




2022-11-24 17:15:48
राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर से 40 कि.मी. दूर वागास गाँव में माननीय भाना वाल्मीकि के घर 28.2.1928 को दीनाभाना का जन्म हुआ, पहले बच्चे का नाम दीनानाथ रखा गया लेकिन बाद में नाथ हटाकर उनके नाम के अंत में उनके पिता का नाम भाना लगाकर उनका नाम दीनाभाना कर दिया। उसी दौरान भारत की सामाजिक, शैक्षणिक तथा राजनीतिक स्थिति का आकलन करने के लिए तीन फरवरी 1928 को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त ‘साइमन कमीशन’ भारत पहुंचा जिससे सारे देश में उथल पुथल मच गई। जहां एक ओर गांधी व कांग्रेस के नेता साइमन कमीशन के बहिष्कार व असहयोग की योजना बना रहे थे, वहीं दूसरी ओर दलित तथा पिछड़ी जातियों के नेता साइमन कमीशन के आगमन से खुश थे, उत्साहित थे तथा कमीशन के सदस्यों के स्वागत की तैयारी कर रहे थे। उस समय राजस्थान में जातिय भेदभाव चरम सीमा पर था। भंगी की परछाई से भी लोग कतराते थे। स्कूलों का दरवाजा इनके लिए बंद था। दीनाभाना जी जब 14-15 साल के हुए तो उनके सामने एक घटना घटी। दीना भाना जी के पिता ने गाँव के एक जाट को पशुओं को चारा खिलाने के लिए ढकोला (हौद) बनाकर दिया। काफी समय तक जाट उसका पैसा नहीं दे पाया। उसने पैसे के बदले भैंस दे दी। तीनों भाई बहुत खुश हुए क्योंकि भंगियों को गाय भैंस रखने पर पाबंदी थी। ठाकुर राजा को ध्यान आया कि भैंस भाना भंगी के घर में बंधी है। तो उसी समय दीना भाना के पिता को बुलवाया और राजा ने कहा, भाना! तेरे पास पास भैंस कहाँ से आई। पिता ने उत्तर दिया, भैंस जाट से मैंने खरीदी है। ठाकुर राजा ने कहा यह भैंस जाट को वापस देकर आओ नहीं तो साले को पाँच जूते लगाओ। सूअर पालने वाले भैंस कैसे रख सकते हैं। भाना डर गए और जाट को भैंस वापस कर आए।
दीना भाना ने आपबीती सुनाते हुए कहा था, ‘भंगी जातियों को तो कुछ मिला ही नहीं। इसका मैं व्यक्तिगत तौर पर शिकार हूँ। उपरोक्त घटना से आहत मैं 1935 में गाँव छोड़ दिल्ली अपने भाई के पास चला आया। 1946 में महाराष्ट्र राज्य में पूना चला आया। दो वर्ष मजदूरी करता रहा। वहाँ कुछ समय बाद सन 1948 में डीआरडीओ (रक्षा विभाग) में एक सरकारी नौकरी मुझे मिली। सरकारी नौकरी में भर्ती होने के पहले अपनी जाति का भी लिखनी पड़ती थी। वहाँ मेरी जाति का पता चला। वैसे तो मैं वहाँ लेबर के तौर पर काम पर लगा था। मगर आॅफिस के लोग मुझसे झाड़ू लगवाने का कार्य करवाते थे। मुझे वह सहन नहीं होता था। मैं उस वक्त मजबूर और मुसीबत का मारा था। दिल्ली में पंचकुइयां रोड में मैंने 1944 में डॉ.अंबेडकर का भाषण सुना था। डॉ.अंबेडकर हमारे लोगों को कहते थे ज्यादा पढ़ाई करो। मैं बहुत प्रेरित हुआ। मगर मैं पढ़ नहीं सका। पुणे में जाने के बाद मैंने अपनी कुछ पढ़ाई शुरू की। थोड़ी बहुत अंग्रेजी पढ़ी जिसकी बदौलत 1967 में मुझे पुणे में निरीक्षक के पद पर प्रमोशन मिल गया।’
