2023-08-12 14:10:16
सन 1929 में जन्मे दशरथ मांझी (dashrath manjhi) काफी कम उम्र में अपने घर से भाग गए थे और धनबाद dhanwad की कोयले की खानों में उन्होनें काम किया। फिर वे अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी falguni devi से शादी की। अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ mountain के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेगे और फिर उन्होंने 360 फुट-लम्बा (110 मी), 25 फुट-गहरा (7.6 मी) 30 फुट-चौड़ा (9.1 मी) गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया। इन्होंने बताया, जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया।
उन्होंने अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वजीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से घटाकर 15 किमी कर दिया। माँझी के प्रयास का मजाक उड़ाया गया पर उनके इस प्रयास ने गेहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम अनुसार दंडनीय है फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय है। बाद में मांझी ने कहा, पहले-पहले गाँव वालों ने मुझपर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दिया और औजार खरीदने में मेरी सहायता भी की।
हथौडे-छैनी से तोड़ा पहाड़
मांझी के प्रयत्न का सकारात्मक नतीजा निकला। केवल एक हथौड़ा और छैनी लेकर उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। इस सड़क ने गया के अत्रि और वजीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दी ताकि गांव के लोगो को आने जाने में तकलीफ ना हों। आखिरकार 1982 में 22 वर्षो की मेहनत के बाद मांझी ने अपने कार्य को पूरा किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव भी रखा।
अकेला शख़्स पहाड़ भी फोड़ सकता है!
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज ने कब्जा कर रखा था। पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया। पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया।
वर्तमान संस्कृति में
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के फिल्म प्रभाग ने इन पर एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) फिल्म ‘द मैन हु मूव्ड द माउंटेन’ का भी 2012 में निर्माण किया। कुमुद रंजन इस वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) के निर्देशक हैं। जुलाई 2012 में निदेशक केतन मेहता ने दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ बनाने की घोषणा की। अपनी मृत्युशय्या पर, मांझी ने अपने जीवन पर एक फिल्म बनाने के लिए ‘विशेष अधिकार’ दे दिया। 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज किया गया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने माँझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई है। मांझी के कामों को एक कन्नड़ फिल्म ‘ओलवे मंदार’ में जयतीर्थ द्वारा दिखाया गया है।
मार्च 2014 में प्रसारित टीवी शो सत्यमेव जयते का सीजन 2 जिसकी मेजबानी आमिर खान ने की जिसका पहला एपिसोड दशरथ माँझी को समर्पित किया गया। आमिर खान और राजेश रंजन भी माँझी के बेटे भागीरथ मांझी और बहू बसंती देवी से मुलाकात की। मांझी को और वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया। हालांकि 1 अप्रैल 2014 को चिकित्सीय देखभाल वहन करने में असमर्थ होने के कारण बसंती देवी की मृत्यु हो गयी। हाल ही में उसके पति ने ये कहा कि अगर आमिर खान ने मदद का वादा पूरा किया होता तो ऐसा नहीं होता।
दुनिया से चले गए लेकिन यादों से नहीं!
दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वजीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया। केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया। साल 2007 में जब 73 बरस की उम्र में वो दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी।
निधन
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) के कैंसर से पीड़ित माँझी का 73 साल की उम्र में 17 अगस्त 2007 को निधन हो गया। बिहार की राज्य सरकार के द्वारा इनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 किमी लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया।
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