2023-08-21 11:58:53
एक समाज सुधारक तथा महान सहयोगी शिक्षक जिन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को वजीफे के लिए बडौदा नरेश गायकवाड़ से मिलवाया।
गुरु जी केलुसकर अम्बेडकर को एक पार्क में अक्सर पढ़ता हुआ देखते थे। उनकी शिक्षा ग्रहण करने की लगन से वे बहुत प्रभावित हुए और भीम राव से स्नेह करने लगे। सन् 1907 में एक अछूत का मैट्रिक पास कर लेना एक साधारण बात नहीं थी। बम्बई के अछूतों ने भीमराव का साहस बढ़ाने के लिए उन्हें बधाई देने के लिए एक सभा का आयोजन किया। इस सभा में विल्सन हाई स्कूल के मुख्य अध्यापक मा. कृष्णाजी अर्जुन केलुसकर भी शामिल हुए, जो एक प्रसिद्ध समाज सेवक भी थे। इस अवसर पर गुरु केलुस्कर ने ‘भगवान गौतम बुद्धाचे चरित्र’ नामक पुस्तक भीमराव को भेंट की। इस अवसर पर सूबेदार जी ने घोषणा की, भले ही मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, परंतु फिर भी मैं भीमराव को उच्च शिक्षा दिलवाने कर दृढ़ निश्चय रखता हूँ।
भीमराव बम्बई के एल्फींसटन कॉलेज में प्रविष्ट हो गए। एक अछूत का कॉलेज में प्रविष्ट होना उस समय एक अनहोनी सी बात थी। सूबेदार रामजीराव सकपाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी। उनमें भीमराव को अब शिक्षा दिलवाने का सामर्थ्य नहीं रहा था। ऐसा लगता था कि अब सूर्य को चमकने का अवसर नहीं मिलेगा। ऐसे में मास्टर कृष्णाजी अर्जुन केलुसकर एक सच्चे सहायक के तौर पर सामने आए। महाराजा बड़ोदा ने परिश्रमी व योग्य छात्रों को आर्थिक सहायता की घोषणा कर रखी थी। माननीय केलुसकर जी भीमराव को महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के पास ले गये। महाराज ने भीमराव से कुछ प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने ठीक-ठीक उत्तर दिया। अत: महाराजा गायकवाड़ ने भीमराव की उच्च शिक्षा के लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृति स्वीकृत कर दी।
बड़े प्यार से बाबासाहब अम्बेडकर को जिस कृष्णाजी अर्जुन केलुसकर शिक्षक ने स्वलिखित ‘भगवान गौतम बुद्धाचे चरित्र’ भेंट की थी, उनका 14 अक्टूबर 1934 में देहान्त हुआ था। उनके धम्मप्रेम को यादगार करने का बाबा साहेब के लिए यह उचित दिन रहा। इसलिए तारीख- 14 अक्टूबर के दिन धर्मान्तर समारोह तय किया गया था। 14 अक्टूम्बर 1956 को इस दिन माता कचहरी के मैदान में पाँच लाख से भी अधिक अनुयायियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। बौद्ध जगत के महान विद्वान और भिक्षुगण उपस्थित हुए थे। अब इस जगह को दीक्षा भूमि के नाम से जाना जाता है। अन्याय, गुलामी, विषमता और परस्पर द्वेष फैलाने वाले तानाशाही हिन्दू धर्म से स्थाई रिश्ता खत्म करने का समय करीब आ चुका था।
छुआछूत की लानत ने कॉलेज मे भी उनका पीछा नही छोड़ा। कालेज की कँटीन का मलिक एक ब्राह्मण था। इस लिए भीमराव अंबेडकर को कँटीन से चाय तो क्या पानी भी नही दिया जाता था। परन्तु अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर भीमराव आंबेडकर हिंदू घर्म की रूढिवादित्ता की ओर से किए गए अपमान और निरूत्साहन का मुकाबला करते हुए विद्या प्राप्ति के पर्वत को लाँघते गए। 1912 में उन्होंने फारसी और अग्रेजी विषयों के साथ बम्बई यूनिवर्सिटी से बीए की परीक्षा पास की। वे ग्रेजुएट बनने वाले पहले अछूत थे।
बाबासाहेब अम्बेडकर स्नातक परीक्षा पास करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे। उन्हीं दिनों महाराजा गायकवाड़ ने घोषणा कर रखी थी कि होनहार छात्रों को वे सहायता देकर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजेंगे। गुरु केलुस्कर अम्बेडकर को संयाजीराव गायकवाड़ के पास बड़ौदा लेकर गये। महाराजा बड़ौदा ने अम्बेडकर से पूछा कि आप उच्च शिक्षा लेकर क्या करना चाहते हो? बाबा साहेब ने महाराजा को बताया कि मैं उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने समाज को ऊपर उठाने का कार्य करूंगा। महाराजा बड़ौदा डॉ. अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयार्क भेजने के लिए सहमत हो गये और राज्य के खर्चे पर उनको तीन साल के लिए अमेरिका भेज दिया।
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