम रखा और तब खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम मे मतभेद हो गया। जहा मान्यवर कांशीराम ने, राजनीति को महत्व दिया कि राजनीतिक सत्ता समस्त सामाजिक प्रगति की कुंजी है। वही खापर्डे साहब और मान्यवर कांशीराम साहब के कुछ अन्य साथी इस सोच के थे कि पहले सामाजिक आन्दोलन को इतना सशक्त बनाया जाये कि उसकी परिणति, जो निश्चित रूप से व्यवस्था परिवर्तन है, को रोका न जा सके। इसके बाद मान्यवर जहां आजीवन राजनीति के क्षेत्र मे सक्रिय रहें वही खापर्डे साहब अपने जीवन के अंतिम क्षणो तक सामाजिक आंदोलन को स्थापित करने और उसे मजबूत करने के प्रति आजीवन समर्पित रहे। यद्यिप दोनों आंदोलनो का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है।

6 दिसंबर 1956 में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण हुआ। उसके बाद उनके द्वारा चलाये आंदोलन में एक गंभीर स्थिति निर्माण हुई। उनके द्वारा निर्माण किये गये समतावादी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए जो पहल होनी चाहिए थी नहीं हो पायी। परिणामस्वरूप सन 1970 के आते-आते उनके अनुयायियों ने नासमझी में इस आंदोलन में बिखराव की स्थिति पैदा की। खुद को बाबासाहेब आंबेडकर के अनुयायी और सिपाही कहने वाले कार्यकर्ता दिशाहीन स्थिति में व्यक्तिगत आकांक्षाओं की बली चढ़ कर उलझ कर रह गए ।

इसी समय इस आंदोलन से लाभान्वित प्रथम शिक्षित पीढ़ी का उदय हुआ। इन्ही में से कुछ कार्यकतार्ओं द्वारा दलित पेंथर जैसे आक्रामक संगठन को बनाया गया। इसी समय दूसरी ओर अन्य पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व को लेकर कई नेता आगे हुये। इसी समय कुछ आरपीआई नेता कांग्रेस के समर्थन में तो कुछ समाजवाद के प्रभाव में रहे।

कांग्रेस में भी नेहरू के लम्बे नेतृत्व के बाद इस संस्था और देश को नेतृत्व देने की अंदरूनी उठापटक होने लगी। इंदिरा गांधी नेता बनी लेकिन इसके विरोध में कुछ समाजवादी नेताओं ने अलग रास्ता अपनाया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का नारा देश में गूंजने लगा। शोषित पीड़ित वर्ग के सामाजिक राजनैतिक आंदोलन द्वारा इस परिस्थिति में पर्याय बनना तो दूर वह खुद ही लड़खड़ा रहा था।

ऐसी परिस्थिति में फूले अम्बेडकरी राजनैतिक आंदोलन के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता और खासकर जो सरकारी नौकरियों में थे, वे भी इस स्थिति को देखकर अस्वस्थ हो रहे थे। इनमे से कुछ ने परिस्थिति को स्वीकार करते हुए जो व्यक्तिगत स्तर पर संभव है वह करते रहने का रास्ता अपनाया। लेकिन कुछ ने सामाजिक आंदोलन को आगे ले जाने के लिए संगठित प्रयास शुरू किए।

सरकारी कर्मचारियों में पुणे में हो रही यह पहल देश भर में बड़ा संगठनात्मक रूप धारण करेगी यह किसी ने सोचा न था। पुणे के आयुध निर्माणी संस्था में कार्यरत दीनाभाना जो चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे, उनकी आॅफिस के मैनेजमेंट के साथ आंबेडकर जयंती के लिए छुट्टी को लेकर हुए संघर्ष से एक चिंगारी भड़की।

इस जयंती विवाद में मैनजेमेंट के साथ जो संघर्ष खड़ा हुआ उसमें अनुसूचित जातियों के कुछ अधिकारी सामने आये उनमे से थे आगे मा.डी.के.खापर्डे, मा.कांशीराम, मा.एस एफ गंगावणे जिनका नाम संगठनात्मक आंदोलन के इतिहास में एक स्वतंत्र अध्याय बन गया। कारण था कि उन्होंने फूले अम्बेडकरी आंदोलन को आगे बढ़ने के लिए एक अनुशासित एवं समर्पित कार्यकतार्ओं के संगठन की पहल की और संगठित नेतृत्व की नींव डाली। इस संगठन ने न केवल फूले-आंबेडकर आंदोलन के अंतिम लक्ष्य की व्याख्या की बल्कि इस हासिल करने के लिए इसका फ्रेमवर्क भी बनाया। जिसमें उन्होंने बताया कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए इस व्यवस्था से पीड़ित लोगों को सर्वप्रथम इस काम के लिए संगठित करना होगा। 6000 से ज्यादा जातियों मे बटे शोषित एवं शासित समाज में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को गतिमान करना होगा।