रक्षा संस्थान में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के अनुसार संस्थान के प्रमुख को कैलेंडर वर्ष प्रारंभ होने के पूर्व में संस्थान की सभी यूनियनों की बैठक कर पूरे वर्ष के लिए छुट्टियां तय करना होता है। तदनुसार 1964 में पुणे रक्षा संस्थान के प्रमुख ने बैठक बुलाई। 36 वर्षीय दीनाभाना जी ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ का प्रतिनिधित्व किया। अन्य ज्यादातर यूनियनों का प्रतिनिधित्व ब्राह्मणों द्वारा किया जा रहा था सभी ने अपने पूर्वजों की जयंती जैसे होली, दशहरा, दीवाली आदि त्योहारों के अवसरों पर छुट्टियों के लिए अनुरोध किया। बैठक की कार्यवाही मिनट रजिस्टर में दर्ज की गई और सभी को हस्ताक्षर के लिए कहा गया। मा.दीना भाना जी की बारी आई तो उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि मैं 14 अप्रैल डॉ.अंबेडकर जयंती की छुट्टी चाहता हूँ। संस्थान प्रमुख (महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण) ने कहा कि तुम महाराष्ट्रीयन नहीं हो। तुम्हें डॉ.अंबेडकर से क्या लेना? दीनाभानाजी के हस्ताक्षर न होने से समस्या खड़ी हो गई। संस्थान प्रमुख ने दबाव में लेना शुरू कर दिया और कहा तुम ज्यादा मत बोलो। तुम्हें तो बोलने का भी अधिकार नहीं। क्या तुम कानून जानते हो? मा. दीनाभाना ने जवाब दिया कि बोलने का अधिकार मुझे संविधान के माध्यम से मिला है। संस्थान प्रमुख ने डॉ.अंबेडकर को गाली देना शुरू कर दिया और कहा ह्लङ्म४१ अेुी‘िं१ ६ं२ ॅ१ीं३ १ं२ूं’.ह्व अर्थात तुम्हारा अंबेडकर महादुष्ट था। ऐसा कहने पर झगड़ा हो गया। मा. दीनाभाना को सस्पेंड कर दिया गया। इस लड़ाई में मा.डी. के. खापर्डे और मा.कांशीराम ने बहुत मदद की। संस्थान के निदेशक ने कांशीराम जी को भी सस्पेंड कर दिया तथा मान्यवर डी.के खापर्डे को दक्षिण भारत के कार्यालय में स्थानातंरण कर दिया। इसी समय एक और दर्दनांक घटना घटी। पूना से तीस किलोमीटर दूर एक गांव में दबंग जाति के लोगोंं ने अछूत जाति की कुछ महिलाआें को पूरे गांव में नंगा घुमाकर अपमानित किया। इसकी सूचना मिलने पर मान्यवर कांशीराम तथा मान्यवर डी.के खापर्डे सहित 10 आदमियों की एक टीम उस गांव पहुंची, पीड़ित व्यक्तियों से मिले तथा उनकी हिम्मत बढ़ाई। यह संघर्ष ही बामसेफ के जन्म का कारण बना?
मा. डी. के. खापर्डे, मा.कांशीराम और मा. दीनाभाना ने अपने दलित/अछूत समाज की वास्तविक सामाजिक हालत जानने के लिए देश के विभिन्न शहरों और गांवों का दौरा किया। विभिन्न लोगों से बातचीत की तथा अपने समाज की वास्तविक जानकारी प्राप्त की और उन्होंने यह पाया कि पूना के पास वाले गांव की समस्या देश की अकेली समस्या नहीं है बल्कि दलित समाज की पूरे देश में यही स्थिति है। इन महापुरुषों ने विचार किया कि इस प्रकार की समस्या पूरे देश व पूरे मूलनिवासी बहुजन समाज की है। राष्ट्रव्यापी समस्या से निजात पाने के लिए राष्ट्रव्यापी संगठन का निर्माण करना चाहिए। फलत: मा. काशीराम, मा. डी.के.खापर्डे, मा. दीनाभाना तथा देश के विभिन्न राज्यों से आए मूलनिवासी बहुजन समाज के अथक प्रयास से 6.12.1978 को दिल्ली के बोट क्लब पर ‘बामसेफ संगठन’ का निर्माण कर उसका लक्ष्य तय किया गया सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन।
