Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

जाईबाई चौधरी

जातिवादी समाज में जिसने तय किया एक क्रांतिकारी शिक्षिका बनने का सफर
News

2023-04-28 12:02:30

वह 1800 का दौर था जब महिलाओं के लिए पढ़ना एक बहुत बड़ा विशेषाधिकार था, एक संघर्ष था। यह विशेषाधिकार भी केवल उच्च वर्ग और जाति की औरतों तक ही सीमित था। जातिवादी पितृसत्तात्मक समाज में दलित महिलाओं के संघर्ष उससे भी ज्यादा थे। जाईबाई चौधरी वह नाम हैं जिन्होंने उस समय न केवल खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अन्य लोगों तक भी उसकी पहुंच बनाई। जाईबाई चौधरी, दलित आंदोलन की एक क्रांतिकारी नेता थीं। उन्होंने दलित महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए अनेक काम किए हैं।

सावित्रीबाई फुले के महिलाओं की शिक्षा के लिए काम को आगे बढ़ाने का काम जाईबाई ने ही किया था। दलित इतिहास में जाईबाई चौधरी वह शख्सियत हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के उत्थान के लिए लगा दिया। इतिहास में जाईबाई चौधरी को कई भूमिकाओं में याद किया जा सकता है। वह एक समाज-सुधारक, आंदोलकारी, शिक्षिका और प्रधानाचार्या थीं।

जाईबाई चौधरी का जन्म 2 मई 1892 में नागपुर, महाराष्ट्र से 15 किलोमीटर दूर उमरेड में हुआ था। जाईबाई महार समुदाय से थीं। साल 1896 में अकाल पड़ने के कारण जीवन और काम के संकट को दूर करने के लिए उनका परिवार रोजगार के लिए नागपुर आकर बस गया। तमाम मुसीबतों के बीच जाईबाई ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। उन दिनों बाल विवाह की प्रथा सामान्य थी। जाईबाई का विवाह भी महज नौ साल की उम्र में कर दिया गया था।

शादी के बाद किया कुली का काम

साल 1901 में उनका विवाह बापूजी चौधरी नाम के एक व्यक्ति से हुआ था। जाईबाई के ससुराल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। घर की स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए जाईबाई ने नागपुर स्टेशन पर कुली का काम करना शुरू कर दिया। छोटी सी उम्र में जाईबाई सिर पर भारी बैग लादकर इधर से उधर पहुंचाने का काम करती थीं। वह नागपुर स्टेशन से कामटी स्टेशन के बीच सामान ढ़ोने का काम करती थी।

दोबारा शुरू की पढ़ाई

कुली का काम करने के दौरान ही उनकी मुलाकात मिशनरी नन ग्रेगॉरी से हुई। इस मुलाकत ने जाईबाई का जीवन बदल दिया। नन ग्रेगरी की मदद से उनका एक स्कूल में दाखिला हुआ। शिक्षा हासिल करने के बाद उन्हें नन की मदद से मिशनरी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। महीने की चार रुपये की तनख्वाह पर उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया था।

जाति की वजह से छूटी नौकरी

जाईबाई का संघर्ष सिर्फ यही तक सीमित नहीं है। समाज की जाति व्यवस्था उनके जीवन में बाधा बनकर सामने आ गई। जाईबाई के दलित जाति से होने के कारण तथाकथित ऊंची जाति के लोग उन्हें शिक्षिका के रूप में बर्दाशत न कर सकें। एक दलित जाति की महिला स्कूल में उनके बच्चों को पढ़ा रही है तो उनका विरोध करना शुरू कर दिया गया। उस स्कूल का लोगों ने बहिष्कार किया। लोगों के जातिवादी व्यवहार को देखकर जाईबाई ने खुद स्कूल की शिक्षिका की नौकरी छोड़ दी।

दलित लड़कियों के लिए खोला स्कूल

जाईबाई एक संघर्ष करनेवाली महिला थीं। वह हार मानने वाली नहीं थी। उस घटना के बाद उन्होंने एक समाज-सुधारक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। इस घटना का उन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने दलित महिलाओं और लड़कियों के लिए स्कूल खोलना तय किया। उसके इस कदम का यह परिणाम निकला कि साल 1922 में उन्होंने एक स्कूल की स्थापना कर दी। उनके स्कूल का नाम संत चोखोमेला कन्या पाठशाला था। इस स्कूल का नाम एक संत चोखोमेला के नाम पर था। यह स्कूल वर्तमान में भी चल रहा है।

समाज सुधारक जाईबाई

जाईबाई केवल महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने सामाजिक न्याय की स्थापना करने के लिए दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। वह अब दलित को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने की दिशा में काम करने लगी थीं। जाईबाई दलित महिलाओं को उनके अधिकारों, स्वच्छता और शिक्षा के बारे में बताती थीं। साल 1930 में हुए पहले दलित महिला सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया। वह इस सम्मेलन में स्वागत समिति की अध्यक्ष थीं।

भरी सभा में जाति की वजह किया अपमान का सामना

जाईबाई चौधरी ने जीवन के हर पड़ाव पर समाज की जाति व्यवस्था के कारण अपमान का सामना किया। लेकिन जाईबाई ने कभी भी हार नहीं मानी वह अपने काम में लगी रही। 1937 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में एक बार फिर दोबारा उन्हें दलित होने की वजह से तिस्कार का सामना करना पड़ा। इस सम्मेलन में खाने के समय उन्हें तथाकथित ऊंची जाति की महिलाओं से अलग बैठने को कहा गया और उन्हें अलग खाना दिया गया। इस बात पर वह बहुत नाराज हुईं और उन्होंने इसका विरोध किया।

सम्मेलन की उस घटना के विरोध में दलित महिलाओं ने एक जनवरी 1938 में एक सभा का आयोजन किया। तथाकथित ऊंची जाति की महिलाओं के द्वारा किए बर्ताव की जमकर आलोचना की। जाईबाई सामाजिक आंदोलनों में अग्रणी बनकर हिस्सा लेती थीं। उन्होंने साल 1942 में संपन्न हुए अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन में भाग लिया। खुद डॉ आंबेडकर इस सम्मेलन में उपस्थित थे।

जाईबाई चौधरी, दलित महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय आंदोलन की शुरूआती कार्यकर्ता हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन समुदाय की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने अन्याय और जाति उत्पीड़न के खिलाफ आवाज, शिक्षा के महत्व और दलित महिला आंदोलन के लिए काम किया। असमानता और जातीय भेदभाव के खिलाफ बोलने वाले लोगों में उनके संघर्ष को हमेशा याद रखा जाएगा। जाईबाई चौधरी ने जिस स्कूल की स्थापना की थी अब वह उच्च माध्यमिक स्कूल बन गया है। उस स्कूल का नाम बदलकर जाईबाई ज्ञानपीठ स्कूल कर दिया गया है।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05