2024-03-29 11:24:10
जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के चंदवा नामक गांव में एक दलित (चर्मकार) परिवार में हुआ। उनकी माता का नाम वासन्ती देवी और पिता का नाम संत शोभी राम था। वे आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। 6 वर्ष की उम्र में ही पिता का साया उनसे छीन गया था। 8 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया।
जगजीवन जिन्हें सम्मान स्वरूप बाबूजी भी कहा जाता था, एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री एवं राजनेता थे। बाबू जगजीवन राम के जीवन के कई पहलू हैं। उनमें से ही एक है भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में उनका अमूल्य योगदान। 28 साल की उम्र में ही 1936 में उन्हें बिहार विधान परिषद् का सदस्य नामांकित कर दिया गया था। जब गवर्नमेंट आॅफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुने गए। बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मंत्री बने। साल भर के अंदर ही अंग्रेजों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण महात्मा गांधी की सलाह पर काग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे थे। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया था। बाद में वह महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए। जब मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की तो जगजीवन राम वहीं थे। तय योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आंदोलन को तेज करना था, लेकिन दस दिन बाद ही उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया।
बाबूजी ने वर्ष 1920 में आरा स्थित अग्रवाल विद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रवेश लिया। आयु वृद्धि के साथ ही उनमें परिपक्वता का भी समावेश हो रहा था। उनकी विदेशी भाषाओं को समझने व सीखने की जिज्ञासा के बल पर उन्होंने अंग्रेज़ी में निपुणता हासिल की, साथ ही माननीय श्री बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित आनन्द मठ की मूल पुस्तक (जो बंगाली में लिखित है) को पढ़ने के लिए बंगाली तक सीख गए। वे अंग्रेज़ी व बंगाली के साथ-साथ हिन्दी व संस्कृत में भी माहिर थे। 1925 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब आरा पधारे तो वे युवा जगजीवन के व्यापक ज्ञान व सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखकर अचंभित रह गए, उन्हें तभी आभास हो गया कि ये किशोर भविष्य में देश की आजादी व राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा सकता है। उन्होंने युवा जगजीवन से स्वयं मुलाकात की व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय आने का निमंत्रण दिया। परन्तु जगजीवन राम को वहाँ जाति के आधार पर भेद भाव झेलना पड़ा। क्रांतिकारी स्वाभाव के जगजीवन ने इसका खुल कर विरोध किया और वे सफल भी हुए। आतंरिक विज्ञान परीक्षा (इंटर मीडियेट साइंस) में वे उत्तम अंकों से उत्तीर्ण हुए व वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक में उच्चतम अंकों से उत्तीर्ण हुए।
राजनीतिक जीवन का शंखनाद
बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन का आगाज कलकत्ता से ही हुआ। कलकत्ता आने के छ: महीनों के भीतर ही उन्होंने विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया जिसमें भारी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया। इस रैली से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी को भी बाबूजी की कार्य क्षमता व नेतृत्व क्षमता का आभास हो गया। इस काल के दौरान बाबूजी ने चन्द्रशेखर आजाद तथा सिद्ध हस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त जैसे विख्यात स्वतंत्रता विचारकों के साथ काम किया। वर्ष 1934 में जब सम्पूर्ण बिहार भूकंप की तबाही से पीड़ित था तब बाबूजी ने बिहार की मदद व राहत कार्य के लिए अपने कदम बढ़ाए। बिहार में ही पहली बार उनकी मुलाकात उस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रभावशाली व अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी माननीय श्री मोहन दास करमचन्द गाँधी अर्थात् महात्मा गाँधी से हुई। महात्मा गाँधी ने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन में एक बहुत अहम भूमिका निभाई, क्योंकि बाबूजी यह जानते थे कि पूरे भारत वर्ष में केवल एक ही स्वतंत्रता सेनानी ऐसा था जो स्वतंत्रता व पिछड़े वर्गों के विकास, दोनों के लिए लड़ रहा था, और वे थे