2022-09-30 10:20:57
प्रो. एन. शिवराज अपने समय के एक क्रांतिकारी, महान समाज सुधारक, कुशल प्रशासक, कानूनविद, राजनेता, निर्धनों व दलितों के चैम्पियन, सांसद एवम एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। शिवराज का जन्म 29 सितम्बर 1892 को आन्ध्र प्रदेश के कडप्पा में हुआ था। उनके पिता का नाम नामाचिवायम तथा माता का नाम वासुदेवी अम्माल था। तीन वर्ष की आयु तक उनका लालन पालन कडप्पा में अपने मामा वी.जी.वेणुगोपाल के घर हुआ। बाद में उनका परिवार रोयापेटटा, मद्रास आ गया। शिवराज की शिक्षा वेजले स्कूल, वेजले कालिज तथा प्रेसीडेन्सी कालिज, मद्रास में हुई। लॉ कालिज, मद्रास से उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की। उनका विवाह सन 1918 में जानी-मानी अभिनेत्री मीनाम्बल से हुआ जो उनके छोटे मामा वी.जी. वासुदेवन की पुत्री थी। विवाह के बाद श्रीमती मीनाम्बल भी एक महान समाज सुधारक बन गई। उनके दोनों मामा वेणुगोपाल तथा वासुदेवन जस्टिस पार्टी के कट्टर समर्थक थे। यह पार्टी गैर ब्राह्मणों के कल्याण के लिए समर्पित थी। उत्तरी मद्रास में वासुदेवन के नाम पर एक सड़क तथा एक पार्क है। पहले एन.शिवराज भी जस्टिस पार्टी से लगाव रखते थे।
शिक्षा पूरी करने के बाद शिवराज अधिवक्ता बन गए। बाद में वे विख्यात मद्रास लॉ कालिज में 13 वर्ष तक कानून के प्रोफेसर रहे। सन 1922 में एन. शिवराज ने झुग्गी-झोपड़ी वालों का मुकदमा निशुल्क लड़ा। सन 1922 में शिवराज मद्रास विधान सभा के सदस्य बने। सन 1923 में एन. शिवराज मद्रास यूनिवर्सिटी तथा अन्नामलाई यूनिवर्सिटी की सीनेट के सदस्य बने। दलित वर्गों के प्रतिनिधि के नाते वे सन 1926 से 1936 तक मद्रास विधान परिषद के नामजद सदस्य रहे। सन 1928 में वे ‘मद्रास प्रांत डिप्रेस्ड क्लासेज फैडरेशन’ के महासचिव बने जिसकी स्थापना राव बहादुर आर.श्री निवासना ने की थी। भारत की राजनीतिक स्थिति के अध्ययन के लिए अंग्रेज सरकार ने इंग्लैंड से साइमन कमीशन भारत भेजा था। साइमन कमीशन की सहायता के लिए डॉ. अम्बेडकर, बम्बई कमेटी के सदस्य थे तथा एन.शिवराज, मद्रास कमेटी के सदस्य थे। 29 जनवरी 1928 को साइमन कमीशन को माँग पत्र पर निर्णय करने के लिए आदि द्रविड़ों की एक सभा बुलायी गई जिसकी अध्यक्षता एन. शिवराज ने की। उन्होंने 25 अगस्त 1929 को मदुरई रामनाथ पुरम में गैर-ब्राह्मण नवयुवकों के सम्मेलन की अध्यक्षता की।
अगस्त सना 1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने ‘कम्यूनल अवार्ड’ की घोषणा कर दी। इस अवार्ड में गोलमेल सम्मेलन में डॉ. अम्बेडकर द्वारा दलितों को पृथक निर्वाचन तथा दो वोट का अधिकार की माँग को स्वीकृति मिली। इसके विरुद्ध गांधी जी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। अत: विवश होकर गांधी जी के प्राण बचाने के लिए डॉ. अम्बेडकर को दलितों के लिए स्वीकृत पृथक निर्वाचन तथा दो वोट के अधिकार की तिलांजलि देनी पड़ी। इसके लिए 24 सितम्बर 1932 को पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये गए। इस पैक्ट पर डॉ. अम्बेडकर के साथ एन. शिवराज ने भी हस्ताक्षर किये। डॉ. अम्बेडकर ने 13 अक्तूबर 1935 को हिन्दू धर्म छोड़ने की घोषणा कर दी थी। इसके समर्थन में 11 जनवरी 1936 को महाराष्ट्र आदि हिन्दू नवयुवक सम्मेलन की विशाल सभा की अध्यक्षता एन. शिवराज ने की। इस सभा में डॉ. अम्बेडकर भी उपस्थित थे। सभा को संबोधित करते हुए एन. शिवराज जी ने कहा कि अछूतों के साथ ऊँच-नीच का जो भेदभाव चिपका हुआ है, उससे बचने के लिए अछूतों को हिन्दू धर्म त्याग देना चाहिए और अपने लिए एक नए धर्म का सृजन करना चाहिए। नागपुर में 18 जुलाई से 20 जुलाई 1942 तक ‘आॅल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेज कांग्रेस’ का आयोजन किया गया। इस समय डॉ. अम्बेडकर को वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य के तौर पर शामिल होने का आदेश जारी हो चुका था। इस सम्मेलन की अध्यक्षता प्रो. एन. शिवराज ने की। इसी सम्मेलन में एक प्रस्ताव द्वारा ्न‘आॅल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेज कांग्रेस’ का ‘आॅल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन’ में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया। इस प्रकार प्रो. एन. शिवराज ‘शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन’ के पहले अध्यक्ष बने।
