2024-01-12 13:52:09
बाबू मंगूराम मुंगोवालिया जी का जन्म गांव मुगोवाल, जिला होशियारपुर में 14 जनवरी 1886 को हुआ था। पिताजी का नाम मा. हरनाम दास व माताजी का नाम मा. अतरी था। बाबूजी 3 वर्ष के थे तभी माताजी का देहांत हो गया। हाईस्कूल बजवाड़ा में वर्ण व्यवस्था, जात-पात और छुआछूत के कोढ़ रूपी रोग की हकीकत और अनुभव का विवरण देना जरूरी है जो बाबूजी के साथ पढ़ाई के समय हुआ। हिंदू, मुसलमान, सिख विद्यार्थियों को अलग अलग टाट-पट्टी लेकर स्कूल जाना पड़ता था। बाबूजी को मनाही थी क्लास रूम में बैठने की, स्कूल के कुवे से पानी पीने की, अच्छे कपड़े पहनकर स्कूल में आने की, स्कूल की प्रतियोगिता खेलों डारल आदि में भी भाग लेने की। सबसे अहम बात यह थी कि अध्यापक उसको अलग से नहीं पढ़ाएंगे। गर्मी सर्दी वर्षा आंधी धूप आदि में उसको कमरे में बाहर ही बैठना पड़ता था। इस तरह के पाबंदियों और छुआछूत जैसे व्यवहार ने बाबूजी को झकझोर कर रख दिया।
विदेश में पढ़ाई
1905 में पढ़ाई छोड़ पिताजी को इस बात के लिए मना लिया कि वह अमेरिका चला जाएगा। 1909 बाबूजी अमेरिका चले गए। 1913 में जो पंजाबी लोग कैलिफोर्निया में स्थापित हो चुके थे उन्होंने गदर आंदोलन शुरू किया। बाबूजी भी इस आंदोलन में शामिल हो गए।
पहचान की खोज
1925 में भारत आ गए। गांव में पहुंचकर शिक्षा के महत्व को समझते हुए गांव में मीटिंग बुलाई और आदिधर्म स्कूल की स्थापना की, साथ ही आदिधर्म मंडल का गठन किया गया। वे ऐसी संस्था/संगठन का निर्माण करने के लिए उतावले थे जो समाज के सामाजिक व आर्थिक बदहाली को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए वचनबद्ध हो। इस कार्य के लिए उन्होंने पंजाब के दोआब एरिया का तूफानी दौरा किया। बाबूजी ने अपने भाषणों में ब्राह्मणवादी व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई। उनका मत था कि हम हिंदू नहीं है। हिंदू अपने धर्म का हिस्सा बनाकर अपने हितों की पूर्ति कर रहे हैं। इसलिए आदिधर्म की नींव रखी। प्रचार प्रसार के लिए साप्ताहिक पत्रिका ‘आदि डंका’ निकाली। 1930 में उर्दू संस्करण भी शुरू किया। आदिधर्म मंडल ने अछूतों पर हो रहे अत्याचारों को अंग्रेज सरकार तक पहुंचाने के लिए अखबार द्वारा बीड़ा उठाया था।
सायमन कमीशन
1928 में बाबूजी के नेतृत्व में एक दल सायमन कमीशन से मिला और अछूतों के साथ हो रहे अत्याचार, सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी के बारे में मेमोरेंडम (मांग-पत्र) दिया। बाबूजी को लाहौर मिलने के लिए आमंत्रित किया गया। बाबूजी ने मांगपत्र में माँग की कि आदिधर्म के लोग न तो हिंदू है ना मुसलमान और ना ही सिक्ख। हिंदू हमारी गिनती अपने में मिलाकर हमारे हिस्से की रोटी अंग्रेजी सरकार से मांगकर स्वयं खा रहे हैं। आदि धर्म की रैली को साइमन कमीशन से भेंट करने से रोका गया। फलस्वरूप पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। 1931 की जनगणना में बड़ी संख्या में अछूतों ने अपना धर्म आदिधर्म लिखवाया।
यूनिक स्टाईल
यहाँ इस घटना का जिक्र करना जरूरी है कि जब बाबूजी गवर्नर से मिलने लाहौर गए तो वह अपने साथ एक कुर्सी लेकर गए। कुर्सी को सिर पर उठाकर घूमने लगे। गवर्नर साहब ने बाबूजी को अपनी मांगों के संबंध में बातचीत के लिए दफ्तर में बुलाया। बाबूजी वैसे ही सिर पर कुर्सी उठाए गवर्नर साहब के समक्ष पेश हुए। गवर्नर साहब ने उनको कुर्सी नीचे रखकर बैठने के लिए कहा तो बाबूजी का जवाब था कि कुर्सी कहाँ रखूं, हमारे नाम तो जमीन ही नहीं है, जहाँ हम कुर्सी रखकर बैठ सकें। बाबूजी ने गवर्नर को अछूतों की मांगों और उनके हक अधिकारों को उनकी जनसंख्या के आधार पर देने की मांग की।
बाबूजी और डॉ अंबेडकर
1945 में बाबूजी होशियारपुर से एमएलए चुने गए। बहुजन समाज के अधिकारों की मांग का नेतृत्व बाबूजी ने किया और इन अधिकारों को कानून का दर्जा डॉ अंबेडकर जी ने संविधान में दिया। 22 अप्रैल 1980 को बाबू जी का निधन हो गया।
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