गांधीजी। अन्य सभी सेनानी दोनों में से किसी एक का चुनाव करते थे। बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में जाने गए। वे गांधीजी के विश्वसनीय एवं प्रिय पात्र बने व भारतीय राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में प्रवेश कर गए। अपने विद्यार्थी जीवन में बाबूजी ने वर्ष 1934 में कलकत्ता के विभिन्न जिलों में संत रविदास जयन्ती मनाने के लिए अखिल भारतीय रविदास महासभा का गठन किया। उन्होंने दो अन्य संस्थानों का गठन किया: 1. खेतिहर मजदूर सभा 2. भारतीय दलित वर्ग संघ। वर्ष 1935 में बाबू जगजीवन राम ने डॉ. बीरबल की सुपुत्री इन्द्रानी देवी से विवाह किया। डॉ. बीरबल कानपुर के एक प्रख्यात चिकित्सक थे वहीं इन्द्रानी देवी बाबू जगजीवन राम के विचारों से अति प्रभावित थीं। इस विवाहित जोड़े ने कुछ वर्षों के पश्चात एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम सुरेश रखा गया व एक पुत्री जिसका नाम रखा गया मीरा।
विरोध का काल
बाबूजी के लिए ये समय अत्यन्त परिश्रम का था और एक अनमोल मौका था भारतीय राजनीती में अपनी अमिट छाप छोड़ने का। वर्ष था 1936 व बाबूजी की आयु थी 28 वर्ष। अंग्रेज़ बिहार में कांग्रेस को हराने के लिए एकजुट होकर प्रयास कर रहे थे। उन्होंने मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनाने का निष्फल प्रयत्न किया। इन चुनावों में बाबूजी सहित अन्य 14 भारतीय दलित वर्ग संघ के सदस्य निर्वाचित हुए। बाबूजी की बढ़ती राजनैतिक शक्ति व लोकप्रियता के कारण अंग्रेजों ने उनके समक्ष बड़ी रकम के बदले समर्थन देने की बात रखी जिसे बाबूजी ने क्षण भर की भी देर न करते हुए तुरन्त ही ठुकरा दिया। इस घटना का पता चलते ही गाँधी जी का विश्वास बाबूजी पर और अधिक बढ़ गया और उन्होंने बाबूजी के लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ कहीं- जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे व सच्चे हैं। मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है कठपुतली सरकार का खेल खत्म हो चुका था व कांग्रेस ने सरकार का गठन किया।
बाबूजी को इस सरकार में कृषि मंत्रालय, सहकारी उद्योग व ग्रामीण विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष 1938 में अंदमान कैदियों के मुद्दे पर व द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल से महात्मा गाँधी अति क्रोधित हुए व उनके एक आवाह्न पर सभी कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। तत्पश्चात गांधीजी ने 9 अगस्त 1942 से उनके विख्यात आन्दोलन भारत छोड़ो आन्दोलन को प्रारम्भ किया। उन्होने बाबूजी को बिहार व उत्तर पूर्वी भारत में इस आन्दोलन के तेजी से प्रचार करने की जिÞम्मेदारी सौंपी जिसे बाबूजी ने बहतरीन रूप से निभाया। किन्तु प्रचार के दस दिन बाद ही बाबूजी गिरफ्तार कर लिए गए।
बाबूजी उन बारह राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के लिए लार्ड वावेल ने अगस्त 1946 को आमंत्रित किया था। सितम्बर 1946 में जेनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मलेन में हिस्सा लेने के उपरांत स्वदेश लौट रहे बाबूजी का विमान इराक स्थित बसरा के रेगिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दुर्घटना में बाबूजी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचा। आजादी के पश्चात वर्ष 1947 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित सरकार में बाबूजी ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की व अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाई। इस महान राजनीतिज्ञ ने भारतीय राजनीति को अपने जीवन के 50 वसंत से भी अधिक दान में दिए।
संविधान निर्माताओं में से एक बाबूजी ने सदैव सामाजिक न्याय को सर्वोपरि माना है। पंडित नेहरू का बाबूजी के लिए एक विख्यात कथन कुछ इस प्रकार है- समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को, देश की साधारण जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में बड़े से बड़ा खतरा उठाने में कभी कोई हिचक नहीं होती। श्री जगजीवन राम उन में से एक ऐसे महान व्यक्ति हैं श्रम, रेलवे, कृषि, संचार व रक्षा, जिस भी मंत्रालय का दायित्व बाबूजी को दिया गया हो उसका सदैव कल्याण ही हुआ। बाबूजी ने हर मंत्रालय से देश को तरक्की पर पहुँचाने का अथक प्रयास किया। स्वतंत्र देश घोषित होने के उपरान्त भारत के निर्माण की पूरी जिÞम्मेदारी नयी सरकार पर थी और इस जिÞम्मेदारी को पूरा करने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान बाबूजी का रहा।