प्रो. एन. शिवराज सन 1944 में केंद्रीय विधान सभा के सदस्य (सांसद) नामजद किये गए। इसके बाद उन्हें वायसराय की कार्यकारी परिषद में मंत्री के तौर पर शामिल किया गया। वे सन 1945 में मद्रास के मेयर भी बने। सन 1946 के मार्च में कैबिनेट मिशन भारत आया। लेकिन कैबिनेट मिशन ने दलित वर्गों के हित में कोई प्रस्ताव नहीं दिया। दलित वर्ग के लोगों को इससे बड़ी निराशा हुई। कैबिनेट मिशन द्वारा दलित वर्गों की उपेक्षा करने पर डॉ. अम्बेडकर ने कैबिनेट मिशन तथा ब्रिटिश सरकार के सामने अपना विरोध जताया तथा दलित वर्ग की माँगे बहुत ही प्रभावी तरीके से व मजबूती से सरकार के सामने रखी लेकिन वार्ता निष्फल रही। इस मुहिम में प्रो. शिवराज ने डॉ. अम्बेडकर का कंधे से कंधा मिलाकर पूरा साथ दिया। धरने व प्रदर्शन के आयोजनो में भी व अग्रणी रहे। वे सन 1957 से 1962 तक लोक सभा के सदस्य रहे। डॉ. अम्बेडकर की योजना थी कि शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन को रिपब्लिकन पार्टी में परिवर्तित किया जाए। इसका उन्होंने संविधान भी बनाया था लेकिन 6 दिसम्बर 1956 को उनके असमय निधन से यह काम पूरा नहीं हो सका। इसके बाद बाबा साहेब के सहयोगियों ने बाबा साहेब की इच्छानुसार रिपब्लिकन पार्टी की स्थापना के लिए नागपुर में 3 अक्तूबर 1957 को एक विशेष अधिवेशन का आयोजन किया। इसमें शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन की जगह ‘रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया’ की स्थापना की गई। इस बार भी प्रो. एन. शिवराज ही रिपब्लिकन पार्टी के प्रथम अध्यक्ष चुने गए।
उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के कुछ और आयाम इस प्रकार है। वे एक अच्छे घुड़सवार तथा जाने-माने खिलाड़ी थे। वे जब मद्रास के मेयर थे, तभी यहाँ नेहरू स्टेडियम का निर्माण हुआ। वे ‘मद्रास रेस क्लब’ के मैनेजर तथा साउथ इंडियन स्पोर्ट्स फैडरेशन के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने मद्रास नगर निगम के स्कूलों में बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा लागू की। उन्होंने कालोनियों में सर्वे के लिए अनिवार्य विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की। उन्हें दक्षिण भारत में ‘फादर शिवराज’ भी कहा जाता है। वे पाँचवी बुद्धिस्ट कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष रहे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें राव साहब तथा राव बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया। वे सैनफ्रासिसको, अमेरिका, कनाडा, वर्मा तथा पश्चिमी देशों में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन से जुड़े रहे। वे एक जाने-माने ब्राह्मण वकील सर सी.पी.रामास्वामी से भी जुड़े रहे। सर रामास्वामी जातिप्रथा, छुआछूत जैसी अमानवीय व्यवस्थाओं के कट्टर विरोधी थे। कुछ और आयाम, शिवराज भारत के दूसरे राष्ट्रपति एस.राधाकृष्णन के विद्यार्थी रहे। प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के अच्छे मित्र, प्रथम रक्षा मंत्री, वी. के. कृष्णमेनन तथा प्रथम वित्त मंत्री टी. टी. कष्णमाचारी के सहपाठी रहे। वे पाकिस्तान के प्रथम राष्ट्रपति मि. जिन्ना तथा पाकिस्तान के संविधान निमार्ता जोगेन्द्रनाथ मंडल के भी अच्छे मित्र थे। वे मद्रास लॉ कालिज में शिक्षक भी रहे।
एन. शिवराज अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के समाधान तथा केंद्र सरकार से सहायता के लिए एक बड़ा प्रदर्शन करना चाहते थे। इसके लिए वे मद्रास से नई दिल्ली आ गए। किन्तु दुखद, 29 सितम्बर 1964 को प्रात: 5:30 बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। दलित वर्ग के इस महान चैम्पियन का शव विशेष विमान से शाम 7:30 बजे मद्रास पहुँचा। अगले दिन 30 सितम्बर 1964 को एक विशाल शव यात्रा के साथ उनका शव मद्रास में कृष्णमपेट शमशान ले जाया गया। वहाँ बुद्धिस्ट भिक्षु द्वारा बुद्ध रीति द्वारा उनका दाह संस्कार किया गया। उनके द्वारा सच्ची मानवता की सेवा के लिए तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जय ललिता की सरकार ने चेन्नई के मुद्रणालय में उनकी एक मूर्ति की स्थापना की तथा अप्पू स्ट्रीट (रोयापेटटा) का नाम बदल कर मेयर शिवराज स्ट्रीट कर दिया गया।
(लेखक आकाशवाणी से सेवानिर्वत पूर्व अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं)
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