इस पहल में जो लोग थे, उनमे से पंजाब से आये कांशीराम जी फूले और आंबेडकर के विचार और आंदोलन से पूर्णत: अनभिज्ञ थे। लेकिन समाज के प्रति उनकी भावना को देख डी.के. खापर्डे जी ने उनके साथ पहचान बढ़ा कर दोस्ती बढ़ाई। युवा कांशीराम जी की फूले आंबेडकर आंदोलन के बारे में अधिक जानने समझने की जिज्ञासा को खापर्डे जी ने पूरा किया। उन्होंने उनको कुछ किताबें पढ़ने को दी। काफी चचार्एं होती रही।

आंदोलन भूमि नागपुर के परिवेश में पले बढे डी.के खापडे जी आंदोलन एवं विचारधारा से भलि-भाँती परिचित थे। बचपन में ही सर से पिता का साया उठ जाने से अत्यंत प्रतिकूल अवस्था में अपनी मां के कष्टप्रद जीवन को समझते हुये उन्होंने अपने आपको ढाला था। समाज की दुर्बल स्थिती का यथावत ज्ञान और एहसास उनमें विद्यमान था और इसलिए उनमें हर स्थिति में अपने आपको तथा अन्य साथियों को साथ मे लेकर उभरने का साहस एवं जज्बा मौजूद था।

डी के खापर्डे साहब 1956 के धम्म दीक्षा के साक्षी थे। बाबासाहेब को रुबरु देखने वालों में से वे एक थे। सन 1970 की अस्वस्थ दशक में संगठित रूप से दीर्घकालीन तथा व्यापक स्तर के आंदोलन का सूत्रपात करने की संकल्पना लेकर बामसेफ संगठन की नींव रखने का सफल प्रयास अपने साथियों के साथ डी के खापर्डे जी ने किया।

चूंकि काशीराम जी भी इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने आंदोलन से प्रभावित होकर अपने आपको आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था, परिणामस्वरूप वे बामसेफ के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व करने लगे। लेकिन उनके नेतृत्व को हर पल हर संभव स्थापित करने एवं बरकरार रखने की भूमिका सूत्रधार बनकर डी.के खापर्डे जी ने पर्दे के पीछे रहकर प्रतिबद्धता के साथ निभाई। इसीलिए मा. काशीराम जी, खापर्डे साहब को अपना गुरु मानते थे।

उनके द्वारा निर्मित बामसेफ संगठन 1973 से 1977 और 1977 से 1984 के बीच राष्ट्रीय रूप धारण कर देश के सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति में बदलाव के लिए हस्तक्षेप करने लगा। राष्ट्रीय स्तर पर यह एक नवीन, प्रभावशाली एवं यशस्वी पहल थी।

1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन होकर काशीराम जी उसके अध्यक्ष बने। लेकिन इसके बाद बामसेफ की उपयोगिता को बेकार समझते हुए बामसेफ को सन 1986 में खारिज कर दिया और अपनी राजनीतिक भूमिका को लेकर आगे बढ़ने की मंशा जाहिर की।

यह बात बामसेफ की नींव रखने वाले डी के खापर्डे जी, अन्य संस्थापक सदस्य एवं कार्यकतार्ओं के लिए बहुत गहरा सदमा था। बहुत सारे कार्यकतार्ओं के सामने भ्रम की स्थिति पैदा हुयी और वे निराशा की गर्त में डूब गये थे। तभी डी.के. खापर्डे जी ने बामसेफ का पुर्न:निर्माण करने का निश्चय करते हुए पंजाब के ही दूसरे साथी मा. तेजिंदर सिंह झल्ली और अन्य साथियों को साथ लेते हुए बामसेफ संगठन का पंजीकरण कर दिया और सरदार तेजिंदर सिंह झल्ली को बामसेफ का अध्यक्ष बनाया गया। कोई व्यक्ति संगठन को अपनी गिरफ्त में लेकर अपनी मनमर्जी संगठन का इस्तेमाल करें, इस बात की रोक लगायी गयी। संगठन को उसके स्थापित मूल्यों एवं सिंद्धान्तो के आधार पर पुन: खड़ा करने का निर्णय हुआ और फिर देश भर में संगठन पुन: खड़ा किया गया।