श्रम मंत्री के रूप में
प्रथम सरकार में पूर्वी ग्रामीण शाहबाद से निर्वाचित सांसद बाबू जगजीवन राम को श्रम मंत्रालय का दायित्व दिया गया। यह शुरू से ही उनका प्रिय विषय रहा क्योंकि चांदवा की माटी में पले-बढ़े बाबूजी का जन्म एक खेतिहर मजदूर के घर हुआ था जहाँ उन्होंने उन विलक्षण भरी परिस्तिथियों को स्वयं झेला था। कलकत्ता में वे मिल-मजदूरों की परिस्तिथियों से भी वाकिफ थे। श्रम मंत्री के रूप में बाबूजी ने समय द्वारा जांचे-परखे कुछ महत्त्वपूर्ण कानूनों को लागू करने का अहम फैसला लिया। ये कानून मजदूर वर्ग की सबसे बड़ी उम्मीद व आज के युग में सबसे बड़े हथियार के रूप में देखे जाते हैं।
ये कानून कुछ इस प्रकार थे- 1. इंडस्ट्रियल डिसप्यूट्स एक्ट, 1947 2. मिनिमम वेजेज एक्ट, 1948 3. इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) एक्ट, 1960 4. पेयमेंट आॅफ बोनस एक्ट, 1965 दो अति आवश्यक कानून जिनके बिना आज का व्यापारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता 5. एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948 6. प्रोविडेंट फण्ड एक्ट, 1952
संचार मंत्री
बाबूजी संसद भवन को अपना दूसरा घर मानते थे। वर्ष 1952 में जवाहरलाल नेहरु ने सासाराम से निर्वाचित बाबू जगजीवन राम को संचार मंत्री बनाया। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी शामिल था। बाबूजी ने निजी विमान कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण की ओर कदम बढ़ाए। परिणामस्वरूप वायु सेना निगम, एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण योजना के प्रबल विरोध होने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इसे स्थगित करने के पक्ष में खड़े हो गए थे। परन्तु बाबूजी के समझाने पर वे मान गए व विरोध भी लगभग खत्म हो गया। गाँवों में डाकखानों का जाल बिछाने की बात भी उन्होंने कही व नेटवर्क के विस्तार का चुनौतीपूर्ण कार्य आरम्भ किया। बाबूजी के इस मेहनती अंदाज को भारत वर्ष के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने कुछ इस प्रकार बयान दिया, बाबू जगजीवन राम दृढ़ संकल्प कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही त्याग में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं। इनमें धमोर्पासकों का सा उत्साह और लगन है।
रेल मंत्री के रूप में
सासाराम से पुनर्निर्वाचित बाबूजी को वर्ष 1956-62 तक रेल मंत्रालय की जिÞम्मेदारी उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने रेल मंत्री के रूप में भारतीय रेलवे की काया पलट दी। बाबूजी ने भारतीय रेलवे को आधुनिक दुनिया के सन्दर्भ में आधुनिक रेलवे के निर्माण की बात कही। उन्होंने पांच सालों तक रेलवे का किराया नहीं बढाया जो कि एक ऐतिहासिक घटना थी। उन्होंने रेलवे अधिकारियों, अफसरों व कर्मचारियों के विकास पर अधिक बल दिया। उपर्युक्त रेखाचित्र से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वर्ष 1956-62 तक का रेलमार्ग निर्माण कार्य किसी और वर्ष की तुलना में अधिक था। वे अब तक के सबसे सफल रेलमंत्री माने जाते हैं।
विविध मंत्रालयों में बाबूजी
1962 के आम चुनावों में सासाराम की जनता ने बाबूजी को पुन: विजय-वरदान दिया व उन्हें परिवहन एवं संचार मंत्रालय का दायित्व दिया गया। परन्तु बाबूजी ने कामराज योजना के तहत इस्तीफा दे दिया व कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में लग गए। 1966-67 के आम चुनावों में विजयी बाबू जगजीवन राम को उस सरकार में एक बार फिर श्रम मंत्रालय दिया गया। किन्तु एक वर्ष उपरांत ही उन्हें कृषि एवं खाद्य मंत्रालय का दायित्व दिया गया। चीन व पाकिस्तान से जंग के पश्चात भारत में गरीबी व भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे तथा अमेरिका से पी.एल. - 480 के तहत मिलने वाला गेहूं व ज्वार खाद्य आपूर्ति का मुख्य स्रोत था। ऐसी कठिन परिस्थिति में बाबूजी ने डॉ. नॉर्मन बोरलाग की सहायता से हरित क्रान्ति की बुनियाद रखी व मात्र दो वर्षों के उपरान्त ही भारत फूड सरप्लस देश बन गया। कृषि एवं खाद्य मंत्रालय में रहते हुए बाबूजी ने देश को भीषण बाढ़ से भी राहत पहुँचाई व भारत को खाद्य के मामलों में आत्मनिर्भर बनाया। 