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बहुजन महानायक कासीराम जी

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2023-10-06 10:29:55

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के वैचारिक आंदोलन को मूर्तरूप प्रदान करने वाले, सामाजिक व राजनीतिक क्रान्ति के द्योतक, एक राष्ट्रीय पार्टी के संस्थापक युगप्रवर्तक बहुजन समाज के महानायक मान्यवर कासीराम जी इस देश के राजनीतिक क्षितिज की ऊंचाइयों तक पहुंचने वाले ऐसे व्यक्तित्व थे जिनको उनके त्याग व महान कार्यों के लिए सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्रों में सदैव याद किया जायेगा। मान्यवर कासीराम जी का जन्म 15 मार्च 1934 को खवासपुर जिला रोपड पंजाब में एक दलित सिख परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम विशन कौर तथा पिता का नाम हरी सिंह था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद कासीराम जी की सन 1958 में डीआडीओ के सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट आॅफ मिलिट्री एक्सप्लोजिव, पूना में वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति हो गई। इस समय तक कासीराम जी अविवाहित थे। कासीराम जी का व्यक्तिव साधारण नहीं था बल्कि उनका बहुआयामी व्यक्तित्व बहुत ऊंचा था। वे एक अर्थशास्त्री राजनीतिज्ञ, समाजशास्त्री, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक तथा भविष्यवक्ता थे। इस सब विशेषताओं के होने पर भी कासीराम जी एक समाज सुधारक के रूप में ज्यादा विख्यात हैं। धार्मिक सुधार के लिए भी उन्होेंने जनमानस को जाग्रत किया। सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक सभी क्षेत्रों में उन्होंने काम किया। उनके द्वारा योजना बद्ध तरीके से लगातार सामाजिक आंदोलन व परिवर्तन के द्वारा कम ही समय में एक मजबूत सामाजिक संगठन (बामसेफ) तथा एक राष्ट्रीय पार्टी (बहुजन समाज पार्टी) को खड़ा कर देना बीसवीं सदी का एक जीता जागता उदाहरण है। दलित वर्ग कमजोर, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को सोशल इंजीनियरिंग द्वारा जोडकर बहुजन समाज पार्टी जैसे संगठन की स्थापना करना असंभव को संभव कर दिखाने का महान कार्य कासीराम जी ने किया। बहुजन समाज पार्टी के केवल एक राजनीतिक पार्टी ही नहीं बल्कि यह सामाजिक व राजनीतिक आंदोलन भी है। इस बडेÞ मुकाम तक पहुंचने की पृष्ठ भूमि की भी चर्चा करें।

बात वर्ष 1964 की है। कासीराम जी के कार्यालय के मैनेजमेंट ने वर्ष 1965 के लिए सरकारी छुट्टियों का निर्धारण करते समय बुद्ध पूर्णिमा तथा डॉ. अम्बेडकर जयन्ती की छुट्टियां निरस्त करके उनके बदले दीवाली की छुट्यिां बढ़ा दी। इस कदम से दलित वर्ग के अधिकारीयों व कर्मचारियों में रोष व्याप्त हो गया। इसके लिए दीनाभाना नामक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी ने मैनेजमेंट के सामने अपना विरोध जताया तथा छुट्टियों के इस निर्धारण पर अपनी सहमति देने के मना कर दिया। छुट्टियों का यह मुद्दा कार्यालय मैनेजमेंट व दलित कर्मचारियों के बीच प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। मैनेजमेंट ने अडियल रवैया अपनाते हुए कर्मचारियों की मांग ठुकरा दी। साथ ही दीनाभाना जी को नौकरी से सस्पेंड कर दिया। इस घटना से कासीराम जी के मन को झटका लगा। उन्होंने इस लड़ाई में दीना माना जी का साथ देने का निश्चय किया। इसी समय कासीराम जी की भेंट डी. के. खापर्डे जी से हुई। उन्होेंने कासीराम जी को डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित बहुत उच्च कोटि की पुस्तक ‘ंल्लल्ल्रँ्र’ं३्रङ्मल्ल ङ्मा ूं२३ीह्ण जातिभेद का उच्छेद पढ़ने के लिए दी। इस पुस्तक को पढने से उनका मन झकझोर हो गया तथा इस पुस्तक को कई बार पढा। इसने कासीराम जी की जीवन धारा ही बदल दी। डॉ. अम्बेडकर को अपना आदर्श मानकर कासीराम जी ने उनके अधूरे सपने को पूरा करने का मन बनाया। कासीराम जी छुट्टियों वाले मामले में पूरी दिलचस्पी ले रहे थे। यह केस कोर्ट भी गया तथा रक्षा मंत्रालय भी पहुंचा। रक्षा मंत्रालय ने बुद्ध पूर्णिमा तथा डॉ. अम्बेडकर जयंती की छुट्टी को कर्मचारियों की मांग को मान लिया तथा पूना कार्यालय के मैनेजमेंट को फटकार लगाई। दीनाभाना जी की जीत हुई तथा उनका निलंबन निरस्त करना पड़ा। इस जीत से दलित वर्ग के कर्मचारियों का मनोबल बढ़ गया। कासीराम जी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भी फैसला किया। उन्होंने 1971 में अपनी सरकारी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। वे पूना छोडकर दिल्ली आ गये। कासीराम जी ने यह प्रण किये:

