2022-09-15 08:45:47
सबको समानता और न्याय के पुरोधाओं तथागत गौतम बुद्ध और संत कबीर के बाद महामना ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहू जी महाराज और भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. अम्बेडकर के साथ पेरियार ई वी रामास्वामी नायकर का नाम बडी श्रृद्धा के साथ लिया जाता है। वह तमिल राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके प्रशंसक उन्हें सम्मान देते हुए ‘पेरियार’ कहते थे।
ई वी रामास्वामी यानि पेरियार दक्षिण भारत के दिग्गज नेता थे। 17 सितंबर 1879 जन्में वे ऐसे नेता थे जिन्होंने काफी हद तक दक्षिण भारतीय राज्यों की राजनीति तय कर दी। उत्तर भारत में नई पीढियां शायद ही पेरियार के बारे में जानती हों। पेरियार जीवनभर रूढिवादी हिंदुत्व का विरोध तो करते ही रहे, साथ ही हिन्दी के अनिवार्य पढाई के भी घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने अलग द्रविड़ नाडु की भी मांग कर डाली थी। उनकी राजनीति शोषित और दलितों के इर्दगिर्द घूमती रही।
उन्होंने आत्म सम्मान आन्दोलन या द्रविड़ आन्दोलन शुरू किया। जस्टिस पार्टी बनाई, जो बाद में जाकर द्रविड़ कड़गम हो गई। उन्हें एशिया का सुकरात भी कहा जाता था। विचारों से उन्हें क्रांतिकारी और तर्कवादी माना जाता था। वह एक धार्मिक हिंदू परिवार में पैदा हुए, लेकिन ब्राह्मणवाद के घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने न केवल ब्राह्मण ग्रंथों की होली जलाई बल्कि रावण को अपना नायक भी माना। लोगों के मन से ब्राह्मणवाद के पाखंड तथा अनावश्यक हिन्दू देवी देवताओं के भ्रम जाल से निकलने के लिए उन्होंने लोगों को जागृत करने के लिए हर तरह के प्रयत्न किये। यहां तक कि एक बार उन्होंने हिन्दूओं के सारे देवी देवताआें की मूर्तियों को जूतों की माला पहनाकर एक ट्रक में रखा और जलूस के रूप में ट्रक को सारे शहर की सड़कों पर घुमाया। इसी बीच वह देवताओं को जूते भी मारते रहे और चिल्ला चिल्लाकर यह कहते रहे कि देखो तुम्हारे ये देवी देवताओं में कोई दम नहीं है और ये अपना बचाव नहीं कर पा रहे हैं तो समझ लो कि ये पत्थर के देवी देवता तुम्हारा क्या बचाव करेंगे, क्या भला करेंगे? इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूं कि इन देवी देवताओं का पीछा छोडो और इन्हें पूजना बंद करो। सही मानव धर्म को ही अपने जीवन में अपनाओ। 15 साल की उम्र में पिता से अनबन होने के कारण उन्होंने घर छोड़ दिया. वह काशी चले गए. वहां उन्होंने धर्म के नाम पर जो कुछ होता देखा, उसने उन्हें नास्तिक बना दिया. वो वापस लौटे. जल्दी ही अपने शहर की नगरपालिका के प्रमुख बन गए. केरल में कांग्रेस के उस वाईकॉम आंदोलन की अगुवाई करने लगे, जो मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने पर पाबंदी का विरोध करता था।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पहल पर वह 1919 में कांग्रेस के सदस्य बने थे. असहयोग आन्दोलन में भाग लिया. गिरफ्तार हुए. 1922 में वो मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने. जब उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का प्रस्ताव रखा और इसे कांग्रेस में मंजूरी नहीं मिली तो 1925 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन्हें महसूस हुआ कि ये पार्टी मन से दलितों के साथ नहीं है।
दलितों के समर्थन में आंदोलन
कांग्रेस छोड़ने के बाद वो दलितों के समर्थन में आंदोलन चलाने लगे. पेरियार ने 1944 में अपनी जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया. इसी से डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी का उदय हुआ. उन्होंने खुद को सत्ता की राजनीति से अलग रखा. जिंदगी भर दलितों और स्त्रियों की दशा सुधारने में लगे रहे।
हिंदी का विरोध
1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी. तब पेरियार हिंदी विरोधी आंदोलन के अगुवा बनकर उभरे. उग्र आंदोलनों को हवा दी. 1938 में वो गिरफ्तार हुए. उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में तमिलनाडु तमिलों के लिए का नारा दिया. उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी. तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जाएगा।
दूसरा विवाह
वर्ष 1933 में उनकी पत्नी नागाम्मै का निधन हो गया। इसके 15 साल बाद उन्होंने दूसरी शादी की। तब उनकी उम्र 69 वर्ष थी जबकि उनकी दूसरी पत्नी की उम्र थी 30 वर्ष। इस शादी को लेकर विवाद भी हुआ. उनकी पार्टी के लोगों ने उनसे ऐसा नहीं करने को कहा. उनकी दूसरी पत्नी मनियामई दरअसल पेरियार की निजी सचिव थीं. पेरियार का तर्क था कि जिस तरह से मनियामई उनकी देखभाल करती हैं, उससे उन्हें लगता है कि उन्हें उनसे शादी कर लेनी चाहिए। इस शादी के बाद उनकी पार्टी में नाराजगी भी फैली। मनियामई ने जीवन प्रयंत रामासामी के सामाजिक मिशन और आंदोलनों में तन-मन और समर्पण भावना से काम किया और उनका पूरा साथ दिया।
हिन्दू धर्म में पाखण्डवाद व असमानता के प्रखर विरोधी तथा समानता और न्याय के पुरोधा पेरियार रामासामी जीवन प्रयंत मूल निवासी बहुजन समाज के मान-सम्मान व समानता की लड़ाई लड़ते रहे। इस मिशन के लिए उनका त्याग इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में रहेगा। पेरियार रामासामी का 24 दिसंबर 1973 को निधन हो गया।
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