सफाईकर्मी जातियों के पढ़े-लिखे लोग फुले-अंबेडकरी विचारधारा से अभी भी कोसों दूर हैं। लेकिन आज अच्छे संकेत मिल रहे हैं। अम्बेडकर विचारधारा का वाल्मीकि समाज में आगाज हो चुका है। वे आज स्पष्ट तौर पर यह महसूस करते हैं और स्वीकार करते हैं कि हम लोगों को बाबा साहेब को बहुत पहले ही अपना लेना चाहिए था। देरी हो गई, इसलिए हम आज भी पीछे हैं। लेकिन आज इस समाज के लोग डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा को अपनाने के लिए बेचैन हैं। आज ये लोग भी आत्मसम्मान पाने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन दीना भाना जी जैसी शख्सियत जिनका सफाई कर्मी जाति में जन्म हुआ, जो चार दर्जा कर्मचारी थे अर्थात ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं थे। उनके अंदर मान-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी क्योंकि वह बाबा साहेब की विचारधारा के संपर्क में थे। इसलिए वे विभाग के बड़े अधिकारियों के विरुद्ध अपने समाज के न्यायोचित मांगों के लिए डटकर खड़े हुए। वह ना तो उनके सामने झुके नहीं रूके और अंत में अधिकारियों को उनकी मांगों के सामने झुकना पड़ा।
दीना भाना जी 1986 में सेनेटरी इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत हुए। सेवानिवृत्ति के बाद वे कभी घर नहीं रहे। सामाजिक आंदोलन के कार्य से फुर्सत नहीं मिली। सेवानिवृत्ति के बहुत दिनों बाद पता चला कि उनके गले में कैंसर है, उनका बहुत इलाज चला। आॅपरेशन के बाद वे पूना चले गए। जहाँ अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और 28 नवम्बर 2011 को मूलनिवासी बहुजन क्रांति के महान योद्धा दीना भाना जी चिरनिद्रा में सो गए।
| Suresh Dravid, Haryana | |
| भावपूर्ण आदरांजली। | |
| 2025-11-04 17:36:05 | |
| दिवा शंकर पासवान, Jharkhand | |
| बहुत सुंदर जानकारी जय भीम जय मूलनिवासी | |
| 2025-11-04 17:35:11 | |
| रामकिशोर अहिरवार जमीर पूर्व प्राचार्य, Madhya Pradesh | |
| बहुत शानदार जानकारी, इसके लिए मैं आपको बहुत-बहुत साधुवाद देता हूं।मैं भी एक कट्टर मिशनरी और बौद्धिष्ट हूं।रामकिशोर अहिरवार जमीर पूर्व प्राचार्य अध्यक्ष भीम भारती सेवा संघ BBSS अजयगढ़ पन्ना मध्यप्रदेश। | |
| 2025-11-04 17:33:26 | |
| Sikandar Ram, Jharkhand | |
| बहुत सुंदर बहुत ही अच्छा जानकारी दिया इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद | |
| 2025-11-04 17:33:24 | |
| AdiDev Bharti, Uttarakhand | |
| Excellent knowledge | |
| 2025-11-04 17:33:08 | |
| Papindra Makwana, Uttar Pradesh | |
| मैं समझता हूँ कि आज की पीढ़ी को सब जायदा पढ़ाई करनी चाहिए और अपने समाज को आगे लाना चाहिए ताकि समाज को सही दिशा मिल सकें | |
| 2025-11-04 17:32:38 | |
| Sumit Kumar, Uttar Pradesh | |
| Achi information mili But kya Inka parinirwan 29 Aug 2009 ko hua | |
| 2025-11-04 17:31:44 | |
| Pradeep Kumar, Delhi | |
| मुझे आज पता चला कि समाज में इतने समय में क्या हुआ और हम लोग आज भी इन बेईमान पार्टी के नेताओं को वोट देते आए जो समाज का विकास नहीं करते अपना विकास करने करने में लगे हुए हैं। | |
| 2025-11-04 17:31:43 | |
| मूलचंद, Uttar Pradesh | |
| बहुत सुंदर जानकारी।हम मां दीनाभाना जी के मिशन मूवमेंट को उ प्र में कानपुर से पूरे प्रदेश में चलाने के लिए लोगों को मिशन में जोड़ कर काम करने के प्रयासरत और सफलता मिल रही है। | |
| 2025-11-08 15:53:18 | |
| Bahujan swabhiman, Delhi | |
| बहुजन मिशन को आगे बढ़ाने में हमारा सहयोग करें, धन्यवाद | |
| 2025-11-08 15:56:53 | |





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