1. मैं आजीवन अविवाहित रहूंगा।

2. मैं अपने परिवार को त्याग दूंगा।

3. मैं अपने लिए कोई सम्पत्ति नहीं रखूंगा।

4. मैं अपना पूरा जीवन फूले-अम्बेडकरी मिशन को आगे बढाने में लगाऊंगा।

कासीराम जी का रहन सहन बहुत साधारण, वेशभूषा साधारण, खानपान साधारण लेकिन विचार धारा उच्च कोटि की थी। स्वभाव से वे अक्खड, फक्कड, धुमक्कड, त्यागी, स्पष्टवादी तथा असीम हौसले के धनी थे। उन्होंने अब अपना सारा ध्यान फूले-अम्बेडकरी मिशन के अनुसार दलित, कमजोर तथा पिछडे वर्ग के लोगों के उत्थान व सशक्तिकरण पर केन्द्रित कर दिया।

कासीराम जी ने अपने साथियों से विचार विमर्श करके सर्वप्रथम 6 दिसंबर 1973 को बामसेफ (बैकवार्ड एण्ड माइनोरिटीज कलास एम्पलायेज फेडरेशन) नामक संगठन की स्थापना की। उन्होंने पूरे देश में दिन रात धूम-धूम कर बैकवर्ड, दलित तथा अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को बामसेफ से जोड़ा। इस संगठन को बहुत मजबूत, सार्थक तथा केडर वाला संगठन बनाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की। उनमें संगठन करने की अद्वितीय शक्ति थी। उन्हें मालूम था कि संगठन को मजबूूत बनाने के लिए सदस्यों को केडर का प्रशिक्षण देना आवश्यक है। इसलिए उन्होंने पूरे देश में बामसेफ के सदस्यों को केडर का प्रशिक्षण देने के लिए अनेक केडर कैम्पों का आयोजन किया। व स्वयं भी एक कर्मठ कार्यकर्ता व अनुशासित केडेर की तरह व्यवहार करते थे। इन कैडर कैम्पों के माध्यम से कासीराम जी ने डॉ. अम्बेडकर महात्मा फुले, साहूजी महाराज, पेरियार रामास्वामी तथा नारायण गुरु आदि महानायकों की शिक्षाओं तथा मिशन को कर्मचारियों के मास्तिष्क में ठूस-ठूस कर भर दिया। साथ ही डॉ. अम्बेडकर की इच्छा वाला मंत्र पे बैक टू सोसायटी का भी भरपूर प्रचार प्रसार किया तथा कर्मचारी वर्ग को इस पर अमल भी करने के लिए प्रेरित किया। कासीराम जी ने केडर के लिए आवश्यक अनुशासन, नियम तथा दिशा निर्देश निर्धारित कर दिये। इस प्रकार उन्होंने पूरे देश में लाखों कर्मचारियों का कैडर वाला मजबूत संगठन बामसेफ खडा कर दिया जिसकी कैडर वाले संगठन की पहचान बन गई जो आज तक कायम है। वामसेफ का मुख्य का बुद्धिजीवी सेल अर्थात ब्रेन (मस्तिष्क) का काम करना था और इसे गैर राजनीतिक, गैर धार्मिक तथा गैर आंदोलन कारी संगठन रखा गया। इसके बाद कासीराम जी ने 6 दिसंबर 1981 को दलित शोषित समाज संघर्ष समिति-डीएस-4 नामक संगठन की स्थापना की। इस संगठन को उद्देश्य धरना, प्रदर्शन तथा संघर्ष संबंधित कार्यों में भाग लेना था। बामसेफ तथा डीएस-4 दोनों ही संगठन भली भांति अपना-अपना काम करने लगे।

इसके बाद कासीराम जी ने फूले अम्बेडकरी मिशन को अधिक शक्ति और गति प्रदान करने के लिए और इस आंदोलन को और आगे ले जाने के लिए एक राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस की। अब उनके मन में यह बात बडे जोर से चल रही थी कि हमारे लोगों को अब लेने वाला नहीं बल्कि देने वाला बनाना है। हम अब अपना राजनीतिक दल बनाकर चुनाव में टिकट बांटेंगे न कि टिकअ मांगने वाले। इसी ध्येय के साथ कासीराम जी ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी नामक राजनीतिक दल की स्थापना की। कासीराम जी के निर्देान में कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से बसपा आगे बढने लगी और कम समय में ही इसकी पहचान स्थापित हो गई। कासीराम जी ने कमाल की सोशल इंजीनियरिंग अपनाई। इसके द्वारा उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछडे वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग तथा अनेक अगडो को भी बसपा से जोडा। अधिक से अधिक लोगों को जोडने के लिए कासीराम जी ने ये कुछ नारे दिये।

1. वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा।

2. दलित व पिछडों को भी देश का हुकमरान बनाना है।

3. अपने समाज को बिकाऊ समाज नहीं बनने देना है।

4. बसपा को एक वोट एक नोट दो।

5. हमारे लोग गरीब व साधनहीन हैं इसलिये प्रचार के लिये, आंदोलन के लिये अपने छोटे-छोटे साधनों को बडेÞ पैमाने पर प्रयोग में लाओ।

6. हम टिकट मांगने वाले नहीं बल्कि टिकट देने वाले बनेंगे।

7. हम मजबूत सरकार नहीं बल्कि मजबूर सरकार चाहते हैं।

8. हम इस देश में बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए समता मूलक समाज की स्थापना करेंगे।

9. हमको शासन प्रशासन तथा देश के सभी संसाधनों में भागीदारी लेनी है।

10. हम बाबासाहेब द्वारा बनाये गये संविधान की रक्षा करेंगे तथा उसके साथ किसी को छेडछाड नहीं करने देंगे।

11. हम मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार अन्य पिछडे वर्ग के लोगों के लिए भी आरक्षण लागू करवायेंगे।

इस प्रकार कासीराम जी की सोशल इंजीनियरिंग तथा उनकी अद्भुत संगठनकर्ता क्षमता रंग लाने लगी और बसपा दिन-दिन मजबूत होती चली गई। चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के विधायक तथा सांसद जीतने लगे। सन 1993 में समाजवादी पार्टी तथा बसपा ने मिलकर उत्तर प्रदेश में चुनाव लडा और बहुमत प्राप्त करके सरकार बनाई। यह कासीराम जी की पहली बडी जीत थी। इसका श्रेय भी कासीराम जी को ही जाता है। कासीराम जी स्वयं 1991 में इटावा से उपचुनाव में पहली बार लोकसभा सांसद चुने गये। इसके बाद वे राज्य सभा के सदस्य चुने गये।

कासीराम जी ने 27 अगस्त 1997 को भारत की आजादी की गोल्डन जुबली (50वीं वर्षगांठ) के अवसर पर राज्य सभा में अपने भाषण में कहा, ‘‘हमारे देश में अंग्रेजों के राज में जो कल्चर रिवोल्ट (सांस्कृतिक परिवर्तन) देश के कोन-2 में नजर आता था, पिछले पचास सालों में हमने उसका कोई नोट नही लिया बल्कि उल्टे उसे दबाने की कोशिश की जाती रही है। इसके दुष्परिणाम आज देश भुगत रहा है। महाराष्ट्र में 1848 से 1956 तक यह रिवोल्ट चलता रहा। 1848 से 1891 तक महामना ज्योतिबाफुÞले, 1892 से 1922 तक साहूजी महाराज तथा 1922 से 1956 तक डॉ. अम्बेडकर की देखरेख में चला रिवोल्ट देखने को मिला। लेकिन इस रिवोल्ट का कोई नोट नहीं लिया गया। गांधी जी ने 1932 में कम्यूनल अवॉर्ड में अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार के विरूद्ध आमरण अनशन किया और यह अधिकार छीन लिया गया। इसके बाद डॉ. अम्बेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री रहते हुए 1942 में अंग्रेज सरकार के सामने अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए पृथक व्यवस्थापन २ीस्रं१ं३ी २ी३३’ीेील्ल३ की मांग रखी। डॉ. अम्बेडकर ने कहा- हमारा पृथक निर्वाचन का अधिकार छीन लिया। अलग देश हम मांग नहीं रहे। देश में बहुतायत में पडी कृषि भूमि और कृषि के उपयोग में न आने वाले बहुत भूमि उपलब्ध है। भूमिहीन लोग ही इस भूमि पर अनाज उगाते हैं। इसलिये इन भूमि हीनों को भूमि के अलग-अलग पैकेटस बनाकर यह भूमि इन भूमिहीन लोगों को दे दी जाये। इससे कृषि की पैदावार बढेगी व साथ ही बेरोजगारी की समस्या भी कम होगी, अंग्र्रेज सरकार ने अम्बेडकर की इस मांग को मानकर इसे पूरा करने का वायदा भी किया था। लेकिन बाद में देश आजाद हो गया और अंग्रेज सरकार चली गई। यह मांग डॉ. अम्बेडकर ने कानून मंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने भी रखी। सिद्धांत रूप से सहमत होते हुए भी अन्य कारणों से नेहरू जी ने ऐसा करने से मना कर दिया। अन्य उदाहरण भी हैं। इस प्रकार इन कल्चर रिवोल्ट का न कभी नोट लिया न ही उन पर कुछ काम किया। इसके दुष्परिणाम देश व अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग भुगत रहे हैं। लेकिन में बता देना चाहता हूं कि हमने इसका नोट लिया है। हम इस पर काम करेंगे। हम अपने रास्ते स्वयं बनायेंगे तथा हम भी इस देश के हुकमरान बनेंगे।’’