किंतु फिर सन 2003 तक व्यक्तिवाद के कारण बामसेफ मे कुछ उतार चढ़ाव आये। लेकिन खापर्डे जी के प्रयास से बामसेफ संगठन आज अपनी व्यापक भूमिका को लेकर भारत की सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र को प्रभावित करते हुये क्रांतिकारी तथा निर्णायक मोड़ पर आकर अपनी जड़ों के साथ मजबूती से खड़ा है। बामसेफ आज ‘एक मिशन है, एक परिवार है’ और उसकी वजह है यशकायी डी के खापर्डे साहेब।

बामसेफ की सफलता के साथ जुडी है उसने की हुयी व्याख्याएं और स्थापित की हुई अभिनव संकल्पनायें। बामसेफ ने जातियों को तोड़ने के लिए 6743 जातियों में बटे समाज को ध्रुवीकरण के लिए कार्यकतार्ओं को प्रेरित किया। बामसेफ ने अपनी कार्यनीति में कार्यकतार्ओं को प्रशिक्षित करते हुए नेतृत्व के लिए तैयार किया और दूसरी ओर शोषक जातियों को उजागर करते हुए उनके षड्यंत्रो का भंडाफोड़ किया। बामसेफ द्वारा दिए गए विश्लेषण सामाजिक दोस्त और दुश्मनों का परिचय एवं एहसास कराती है। समाजवादी आंदोलन की नयी परिभाषा बनाती है, जिससे किसी भी षड्यंत्रों को उजागर करने वाला विश्लेषण सहजता से होकर फूले-अंबेडकरवाद को नया आयाम प्राप्त होता है।

बामसेफ ने बहुजन पहचान को इतनी ताकत दी कि उससे बहुजन राजनीति खड़ी हुई। खापर्डे साहेब ने इस बहुजन पहचान के साथ राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले साहेब द्वारा बताई गयी मूलनिवासी पहचान को जोड़कर और तेजधार और ताकतवर बनाया गया। हमारा दुश्मन जो ब्राह्मणवादी और पूँजीवादी है वह आज इन संकल्पना से परेशान है।

केवल विचारधारा, नयी संकल्पनाओं का सूत्रपात ही पर्याप्त नहीं होता, उसके साथ मिशनरी प्रचारक भी अनिवार्य है। अन्यथा सारी बातें हवा में ही रह जाती है। इन बातों को अगर खापर्डे साहेब नहीं समझते तो बामसेफ जैसा मिशनरी संगठन खडा ही नही हो पाता। अपने मान सम्मान की परवाह किये बिना उन्होंने एस.सी., एस.टी., ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यक समाज से उभरे हुए बुद्धिजीवी वर्ग के हर दरवाजे पर दस्तक दी और उन्हें साथ में लेने का भरसक प्रयास किया। जिसके परिणामस्वरूप कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक फैले हुये विभिन्न जाति वर्ग के बुद्धिजीवियों को प्रेरित कर संगठन के साथ जोडा। आज हजारों की तादाद में सभी समाज घटकों के मिशनरी प्रचारक संपूर्ण देश में तैनात है।

सभी कार्यकतार्ओं को मार्गदर्शन करने का तथा उन्हें प्रेरित करते रहने का कार्य खापर्डे साहेब ने अंतिम सांस तक किया। 29 फरवरी 2000 को खापर्डे साहब का परिनिर्वाण हुआ। आज वे शारीरिक रुप से हमारे साथ नही है। किंतु उनके द्वारा विकसित किए हुए फूले-अंबेडकरवाद के सिद्धांत, प्रासंगिक विषयों पर किया हुआ विश्लेषण और निरंतर प्रशिक्षण की उपयोगिता पर उनके द्वारा किया गया मार्गदर्शन तथा संगठन को बनाए रखने के उनके सिद्धांत एक अनूठी उपलब्धि है जिसका सहारा लेकर हम आगे बढ़ सकते है।

यशकायी डी.के. खापर्डे साहेब हमेशा कहते थे कि, जब संगठन और व्यक्ति में टकराव हो तो व्यक्ति का साथ छोड़ देना चाहिए और संगठन के साथ रहना चाहिए, लेकिन जब संगठन का विचारधारा सिंद्धांत और मूल्यों के साथ टकराव हो तो हमने विचारधारा के साथ रहना चाहिए संगठन को छोड़ देना चाहिए, विचारधारा, सिद्धांत मूल्य के ताकत से संगठन पुन: खड़ा किया जा सकता है।