1971 के आम चुनावों में एक बार फिर बाबूजी की जीत हुई व उन्हें श्रीमती इन्दिरा गाँधी की सरकार में इस बार रक्षा मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय को अपनी सेवाएँ प्रदान करने का मौका मिला। बाबूजी ने सर्वप्रथम भारत के राजनैतिक मानचित्र को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया। भारत-पाकिस्तान की उस अभूतपूर्व जंग में बाबूजी ने देश की जनता से वायदा किया कि ये जंग भारतभूमि के एक सूई की नोक के बराबर तक भाग पर भी नहीं लड़ी जायेगी, और वे इस वायदे पर कायम रहे। उनकी इस महान सेवा के लिए श्री राजीव गाँधी ने कुछ इस प्रकार से अपने विचार व्यक्त किए हैं, राष्ट्र को आजाद कराने में बाबूजी का योगदान बड़ा ही सराहनीय रहा है। देश को अनाज की दृष्टि से आत्म-निर्भर बनाने तथा बांग्लादेश की मुक्ति के युद्ध में उनका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा। 1974 में बाबूजी ने कृषि एवं सिंचाई विभाग की जिÞम्मेदारी ली व एक नयी प्रणाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली की नींव रखी जिसके द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि देश की आम जनता को पर्याप्त मात्रा व कम दाम में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों।
कांग्रेस के आधारस्तंभ
बाबूजी ने दिसंबर 1885 में बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी माँ के समान बताया व इसकी सेवा में सदैव आगे रहे। बाबूजी वर्ष 1937-77 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति उपरान्त वे कांग्रेस के लिए अपरिहार्य हो गए थे। बाबू जगजीवन राम महात्मा गांधीजी के प्रिय तो थे ही साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी के सबसे अहम सलाहकारों में से भी एक थे। वर्ष 1966 में माननीय लाल बहादुर शास्त्री के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया। जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गजों ने अपनी अलग पार्टी की रचना की वहीं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फखरुद्दीन अली अहमद जैसे आधुनिक सोच के व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे। वर्ष 1969 में बाबूजी निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस ऐतिहासिक घटना का श्रेय बाबूजी को देते हुए कहा, ‘‘बाबू जगजीवन राम भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक है। देश के करोड़ों हरिजन, आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक लोग उन्हें अपना मुक्तिदाता मानते हैं’’।
आपातकाल व नयी शुरूआत
25 जून 1975 को श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा देश भर में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी। इस आपातकाल ने संविधान के मौलिक अधिकारों को सवालों के घेरे में ला दिया। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने 18 जनवरी 1977 को आम चुनाव की घोषणा तो कर दी थी किन्तु देश को आपातकाल का डर था। इस परिस्थिति से निपटने के लिए बाबूजी ने अपने पद का त्याग कर दिया व कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। उन्होंने उसी दिवस कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी (सी.एफ.डी.) नामक एक नयी पार्टी की रचना की। वर्ष 1977 के आम चुनावों में कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी को बहुत अच्छी सफलता मिली। जनता पार्टी की सरकार बनीं और बाबू जी को रक्षा मंत्रालय का दायित्व दिया गया। 25 मार्च 1977 को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, जनता पार्टी में सम्मिलित कर ली गयी। जनवरी 1979 में बाबूजी को भारत का उप प्रधानमंत्री बनाया गया। 1980 में जनता पार्टी का आपसी मनमुटावों के कारण बंटवारा हो गया। बाबूजी ने मार्च 1980 में अंतत: अलग कांग्रेस (जे) का गठन किया। वर्ष 1984 के आम चुनावों में सासाराम की जनता ने अपने विश्वनीय प्रतिनिधि बाबू जगजीवन राम को पुन: लोकसभा के लिए चुना।
अंतिम यात्रा
6 जुलाई 1986, को बाबूजी ने अपनी अंतिम श्वास ली। बाबूजी ने सदैव निडरतापूर्वक अन्याय का सामना किया एवं साहस, ईमानदारी, ज्ञान व अपने अमूल्य अनुभव से सदैव देश की भलाई की। वे स्वतंत्र भारत के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होनें दलित समाज की दशा बदल दी व एक नयी दिशा प्रदान की। इन्होनें सदा एक ही चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया व सदा अपराजित ही रहे। बाबू जगजीवन रामजी ने वर्ष 1936 से वर्ष 1986 तक अर्थात आधी शताब्दी तक राजनीति में सक्रिय रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।
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