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जननायक कर्पूरी ठाकुर

News

2024-01-20 09:11:49

24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफर बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।

जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए। एक दूसरा उदाहरण है, कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखना नहीं भूले। इस खत में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी। रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का फायदा भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया। प्रभात प्रकाशन ने कर्पूरी ठाकुर पर महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर नाम से दो खंडों की पुस्तक प्रकाशित की है। इसमें कर्पूरी ठाकुर पर कई दिलचस्प संस्मरण शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कपूर्रीजी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कपूर्रीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।

कर्पूरी जी का वाणी पर कठोर नियंत्रण था। वे भाषा के कुशल कारीगर थे। उनका भाषण आडंबर-रहित, ओजस्वी, उत्साहवर्धक तथा चिंतनपरक होता था। कड़वा से कड़वा सच बोलने के लिए वे इस तरह के शब्दों और वाक्यों को व्यवहार में लेते थे, जिसे सुनकर प्रतिपक्ष तिलमिला तो उठता था, लेकिन यह नहीं कह पाता था कि कर्पूरी जी ने उसे अपमानित किया है। उनकी आवाज बहुत ही खनकदार और चुनौतीपूर्ण होती थी, लेकिन यह उसी हद तक सत्य, संयम और संवेदना से भी भरपूर होती थी। कर्पूरी जी को जब कोई गुमराह करने की कोशिश करता था तो वे जोर से झल्ला उठते थे तथा क्रोध से उनका चेहरा लाल हो उठता था। ऐसे अवसरों पर वे कम ही बोल पाते थे, लेकिन जो नहीं बोल पाते थे, वह सब उनकी आंखों में साफ-साफ झलकने लगता था। फिर भी विषम से विषम परिस्थितियों में भी शिष्टाचार और मयार्दा की लक्ष्मण रेखाओं का उन्होंने कभी भी उल्लंघन नहीं किया। सामान्य, सरल और सहज जीवनशैली के हिमायती कर्पूरी ठाकुर जी को प्रारंभ से ही सामाजिक और राजनीतिक अंतर्विरोधों से जूझना पड़ा। ये अंतर्विरोध अनोखे थे और विघटनकारी भी। हुआ यह कि आजादी मिलने के साथ ही सत्ता पर कांग्रेस काबिज हो गई। बिहार में कांग्रेस पर ऊंची जातियों का कब्जा था। ये ऊंची जातियां सत्ता का अधिक से अधिक स्वाद चखने के लिए आपस में लड़ने लगीं। पार्टी के बजाय इन जातियों के नाम पर वोट बैंक बनने लगे। सन 1952 के प्रथम आम चुनाव के बाद कांग्रेस के भीतर की कुछ संख्या बहुल पिछड़ी जातियों ने भी अलग से एक गुट बना डाला, जिसका नाम रखा गया त्रिवेणी संघ। अब यह संघ भी उस महानाटक में सम्मिलित हो गया।

शीघ्र ही इसके बुरे नतीजे सामने आने लगे। संख्याबल, बाहुबल और धनबल की काली ताकतें राजनीति और समाज को नियंत्रित करने लगीं। राजनीतिक दलों का स्वरूप बदलने लगा। निष्ठावान कार्यकर्ता औंधे मुंह गिरने लगे। कर्पूरी जी ने न केवल इस परिस्थिति का डटकर सामना किया, बल्कि इन प्रवृत्तियों का जमकर भंडाफोड़ भी किया। देश भर में कांग्रेस के भीतर और भी कई तरह की बुराइयां पैदा हो चुकी थीं, इसलिए उसे सत्ताच्युत करने के लिए सन 1967 के आम चुनाव में डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया गया। कांग्रेस पराजित हुई और बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। सत्ता में आम लोगों और पिछड़ों की भागीदारी बढ़ी। कर्पूरी जी उस सरकार में उप मुख्यमंत्री बने। उनका कद ऊंचा हो गया। उसे तब और ऊंचाई मिली जब वे 1977 में जनता पार्टी की विजय के बाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। हुआ यह था कि 1977 के चुनाव में पहली बार राजनीतिक सत्ता पर पिछड़ा वर्ग को निर्णायक बढ़त हासिल हुई थी। मगर प्रशासन-तंत्र पर उनका नियंत्रण नहीं था। इसलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग जोर-शोर से की जाने लगी। कर्पूरी जी ने मुख्यमंत्री की हैसियत से उक्त मांग को संविधान सम्मत मानकर एक फॉमूर्ला निर्धारित किया और काफी विचार-विमर्श के बाद उसे लागू भी कर दिया। इस पर पक्ष और विपक्ष में थोड़ा बहुत हो-हल्ला भी हुआ। अलग-अलग समूहों ने एक-दूसरे पर जातिवादी होने के आरोप भी लगाए। मगर कर्पूरी जी का व्यक्तित्व निरापद रहा। उनका कद और भी ऊंचा हो गया। अपनी नीति और नीयत की वजह से वे सर्वसमाज के नेता बन गए। वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी। वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05