जैसे कि पहले कहा गया है कि संगठन में व्यक्तिवाद और व्यक्तिपूजा हावी होने के कारण कई बार टूटने और कार्यकतार्ओं के बिखरने के बावजूद खापर्डे साहेब के शिक्षा के संगठन की नींव बरकरार रही, संगठन आगे बढ़ा। बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के सपनों का आदर्श समाज स्थापित करने हेतु संगठन बनाने का अधूरा कार्य पूरा करने की दिशा में लाख बाधाओं का सामना करते हुए खापर्डे साहब ने अपने अंतिम क्षणों तक निरंतर एवं प्रतिबद्धता के साथ किया।

अपने 61 वर्ष की आयु में लगभग 35 वर्ष उन्होंने केवल और केवल समाज संगठन बनाने और सक्षम नेतृत्व को विकसित करने में लगा दिये। उन्होंने आखिर तक मुफलिसी का ही जीवन बसर किया। अपने लिए उन्होंने एक घर तक नहीं बनाया, किराये के घर में ही अपने परिवार का गुजारा किया।

अपने निर्माण के दो वर्ष पूर्व सन 1998 में भरूच, गुजरात मे नौंवें राज्य स्तरीय अधिवेशन में खापर्डे साहब ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षीय भाषण में हम सबको आगाह करते हुए तीन चुनौतियों का जिक्र किया है जो हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है।

उन्होंने कहा था कि आज समाज में जो लोग सक्षम है लेकिन उनमे पूरी तरह से ईमानदारी व सच्चाई नहीं है, इस किस्म के लोग आगे आ रहे हैं, आगे आकर वाले वे भी कुछ करने का नाम ले रहे है। इसी वजह से समाज में बहुत चुनौतीपूर्ण परिस्थिति है। दुश्मन हमारे बीच भ्रांतियां पैदा कर रहा है। हमारे अपने समाज के लोग इस परिस्थिति का फायदा लेने के लिये अलग अलग बात कर रहे हैं। बामसेफ को इस परिस्थिति को सही तरीके से समझ कर समाज को संगठित करना होगा। आज समाज में हमारे सामने तीन किस्म की चुनौती है।

1. समाज में सही किस्म की लीडरशिप पैदा करना। बामसेफ ने 20 वर्षों से कार्य करते हुए इस बात को साबित कर दिया है कि समाज में सही प्रकार का नेतृत्व पैदा करने के लिए हम काबिल है। यह क्षमता हमें आगे बढ़ानी है।

2. समाज में जो बदलाव आ रहा है इस बदलाव को काउंटर करने की राजनीति के माध्यम से जो कोशिश हो रही हैं जिसमें हमारे अपने राजनीतिक नेता लोग सक्रिय रूप से, दुश्मनों के हाथ में खेलकर, इस परिस्थिति को बदलने की कोशिश कर रहे है। इस कोशिश का सामना हमें करना होगा।

3. हमारा समाज राजनीति करने की बात तो कर रहा है मगर राजनीतिक नेता पर अंकुश लगाने की बात हमारे समाज ने अभी सिखी नही है। हमारे राजनीतिक नेताओं पर अंकुश लगाने की बात भी हमे सीखनी होगी।

खापर्डे साहब द्वारा बताई गयी ये केवल चुनौतियां नहीं है, हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज के एवं संगठन और समाजवादी आंदोलन के भविष्य का दिशानिर्देश भी है।

खापर्डे साहब ने अपनी कोई सम्पत्ति नहीं बनायी और अपना सब अर्जित धन संस्था को दान कर दिया था। खापर्डे साहब के अनुयायियों ने रिंगनाबोड़ी (जिला नागपुर) में डी के खापर्डे ट्रस्ट बनाया है। ट्रस्ट के पास 25 एकड़ जमीन है तथा एक बिल्डिंग भी बन चुकी है। इस ट्रस्ट के अतंर्गत ज्योतिबा फुले मेमोरियल प्रशिक्षण संस्थान बनाया गया है जो कार्य कर रहा है। इस ट्रस्ट के अंतर्गत पुस्तकों के प्रकाशन का काम भी चल रहा है। यह ट्रस्ट बहुजन विचारधारा, बहुजन महापुरूषों तथा बहुजन समाज संबंधित पुस्तकों को प्रकाशित कर उन्हें सस्ते मूल्य पर पाठकों को उपलब्ध कराता है। यशकायी खापर्डे जी द्वारा बहुजन समाज के लिए किया गया त्याग तथा उनके द्वारा किये गये कार्य सदैव याद किये जायेंगे।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05