कासीराम पूरे देश में भ्रमण कर दिन रात मेहनत करके बसपा को मजबूत करने में जुटे रहे। इसके परिणामस्वरूप अनेक प्रदेशों में बहुजन समाज पार्टी के विधायक और नगर निकायों में पार्षद तथा जिला पंचायत सदस्य चुनकर आने लगे। वर्ष 1996 में 9, 1998 में 5, 1999 में 14 तथा 2004 में 19 सदस्य लोकसभा के लिये चुने गये। बहुजन समाज पार्टी को 1996 में राष्ट्रीय दल की मान्यता मिली। सन् 1995, 1997 तथा तीसरी बार 2005 में बहन कुु. मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनी। इसी क्रम में सन 2007 में मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में बहुमत के साथ अपनी सरकार बनी। कासीराम जी की ये वे उपलब्धियां हैं जिन्हें देखकर राजनीतिक पंडित भी भौचक्के रह गये। कासीराम जी का बनाया हुआ कारवां निरंतर आगे बढता जा रहा है। कासीराम जी के आंदोलन तथा उत्तर प्रदेश में बनी बसपा सरकार का यह करिश्मा हुआ कि देश में अनुसूचितजाति/ जनजाति के लोगों को गुलामी का अहसास हो गया वे अपने अधिकारों व ताकत को समझने लगे और उनका मनोबल अब बढ चुका है। ये लोग सवर्णों द्वारा अत्याचार को सहन नहीं कर पा रहे हैं, उसका विरोध भी कर रहे हैं तथा अपने स्वाभिमान को समझ रहे हैं और इसके लिए लड़ भी रहे है। बाबा साहेब के सपनों को ही साकार करने की कडी में ही मान्यवर कासीराम जी ने 6 मई 2002 को आरक्षण के शताब्दी महोत्सव पर तथा 13-14 अक्टूबर 2002 को धम्मचक्कप्पवत्तन दिवस पर नागपुर में तथा बहुजन समाज दिवस पर 15 मार्च 2003 को बम्बई (दादर) के शिवाजी पार्क में विशाल रैली में यह घोषणा की कि हम धम्मचक्कप्पवत्तन की गोल्डन जुबली के अवसर पर 2006 में कई करोड लोगों के साथ बुद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण करेंगे। लेकिन दुखद वर्ष 2003 में मान्यवर मस्तिष्क आघात के कारण गंभीर रूप से पीडित हो गये। उनका सार्वजनिक जीवन बहुत सीमित हो गया। 9 अक्टूबर 2006 को नई दिल्ली में 72 वर्ष की आयु में मान्यवर कासीराम जी का उनके आवास, हुमांयू रोड, नई दिल्ली पर परिनिर्वाण हो गया। दिल्ली में ही निगमबोध घाट पर उनका दाह संस्कार हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार ही बहन कुृ. मायावती ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनके निधन की खबर पूरे देश में जंगल में आग की तरह फैल गई। देश के अनेक प्रदेशों से उनके अनुयायी अपने नेता के अंतिम दर्शनों के लिए दिल्ली पहुंचे। उनके आवास पर उनके अंतिम दर्शन के लिए बहुत भारी भीड़ जमा हो गई जिसे नियंत्रित करने के लिए दिल्ली पुलिस को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। निगमबोध घाट पर लाखों की भीड़ जमा थी। तमाम मीडिया और चैनल वाले उनके दाह संस्कार को कवर करने के लिए मौजूद थे। निगमबोध घाट और आसपास की सड़कों पर ट्रैफिक को बंद कर दिया गया था। मान्यवर कासीराम जी के पूरे जीवन का आकलन करें तो हम पाते हैं कि जो उन्होंने कहा सो किया। न उन्होंने विवाह किया, न अपने पैतृक घर गये यहां तक कि अपनी माता जी की मृत्यु पर भी, न ही कोई सम्पत्ति बनाई और जीवन पर्यन्त फूले-अम्बेडकर के मिशन को आगे बढाने में समर्पण भावना से अथक दिन रात लगे रहे और करके भी दिखाया। कासीराम जी के जीवन तथा महान कार्यो से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।

(बामसेफ, डीएस-4 तथा बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक महानायक मान्यवर कासीराम जी को शत: शत: नमन।)

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

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